आजादी के बाद से ही कांग्रेस की नीति बांटो और राज करो की रही है। जाति को जाति से लड़ाने, हिंदुओं को आपस में बांटने, प्रांतवाद-क्षेत्रवाद की पॉलिटिक्स और धर्म के आधार पर तुष्टिकरण करने की राह पर चल रही कांग्रेस देश को खोखला करती जा रही है। कांग्रेस की इन्हीं देश विरोधी नीतियों के कारण पार्टी के नेता अलग होते जा रहे हैं। सोनिया गांधी के गढ़ रायबरेली में पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है। रायबरेली से कांग्रेस के एमएलए और एमएलसी सहित कई नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस एमएलसी दिनेश सिंह के साथ रायबरेली के हरचंदपुर से कांग्रेस विधायक राकेश सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया है। इन दोनों नेताओं के अलावा रायबरेली जिला पंचायत अध्यक्ष अवधेश सिंह ने भी पार्टी से इस्तीफा दिया है। दिनेश सिंह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं, लेकिन हाल के दिनों में पार्टी की बांटने वाली राजनीति से तंग आकर उन्होंने कांग्रेस से किनारा करना ही सही समझा।
पिछले दिनों में कुछ ऐसे वाकये हमारे सामने आए हैं जो यह साबित करते हैं कि कांग्रेस पार्टी लगातार लोगों को भड़का रही है और अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी देश में ‘हिंसा की आग’ फैलाकर सत्ता की सीढ़ी चढ़ना चाहती है?
उत्तर-दक्षिण को लड़ाने की साजिश!
कर्नाटक में अलग झंडे को मंजूरी देने के बाद सीएम सिद्धारमैया ने अलग तरह के अलगाववाद की बुनियाद तैयार करनी शुरू कर दी है। सिद्धारमैया ने इसके लिए अपने फेसबुक अकाउंट का सहारा लिया है। इस बार उन्होंने संसाधनों के हिस्से को लेकर उत्तर और दक्षिण भारत के बीच खाई चौड़ा करने की कोशिश की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सिद्धारमैया ने अपने पोस्ट में लिखा है कि कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र केंद्र से जितना पाते हैं उससे ज्यादा का टैक्स केंद्र सरकार को देते हैं। उन्होंने दलील दी है कि उत्तर प्रदेश को प्रत्येक एक रुपये के टैक्स योगदान के एवज में उसे 1.79 रुपये मिलते हैं, जबकि कर्नाटक को 0.47 पैसे। कर्नाटक कांग्रेस के इस ट्विटर अकाउंट पर भी यही बातें लिखी गई हैं।
“For every 1 rupee of tax contributed by UP that state receives Rs. 1.79
For every 1 rupee of tax contributed by Karnataka, the state receives Rs. 0.47
While I recognize, the need for correcting regional imbalances, where is the reward for development?”: CM#KannadaSwabhimana https://t.co/EmT7cY60Q0
— Karnataka Congress (@INCKarnataka) 16 March 2018
जाहिर है कर्नाटक के सीएम की मंशा अब उत्तर और भारत के बीच खाई को पैदा करने की है। गौर फरमाइये कि जिस उत्तर प्रदेश से राहुल गांधी और सोनिया गांधी चुनाव जीतकर आते हैं, उसी उत्तर प्रदेश के खिलाफ कर्नाटक में जहर फैलाया जा रहा है। माना जा रहा है कि दो राज्यों को लड़ाने के लिए खुद राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने ही मूक सहमति दी है
कर्नाटक को ‘कश्मीर’ बनाने की साजिश
राहुल गांधी की सहमति के बाद सिद्धारमैया ने इस बार ऐसी चाल चली है जिसे ठीक करने में देश को शायद कई दशक लग जाएं। कर्नाटक को अलग झंडा बनाने की मंजूरी दे दी है। दरअसल राहुल गांधी इस बहाने कर्नाटक में अलगगाववाद का जहर बोना चाहते हैं। सिद्धारमैया ने कर्नाटक के अलग झंडे की मंजूरी को एक बार फिर जायज ठहराया है।
