दिल्ली सरकार और एलजी के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम निर्णय दिया। अब ये स्पष्ट हो गया कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना मुमकिन नहीं है। कोर्ट के निर्णय से स्पष्ट हो गया है कि अंहकार, अक्खड़पन और अराजक राजनीति का पर्याय बन चुके केजरीवाल को दिल्ली के एलजी को ही बॉस मानना पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अन्य राज्यों के राज्यपालों की तुलना में दिल्ली के एलजी के पास अधिक अधिकार हैं और दिल्ली के प्रशासक उपराज्यपाल ही हैं। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार कोई भी कानून बनाती है तो बनाने से पहले और बाद में राज्यपाल को दिखाना होगा। आइये इन सात प्वाइंट्स के माध्यम से समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कैसे एलजी को दिल्ली का रीयल बॉस करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल को झटका |
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं |
प्रदेश के उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक |
कानून बनाने से पहले और बाद में एलजी को दिखाना होगा |
संविधान का पालन हो, संसद का कानून ही सर्वोच्च |
जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस केंद्र के अधीन होगा |
कैबिनेट-एलजी में मतभेद हो तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजा जाए |
दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश, राज्य सरकार को अलग से अधिकार नहीं |
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि लोकतंत्र में सह-अस्तित्व का सिद्धांत ही सर्वोपरि है और यही इसका मूल आधार भी। दरअसल अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही दिल्ली की जनता ने लगातार उनकी नाकामी ही देखी है। पानी, बिजली, स्वास्थ, शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर असफल रही केजरीवाल सरकार हमेशा पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग के नाम पर अपनी असफलता छिपा जाते थे। इसी क्रम में वे लगातार केंद्र सरकार और दिल्ली के एलजी से टकराव की राजनीति करते रहे हैं। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से साफ हो गया है कि उन्हें जनता को अपने कार्यों का हिसाब देना होगा और किसी भी तरह की बहानेबाजी का अब कोई मौका नहीं बचा है।