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गांधी परिवार की सियासत के खात्मे का काउंट डाउन शुरू, गोवध साबित होगी आखिरी कील !

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लोकसभा चुनावों के बाद से अब तक जो हालात बनकर उभरे हैं उससे सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि, क्या गांधी परिवार के राजनीतिक करियर के अंत की शुरुआत हो चुकी है? वैसे अगर किसी से चर्चा करें तो लोग सीधे इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि कांग्रेस की दुर्गति के लिए राहुल गांधी जिम्मेदार हैं। लेकिन अगर आप तसल्ली से कांग्रेस की स्थिति का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि ये स्थिति एक दिन में नहीं बनी है और न ही इसका दोष अकेले राहुल गांधी पर मढ़ा जाना चाहिए। इतनी पुरानी और बड़ी पार्टी की जड़ों को उखाड़ना तो दूर, हिलाना भी राहुल गांधी जैसे व्यक्तित्व के बूते की बात नहीं है क्योंकि खुद राहुल गांधी को छोड़ दें तो, देश की राजनीति की समझ रखने वाला मामूली से मामूली आदमी भी समझता है कि गांधी टाइटल हट जाने के बाद बचा ‘राहुल’ नाम किसी चर्चा लायक भी नहीं बचता है।

दरअसल गांधी परिवार की ये स्थिति 6 दशकों से भी ज्यादा के कुकर्मों का नतीजा है, जिसका घड़ा 10 साल के यूपीए शासन में लबालब भर चुका था। लेकिन न तो कांग्रेस सुधरी और न ही उसकी आलाकमान टाइप सोच, परिणाम साफ नजर आने लगा है-

मनमोहन (सोनिया-राहुल) सरकार के घोटाले
मनमोहन सिंह के चेहरे वाली सोनिया-राहुल की सरकार पहले 5 साल तो अपनी करतूतों को छिपाकर किसी तरह दूसरी बार सत्ता पर काबिज हो गई। लेकिन दूसरे कार्यकाल में एक के बाद एक जिस तरह से घोटालों के खुलासे की शुरुआत हुई, उसने अभी तक अंत होने का नाम नहीं लिया है। सरकार के संरक्षण में ऐसे-ऐसे घोटाले हुए जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। जनता तबाही थी, सरकारी खजाना लुट चुका था। कांग्रेस का हर एक कारनामा सामने आने के साथ वो और उसके नेता जनता की नजरों से गिरते चले गए और वो सिलसिला सत्ता से बेदखल होने के बाद भी नहीं थमा है। स्थिति ये है कि अब यूपीए-1 में किए गए कारनामों के राज भी सामने आने शुरू हो गए हैं।

कांग्रेस में न नेता बचा है और न ही भरोसा
सोनिया गांधी ने किसी तरह से पर्दे के पीछे रहकर जोड़तोड़ और जुगाड़बाजी से 10 साल तक मनमोहन के नाम वाली सरकार चलाई। लेकिन आज उनकी मौजूदगी में भी पार्टी में शून्यता की स्थिति है। देश के धर्म को भुला दें तो उन्होंने अपना मातृ धर्म निभाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ा है। इकलौते बेटे को खानदान की विरासत और देश की सत्ता सौंपने की सारी तिकड़म कर चुकी हैं। लेकिन बार-बार धक्का देकर सियासत के मंच पर भेजे जाने के बावजूद राहुल गांधी उसमें फिट ही नहीं बैठ पाते हैं। कभी वो पार्टी की किरकरी करा जाते हैं, तो कभी तथाकथित खानदान की जग हंसाई। हालांकि ये उनका कॉन्फिडेंस कहें या कुछ और अपने चेहरे में रत्ती मात्र का भी शिकन नहीं आने देते। वो हर बार फिर से कुछ नया करके जनमानस को लोटपोट करते रहते हैं। देश की सियासत में जनता हर बार उन्हें नकार देती है, लेकिन पार्टी के लोगों की मजबूरी है कि जिस परिवार का नमक (सियासी) खाते रहे हैं, उसे आईना दिखाने की हिम्मत कैसे जुटाएं ?

तुष्टिकरण की नीतियों से हुआ बेड़ा गर्क
वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करना कांग्रेस का चाल, चेहरा और चरित्र रहा है। कांग्रेस (अगर वो खुद को 132 साल पुरानी मानती है तो) की सोच धर्मनिर्पेक्ष होती तो देश का बंटवारा नहीं होने देती। अगर बंटवारा को रोकना नामुमकिन था तो फिर बाद में उन्हीं विचारों (तुष्टिकरण) का लालन-पालन क्यों करती रही, जिनके चलते बंटवारे का जख्म मिला था ? शाहबानो केस में संविधान को ठेंगा दिखाने का मामला हो या फिर तीन तलाक और कॉमन सिविल कोड का मामला। देश की जनता हर बार कांग्रेस और उसके आलाकमानों का स्याह चेहरा देखते रहने को मजबूर रही। कांग्रेस कभी मुस्लिम आरक्षण की चाल चलती रही, तो कभी राष्ट्र की संपदा पर सबसे पहले मुस्लिमों के अधिकार जैसी अनर्गल बातें करने में रमी रही। देश का जनमानस भोला हो सकता है, नासमझ नहीं। जब से उसने कांग्रेस के इस गंदे खेल को महसूस किया, पार्टी से मुंह फेरना शुरू कर दिया। खासकर पिछले कुछ सालों में कांग्रेस नेताओं ने तुष्टिकरण के चक्कर में जिस तरह से बार-बार लक्ष्मण रेखा पार की है, उसे पचाना किसी भी राष्ट्रभक्त के लिए संभव नहीं है।

