मोदी सरकार को बदनाम करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। किसी बात को किसी संदर्भ में जोड़कर ऐसा माहौल बना दिया जाता है, मानो मोदी सरकार से ज्यादा जनविरोधी कभी कोई सरकार रही ही नहीं। ताजा मामला मेनका गांधी का है। मेनका गांधी लाइव स्ट्रीम के जरिए सोशल मीडिया पर आयीं। 2 लाख लोग इस इवेंट से ऑनलाइन जुड़े। करीब 700 प्रश्न आए। एक प्रश्न ऐसा था जिसके जवाब को लेकर सोशल मीडिया में मेनका गांधी को ट्रोल किया जाने लगा।
Menka Gandhi maut 1 minutes ka mone rakhna toh bnta hai.
— Trilok Sharma (@trilok18in) June 30, 2017
आप आश्चर्य करेंगे जब ये सुनेंगे कि मेनका गांधी ने ऑनलाइन कहा हो कि उन्होंने एक भी व्यक्ति की आत्महत्या की खबर न पढ़ी है, न सुनी है। मेनका गांधी के मुंह से ‘ऐसा कहा गया’, अगर आपको बताया जाएगा तो आप क्या प्रतिक्रिया देंगे? जो प्रतिक्रिया देंगे, वह कुछ इस तरह से होगा- बिना पढ़े-लिखे मंत्री बन गयीं क्या?, ऐसे ही मंत्री से बनेगा न्यू इंडिया?, मोदी सरकार ऐसे मंत्री के जरिए क्या बदलाव कर देंगे?, जो अखबार नहीं पढ़तीं, जिन्हें अपने देश में आत्महत्या की घटनाओं का पता ना हो, वो भला मंत्रालय कैसे संभाल रही होंगी?…वगैरह…वगैरह। जाहिर है ऐसी ही प्रतिक्रियाओं से सोशल मीडिया में मेनका गांधी ट्रोल करने लगीं।
@menka central minister menka gandhi ne kaha ki purush Atmhatiya nahi karte,ye kishan aatm hatiya nahi kar rahe hai to kiya kar rahe hai..?
— Anil Pathak (@iamAnilPathak) June 30, 2017
सोशल मीडिया पर आम लोगों ने ही नहीं, पत्रकारों ने भी मेनका गांधी को ट्रोल किया। नेशनल क्राइम ब्यरो के आंकड़े जारी किए। सवाल किए कि आत्महत्याओं की इतनी घटनाएं घटी हैं। क्या आपने कभी एक भी न सुना, न पढ़ा?
https://t.co/AMa3qzrk67
UnionMinister has not heard of any male suicides
1,33,623 suicides were reported in country,of wh 91,528 were by men— Barkha Trehan (@trehan_barkha) June 29, 2017
सोशल मीडिया ही नहीं, मेन स्ट्रीम की मीडिया इंडियन एक्सप्रेस, अमर उजाला जैसे अखबार भी मंत्री को गलत तरीके से पेश कर न सिर्फ मंत्री, बल्कि पूरी सरकार का अपमान कर रहे हैं।
सच्चाई क्या थी?
सच्चाई यह थी कि मेनका गांधी से सवाल किया गया-
What Our Govt is doing to reduce highter suicide rate among men, majority of which is due to Gynocentric Gender-Biased laws.?
यह सवाल आम आत्महत्या का नहीं है, न ही किसानों की आत्म हत्या से जुड़ा है। लिंगभेद के कारण पुरुषों की आत्महत्या से जुड़ा ये सवाल है। इसके जवाब में मेनका गांधी ने क्या कहा-
“Which men committed suicide??? Why not try and resolve the situation rather than commit suicide- I have not heard/read of a single case.”
औसत बुद्धि का व्यक्ति भी यह समझ सकता है कि मेनका गांधी लिंग भेद के कारण आत्महत्या पर पूछ रही हैं कि किस व्यक्ति ने आत्महत्या की? क्यों नहीं उसने आत्महत्या से पहले समस्या का हल ढूंढ़ने की कोशिश की? मैंने एक भी ऐसे केस के बारे में न सुना है, न पढ़ा है।
Smt @ManekaGandhiBJP was misquoted during a Facebook Q&A held on June 29, 2017. Kindly read the press release issued by the Ministry. pic.twitter.com/mHaEfZ3K3t
— Ministry of WCD (@MinistryWCD) June 30, 2017
आप समझ सकते हैं कि जो पढ़ी लिखी मेनका गांधी लिंगभेद के कारण पुरुषों के आत्महत्या करने के दावे को नकार रही हो, उन्हें देश में आत्महत्या की घटनाओं और यहां की सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी तो अवश्य होगी।
मगर, सोशल मीडिया ने मेनका गांधी को निरक्षर, अज्ञानी, मूर्ख न जाने क्या-क्या कह डाला। इस बहाने मोदी सरकार को अकर्मण्य और बदनाम बताने के सारे मुहावरे इस्तेमाल कर लिए गये।
दरअसल मोदी सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया में एक पूरा गैंग हाथ धोकर पड़ा हुआ है जो बातों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है। पीएम मोदी, उनकी सरकार और उनके मंत्रियों को बदनाम करता है। मेनका गांधी तो उदाहरण भर हैं।
क्या ये माना जा सकता है कि इंडियन एक्सप्रेस और अमर उजाला जैसे अखबारों को भी मेनका गांधी की सोच-समझ के स्तर का पता नहीं होगा? क्या उन्होंने झूठ को परखने की कोई कोशिश की? कैसी पत्रकारिता है जो देश के एक जिम्मेदार मंत्री के बयान की सच्चाई को परखे बिना खबर छापती है, उन्हें ट्रोल करने लगती है? अब भी क्या यह कहना बाकी है कि मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए देश में मीडिया का एक वर्ग मौके गढ़ रहा हैं?