Home विचार राहुल गांधी मीडिया की जुबान पर ‘ताला’ क्यों चाहते हैं!

राहुल गांधी मीडिया की जुबान पर ‘ताला’ क्यों चाहते हैं!

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अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की स्वतंत्रता की बातें करने वाले राहुल गांधी का दोहरा चरित्र सामने आ गया। एसोसिएट जर्नल लिमिटेड से संबंधित ‘टैक्स चोरी’ के मामले में आरोपी राहुल गांधी ने कोर्ट से अपील की है कि मामले की रिपोर्टिंग मीडिया में ना की जाए। हालांकि अदालत ने उनकी अपील खारिज कर दी है, लेकिन इस प्रकरण से जाहिर हो गया कि राहुल गांधी की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। वे ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ और ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के नाम पर सिर्फ राजनीतिक ‘ढोंग’ करते हैं।


दरअसल ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) ने को 99 करोड़ रुपये दिए थे। हालांकि राहुल गांधी ने यह जानकारी छिपा ली थी कि वे ‘यंग इंडिया’ के निदेशक भी हैं। जाहिर उन्होंने यह टैक्स चोरी के इरादे से किया था। अब इसी मामले में वे इनकम टैक्स विभाग के जांच के दायरे में हैं, जिसकी सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट में चल रही है। मामला हाई प्रोफाइल है तो मीडिया रिपोर्टिंग भी हो रही है, लेकिन राहुल गांधी को ये रास नहीं आ रहा है।
आपको बता दें कि नेशनल हेराल्ड केस मामले के आरोपी राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मोतीलाल वोरा ने मेट्रोपोलिटन कोर्ट से यह भी मांग की है कि सुब्रमण्यम स्वामी मामले से संबंधित ट्वीट नहीं करें।

दरअसल कांग्रेस का यही तानाशाही चरित्र रहा है। उसके लिए न संविधान महत्वपूर्ण है न ही आमलोगों की मौलिक स्वतंत्रता। सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस अभी सत्ता में नहीं है इसलिए कोर्ट के माध्यम से मीडिया और आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी छीनने की कोशिश कर रही है। अगर सत्ता में होती तो क्या करती?

मीडिया को अपना ‘गुलाम’ समझती है कांग्रेस

23 अक्टूबर 1951 को जवाहर लाल नेहरु ने “The Press Objectionable Matters Act” पारित करवाया

इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को ‘Central Censorship Order’ और ‘Guidelines for the Press’ जारी किया

इंदिरा गांधी ने 11 फरवरी 1976 को Prevention of Publication of Objectionable Matters Act of 1976 को लागू किया

राजीव गांधी ने Defamation Bill 1988 पारित करवाकर प्रेस की आजादी को कुचलना चाहा, लेकिन पारित नहीं हुआ

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