Home समाचार संकट में नीतीश सरकार, बिहार में चुनाव की सुगबुगाहट

संकट में नीतीश सरकार, बिहार में चुनाव की सुगबुगाहट

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बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई के एफआईआर के बाद से राज्य की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। एफआईआर की आंच जदयू-राजद-कांग्रेस की मिलीजुली सरकार और महागठबंधन तक पहुंच गई है। यह दोनों पार्टियों के लिए गले की फांस बन गई है। राजद के लिए राजनीतिक विरासत का संकट तो है ही, महागठबंधन की सरकार को अस्थिर करने का दोषारोपण भी उसी से सिर पर है।

मध्यावधि चुनाव चुनाव या भाजपा नया साझेदार
एफआईआर दर्ज होने के बाद से तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग तेज हो गई है। वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी भी इशारों-इशारों में राजद से इस्तीफा की मांग कर चुकी है। ऐसा नहीं होने पर नीतीश कुमार कठोर निर्णय लेंगे। अब कठोर निर्णय क्या होगा, वह देखने वाली बात है। क्या नीतीश कुमार स्वयं तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की पहल करेंगे, महागठबंधन खत्म करके अपने पुराने साझेदार भाजपा के साथ होंगे या फिर पूरा मंत्रिमंडल भंग करके राज्यपाल से प्रदेश में मध्यावधि चुनाव कराने की सिफारिश करेंगे?

पद छोड़ने को तैयार नहीं तेजस्वी
बिहार के उप मुख्यमंत्री और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने कहा है कि, ‘यह जिस समय का मामला है उस समय उनको मूंछ भी नहीं आई थी। 14 साल का बच्चा कोई गलत काम नहीं कर सकता है। भ्रष्टाचार पर मेरी भी नीति जीरो टॉलरेंस की है।’ विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी ने इसके जवाब में जो कुछ ट्विटर पर लिखा, उसकी एक झलक आप भी देख सकते हैं। 


इशारों में मांगा तेजस्वी से इस्तीफा
भारतीय जनता पार्टी तेजस्वी मामले में लगातार नीतीश सरकार और महागठबंधन की राजनीति पर हमलावर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश भ्रष्टाचार के मामले में सख्त माने जाते हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए जाने पर पूर्व डीजीपी नारायण मिश्रा के आवास को जब्त कर उसमें सरकारी स्कूल खुलवा दिया था। लेकिन गठबंधन की राजनीति की मजबूरी में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को बर्खास्त करने के बजाय चार दिन का अल्टीमेट दे दिया। नीतीश पार्टी नेताओं के माध्यम से अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं। जदयू प्रवक्ता ने कहा कि सबकुछ शब्द और वाणी ही नहीं होती है, राजनीति में कुछ बातें इशारों से भी कही जाती है।

तथ्यात्मक सफाई देने से भाग रहे तेजस्वी
उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अच्छी तरह जानते हैं कि सीबीआई जब भी कोई एफआईआर करती है तो पहले उसके तथ्यों की जांच करती है। तथ्यों के आधार पर केस दर्ज होता है। ऐसे में, उनके पिता और तत्कालीन रेल मंत्री रहे लालू यादव के कारनामों से मिली संपत्ति को लेकर उनकी दलील बकवास है। नीतीश ने तथ्यों के आधार पर जनता को सफाई देने की बात करके वैचारिक रूप से तेजस्वी को आगे की कार्रवाई का अहसास करा चुके हैं।

महागठबंधन बचाने की जिम्मेदारी लालू के कंधे पर
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी के मामले में 4 दिन का वक्त देकर लालू यादव को अहसास करा दिया है कि महागठबंधन को बनाए रखने की जिम्मेदारी उनकी है। जदयू के महासचिव केसी त्यागी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी को सत्ता का लोभ नहीं है, पांच मिनट नहीं लगेगा फैसला लेने में। उनका यह बयान तब आया जब राजद के एक विधायक ने 80 विधायकों के साथ बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करके नीतीश सरकार को घुड़की देने की कोशिश की।

लालू कभी नहीं चाहेंगे की गठबंधन टूटे
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के पास तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से हटाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। अगर तेजस्वी यादव से इस्तीफा नहीं दिलाते हैं तो सत्ता का गठबंधन टूटने का सारा दोष लालू प्रसाद पर ही आने वाला है। वैसे भी लालू और उनका परिवार सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के जांच के दायरे में हैं। ऐसे में, लालू हर हाल में चाहेंगे कि नीतीश के साथ उनका साथ बना रहे।

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