दरअसल सिद्धारमैया एक बार फिर वही इतिहास दोहराना चाहते हैं जो 1948 में कांग्रेस ने कश्मीर के लिए लिखा था। कश्मीर को धारा 370 और 35A का प्रावधान कर अलगाववाद की नींव रख दी थी। इसके साथ ही प्रदेश का अलग झंडा और अलग संविधान भी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरा बना हुआ है।
‘कन्नड़वाद’ पर ‘गंदी राजनीति’ की साजिश
राहुल गांधी और कांग्रेस की हिन्दी भाषा से नफरत जगजाहिर है। इस मुद्दे पर राहुल ने सिद्धारमैया को कर्नाटक में खुली छूट दे रखी है। हिन्दी भाषा को लेकर नफरत फैलाने और लड़ाई कराने की कोशिश हाल में काफी बढ़ी है, चुनाव तक इसका और असर दिखने वाला है। सिद्धरमैया ने अपने पोस्ट में लिखा कि यूरोप के कई देशों से कर्नाटक बड़ा है, अगर मैं एक कन्नड़ नागरिक हूं और कर्नाटक में हम ज्यादातर कन्नड़ भाषा का इस्तेमाल करते हैं, और हिंदी भाषा के थोपे जाने का विरोध करते है।
एक तरफ तो सिद्धारमैया कर्नाटक के लिए अलग भाषा, अलग झंडे की बात करते हैं और दूसरी तरफ कहते हैं वे मजबूत भारत चाहते हैं। दरअसल कांग्रेस ने हमेशा भाषा और क्षेत्र के आधार पर देश को बांट कर रखा है और सिद्धारमैया एक बार फिर देश में भाषावाद और क्षेत्रवाद का झंडा बुलंद कर देश को बांटने की साजिश रच रहे हैं।
धर्म के आधार पर बांटने की साजिश
राहुल गांधी के इशारे पर सिद्धारमैया ने इस बार धर्म की लड़ाई करवाने में अंग्रेजों को भी मात दे दी है। पहला काम ये किया कि कांग्रेस सरकार में दंगों में शामिल सभी मुसलमानों पर से केस हटा लिया है। जनवरी, 2018 में एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ पिछले 5 सालों में दर्ज सांप्रदायिक हिंसा के केस वापस लिए जाने का आदेश दिया गया। जाहिर है इस सर्कुलर के आधार पर सिद्धारमैया सरकार ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ का कार्ड खेल रही है और यहीं से हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति का आधार तैयार किया जा रहा है।
हिंदुओं में फूट डालने की साजिश
कांग्रेस ने कभी भी हिंदुओं को एक नहीं होने दिया है। जाति और समूह में बांट कर वह वोट बैंक की सियासत करती रही है। वे हिंदुओं को हिंदुओं के ही खिलाफ भड़काते रहे और खुद को हिन्दू बताने का ढोंग करते रहे हैं।
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने अपनी ओछी सियासत के लिए फिर से हिंदुओं को तोड़ने की साजिश भी रची है। सिद्धारमैया ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने का वादा किया है और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने पांच मंत्रियों की एक समिति भी बना दी है जिनकी रिपोर्ट के बाद उनकी सरकार लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार लिखेगी।
राहुल-सोनिया ने रची है साजिश !
- आखिर कर्नाटक के सीएम की इस अलगाववादी दलील पर कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने चुप्पी क्यों साध रखी है?
- राहुल गांधी अपनी पार्टी के लोगों को भारत को विभाजित करने के वाले बयान देने की अनुमति क्यों दे रहे हैं?
- क्या उन्हें कर्नाटक के सीएम को इस तरह की अलगावादी बातें कहने से रोकना नहीं चाहिए? क्या कांग्रेस एक संयुक्त भारत नहीं चाहता?
- क्या कांग्रेस एक बार फिर डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी पर नहीं चल रही है?
