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प्रधानमंत्री मोदी ने वाजपेयी के सम्मान में जारी किया सौ रुपये का स्मारक सिक्का

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज सोमवार, 24 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में सौ रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया। संसद भवन एनेक्सी में हुए कार्यक्रम में संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, वित्त मंत्री अरूण जेटली, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वाजपेयी के परिजन भी मौजूद थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अटल जी को जिस सम्मान के साथ देशवासियों ने अंतिम विदाई, वो उनकी अहमियत को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि अटल जी का जीवन आने वाली पीढ़ियों को समर्पण भाव के लिए हमेशा प्रेरित करता रहेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि अटल जी एक युगदृष्टा थे और उनके लिए लोकतंत्र का महत्व सबसे अधिक था।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अटलजी की आवाज कई दशकों तक देशवासियों की आवाज रही। उन्हें समाज के हर वर्ग के लोगों से असीम प्रेम और सम्मान मिला। प्रधानमंत्री ने कहा कि अटलजी ने विपक्ष में रहकर एक साधक की तरह देशहित के बारे में सोचा और उसी दिशा में काम किया।

इस सिक्के में 50 प्रतिशत चांदी, 40 प्रतिशत तांबा, पांच प्रतिशत निकिल और पांच प्रतिशत जस्ता मिला है। सिक्के का वजन 35 ग्राम है और इसके अग्रभाग पर बीच में अशोक स्तम्भ है जिसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है। सिक्के के पीछे की तरफ अटल बिहारी वाजपेयी का चित्र है। हालांकि यह सिक्के प्रचलन में नहीं आएंगे। इन्हें 3300 से 3500 रुपये की प्रीमियम दरों पर बेचा जाएगा।

कल 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री की जयंती है। श्री वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था और इस वर्ष 16 अगस्त को उनका निधन हो गया था।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘अटल जी हमारे बीच नहीं है। यह बात हमारा मन मानने को तैयार नहीं होता है। शायद ही ऐसी कोई घटना हुई हो कि किसी व्‍यक्ति का राजनीतिक मंच पर आठ-नौ साल तक कहीं नजर न आना, बीमारी की वजह से सारी गतिविधि सार्वजनिक जीवन की समाप्‍त हो गई, लेकिन उसके बाद इतने वर्षों के बाद, इतने बड़े गैप के बाद एक प्रकार से सार्वजनिक जीवन में एक पीढ़ी बदल जाती है लेकिन उनकी विदाई को जिस प्रकार से देश ने आदर दिया, सम्‍मान दिया, देशवासियों ने उनकी विदाई को महसूस किया, यही उनके जीवन की सबसे बड़ी तपस्‍या का प्रकाशपुंज के रूप में हम अनुभव कर सकते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘विश्‍व के जो राजनीतिक विश्लेषक होंगे, वे कभी न कभी इस बात का जरूर विस्‍तार से विवेचन करेंगे कि सिद्धांतो के बल पर खड़ा हुआ एक राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं के सामान्‍य संगठन के छोटे-छोटे लोगों के भरोसे, एक तरफ संघर्ष करते रहना, दूसरी तरफ संगठन करते रहना, तीसरी तरफ जनसामान्‍य को अपने विचारों से आकर्षित करना, प्रभावित करना, जन-जन को आंदोलित करना यह सारी बातें करते-करते इतना बड़ा संगठन का निर्माण हो और शायद दुनिया में इतना बड़ा देश, इतनी बड़ी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था, एक तरफ सौ सवा सौ साल से स्थापित राजनीतिक मंच और दूसरी तरफ नया सा एक राजनीतिक दल और इतने कम समय में देश में इतना प्रभुत्‍व पैदा करे, इतना उसका विस्‍तार हो, संगठन की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा दल बन जाए, इसके मूल में जन संघ के कालखंड में, भारतीय जनता पार्टी के कालखंड में, उसके प्रारंभिक वर्षों में अटल जी जैसे एक पूरी टीम का उसको नेतृत्‍व मिला।’

