Home विचार चीन को भी क्यों लग रहा ‘भारतीय राष्ट्रवाद’ से खतरा!

चीन को भी क्यों लग रहा ‘भारतीय राष्ट्रवाद’ से खतरा!

पीएम मोदी की नीतियों से बौखलाए चीन की खीझ पर रिपोर्ट

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चीन पर बढ़ती तनातनी के बीच विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने राज्‍यसभा में बयान दिया कि, ”चीन, डोकलाम की मौजूदा स्थिति को अपने हिसाब से बदलना चाहता है। हालांकि मौजूदा गतिरोध पर कानूनी तौर पर भारत का पक्ष मजबूत है। दुनिया के तमाम देश भारत के साथ इस मसले पर खड़े हैं।” उन्‍होंने यह भी कहा कि भूटान के प्रति चीन ने आक्रामक रुख अख्तियार कर रखा है लेकिन कोई भी देश अपने हिसाब से डोकलाम ट्राईजंक्‍शन को नहीं बदल सकता।

सुषमा स्वराज का यह बयान भारत के पक्ष को मजबूती से रखता है और वह अपने स्टैंड पर कायम है। सुषमा स्वराज के बयान से साफ है कि भारत अपने छोटे और कमजोर पड़ोसी देश भूटान पर चीन की हेकड़ी नहीं चलने देने का संकल्प लेकर बैठा है।

बौखलाए ड्रैगन की दुविधापूर्ण स्थिति
दरअसल चीन का रूख उसकी ‘डोलड्रम’ वाली स्थिति को बयां करता है। अब तक चीन की मीडिया भारत को धमकी देता रहा है, उसे 1962 की युद्ध याद दिलाता रहा है, साथ ही चीन यह भी याद दिलाता रहा है कि वह एक आर्थिक शक्ति है। लेकिन डोकलाम विवाद पर भारत के सख्त रूख से इसबार ड्रैगन बौखला गया है। असल में डोकलाम के मुद्दे पर चीन को ये उम्मीद नहीं थी कि भारत, भूटान की मदद के लिए इतनी सख्ती के साथ सामने आएगा। अब वह भारत की सख्ती को भारतवासियों के राष्ट्रवादी सोच से जोड़कर देख रहा है। हिंदू राष्ट्रवाद की बात कर चीन भारत को सलाह और सीख दोनों दे रहा है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि चीन भारत की इस ‘राष्ट्रवादी सख्ती’ से घबराया हुआ है?

चीन को क्यों लगता है राष्ट्रवाद से डर!
चीन की सरकार का मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, भारत वही कर रहा है जो उसके राष्ट्रवादी सोच के लोग कहते हैं। जाहिर है चीन का यह बयान सीधे तौर पर पीएम मोदी से जोड़ा जा रहा है। चीन समझ रहा है कि पीएम मोदी अपने देश में मजबूत हैं और देश में भी चीन विरोधी भावना काम कर रही है। ऐसे में चीन को यह भी लग रहा है कि उसके आर्थिक हित को नुकसान पहुंचने के साथ सामरिक हित को भी नुकसान पहुंच सकता है। दरअसल भारत में चीनी सामानों के बहिष्कार और पाकिस्तान और चीन को सबक सिखाने की मांग को चीन अनदेखा नहीं कर पा रहा है।

पीएम मोदी की ‘ताकत’ से डरता है चीन
पीएम मोदी को चीन राष्ट्रवादी मानता है और कहता है कि हिंदू राष्ट्रवाद से उनको ताकत मिली है। जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री सवा सौ करोड़ लोगों की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें देश की बड़ी आबादी का पूरा समर्थन प्राप्त है। यह भी तथ्य है कि पीएम मोदी के सत्ता संभालते ही भारत ने चीन सीमा पर अपनी मजबूती पर ध्यान दिया और हर स्तर पर मजबूती का प्रयास किया। असम को अरुणाचल से जोड़ने वाली भूपेन हजारिका सेतु हो या फिर चीनी सीमा पर एक साथ 73 सड़कों का निर्माण। भारत अपनी सामरिक स्थिति को मजबूत करने के लिए सबकुछ कर रहा है। लेकिन ये हाल पूर्ववर्ती सरकारों में नहीं था।

चीन को पसंद है भारत की ‘दब्बू’ लीडरशिप
दरअसल चीन भारत के पंचशील और नेहरू की आदर्शवादिता पसंद करता है। इस आदर्श का मतलब है कि ताकतवर चीन के सामने झुक जाओ। कांग्रेस के नेताओं के इसी आदर्शवाद की नीति के कारण ही देश में कश्मीर समस्या है। इसी आदर्शवाद के कारण 1951 में भारत की कमजोरी के कारण ही तिब्बत चीन को मिल गया और 1959 में भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा भी मान लिया। नेहरू शांति और सौहर्द्र की बात करते रहे और चीन ने अक्साईचिन हड़प लिया। जाहिर तौर पर विस्तारवादी चीन को ऐसे की आदर्श नेताओं की जरूरत है। हाल में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के नेताओं का चीनी राजदूत से मिलना इसी कमजोरी की निशानी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पीएम मोदी की हार्ड लीडरशिप से चीन घबराया हुआ है और हिंदू राष्ट्रवाद और रूढ़ीवादी सरकार कहकर अपनी खीझ निकाल रहा है।

मोदी के नेतृत्व में उभरता भारत चीन को पसंद नहीं
ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि ”चीन जितनी तेजी से विकास कर रहा है भारत को उतनी ही चिंता होने लगती है।” दरअसल ये चिंता चीन की है कि पीएम मोदी के नेतृत्व संभालने के बाद भारत पर दुनिया के निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। पूरी दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में प्लांट लगाना चाह रही हैं। जीएसटी लागू होने के साथ ही भारत मैनुफैक्चरिंग हब बन रहा है। एफडीआई के मामले में भी भारत चीन से आगे निकल रहा है और आर्थिक विकास दर में भी चीन को लगातार मात दे रहा है। ऐसे में चीन को अपने आर्थिक नुकसान की चिंता सताने लगी है। कहा जा सकता है कि ‘राष्ट्रवाद’ का नाम लेकर चीन पीएम मोदी के नेतृत्व में बढ़ रहे भारत को अपने लिए खतरा मान रहा है।

भारत को मिल रहे अंतरराष्ट्रीय समर्थन से घबराया चीन
चीनी अखबार लिखता है, अगर चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ तो अमरीका और जापान किस हद तक भारत को मदद करेंगे ? अगर अमरीका ने भारत का साथ दिया तो क्या दोनों देशों के बीच युद्ध का नतीजा कुछ और होगा? जाहिर तौर पर भारत को मिल रहे अंतरराष्ट्रीय समर्थन से चीन घबराया हुआ है।

दरअसल अपनी हेकड़ी दिखाकर वह यह देखना चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय किस हद तक भारत का साथ देता है। लेकिन डोकलाम प्रकरण के बाद अमेरिका, इजरायल, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, जापान, वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया और ब्रिटेन जैसे देश तो खुलकर भारत के पक्ष को मान्यता दे चुके हैं। इतना ही नहीं चीन की आक्रामकता पर यूनाइटेड नेशन्स ने भी चिंता जाहिर कर दी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पीएम मोदी की नीतियों से भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भरपूर समर्थन मिल रहा है, जिससे चीन चिंतित है।

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