कांग्रेस की इस हरकत से स्पष्ट है कि वह देश में अलगावाद के बढ़ावे के लिए एक नई पृष्ठभूमि तैयार कर रही है। दरअसल साठ सालों तक सत्ता में काबिज रही कांग्रेस देश की समस्याओं का हल तो ढूंढ नहीं पाई… उल्टे क्षेत्रवाद और प्रांतवाद की ‘गंदी’ राजनीति को बढ़ावा ही दिया है।
मेघालय में अब ‘हिंदी’ के नाम पर अलगाववाद!
16 मार्च, 2018 को कांग्रेस ने पूर्वोत्तर में अलगाववाद की बीज बोने की एक और कोशिश तब की जब मेघालय विधानसभा में राज्यपाल के हिंदी में दिए गए अभिभाषण का विरोध करते हुए कांग्रेसी सदस्यों ने सदन से वॉक आउट कर दिया। ध्यान देने वाली बात ये है कि विधानसभा के सभी सदस्यों को अंग्रेजी में लिखी अभिभाषण की प्रतिलिपि भी दे दी गई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हुआ यूं कि – ईस्ट शिलॉन्ग से कांग्रेस के विधायक अम्परीन लिंगदोह राज्यपाल गंगा प्रसाद का अभिभाषण शुरू होते ही सदन से वॉक आउट कर गए। वहीं, मवलई से पार्टी विधायक पीटी सॉकमी ने राज्यपाल के हिंदी में अभिभाषण का विरोध करते हुए हिंदी में अभिभाषण का विरोध किया।
दरअसल राज्यपाल हिंदी भाषा में बोलने में ज्यादा सहज थे, जिसकी वजह से उन्होंने अंग्रेजी का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन कांग्रेस की इस हरकत का मतलब कोई भी समझ सकता है कि वह एक बार फिर पूर्वोत्तर में भाषा और क्षेत्रवाद के नाम पर ‘आग’ लगाना चाहती है।
देश में ‘आग’ लगाने का काम कांग्रेस ने कोई पहली बार नहीं किया है। इससे पहले भी कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं जिससे स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस हमेशा बंटवारे की राजनीति करती रही है और देश की सत्ता की सीढ़ी भी चढ़ती रही है। आइये देखते हैं कांग्रेस के ऐसे ही कुछ कुकृत्य-
अलगाववाद की बीज बोती कांग्रेस
मई 2017 में केरल कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने सरेआम गाय काटा तो देश में विरोध के स्वर सुनाई देने लगे। उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच विभेद पैदा करने की कुत्सित कोशिश की गई। ट्विटर और सोशल मीडिया पर ‘द्रविनाडु’ यानि दक्षिण भारत के चारों प्रमुख राज्यों को मिलाकर अलग देश निर्माण की मांग को हवा दी गई।
राज्यों को आपस में लड़वाती कांग्रेस
नदियों के जल बंटवारे का मामला हो या फिर राज्यों के सीमांकन का… कांग्रेस ने यहां भी राजनीति की है। इसी का नतीजा है कि आज भी जल बंटवारे के नाम पर तमिलनाडु और कर्नाटक आमने-सामने होते हैं तो पंजाब, हिमाचल और राजस्थान भी एक दूसरे के खिलाफ तलवारें निकाल लेते हैं। हालांकि मोदी सरकार इन समस्याओं के समाधान की तरफ बढ़ तो रही है लेकिन कांग्रेस ने इसे उलझा कर रख दिया है। दूसरी ओर सीमांकन के नाम पर यूपी-बिहार, बिहार-बंगाल, असम-बंगाल के बीच तनातनी की शिकायतें आती रहती हैं।
बीते 70 वर्षों के इतिहास पर गौर करें तो ऐसी विभाजनकारी कुत्सित कृत्यों की जड़ में कोई है तो वो कांग्रेस ही है।
‘दूध में दरार’ डालने की साजिश
यूपीए की सरकार जब देश की सत्ता में थी तो सेना के गैर राजनीतिक और धर्मनिरपेक्ष चरित्र को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की गई। सच्चर कमेटी के माध्यम से सेना में मुसलमानों की संख्या की गिनती कराए जाने की योजना बनाई जाने लगी। कांग्रेस ये जानती है कि सेना में धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर नौकरियां नहीं दी जाती हैं और इन सब के बारे में कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता। बावजूद इसके कांग्रेस ने दूध में दरार यानि भाई-भाई में संघर्ष की साजिश रची थी।
