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सबका साथ, सबका विकास के उद्देश्य के साथ अंतरिक्ष में पीएम मोदी का ‘शांति-दूत’

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बंगाल की खाड़ी के तट पर श्रीहरिकोटा से इसरो का ‘नॉटी बॉय’ अपने 11वें मिशन पर जैसे ही निकला भारत ने अतंरिक्ष विज्ञान की दुनिया में एक और मील का पत्थर रख दिया। शुक्रवार को 235 करोड़ की लागत से बने उपग्रह जीसैट-9 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ-सबका विकास’ को वैश्विक परिवेश के संदर्भ में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसके साथ ही ये मिशन ‘दक्षिण एशिया उपग्रह’ के तौर पर दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक विशेष उपहार है।

”भारत ने हमेशा ‘सबका साथ-सबका विकास’ के मंत्र को लेकर आगे बढ़ने का प्रयास किया है। जब हम सबका साथ-सबका विकास की बात करते हैं तो वो सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक परिवेश और खासकर हमारे अड़ोस-पड़ोस के देशों के लिए भी है। हम चाहते हैं कि हमारे पड़ोस के देशों का साथ भी हो, हमारे अड़ोस-पड़ोस के देशों का विकास भी हो।”- नरेंद्र मोदी

जानें इस संचार उपग्रह की आठ प्रमुख बातें
1- यह संचार उपग्रह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अलावा बाकी भारतीय पडो़सियों को संचार सुविधाएं मुहैया कराएगा।
2- जीसैट -9 के अभियान के तहत इस उपग्रह से नेपाल, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश और श्रीलंका को संचार सेवाएं आसानी से उपलब्ध होंगी।
3- जीसैट -9 को जीएसएलवी F09 से लांच किया गया जो 2230 किलो वजनी उपग्रह को अंतरिक्ष में ले गया।
4- इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में करीब 235 करोड़ रुपए की लागत आई है।
5- इस उपग्रह से जुड़ने वाले देशों को शिक्षा, संचार, आपदा, सूचना तकनीक और प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी जुटाने में मददगार साबित होगा।
6 –चेन्नै से करीब 100 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोट में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसे लॉन्च किया गया। इसरो के जीएसएलवी-एफ-09 रॉकेट से इस उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया।
7- पाकिस्तान ने ‘भारत के उपहार’ से यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया था कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है।
8- जीएसएलवी को शुरू हुए 12 साल हो चुके हैं जिसमें यह 11वां सबसे बड़ा लॉन्च है। जबकि क्रायोजेनिक इंजिन वाली चौथी बड़ा प्रक्षेपण है।

पड़ोसी देशों के कल्याण के लिए सेटेलाइट
पड़ोसियों के इस्तेमाल के लिए, उनके द्वारा कुछ खर्च कराए बिना बनाए गए इस संचार उपग्रह के ‘उपहार’ का अंतरिक्ष जगत में कोई और सानी नहीं है। दरअसल फिलहाल जितने भी क्षेत्रीय संघ हैं, वे व्यावसायिक हैं और उनका उद्देश्य लाभ कमाना है। लेकिन भारत ने पड़ोसी देशों के कल्याण के लिए इस सेटेलाइट का निर्माण किया है और उन्हें अमूल्य उपहार दिया है।


दक्षिण एशिया के लिए वरदान
इसरो की इस परियोजना के सफल प्रक्षेपण के बाद निर्माण, संचार, आपदा, सहायता और दक्षिण एशियाई देशों के बीच संपर्क बढ़ाने में सहूलियत होगी। इसके अलावा आपसी तालमेल और जानकारी साझा करना भी आसान हो सकेगा। ये उपग्रह प्राकृतिक संसाधनों का खाका बनाने, टेली मेडिसिन, शिक्षा क्षेत्र, आईटी और लोगों से लोगों का संपर्क बढ़ाने के क्षेत्र में पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक वरदान साबित होगा। अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल में भी ये उपग्रह मदद कर सकता है। इस उपग्रह में भागीदार देशों के बीच हॉट लाइन उपलब्ध करवाने की भी क्षमता है। इसके माध्यम से भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी जैसी आपदाओं के समय संवाद कायम करने में मदद मिल सकेगी। टेलीकम्यूनिकेशन और प्रसारण संबंधी सेवाओं जैसे- टीवी, डीटीएच, वीसैट, टेलीएजुकेशन, टेलीमेडिसिन और आपदा प्रबंधन सहयोग को भी संभव बनाएगा।

 235 करोड़ की लागत से सेटेलाइट निर्माण
50 मीटर लंबी और 412 टन की इस उपग्रह की कीमत 235 करोड़ रुपये है। 12 साल के जीवनकाल के इस उपग्रह के लिए इसके भागीदार देशों को लगभग 150 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा। 2,195 किलोग्राम द्रव्यमान वाला यह उपग्रह 12 केयू-बैंड के ट्रांसपांडरों को अपने साथ लेकर गया।

अंतरिक्ष विज्ञान में ISRO की बढ़ती साख
इसरो एक बाद एक मील के पत्थर गाड़ता जा रहा है। 2014 में मार्श मिशन से पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाई थी। वहीं फरवरी 2017 में भी भारत ने पीएसएलवी के जरिए 100 से ज्यादा नैनो सेटेलाइट लांच की थी। अब रिकॉर्ड दो साल में दक्षिण एशिया सेटेलाइट का निर्माण कर इसरो ने एक और उपलब्धि हासिल कर ली है। इस उपग्रह की क्षमता तथा इससे जुड़ी सुविधाएं दक्षिण एशिया की आर्थिक और विकासात्मक प्राथमिकताओं को पूरा करने में काफी मदद करेगा और यह हमारे पूरे क्षेत्र के आगे बढ़ने में मददगार होगा।

मौका चूक गया पाकिस्तान
2014 में सार्क सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी इस योजना का प्रस्ताव रखा था। इस सेटेलाइट का नाम तब SAARC सेटेलाइट रखा गया था। लेकिन पाकिस्तान के इस योजना में शामिल होने से इनकार करने के बाद इसका नाम बदल दिया गया। जाहिर है पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव को नकार कर एक बड़ा मौका गंवा दिया है। 


भारत की कूटनीतिक सफलता
बदलते विश्व परिदृश्य में भारत की ये अंतरिक्ष कूटनीति आने वाले समय में कारगर साबित हो सकती है। दरअसल विकास की गति और संचार माध्यमों की सुलभता का आपस में गहरा कनेक्शन है। जाहिर है अंतरिक्ष में अपने लिए एक अलग स्थान बना रहा भारत अपने पड़ोसियों के लिए अपना दिल खोल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘सबका साथ-सबका विकास’ नीति का सार भी तो यही है। हालांकि इसके पूर्ण लाभ के लिए हर देश को अपनी जमीनी स्तर की अवसंरचना विकसित करनी होगी। भारत इस दिशा में मदद और जानकारी देने के लिए तैयार है। जाहिर है ऐसे कदमों से भारत अपने पड़ोसी देशों के और करीब आएगा जो भविष्य की कूटनीति को भी बल प्रदान करेगा।

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