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ममता बनर्जी ने संवैधानिक मर्यादा की सारी हदें पार कीं, पहली बार किसी गवर्नर को सीएम के खिलाफ करना पड़ा मानहानि का केस

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जैसे संवैधानिक मर्यादाओं का पालन न करने की कसम ही खा रखी है। उनकी सरकार में ऐसा कई बार हुआ है कि संवैधानिक नैतिकता को ताक पर रख दिया गया है। एक बार फिर मुख्यमंत्री बनर्जी का वैसा ही हदें पार करने वाला रवैया सामने आया है। सीएम के इसी नकारात्मक आचरण के चलते ही देश के इतिहास में पहली बार किसी राज्यपाल को मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसा कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा है। ममता बनर्जी की बेसिर-पैर की टिप्पणी से आहत पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कलकत्ता हाईकोर्ट में सीएम और टीएमसी नेताओं के खिलाफ मानहानि का केस किया है। यह शायद पहला मौका है जब किसी राज्यपाल को अपने ही राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसा कदम उठाने को बाध्य होना पड़ा हो। लेकिन ममता बनर्जी के लिए संवैधानिक मर्यादाओं को तार-तार करने का यह पहला मौका नहीं है।

ममता का बेतुका बयान- महिलाएं राजभवन जाने से डरती हैं
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक दिन पहले ही बगैर किसी तथ्य और सबूत के यह बयान दे डाला कि राजभवन में असुरक्षा के कारण महिलाएं वहां जाने से डरती हैं। दरअसल, राज्य सचिवालय में एक प्रशासनिक बैठक के दौरान बनर्जी ने गुरुवार को दावा किया कि “महिलाओं ने उन्हें बताया है कि वे राजभवन में जाने से घबराती हैं।” ऐसा पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ऐसी टिप्पणी कर रही हों। इससे पहले भी बंगाल की सीएम ने 11 मई को हावड़ा में एक रैली में कहा था कि राज्यपाल आनंद बोस के बारे में अभी तक सब कुछ सामने नहीं आया है।

केंद्रीय मंत्री मेघवाल से मुलाकात के बाद मानहानि के केस का लिया फैसला
ममता बनर्जी के पब्लिकली दिए गए बयान को राज्यपाल ने गंभीरता से लिया और देश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि गवर्नर ने मानहानि केस मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर करने का मन बनाया। राजभवन ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि राज्यपाल बोस ने दिल्ली में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ केस करने का फैसला लिया है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने सीएम ममता बनर्जी और टीएमसी के कुछ नेताओं के विरुद्ध कलकत्ता हाई कोर्ट में मानहानि का केस दायर किया है। राजभवन ने इससे पहले बनर्जी की टिप्पणियों की आलोचना सोशल मीडिया के जरिए की थी। इसमें कहा गया कि जनप्रतिनिधियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे “गलत और बदनामी वाली धारणा” न बनाएं। राज्यपाल ने एक्स पर कहा, ‘ये मुझे बदनाम करने की साजिश है। मेरे ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं। सत्य की जीत होगी। मैं भ्रष्टाचार-हिंसा के खिलाफ लड़ाई नहीं रोक सकता।’टीएमसी की नवनिर्वाचित दो विधायकों के जिद से मामले ने तूल पकड़ा
दरअसल, मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच मतभेद पहले भी रहे हैं। लेकिऩ अब इस मामले को तूल टीएमसी को दो नवनिर्वाचित विधायकों के चलते मिला। तृणमूल कांग्रेस की विधायक सायंतिका बनर्जी और रेयात हुसैन सरकार ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा परिसर में डॉ. बीआर अंबेडकर की प्रतिमा के सामने धरना दिया। एक दिन पहले शपथ ग्रहण समारोह के लिए स्थल को लेकर उन्होंने अनावश्यक विवाद खड़ा कर दिया। विधायकों ने कहा कि राज्यपाल को विधानसभा में आकर हमारा शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करना चाहिए या यह अधिकार अध्यक्ष को दे देना चाहिए। हम आपके (राज्यपाल) जैसे मनोनीत पद के विपरीत निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं।”

स्पीकर बिमान बनर्जी ने उपराष्ट्रपति से की हस्तक्षेप करने की मांग
पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने दो नवनिर्वाचित टीएमसी विधायकों के शपथ ग्रहण समारोह को लेकर गतिरोध को सुलझाने के लिए उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ से हस्तक्षेप की मांग की है। दो नवनिर्वाचित टीएमसी विधायकों के शपथ ग्रहण समारोह के स्थल को लेकर विवाद गुरुवार को तब और बढ़ गया जब बनर्जी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर गतिरोध को सुलझाने में मदद मांगी, वहीं विधायकों ने राज्यपाल सी वी आनंद बोस के निर्देशानुसार राजभवन में शपथ लेने से इनकार कर दिया और विधानसभा परिसर में धरना दिया।