सच्चर कमेटी के नाम पर ‘वर्ग संघर्ष’ की बुनियाद
कांग्रेस नीत सरकार ने सच्चर कमेटी का गठन तो किया था मुसलमानों के पिछड़ेपन की वजह जानने के लिए। लेकिन इस कमेटी के जरिये कांग्रेस ने वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने का काम किया। इसके लिये राजेन्द्र सच्चर के जिम्मे एक विशेष काम लगाया था। वह काम था प्रत्येक स्थान पर इस बात की जांच करना की वहां कितने मुसलमान हैं, उनके साथ वहां क्या व्यवहार हो रहा है? यदि किसी स्थान पर मुसलमान कम हैं तो इसका क्या कारण है? जाहिर है कांग्रेस की कुत्सित सोच ने एक नेक काम में भी राजनीति करनी चाही।
कांग्रेस ने की मुसलमानों के आरक्षण की मांग
वर्ष 2017 में जमात ए इस्लाम हिंद जैसे संगठन मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस भी उसी की भाषा बोलेगी ये कोई नहीं सोच सकता था। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश में सरकारी नौकरियों और अलीगढ़ में पीजी कोर्सेज में मुसलमानों को आरक्षण की मांग पहले कांग्रेस ने ही की थी। इसी मांग पर बढ़ते हुए तेलंगाना सरकार ने भी तुष्टिकरण का कार्ड खेलते हुए मुसलमानों को अलग से आरक्षण की व्यवस्था बहाल कर दी है।
तुष्टिकरण के आसरे कांग्रेस की राजनीति
कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति का ही नतीजा है कि आज मुसलमानों की निष्ठा को ही संदेह के घेरे में ला दिया है। दरअसल कांग्रेस नीत गिरोह
जानबूझकर मुसलमानों के मनोविज्ञान को बदलने का प्रयास करते रहे हैं। ये स्थापित करने की कोशिश की जाती रही है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है, और वह इसलिए हो रहा है क्योंकि वे मुसलमान हैं। भारत का नागरिक न कह कर यह साबित करने की कोशिश होती रही कि आप मुसलमान हैं। जाहिर है कांग्रेस किस मंशा से करती रही है ये सब जानते हैं।
‘भगवा आतंकवाद’ पर हिंदुओं को बदनाम किया
जिस हिंदू संस्कृति और सभ्यता की सहिष्णुता को पूरी दुनिया सराहती है, उसे भी बदनाम करने में कांग्रेस ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 2007 में हुए समझौता एक्सप्रेस धमाके के संदिग्ध पाकिस्तानी आरोपी को साजिश के तहत छोड़ दिया गया और उनके स्थान पर निर्दोष हिन्दुओं को गिरफ्तार किया गया। समझौता विस्फोट में यूपीए ने राजनीतिक लाभ के लिए सोनिया गांधी, अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, शिवराज पाटिल और सुशील कुमार शिंदे ने हिंदू आतंकवाद का जाल बुना और एक पूरे के पूरे समुदाय को बदनाम किया।
पहनावे और बोली पर भी बांटती है कांग्रेस
भारत की विविधता पूरी दुनिया में इसे विशिष्ट पहचान रखती है, लेकिन कांग्रेस सरकार इस आधार पर भी भेद करती रही है। पूर्वोत्तर और कश्मीर की जनता इस बात को लेकर आज भी परेशान हैं कि उन्हें भारतीय नहीं माना जाता। जाहिर है बीते साठ सालों के शासन में कांग्रेस ने देश से जुड़ने का वह माहौल पैदा नहीं किया। कश्मीर समस्या तो ‘कांग्रेस’ की ‘कपटी’ राजनीति का ही नतीजा है, वहीं पूर्वोत्तर के लोगों का शेष भारत से विलगाव भी कांग्रेस की ही देन है। हालांकि पूर्वोत्तर के राज्यों ने कांग्रेस को इस कृत्य की सजा दी है और आठ राज्यों में से महज एक राज्य मिजोरम में ही उसकी सरकार बची है।
