प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से चिढ़े विरोधी दुष्प्रचार को अपना मुख्य हथियार मान बैठे हैं। आए दिन कोई न कोई ऐसी खबर सामने आती है जो या तो जान बूझकर क्रियेट की जाती हैं या पूरी तरह से भ्रामक होती हैं। सोशल मीडिया पर आजकल एक फेक पोस्ट खूब शेयर की जा रही, जिसमें दावा किया जा रहा है कि रक्षाबंधन के दिन जो महिलाएं और बच्चियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलीं उनके लिए आधार कार्ड अनिवार्य था। पोस्ट के मुताबिक, सिर्फ उन्हें ही पीएम मोदी की कलाई पर राखी बांधने की इजाजत मिली जिनके पास आधार कार्ड था। पहले आप ये तस्वीर देखिये—
Is aadhaar mandatory to tie Rakhi to PM..?? Look at her Hand.. #letsridetogether with #RakshaBandhan pic.twitter.com/Wxp6fRWQzX
— Harshith Gokulendra (@HarshithGoku) August 26, 2018
इस पोस्ट को साजिश के तहत सोशल मीडिया पर कई बार शेयर किया गया है। ट्विटर और फेसबुक पर ज्यादातर अकाउंट्स ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए पीएम मोदी के लिए अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया।
मोदी जी ?
बहन से राखी बंधवाने के लिए आधार कब से ज़रूरी हो गया है???
वैसे आपने राखी तो बंधवा लिया लेकिन समाज के बलात्कारियों और सोशल मीडिया पर आपके पाले हुए गालीबाज़ों से अपनी इस बहन की रक्षा कर पायेंगे क्या आप???@soulofosho @AacharyaSahiiL @qz_singh @BrightDays19 pic.twitter.com/xHxjccMwVD
— ? Sheela Singh ? (@SheeIaS) August 28, 2018
राखी बाँधने में भी आधार कार्ड वाह रे मोदी सरकार.#ModiMadeDisaster #ModiLies #jumlas pic.twitter.com/lXTdHk4pD2
— Kapil Sibal-Team ? (@KapilSibalteam) August 28, 2018
हालांकि हकीकत इसके बिल्कुल इतर है। सच्चाई ये है कि इस तस्वीर को पीआईबी के अकाउंट से फोटो को शेयर किया गया था। ये फोटो सही है और इसके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ यानी फोटोशॉप नहीं किया गया है। इस बच्ची के हाथ में आधार कार्ड था। लेकिन इस फोटो के साथ जो दावा किया जा रहा है वो गलत है।
दरअसल, प्रधानमंत्री कार्यालय का एक प्रोटोकॉल होता है जिसके मुताबिक, वहां आने वाले हर व्यक्ति को अपना पहचान-पत्र दिखाना जरूरी होता है। रक्षाबंधन वाले दिन जितनी भी बच्चियां प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचीं थीं, उन सभी के पास अपना पहचान-पत्र था। किसी के पास अपने स्कूल का आईडी कार्ड था, तो किसी के पास कोई और। लेकिन जिस बच्ची के हाथ में आधार कार्ड है, उसके पास स्कूल का आईडी कार्ड नहीं दिख रहा है। जिससे साफ है कि बच्ची अपनी पहचान के लिए आधार कार्ड लेकर गई थी।
जाहिर है पीएम मोदी के विरूद्ध एक दुष्प्रचार अभियान चल रहा है जिसे सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया में भी खूब तवज्जो दिया जा रहा है।
फेक न्यूज फैलाने की यह तो हाल की घटनाएं, इससे पहले भी सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया में मोदी सरकार के खिलाफ झूठी खबरें फैलाने का सिलसिला चलता रहा है। एक नजर डालते हैं।-
किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ कांग्रेस और विरोधी दल तमाम तिकड़म कर रहे हैं। जोड़-तोड़ की राजनीति के बीच दुष्प्रचार का भी सहारा भी ले रहे हैं। इस क्रम में कई बार ऐसी झूठी खबरों का जाल भी बुना जाता है जिसका अस्तित्व ही नहीं होता है। हाल में जब दिल्ली के रामलीला मैदान का नाम बदलने की खबर मीडिया में छाई तो इस पर बहुत विवाद हुआ।