तुष्टिकरण के लिए आतंकवादियों को सगा बनाया
सियासत अपनी जगह है, लेकिन क्या इसके चक्कर में कोई पार्टी देश से गद्दारी कर सकती है? लेकिन कांग्रेस ने अपने आचरण से बार-बार दिखाया है कि उसके लिए वोट बैंक आवश्यक है, देश बचे या न बचे। इशरत जहां, शोहराबुद्दीन शेख जैसे आतंकवादियों के समर्थन में खड़े होना, सिर्फ इसलिए कि वो मुस्लिम थे, ये बात देश की जनता कैसे बर्दाश्त कर सकती है ? यहां तक कि कांग्रेस आलाकमान के नजदीकी नेताओं ने ओसामा बिन लादेन और दाऊद इब्राहिम जैसे आतंकियों को सम्मानित करने में भी झिझक नहीं दिखाया। सिर्फ इसलिए कि मानवता के इन दुश्मनों का नाता मुसलमानों से है।

हिंदू विरोधी सोच ले डूबा
हद तो ये हो गई कि मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्कर में कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्दों का भी आविष्कार कर डाला। कांग्रेस ने हिंदू और हिंदू धर्म को अपमानित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा। चाहे रामजन्म भूमि का मसला हो या रामसेतू का, सोनिया-राहुल की अगुवाई वाली कांग्रेस ने हमेशा हिंदुओं को अपमानित करने का काम किया है। कभी रामजन्म भूमि के आस्था की तुलना असंवैधानिक, गैरकानूनी और अमानवीय ट्रिपल तलाक से की, तो कभी रामसेतू के अस्तित्व को ही नकारने का करतूत कर दिखाया। जब भी कांग्रेस के सामने वोट बैंक और हिंदुओं में से एक को चुनने का मौका आया उसने बिना सोचे हिंदुओं को नीचा दिखाने का काम किया।
कांग्रेस ने गोवध तक कर डाला
हिंदुओं के लिए गाय मां के समान है जिसकी पूजा होती है। लेकिन केरल में कांग्रेस ने सरेआम इसीलिए गोहत्या कर दी, क्योंकि इसमें उसे तुष्टिकरण के फायदे की उम्मीद थी। जबकि ये घटना धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आपराधिक कृत्य है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने हिंदुओं की धार्मिक आस्था को कैसी चोट पहुंचाई है। जिस देश में गाय की पूजा सदियों से होती चली आ रही है, उसकी हत्या पर संविधान और कानून के अनुसार रोक लगी है, कांग्रेस ने अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए उसे सरेआम काट डालने से भी परहेज नहीं किया। सोचने वाली बात है कि जिस देश के अधिकांश देशभक्त मुसलमान चोरी छिपे भी गोवध से सिर्फ इसीलिए परहेज करते हैं क्योंकि वो हिंदुओं की धार्मिक आस्था में रची बसी है। उसी देश में कांग्रेस अपने हाथों से गाय काटकर क्या साबित करना चाहती है ? यही वजह है कि अब कोई भी हिंदू या देशभक्त मुसलमान कांग्रेस की ओर जाने की कल्पना भी नहीं कर सकेगा।

कांग्रेस के प्रति देश की अधिकांश जनमानस में जो गुस्सा है, वो मामूली नहीं है। लेकिन पुत्र प्रेम में सोनिया और आलाकमान की अंधभक्ति में कांग्रेस के बाकी नेताओं ने सच्चाई से मुंह मोड़ लिया है। सोनिया की दो मजबूरी है, हिंदुओं की आस्था से उनका कभी लेना-देना रहा नहीं और बच्चा कितना भी निकम्मा हो जाए, माता-पिता के लिए हमेशा लाडला ही रहता है। लेकिन बाकी कांग्रेसियों की मजबूरी अलग तरह की है। अबतक वो जो नमक (सियासी) खाते आए हैं, उसका मोल चुकाते रहना चाहते हैं। यानी पार्टी का आधार अब सिर्फ दो चीजों पर अटकर कर गया है, राहुल का नेतृत्व और हिंदुओं का विरोध। परिणाम देश की जनता को पता है।

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