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2014 और 2019 के आरंभ की तुलना कीजिए और मोदी सरकार में देश में आए क्रांतिकारी बदलाव देखिए

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हम सब जानते हैं कि 2014 की शुरुआत कैसी रही थी। तब की मनमोहन सरकार जनहित में कोई काम कर रही हो, इसका कहीं कोई उदाहरण नहीं मिल रहा था। लोकसभा चुनाव के दिन करीब आ रहे थे, इसलिए घोटालों में घिरी कांग्रेस नेतृत्व की सरकार जनता को भरमाने में जुटी थी। लेकिन देखते ही देखते तब त्राहिमाम रहे देशवासियों के लिए वक्त ने करवट ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सबका साथ सबका विकास के मूलमंत्र को लेकर देश हर क्षेत्र में उपलब्धियों की नई ऊंचाइयों को छूने में जुट गया। आइए, पांच साल पहले और पांच साल बाद की जनसामान्य से जुड़ी पांच स्थितियों का आकलन कर देखते हैं कि आज कितने व्यापक बदलाव आ चुके हैं।

अब महंगाई नहीं मारती – मनमोहन सरकार के दौर में हर तरफ बढ़ती महंगाई लोगों की कमर तोड़ रही थी। स्थिति कुछ ऐसी भयावह थी कि महंगाई पर मुहावरे से लेकर गाने तक का एक दौर ही चल पड़ा था। महंगाई डायन खाए जात है जैसे गीत लोगों की जुबान पर चढ़े होते थे। उसी महंगाई को मोदी सरकार ने न्यूनतम स्तर तक ले जाने का काम करके दिखाया। ये कोई जादू या छू-मंतर का कमाल नहीं, बल्कि मौजूदा सरकार की नीतियों का असर रहा है कि जो खुदरा महंगाई दर मनमोहन सरकार में 18 प्रतिशत के भयानक स्तर को पार कर चुकी थी, वह अब 2-3 प्रतिशत के आसपास रहती है। तब आसमान छूते दाल और सब्जियों के भाव आज जमीन पर बने हुए हैं।  

गरीबों के इलाज की नहीं थी कांग्रेस को परवाह – गरीबों के लिए बीमारी के इलाज की चिंता खत्म हो, कांग्रेस के शासन में क्या आपने कभी इस दिशा में गंभीर प्रयास होते देखा था? तब भारी खर्च के डर से गरीब अस्पतालों का रुख ही नहीं कर पाता था। हार्ट स्टेंट लगवाना और घुटना प्रत्यारोपण करवाना तो इतना महंगा पड़ता था कि लोग अपनी स्थिति झेलने को मजबूर होते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने एक स्वस्थ देश के लिए स्वस्थ नागरिकों के महत्त्व को समझा और पांच साल के भीतर ही नतीजा आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री आरोग्य योजना और जन औषधि केंद्रों के रूप में सबके सामने है। इतना ही नहीं मनमोहन सरकार तक जिस हार्ट स्टेंट और घुटना प्रत्यारोपण का खर्च दो लाख रुपये का आता था, वो अब 50 हजार और 30 हजार रुपये के खर्च में संभव है।

सिलेंडर के खेल से ‘उज्ज्वला’ के दौर तक – सिर्फ मनमोहन की सरकार ही नहीं, कांग्रेस की तमाम सरकारें गैस सिलेंडर पर राजनीतिक रोटी सेंकने का खेल खेलती आ रही थीं। इनके राज में सियासी फायदा और नुकसान पहले लोगों को सिलेंडर उपलब्ध कराने का मापदंड होता था। फिर लोगों ने वह समय भी देखा जब राहुल गांधी के कहने पर 9 सिलेंडर या 12 सिलेंडर का खेल इसलिए होने लगा ताकि कांग्रेसी घोटालों पर भड़की जनता को भरमाया जा सके। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश भर में पिछले पौने तीन वर्ष में ही छह करोड़ से अधिक गैस कनेक्शन गरीब माताओं-बहनों को मुफ्त में दिए गए हैं। उनके लिए जानलेवा धुएं का दौर गए जमाने की बात बन चुका है।

अब गरीबों को मिल रहा सुविधाओं वाला घर – मोदी सरकार में हर क्षेत्र में तेज गति से और दुरुस्त काम होने से अब इस बात का सीधा अंदाजा लग जाता है कि बुनियादी सुविधाओं को लेकर कांग्रेस की सरकारों की क्या उदासीनता रही थी। मनमोहन सरकार में किफायती आवास मुहैया कराने की गति ये थी कि अपने आखिरी के चार वर्षों में ग्रामीण इलाकों में वो सिर्फ 25.5 लाख के करीब घर ही बनवा पाई थी। वहीं मोदी सरकार ने लगभग इतने ही समय में ग्रामीण क्षेत्रों में 1.25 करोड़ रिफायती घरों का निर्माण करके दिखा दिया। इतना ही नहीं  ये घर अब शौचालय, किचन, नल से लेकर बिजली तक की सुविधा से लैस हैं। आखिर यही सरकार आजादी के दशकों बाद भी अंधेरे में डूबे रहे 18 हजार गांवों को रौशन करने के बाद अब घर-घर बिजली का लक्ष्य भी पूरा करने की ओर तेजी से अग्रसर है।

टैक्स से अब तनाव नहीं, कर संग्रह में भारी बढ़ोतरी – कांग्रेस की सरकारों ने सिस्टम में चले आ रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने की कभी इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि कांग्रेसी राजनीति उसी सिस्टम पर आधारित थी। भ्रष्टाचार और टैक्स संग्रह को लेकर कांग्रेस का कैसा ढीला-ढाला रवैया था, यह दो आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है। मनमोहन सरकार के दौरान वित्तीय वर्ष 2013-14 के पहले नौ महीने में जहां सिर्फ 4 लाख 80 हजार करोड़ जमा हुए, वहीं मोदी सरकार में मौजूदा वित्त वर्ष के पहले नौ महीने में 8.75 लाख करोड़ रुपये कर संग्रह हुए। जाहिर है, मौजूदा सरकार में नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से लोगों को भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी कार्यप्रणाली की प्रेरणा मिली है और लोग ईमानदारी से टैक्स देने के लिए आगे आ रहे हैं।

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