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पश्चिम बंगाल में हार गया लोकतंत्र, हत्या-रेप के डर से निर्विरोध चुने गए टीएमसी के 34% उम्मीदवार

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पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में टीएमसी ने बिना एक वोट डाले ही एक-तिहाई से ज्यादा यानि 34.2% सीटें जीत ली हैं। ऐसा इसलिए हुआ कि इन सभी ग्रामीण सीटों पर टीएमसी यानि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की दहशत के सामने कोई दूसरी पार्टी उम्मीदवार ही नहीं खड़ा कर पाई। राजनीतिक प्रतिशोध में मारपीट, हत्या, बलात्कार का दूसरा नाम बन चुके बंगाल में दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं जुटा सका। इस तरह से राज्य की 58 हजार 692 पंचायत सीटों में से 20,076 सीटों पर चुनाव नहीं होंगे। राज्य के पंचायत चुनावों के इतिहास में निर्विरोध जीतने का यह ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। गौरतलब है कि 2013 में भी उसने कुल 6,274 यानि 10.7% सीटें निर्विरोध जीती थी।

भाजपा उम्मीदवार की गर्भवती देवरानी का बलात्कार
टीएमसी की गुंडागर्दी की ताजा घटना पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की है। यहां सोमवार को पंचायत चुनाव लड़ रहे एक भाजपा प्रत्याशी के घर टीएमसी के गुंडों ने मारपीट की। प्रत्याशी के न मिलने पर उनकी देवरानी के साथ बलात्कार किया, जो छह महीने की गर्भवती है। इस नृशंस अपराध के बाद सरकारी अस्पताल ने ममता बनर्जी के डर से उसका इलाज करने से भी मना कर दिया। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के मुताबिक इस गर्भवती महिला का इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा है, जहां उसके बच्चे के जीवित बचने की संभावना न के बराबर है।


हर जगह टीएमसी का खौफ
ग्राम पंचायत की सीटों के अलावा पंचायत समिति की कुल 9,217 सीटों में से 3,509 सीटों पर टीएमसी के अलावा किसी उम्मीदवार ने नामांकन नहीं भरा। वहीं जिला परिषद की 825 में से 203 सीटों पर भी टीएमसी के सामने कोई उम्मीदवार खड़े होने तक की हिम्मत नहीं जुटा सका। बीरभूम जिले में तो टीएमसी के ज्यादातर उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए गए हैं। वहां ग्राम पंचायत की 2,427 में से 1,967 सीटें ममता की पार्टी ने निर्विरोध जीत ली हैं।

हाईकोर्ट ने भी लगाई थी चुनाव पर रोक
पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धांधली की शिकायतों के चलते ही 10 अप्रैल, 2018 को कलकत्ता हाईकोर्ट को वहां मतदान की प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगानी पड़ी थी। बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर चुनाव आयोग को नामांकन की तारीख पिछले शनिवार तक के लिए बढ़ानी पड़ी थी। इससे पहले नामांकन की तारीख 9 अप्रैल को ही समाप्त हो चुकी थी। विपक्षी दलों का आरोप था कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ओर से जारी हिंसा के चलते उनके हजारों उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर सके हैं।

पश्चिम बंगाल में गुंडों का राज!
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव से जुड़े हिंसक झड़पों में भाजपा ने अपने 5 कार्यकर्ताओं की हत्या और 100 से ज्यादा के जख्मी होने के आरोप लगाए हैं। दरअसल टीएमसी के गुंडों ने विपक्षी दलों के उम्मीदवारों पर कई जगह जानलेवा हमले किए हैं। मसलन बीरभूम जिले में भाजपा प्रत्याशियों को नामांकन से रोकने के लिए बमबाजी और गोलीबारी की गई, जिसमें एक भाजपाई की मौत हो गई और 30 कार्यकर्ता घायल हो गए। बांकुरा जिले में पार्टी के प्रदेश सचिव श्यामपदा मंडल को उनकी गाड़ी से खींच कर जानलेवा हमला किया गया। उनकी गाड़ी भी तोड़ी गई। मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी, पूर्व और पश्चिम ब‌र्द्धमान, हुगली और पश्चिम- पूर्व मेदिनीपुर जिलों में भी नामांकन नहीं करने देने के लिए दादागीरी की गई। 24 परगना जिले में तो 6 पुलिसकर्मी भी जख्मी हो गए थे।

यानि पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की जिस गुंडागर्दी और अपराध की राजनीति को खत्म करने के लिए लोगों ने ममता बनर्जी की सरकार को चुना था, उसने खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए उसी को सत्ता का आधार बना लिया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में बंगाल में राजनीतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं, जिसमें 205 लोग हिंसा के शिकार हुए। 2015 में राजनीतिक हिंसा की कुल 131 घटनाएं दर्ज की गईं और 184 लोग इसके शिकार हुए। वर्ष 2013 में बंगाल में राजनीतिक हिंसा में 26 लोगों की हत्या हुई थी, जो सभी राज्यों से अधिक थी।

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