आपको बता दें कि खबर में कहा गया कि नॉर्थएमसीडी ने रामलीला मैदान का नाम अटल रामलीला मैदान करने का प्रस्ताव भेजा है। एबीपी न्यूज की इस पर दिल्ली के विवादित मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से त्वरित रूप से ट्वीट किया और मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की, इससे जाहिर हो गया कि इसके पीछे कोई साजिश है।
जब दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने ऐसी किसी भी खबर का खंडन किया तो यह साफ हो गया कि ये खबर जान बूझकर फैलाई गई।मनोज तिवारी ने स्पष्ट बताया कि रामलीला मैदान का नाम बदलने का उनका कोई प्रस्ताव नहीं है। यह भ्रम आम आदमी पार्टी फैला रही है। बकौल मनोज तिवारी, राम हमारे आराध्य देव हैं, इसलिए रामलीला मैदान का नाम बदलने का सवाल ही नहीं।
कुछ लोग जानबूझकर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं! मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम हम सबके आराध्य हैं इसलिये रामलीला मैदान का नाम बदलने का कोई सवाल ही नहीं है! pic.twitter.com/xJ7XrSIutO
— Manoj Tiwari (@ManojTiwariMP) August 25, 2018
दरअसल मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए राजनीतिक दलों के साथ मीडिया का एक खास वर्ग भी बेहद सक्रिय है।
हाल में ही संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत अहमद अल बन्ना ने ऐसी ही झूठी खबरों की पोल तब खोल दी जब उन्होंने खलासा किया कि उनके देश ने केरल को आर्थिक सहायता के लिए किसी रकम की कोई घोषणा नहीं की है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, इस बात के एलान के साथ ही विरोधी दलों और मीडिया के एक वर्ग का नकारात्मक चेहरा एक बार फिर सामने आ गया है। केरल के सीएम और मीडिया के एक बड़े वर्ग का यह दावा झूठ साबित हो गया है कि UAE सरकार ने 700 करोड़ की मदद की पेशकश की है। इससे साथ ही यह खबर भी झूठी साबित हुई कि मोदी सरकार ने उसे लेने से इनकार कर दिया है।
UAE Ambassador Ahmed Albanna said that there has been no official announcement so far by the UAE on any specific amount as financial aid… So we have been having a national debate on 700 cr, when there is not even an offer on the table! #KeralaFloodRelief https://t.co/NiI8YQCXUw
— Amit Malviya (@amitmalviya) August 24, 2018
दरअसल मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए बड़े स्तर पर साजिशें रची जा रही हैं। हाल में यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि भारतीय मीडिया में आजकल ऐसी खबरें सुर्खियां बना दी जा रही हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर से बिना किसी तथ्यों के आधार पर निकलती हैं। इसके बाद कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां उसे मोदी सरकार से जोड़कर बदनाम करने का एक अभियान सा लेकर निकल पड़ती हैं। यूएई से आर्थिक मदद की खबर भी ऐसी ही है। आपको बता दें कि इंडिया टुडे ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसके तहत ये कहा गया था कि यूएई ने एक कमेटी का गठन किया है जो यह देखेगी कि कैसे बाढ़ग्रस्त केरल की मदद की जा सकती है।
जाहिर है इसमें न तो किसी रकम की बात है और न ही वित्तीय मदद का कोई आश्वासन। लेकिन कांग्रेस और वामपंथ समर्थित ‘डर्टी ट्रिक गैंग’ ने इसी आधार पर फेक न्यूज फैला दिया ताकि मोदी सरकार बदनाम हो।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का झूठ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले वर्ष 22 और 23 सितंबर को वाराणसी में विकास योजनाओं का शुभारंभ कर रहे थे, जिसके लिए शहर के लोग वर्षों से इंतजार कर रहे थे तो दूसरी तरफ इन धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने गोलबंद होकर शहर की आबोहवा बिगाड़ने का काम किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लड़कियों के विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए हुई पुलिस कार्रवाई को क्रूर और दमनकारी साबित करने के लिए पत्रकारों और राजनेताओं ने एक ऐसी घायल लड़की की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सैकड़ों किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी में युवकों से मारपीट में घायल एक लड़की की तस्वीर थी।
