Home पश्चिम बंगाल विशेष मोदी विरोध में गरीब विरोधी बन गई हैं ममता बनर्जी!

मोदी विरोध में गरीब विरोधी बन गई हैं ममता बनर्जी!

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक विरोध करते-करते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गरीबों के विरोध में खड़ी हो गई हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर केंद्र सरकार ने 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए का कैशलेस हेल्थ इंश्योरेंस देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक तौर पर ऐलान कर दिया है कि केंद्र सरकार की नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री बनर्जी के इस फैसले से पश्चिम बंगाल के गरीब परिवारों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा। नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक विरोध करने के लिए यह पश्चिम बंगाल के लाखों गरीब परिवारों के साथ खिलवाड़ है।

यह कोई पहली बार नहीं है कि केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विरोध किया। इससे पहले भी मुख्यमंत्री बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने के लिए केंद्र की योजनाओं और पहल का खुलकर विरोध कर चुकी हैं। चाहे नोटबंदी हो, आधार से मोबाइल नंबर जोड़ना हो या अन्य। उसकी एक फेहरिस्त नीचे दी जा रही है –

मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराने का किया विरोध
केंद्र सरकार ने देशभर के सभी मोबाइल ऑपरेटरों को आदेश दिया कि मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ा जाए। इसके बाद देशभर के सभी मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ा जाने लगा। इसका भी ममता बनर्जी ने विरोध किया। उन्होंने कहा, ”बंद कर दो मेरा फोन, आधार से लिंक नहीं कराऊंगी मोबाइल नंबर।” ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के उस निर्णय का विरोध किया है जो भारतीय अर्थतंत्र और सिस्टम में पारदर्शिता के लिए आवश्यक है।

नोटबंदी के फैसले को वापस लेने के लिए चलाया था अभियान
देश में छिपे कालेधन को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल नोटबंदी का फैसला लिया। नोटबंदी का ऐलान करने से पहले केंद्र सरकार ने काला धन रखने वालों को IDS 2016 के तहत कर चुकाकर अपनी संपत्ति घोषित करने का अवसर दिया था। काला धन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी का फैसला लिया गया। इसका विरोध करने और इस फैसले को वापस लेने का दबाव बनाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पटना से लेकर दिल्ली तक धरना प्रदर्शन करने का एक अभियान चलाया था।

भ्रष्टाचार के दाग छिपाने की कोशिश में ममता बनर्जी
जनता के दुख-दर्द की बात करने वाली ममता बनर्जी भरसक ईमानदार दिखने की भी कोशिश करती हैं, लेकिन उनके झूठ की पोल घोटाले के आरोपियों को बचाने की कोशिश में खुल गई। नारदा, सारदा और रोजवैली स्कैम में उन पर आम लोगों के सैकड़ों करोड़ रुपये इधर से उधर करने के आरोप लगे। इन सभी मामलों की जांच चल रही है। ये जांच अदालतों की अगुवाई में केंद्रीय एजेंसियां कर रही हैं। तृणमूल के कई सांसद सीबीआई की गिरफ्त में हैं और कई पूर्व मंत्री और टीएमसी नेता सलाखों के पीछे डाले जा चुके हैं। वो जानती हैं की प्रधानमंत्री मोदी के रहते भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को दबाना नाममुकिन है। ऐसे में केंद्र बनाम राज्य सरकार की राजनीति को हवा देकर घोटालेबाजों की मदद ही तो कर रही हैं।

केंद्रीय योजनाओं के नाम बदलने का खेल
देश के हर राज्य में केंद्रीय योजनाएं एक समान नामों से चल रही हैं लेकिन, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी नामों को बदल दिया है। योजनाओं के नाम बदलने के पीछे ममता का तर्क है कि इन योजनाओं में राज्य भी 40 प्रतिशत खर्च वहन करता है, इसलिए उसे नाम बदलने का हक है। लेकिन असलियत में उन्हें लगता है कि योजनाओं में प्रधानमंत्री या केंद्रीय योजनाओं का नाम देखते ही जनता सच्चाई जान जाएगी। इसीलिए राज्य सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’का नाम बदलकर ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नाम बदलकर ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से पीछे हट गईं ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2015 में 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना का शुभारंभ किया था। शुरुआत में पश्चिम बंगाल ने चार शहरों कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया को इस योजना के लिए नामांकित किया। लेकिन, बाद में न्यूटाउन जो 100 शहरों में से एक शहर चुना गया था उसे ममता बनर्जी ने स्मार्ट सिटी योजना से हटा लिया। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसी योजनाऐं असमान विकास को बढ़ावा देंगी। इस योजना की जगह मुख्यमंत्री ने राज्य में ‘हरित व स्मार्ट सिटी’ विकसित करने की नई योजना शुरू करके दावा किया कि 10 शहर को विकसित कर रही हैं।