श्री मोदी ने कहा, ‘कंधे से कंधा मिला करके छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं के साथ दूर-सुदूर इलाकों में जा करके काम किया गया, जनता से सीधा संवाद करने का प्रयास किया। और एक प्रकार से अटल जी की वाणी, वो सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की आवाज नहीं बनी थी। इस देश का एक तीन-चार दशक का समय ऐसा हुआ कि अटल जी की वाणी भारत के सामान्‍य मानवी की आशा और आकांक्षाओं की वाणी बन चुकी है। अटल जी बोल रहे हैं मतलब देश बोल रहा है। अटल जी बोल रहे हैं मतलब देश सुन रहा है। अटल जी बोल रहे हैं, मतलब अपनी भावनाओं को नहीं, देश के जन-जन की भावनाओं को समेट कर उसको अभिव्‍यक्ति दे रहे हैं। और उसने सिर्फ लोगों को आकर्षित किया, प्रभावित किया, इतना नहीं, लोगों के मन में विश्‍वास पैदा हुआ । और यह विश्‍वास शब्‍द समूह से नहीं था, उसके पीछे एक पांच-छह दशक की लंबी जीवन की साधना थी। आज राजनीतिक दल मानचित्र ऐसा है, दो-पांच साल के लिए भी अगर किसी को सत्‍ता के बाहर रहना पड़े तो वो इतना बैचेन हो जाता है, इतना परेशान हो जाता है, वो ऐसे हाथ-पैर उठा-पटक करता है कि क्‍या कर लूं मैं। चाहे वो तहसील क्षेत्र का नेता हो, जिला क्षेत्र का नेता हो, राज्‍य स्‍तर का नेता हो,राष्ट्रीय नेता हो।’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘कोई कल्‍पना कर सकता है कि इतने सालों तक एक तपस्‍वी की तरह, एक साधक की तरह विपक्ष में बैठ करके, हर पल जन सामान्‍य की आवाज बनाते रहना और जिंदगी उसी को जीते रहना यह असामान्‍य घटना है, वरना क्‍या अटल जी के जीवन में ऐसे पल नहीं आए होंगे कि जब राजनीतिक अस्थिरता के समय किसी ने कहा हो कि हमारे साथ आ जाओ। आपके सिवा कौन है, आइये हम आपको leader बना देते हैं, आइये हम आपको यह दे देते हैं। बहुत कुछ हुआ होगा।’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘मैं अनुमान करता हूं, मेरे पास जानकारी नहीं है, लेकिन जैसा मैं राजनीतिक चित्र देखता हूं, उसमें सब कुछ हुआ होगा। लेकिन भीतर का वो मेटल था। उसने विचारों के साथ अपने जीवन का नाता जोड़ा था। और उसी के कारण उन्‍होंने ऐसे किसी लोभ, लालच, प्रलोभन की अवस्‍था को शरण नहीं किया। और जब देशहित की जरूरत थी। लोकतंत्र बढ़ा कि मेरा संगठन बढ़ा, लोकतंत्र बढ़ा कि मेरा दल बढ़ा, लोकतंत्र बढ़ा कि मेरा नेतृत्‍व बढ़ा इसका जब कसौटी का समय आया तो यह दीर्घ दृष्टिता नेतृत्‍व का सामर्थ्‍य था कि उसने लोकतंत्र को प्राथमिकता दी, दल को आहूत कर दिया। जिस जन-संघ को अपने खून-पसीने से सीचा था, ऐसे जनसंघ को जनता पार्टी में किसी भी प्रकार की अपेक्षा के बिना विलीन कर दिया। एक मात्र उद्देश्‍य लोकतंत्र अमर रहे।’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हम रहे या न रहे यह करके दिखाया और जनता पार्टी में सिद्धांतों के नाम पर जब कोसा जाने लगा, ऐसा लग रहा था लोकतंत्र के लिए देश के लिए उपयोगिता को खत्‍म करने का षड़यंत्र हो रहा है। तब उन्‍होंने हाथ जोड़ करके नमस्‍ते करके कह दिया, आपका रास्‍ता आपको मुबारक, हम मूल्यों से समाधान नहीं कर सकते, हम देश के लिए मर सकते हैं, लेकिन अपने लिए मूल्‍य का समाधान करने वाले हम लोग नहीं है और निकल पड़े । फिर से एक बार, कमल का बीज बोया और आज हर हिन्‍दुस्‍तान के कौने में कमल हम अनुभव कर रहे हैं। और दीर्घ-दृष्‍टता जीवन कैसे था अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। अभी तो एक दल जन्‍म ले रहा है, अभी तो जन्‍म को कुछ घंटे भी नहीं हुए हैं, लेकिन वो कितना बड़ा आत्‍मविश्‍वास होगा भारत के जन संघ पर, कितना बड़ा भरोसा होगा अपने विचारो, अपनी साधना पर, अपनी तपस्‍या पर, अपने कार्यकर्ताओं के पुरूषार्थ पर कितनी बड़ी श्रद्धा होगी कि उस व्‍यक्ति के मुंह से निकलता है – अंधेरा छटेगा , सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा और वो उनकी भविष्‍यवाणी कहिये या भीतर से निकला हुआ संदेश कहिये आज हम अनुभव करते हैं।’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘कल अटल जी की उनकी विदाई के बाद की पहली जन्‍म जयंती है। और उसके एक दिन पूर्व आज भारत सरकार की तरफ से एक स्‍मृति सिक्‍का 100 रुपये का आप सब के बीच, देशवासियों के बीच एक स्‍मृति के रूप में आज देने का अवसर मिला है। मैं नहीं मानता हूं कि यह 100 रुपये का सिक्‍का ही सिक्‍का है, क्‍योंकि अटल जी का सिक्‍का हम लोगों के दिलों पर पचास साल से ज्‍यादा समय चला है और जिसका सिक्‍का आगे भी चलने वाला है। और इसलिए जिसका जीवन भी एक सिक्‍का बन करके हमारी जिदंगी को चलाता रहा है, हम लोगों को प्रेरणा देता रहा है, उसको आज हम मेटल के अंदर भी चिरंजीव बनाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहे हैं। यह भी अटल जी के प्रति आदर व्‍यक्‍त करने का एक छोटा सा प्रयास है और इसके लिए हम सभी एक संतोष की अनुभूति करते हैं।’

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