गवर्नर की प्रधान सचिव नंदिनी के मसले पर भी हुआ था ममता से विवाद
ममता बनर्जी के संवैधानिक नैतिकता को ताक पर रखने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी उनपर ऐसे कई आरोप लग चुके हैं। कुछ समय पहले राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने सीएम बनर्जी को भेजे एक पत्र में आरोप लगाया था कि पद से हटाए जाने के बावजूद उनकी प्रधान सचिव नंदिनी चक्रवर्ती कार्यालय आ रही हैं, ऐसे में राज्य सरकार को संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना चाहिए। बोस ने पत्र में दावा किया कि “चक्रवर्ती ने झूठी खबर फैलाई थी कि राज्यपाल सीबीआई और अन्य एजेंसियों के अधिकारियों को अपना सलाहकार नियुक्त करके राजभवन को राज्य के सचिवालाय के “समानांतर” बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार को उनकी “गंभीर गलतियों ” की जांच करानी चाहिए।” काबिले गौर है कि पश्चिम बंगाल कैडर की वर्ष 1994 बैच की IAS अधिकारी चक्रवर्ती को राज्यपाल ने 12 फरवरी को अपनी प्रधान सचिव के पद से हटा दिया था, लेकिन वह फिर भी कार्यालय आती रहीं।

ममता बनर्जी ने संवैधानिक मर्यादाओं और सहकारी संघवाद की हत्या की- नड्डा
इससे पहले भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी आरोप लगाया था कि चक्रवात ‘यास’ से हुए नुकसान की समीक्षा के लिए पश्चिम बंगाल में हुई प्रधानमंत्री मोदी की बैठक से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नदारद रहीं और ऐसा करके उन्होंने ‘‘संवैधानिक मर्यादाओं और सहकारी संघवाद की हत्या’’की है। तब नड्डा ने सिलसिलेवार ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को ‘‘बहुत पवित्र’’ मानते हुए उसका पालन करते हैं और लोगों को राहत देने के लिए दलगत भावना को पीछे छोड़ सभी मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर सक्रियता से काम कर रहे हैं, लेकिन अप्रत्याशित तरीके से ममता बनर्जी की क्षुद्र राजनीति ने एक बार फिर बंगाल के लोगों को परेशान किया है। उन्होंने लिखा, ‘‘जब प्रधानमंत्री मोदी चक्रवात यास के मद्देनजर पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ मजबूती से खड़े हैं तो उचित होता कि ममता बनर्जी लोगों के कल्याण के लिए अपने अहम को विसर्जित कर देतीं।

राज्यपाल ने केंद्र को रिपोर्ट सौंपी, संदेशखाली में हो सकती है एनआईए जांच
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में महिलाओं पर अत्याचार के मुद्दे पर भी सीएम और राज्यपाल के बीच विवाद की स्थिति बनी थी। यहां कई महिलाओं ने स्थानीय तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता शाहजहां शेख और उनके समर्थकों पर जमीन हड़पने और यौन उत्पीड़न करने के आरोप लगाए हैं। राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर विपक्षी बीजेपी सवाल उठा रही है। दरअसल बीजेपी नेताओं ने इन महिला के आरोपों की उच्चस्तरीय जांच की। इस रिपोर्ट राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग व अन्य एजेंसियों द्वारा केंद्र सरकार को मुहैया करवाई गई।  उत्पीड़न और जबरन जमीन कब्जाने के जिन लोगों पर आरोप लगाए जा रहे हैं, उनमें से ज्यादातर बांग्लादेश सीमा के पास रहते हैं। इस बाबत पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने भी केंद्र सरकार को अपनी विस्तृत रिपोर्ट दी।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने संदेशखाली की स्थिति भयावह बताया था
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने संदेशखाली में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा की जांच के लिए तब वहां का दौरा किया था। संदेशखाली हिंसा को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी का इस्तीफा मांगा। संदेशखाली के हालात का जायजा लेने पहुंचीं राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने पश्चिम बंगाल सरकार पर वहां महिलाओं की आवाज को दबाने का आरोप लगाते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की। रेखा शर्मा ने कहा, ‘इलाके की महिलाओं से बात करने के बाद मुझे पता चला कि संदेशखाली में स्थिति कितनी भयावह है। कई महिलाओं ने अपनी आपबीती सुनाई। उनमें से एक ने कहा कि यहां टीएमसी पार्टी कार्यालय के अंदर उसके साथ बलात्कार किया गया था। हम अपनी रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख करेंगे। हमारी मांग है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।’ 

 

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