जहर की राजनीति करती है कांग्रेस
वर्ष 2017 में कांग्रेस ने सुनियोजित तरीके से समाज में ‘जहर’ फैलाने की राजनीति की। बहुसंख्यक समाज में विभेद के कुत्सित कृत्य किए गए। ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति को एक बार फिर राजनीति का आधार बनाया जा रहा है। इस साजिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग चेहरों का सहारा लिया जा रहा है।
दलितों को भड़काने की राजनीति
वर्ष 2017 में सहारनपुर में किस तरह सवर्णों और दलितों के बीच टकराव स्थापित करने की सियासत की गई ये सब जानते हैं। ये भी साफ हो गया है कि कांग्रेस की शह पर सहारनपुर में इस संघर्ष की साजिश रची गई और उनके कई नेताओं का इस मामले में हाथ भी सामने आ रहे हैं। इसी तरह गुजरात के ऊना में दलित पिटाई की भी कांग्रेस ने साजिश रची थी और भाजपा पर दोष मढ़ने का प्रयास किया था।
किसानों को भड़काती है कांग्रेस
साठ सालों तक सत्ता में रही कांग्रेस ने किसानों को ठगने का काम किया है। हर स्तर पर पंगु बनाकर रखने की नीति पर चलते हुए किसानों के नाम पर राजनीति भी खूब करती है। लेकिन मध्य प्रदेश में मंदसौर की घटना ने कांग्रेस की पोल खोल कर रख दी। किसान कल्याण के नाम पर राजनीति कर रही कांग्रेस किस तरह किसानों को भड़काती है वो जगजाहिर हो चुका है। कांग्रेस के विधायक, नेता किसानों का नेतृत्व करने के नाम पर आगे आते हैं और किसानों को गोलियां खाने को छोड़ भाग जाती है।
देश को टुकड़ों में बांटने की कांग्रेसी राजनीति
कांग्रेस पार्टी की फितरत रही है कि वह देश को टुकड़ों में बांट कर अपनी सत्ता कायम रखे। हालांकि देश की जनता ने उनकी इस मंशा को लगातार खारिज किया है किन्तु कांग्रेस लगातार ऐसे प्रयास करती है कि विभेद पैदा हो और उनकी राजनीति चलती रहे। हुर्रियत को पालना हो या फिर उनके नेताओं द्वारा पाकिस्तान की धरती से भारत की आलोचना करना हो। जेएनयू में देश विरोधी ताकतें जब भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाती हैं तो पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक उनके समर्थन में खड़े हो जाते हैं। द्नविड़नाडु जैसे विभाजनकारी आंदोलन का साथ देना और कर्नाटक के अलग झंडे को मंजूरी भी कांग्रेस की इसी बंटवारे की सोच को इंगित करता है।
देखिए हिंसा की राजनीति से किस तरह सत्ता पाना चाहती है कांग्रेस
मूर्ति तोड़ने वालों के कांग्रेस कनेक्शन का हुआ पर्दाफाश
त्रिपुरा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद देश में कई जगहों पर महापुरुषों की मूर्ति तोड़ने की घटनाएं सामने आईं। इसका एक पहलू ये है कि जितनी भी घटनाएं हो रही हैं वह भाजपा शासित राज्यों में हो रही हैं। इन घटनाओं को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस ट्वीट से भी समझा जा सकता है।
जिस कांग्रेस ने बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया वह आज डॉ. आंबेडकर को अपना बता रही है। हकीकत तो ये है कि मूर्ति तोड़ने वाले जितने भी पकड़ा रहे हैं उनके कांग्रेस या विपक्ष से कनेक्शन सामने आ रहा है। आजमगढ़ में बाबा साहेब की जो मूर्ति तोड़ने वाला बसपा का एक दलित है, जो मूर्ति वाली जमीन पर कब्जा करना चाहता था। राजस्थान के अकरोला में गांधी जी की मूर्ति तोड़ने वाले तीनों आरोपी कांग्रेस के सदस्य हैं।
कांग्रेस समर्थित जिग्नेश मेवाणी का कुर्सी फेंको अभियान
