Home विचार कांग्रेस की ‘करतूत’ ने न्यायपालिका को भी ‘कठघरे’ में खड़ा कर दिया!

कांग्रेस की ‘करतूत’ ने न्यायपालिका को भी ‘कठघरे’ में खड़ा कर दिया!

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स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय के किसी मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। यह प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति ने अस्वीकृत कर दिया तो कांग्रेस पार्टी इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट चली गई। हालांकि वहां भी कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी और मामले की सुनवाई के लिए गठित संविधान पीठ द्वारा कांग्रेस की याचिका खारिज कर दी गई। यद्यपि कांग्रेस यहां भी बाज नहीं आई और पूरी न्याय व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में लग गई।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध महाभियोग के प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 23 अप्रैल को खारिज कर दिया था। महाभियोग प्रस्ताव के लिए कांग्रेस के 5 कारण के जवाब में उपराष्ट्रपति ने खारिज करने के लिए 22 कारण बताए थे। हालांकि कांग्रेस ने इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने खारिज कर दिया। जाहिर है कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका है, लेकिन वह इससे सबक न लेकर उल्टा संविधान पीठ के गठन पर ही सवाल खड़े कर रही है। जाहिर है कांग्रेस का उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय को ‘सियासत का मोहरा’ बनाने के साथ न्यायपालिका को ‘अविश्वास के कठघरे’ में खड़ा करना भी है।

निष्पक्ष निर्णय के लिए संविधान पीठ का गठन
मुख्य न्यायाधीश ने काफी सोच समझ कर संविधान पीठ का गठन किया था, क्योंकि जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस रंजन गोगोई पहले ही विवादों में आ चुके हैं। वहीं स्वयं सीजेआई पर ही महाभियोग का प्रस्ताव था, इसलिए उनके द्वारा भी मामले की सुनवाई उचित नहीं थी। हालांकि सीजेआई ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ होते हैं इसलिए उन्होंने संविधान पीठ का गठन किया, ताकि सुनवाई में निष्पक्षता पर सवाल न उठे।

चेलमेश्वर के बार-बार मीडिया में आने का सबब!
जिस मुखरता के साथ जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस रंजन गोगोई मीडिया के सामने आ रहे हैं और अपनी खीझ जाहिर कर रहे हैं, इससे यह पूरा प्रकरण ही संदेहास्पद हो गया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये चारो जज कांग्रेस के इशारे पर ऐसा कर रहे हैं? सवाल ये भी कि क्या ये न्यायाधीश अपनी हरकतों से न्यायपालिका की गरिमा पर आघात नहीं कर रहे हैं?

चार जजों के प्रेस कांफ्रेंस के लिए कांग्रेस जिम्मेदार!
12 जनवरी, 2018 को जब सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीश- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस मदन लोकुर प्रेस के सामने आए, वह अपने आप में अभूतपूर्व घटना थी। इन चारों न्यायाधीशों ने जो मुद्दे उठाए वह वास्तविक भी हो सकते हैं, लेकिन इनके तौर-तरीकों से ये सवाल जरूर खड़े हो गए।

दरअसल प्रेस कांफ्रेंस में इनके ‘माउथपीस’ करण थापर जैसे पत्रकार थे, जिनके सोनियां गांधी और कांग्रेस नेताओं से गहरे ताल्लुकात हैं। सवाल यह भी कि इन चारों जजों के प्रेस कांफ्रेंस के आयोजक 10 जनपथ से ताल्लुक रखने वाले पत्रकार शेखर गुप्ता क्यों थे?

सीजेआई को सियासत का मोहरा बनाने की कोशिश
जज लोया मामले में मनमुताबिक फैसला नहीं आने के कारण कांग्रेस पार्टी ने देश के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दे दिया था। हालांकि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इस गैर वैधानिक प्रस्ताव को खारिज कर दिया, लेकिन कांग्रेस की मंशा जरूर साफ हो गई। दरअसल कांग्रेस पार्टी चीफ जस्टिस पर दबाव बनाना चाहती थी, ताकि राजनीतिक रूप से कांग्रेस पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी दो फाड़ नजर आई जिससे पार्टी की मंशा जगजाहिर हो गई।

जज लोया केस में एक्सपोज हुई कांग्रेस की राजनीति
6 अप्रैल को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का मुद्दा खत्म हो गया है। 19 अप्रैल को जज लोया पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जिसमें लोया की मौत की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग खारिज कर दी गई। अगले ही दिन यानि 20 अप्रैल को कांग्रेस ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का फैसला कर लिया।  मतलब यह कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आपके पक्ष में ना हो तो आप चीफ जस्टिस पर ही सवाल खड़ा कर दें?

न्यायाधीशों को धमकाने पर उतर आई कांग्रेस पार्टी
जिस संस्था पर संवैधानिक प्रावधानों के संरक्षण की सर्वोच्च जवाबदेही है, उसे ही मुद्दा बनाने की कोशिश की गई है। कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल ने जब कहा कि 23 अप्रैल से वह चीफ जस्टिस की कोर्ट में नहीं जाएंगे, तो यह कांग्रेस पार्टी की धमकाने की एक और कोशिश मानी गई। साफ है कि कांग्रेस की यह पहल न्यायिक कम, राजनीतिक अधिक थी। उसे इस बात की कतई चिंता नहीं है कि उसके इस कदम से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर आंच आ रही है।

कांग्रेस से पांच सवाल

  • महाभियोग मामले पर कांग्रेस जस्टिस चेलमेश्वर से ही निर्णय क्यों चाहती थी?
  • क्या कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों पर विश्वास नहीं है?
  • क्या कांग्रेस यह कहना चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट में सभी जज पक्षपात करते हैं?
  • क्या कांग्रेस पूरी न्याय व्यवस्था को कठघरे में खड़ा नहीं कर रही है?
  • क्या कांग्रेस न्याय व्यवस्था को बदनाम कर अपनी राजनीति चमकाना चाहती है?

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