फर्जी बिल्डरों को बचाने के लिए पश्चिम बंगाल में RERA कानून लागू नहीं
एक मई से पूरी तरह से लागू करने के लिए RERA कानून के तहत नियमों को नहीं बनाने वाले कुछ राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शामिल है। मई 2016 में संसद ने घर खरीदने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए इस कानून को पारित किया था। तब राज्यों को केन्द्र के कानून के आधार पर नियमों को अधिसूचित करने के लिए 27 नवंबर 2016 तक का समय दिया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कानून के तहत नियमों को अधिसूचित करके घर खरीदने वाले सामान्य लोगों को धोखेबाज बिल्डरों और कंपनियों से बचाने के लिए नियम नहीं बनाया। ममता बनर्जी को लगता है कि उनके यहां अगर लोकहितकारी ये कानून बन गया तो मध्यम वर्ग प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करने लगेगा।

नदियों को जोड़ने की परियोजना के लिए तैयार नहीं
केंद्र की मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय को पूरा करने के उद्देश्य से मानस-संकोष-तिस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना शुरू करना चाहती है। इससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी हो सकेगा। लेकिन ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। केंद्रीय जल संशाधन मंत्री ने ममता बनर्जी को इस योजना में शामिल होने के लिए कई पत्र लिखे, लेकिन उन्होंने राज्य को इससे होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए इसमें शामिल होने से मना कर दिया। ममता को लगता है कि अगर ये परियोजना शुरू हो गई तो प्रधानमंत्री करोड़ों गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के दिलों में राज करने लगेंगे, इसी खुन्नस में वो जन-कल्याण के इस काम में अड़ंगा लगा रही हैं।

संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (JEE) का विरोध
देश के सभी इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए एकल संयुक्त परीक्षा के मोदी सरकार की पहल का ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा, कि राज्य की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को रद्द करके एकल संयुक्त परीक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र का अतिक्रमण है। लेकिन सच्चाई है कि ममता को लगता है कि इस पहल से पीएम मोदी करोड़ों युवाओं के दिल-दिमाग पर छा जाएंगे, इसीलिए वो इस नेक काम में भी अड़ंगा लगाने से नहीं रुकीं।

लाल बत्ती हटाने का भी बनर्जी कर चुकी हैं विरोध
प्रधानमंत्री की पहल पर एक मई, 2017 से लाल बत्ती की गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मोटर व्हिकल एक्ट में बदलाव कर दिया। ये फैसला देश में 70 सालों से चले आ रहे वीआईपी कल्चर को खत्म करने की मकसद से लिया गया। सिर्फ इमरजेंसी वाहनों को आवश्यकतानुसार लाल-नीली बत्ती के इस्तेमाल का अधिकार दिया गया है। अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को लाल बत्ती लगाने की अनुमति नहीं है। पूरे देश में मोदी सरकार के इस कदम की सराहना हुई लेकिन अपने आपको गरीबों की नेता बताने वाली ममता बनर्जी को यह रास नहीं आया। उनके शह पर कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के तत्कालीन शाही इमाम कानून को ताक पर रखकर लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमते रहे। पत्रकारों ने जब पूछा तो उन्होंने कहा, ‘ममता बनर्जी बोली आप जला के रखें, खूब जलाएं, आप घूमते रहें, हम हैं।’ एक लोकतांत्रिक देश में एक राज्य की चुनी हुई मुख्यमंत्री की इस सोच पर सवाल उठना लाजिमी है क्योंकि उन्हें भलि-भांति पता है कि मोटर व्हिकल एक्ट के तहत इस तरह के नियमों में बदलाव करना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।

स्वच्छ भारत सर्वेक्षण से परेशान ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान के प्रति और जागरुकता पैदा करने और उसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक स्वच्छता सर्वेक्षण करवाने का निर्णय किया। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 500 शहरों में ये सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया, लेकिन ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के 60 शहरों को इस सर्वेक्षण से बाहर कर लिया। दरअसल ममता, जनता के मन में मोदी के लिए उत्पन्न होने वाली प्रतिबद्धता से घबरा गईं थीं।

केंद्र की योजनाओं और पहल के विरोध के पीछे का राज
सियासी हलकों में अक्सर ये चर्चा होती है कि आखिर ममता बनर्जी को बीजेपी या पीएम मोदी से किस बात का खुन्नस है जो इतना विरोध करती हैं। दरअसल ममता बनर्जी जिस डर से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से हाथ मिला रही हैं, वह डर बीते दिनों हुए नगर निकायों के चुनावों ने सही साबित कर दिया है। दरअसल ममता बनर्जी जानती हैं कि राज्य में भाजपा उनके भ्रष्ट प्रशासन के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त चुनौती है इसलिए वह अपने राजनीतिक विरोधियों कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट से भी समझौता करने का मन बना चुकी हैं। हाल में हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी ममता का यह डर जाहिर हुआ। दरअसल पश्चिम बंगाल में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ही ममता बनर्जी की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सत्ता को 2021 में उखाड़ फेंकने का दम रखती है।

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