कांग्रेस पार्टी लगातार हिंसा के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है इसकी एक बानगी गुजरात विधानसभा में कांग्रेस समर्थित विधायक जिग्नेश मेवाणी के ‘कुर्सी फेंको’ आह्वान से भी समझा जा सकता है। मेवाणी ने 15 अप्रैल को कर्नाटक में होने वाली प्रधानमंत्री मोदी की रैली में लोगों को कुर्सी फेंकने के लिए उकसाया है। जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात में भी कई बार हिंसा फैलाने की कोशिश की है और महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में भी उन्होंने ही दलित और मराठा के बीच संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार की थी।
#WATCH: Jignesh Mevani says, ‘Biggest role of Karnataka’s youth should be to enter PM’s campaign program in Bengaluru on 15th, hurl chairs in the air & disrupt it, then ask him what happened to 2 cr jobs? If he can’t answer ask him to go to Himalayas’ #Chitradurga #Karnataka pic.twitter.com/3rykIfOFsp
— ANI (@ANI) 6 April 2018
कांग्रेस समर्थित हार्दिक पटेल ने फैलाई थी गुजरात में हिंसा
गुजरात में पटेल आरक्षण को लेकर जिस तरह से आंदोलन किया गया था वह किसी राजनीतिक दल के समर्थन के बगैर नहीं हो सकता था। बाद में हार्दिक पटेल और कांग्रेस के संबंधों और सौदेबाजी का खुलासा भी हुआ था। कांग्रेस से करोड़ों रुपये की डील कर गुजरात को हिंसा की आग में धकेल दिया गया और 14 लोगों की जान गंवानी पड़ी।
हिंदू देवी-देवताओं का सरेआम अपमान कर रहे कांग्रेसी
02 अप्रैल को दलित आंदोलन के दौरान जिस तरीके से हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया गया वह देश में आग लगाने की मंशा से ही किया गया। मध्य प्रदेश में हनुमान जी का जो अपमान किया गया था वह ईसाई मिशनरियों से ताल्लुक रखते थे और तमिलनाडु में जिन 2 लोगों को शिवलिंग पर पैर रखने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है जिसका नाम सद्दाम और सईद है। जाहिर है कि इसके पीछे भी कांग्रेस का ही हाथ है।
मंदसौर में किसानों को भड़काने में कांग्रेस का हाथ
मध्य प्रदेश के मंदसौर में जून, 2017 को जब मंदसौर में किसानों का आंदोलन चल रहा था। इसकी आगुआई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद कर रहे थे। कांग्रेस विधायकों और कार्यकर्ताओं ने किसानों को इतना भड़काया कि छह लोगों की जान चली गई। एक सच्चाई ये है कि राहुल गांधी आंदोलन को बीच में ही छोड़कर विदेश भाग गए।
सहारनपुर में जातीय तनाव फैलाने की कांग्रेसी साजिश
फरवरी, 2017 के विधानसभा चुनाव में सामाजिक समरसता की मिसाल बने यूपी में अप्रैल 2017 में आग लगाने की कोशिश की गई। सहारनपुर में दलितों और ठाकुरों को आमने-सामने लाने की कोशिश की गई। मामले की जांच हुई तो पता लगा कि हिंसा फैलाने वाली ‘भीम आर्मी’ कांग्रेस के नेताओं के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन है। इसमें कांग्रेस के कई स्थानीय नेताओं के हाथ भी सामने आए।
सर्वसमाज की समरसता पसंद नहीं करती कांग्रेस
दरअसल आजादी के 70 वर्षो बाद पहली बार ऐसा लग रहा है कि पूरे देश का बहुसंख्यक समाज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जातीय बेड़ियां तोड़कर एकता के गठबंधन में बंधकर एकता के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहता है। समाज एकता के सूत्र में बंधकर विकास के रास्ते चलना चाहता है। लेकिन कांग्रेस को शायद ये एकता पसंद नहीं आ रही।