दैनिक हिन्दुस्तान की पूर्व संपादक और प्रसार भारती की पूर्व सीईओ मृणाल पांडे ने लिखा-
इसी तस्वीर को प्रशांत भूषण ने भी रीटीव्ट किया-
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथी और आप नेता संजय सिंह ने भी इस तस्वीर की सच्चाई जाने बगैर रीट्वीट कर दिया-
इसके बाद और लोगों ने इस झूठी तस्वीर को सोशल मीडिया पर शेयर करना शुरू कर दिया।
अब देखिए वह तस्वीर जिसके आधार पर झूठी खबर फैलायी गई।
उत्तर प्रदेश के शिक्षा बजट का झूठा प्रचार
जुलाई 2017 में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पहला बजट पेश किया था। इस बजट में शिक्षा के लिए आवंटित धन में कमी दिखाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया किया गया, जबकि शिक्षा का बजट वास्तव में बढ़ाया गया था।
राहुल गांधी को तो प्रधानमंत्री के विरोध का कोई मौका चाहिए था, उन्होंने तुरंत सोशल मीडिया पर हमला बोल दिया
इसके बाद लोगों ने इसे शेयर करना शुरु कर दिया और कांग्रेसी पत्रकारों ने इस पर खबर भी बना डाली।
सच्चाई यह थी कि समाचार एजेंसी पीटीआई ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा पेश बजट के कुछ अंशों के आधार पर ही यह रिपोर्ट तैयार की थी। कागजों को ठीक ढंग से पढ़कर खबर बनाई गयी होती तो पता चलता कि योगी सरकार ने शिक्षा के लिए बजट में कमी नहीं बल्कि 34 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। अखिलेश यादव की सरकार ने 2016-17 में जहां 46,442 करोड़ रुपये शिक्षा के लिए दिये थे वही 2017-18 में योगी आदित्यनाथकी सरकार ने 62, 351 करोड़ रुपये दिए हैं।
नोटबंदी पर भी झूठा प्रचार किया गया
08 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की। इसे जन विरोधी बताने के लिए भी झूठी तस्वीरों का सहारा लिया गया। नोटबंदी के मुखर विरोधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जब दिल्ली की सड़कों पर ममता बनर्जी के साथ कोई समर्थन नहीं मिला तो उन्होंने 20 नवंबर को एक तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा-
हालांकि केजरीवाल के इस ट्वीट की सच्चाई सामने आ गयी-
अहमदाबाद एयरपोर्ट पर बाढ़ की झूठी तस्वीर
गुजरात के विकास मॉडल पर सबकी नजर है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास के मॉडल की प्रयोगशाला है, इसलिए तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी हमेशा ऐसे मौके की तलाश में रहते हैं जहां से वह गुजरात के विकास मॉडल में कोई कमी निकाल सकें। ऐसा ही मौका, इस साल जुलाई में हुई भीषण बारिश से गुजरात के कई शहरों में आये बाढ़ के हालातों में उन्हें मिल गया। 27 जुलाई को सोशल मीडिया पर एक तस्वीर डाली गई, जिसमें अहमदाबाद एयरपोर्ट पूरी तरह से पानी में डूबा दिखाई दे रहा है।
इस तस्वीर के सोशल मीडिया पर आते ही इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टूडे और तमाम लोगों ने शेयर करना शुरु कर दिया।
इस तस्वीर की सच्चाई वह नहीं थी, जिसके साथ इसे सभी शेयर कर रहे थे। यह तस्वीर दिसंबर 2015 में चेन्नई के बाढ़ के समय की थी। उस समय चेन्नई के एयरपोर्ट के बाढ़ की तस्वीर 2 दिसम्बर 2015 को एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर डाली थी।