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राहुल को तगड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील से संबंधित सारी याचिकाएं खारिज

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सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे को लेकर सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस सौदे को लेकर कोई शक नहीं है और कोर्ट को इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके पहले शुक्रवार को कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग वाली चार याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उसे 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के सरकार के फैसले में कोई अनियमितता नहीं मिली है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया को लेकर हम संतुष्ट हैं और संदेह की कोई वजह नहीं है। कोर्ट के लिए यह सही नहीं है कि वह एक अपीलीय प्राधिकारी बने और सभी पहलुओं की जांच करे। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हमें कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे लगे कि कोई पक्षपात हुआ हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश लड़ाकू विमानों के बगैर नहीं रह सकता है।

इस फैसले से राफेल सौदे पर राहुल गांधी को तगड़ा झटका लगा है। अदालत ने साफ कहा कि सरकार की बुद्धिमता को पर जजमेंट लेकर नहीं बैठे हैं।

राफेल पर कांग्रेस के एक-एक झूठ का पर्दाफाश
इसके पहले राफेल डील को लेकर कांग्रेस और विरोधी दलों के झूठ और मिथ्या प्रचार को फ्रांस सरकार ने पूरी तरह बेनकाब कर दिया था। फ्रांस की सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि भारत के औद्योगिक पार्टनर के रूप में रिलायंस के चुनाव में दोनों सरकारों की कोई भूमिका नहीं थी। यूरोप एंड फॉरेन अफेयर्स मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसपर बयान जारी कर सफाई दी कि इस डील में पार्टनर के चुनाव का काम डसॉल्ट एविएशन ने किया था ना कि भारत सरकार ने। फ्रांस सरकार ने जोर देकर कहा कि फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट एविएशन को कॉन्ट्रैक्ट के लिए भारतीय कंपनी का चुनाव करने की पूरी आजादी थी। इतना ही नहीं फ्रांस सरकार ने यह भी कहा कि डसॉल्ट एविएशन ने रिलायंस को सबसे बेहतर विकल्प के रूप में चुना।

उधर डसॉल्ट एविएशन ने भी बयान जारी कर कहा कि उसने ऑफसेट पार्टनर के रूप में खुद ही रिलायंस का चुनाव किया था। डसॉल्ट एविएशन ने बयान जारी कर कहा कि इसने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रिलायंस डिफेंस को अपना पार्टनर चुना है। इस साझेदारी से फरवरी 2017 से डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड ज्वाइंट वेंचर तैयार हुआ। डसॉल्ट और रिलायंस ने नागपुर में फॉल्कन और राफेल एयरक्राफ्ट के मैन्युफैक्चरिंग पार्ट के लिए प्लांट बनाया है। डसॉल्ट ने कहा कि उनके सीईओ एरिक ने इस साल अप्रैल में भारत में दिए गए एक इंटरव्यू में इसकी विस्तृत जानकारी साझा भी की थी। कहने की जरूरत नहीं कि फ्रांस सरकार और डसॉल्ड एविएशन के ये बयान कांग्रेस के झूठ की मुहिम पर ब्रेक लगाने के लिए काफी हैं। वैसे भी हिन्दुस्तान की जनता अब जाग चुकी है और उसे गुमराह करना आसान नहीं है।

देश की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है कांग्रेस का झूठ
यहां ये जानना जरूरी है कि राफेल को लेकर राजनीतिक नफे के लिए फैलाया जा रहा कांग्रेस का झूठ भारत के लिए कितना घातक है। दरअसल भारतीय वायुसेना को आखिरी बार साल 1996 में रूस से सुखोई 30 एमकेआई मिले थे। पुराने हो चुके मिग-21 और मिग-27 विमान बेड़े से हटाए जा रहे हैं। ऐसे में वायुसेना अपने बेड़े में फाइटर्स की जरूरत लंबे समय से महसूस कर रही थी, लेकिन राजनीति को मोटी कमाई का जरिया मानने वाली कांग्रेस को देश की सुरक्षा से भला कब सरोकार रहा? अब जबकि मोदी सरकार ने वायुसेना की जरूरतों को देखते हुए सबसे बेहतर विकल्प के तौर पर राफेल डील की तो कांग्रेस उसे लेकर झूठ पर झूठ बोल रही है।

कांग्रेस का पहला झूठ- मोदी सरकार ने यूपीए की डील को बदला
राहुल गांधी अपने अलग-अलग बयानों में बेखटके बताते रहे हैं कि यूपीए सरकार ने डसॉल्ट एविएशन के साथ हुए करार में राफेल की कितनी कीमत तय की थी। कभी वो एक राफेल की कीमत कभी 520 करोड़ बताते हैं, कभी 526 करोड़, कभी 540 करोड़, कभी 700 करोड़ तो कभी 750 करोड़। एक बार तो उन्होंने एक राफेल की कीमत 526 रुपये भी बता दी थी। यूपीए सरकार के जमाने में हुए करार के हवाले से राफेल की कीमत को लेकर राहुल गांधी के बयानों में आखिर इतना विरोधाभास क्यों है? वो इसलिए क्योंकि यूपीए सरकार के दौर में राफेल को लेकर डसॉल्ट कंपनी के साथ किसी करार पर दस्तखत हुआ ही नहीं था। यूपीए सरकार ने सिर्फ बातचीत की जो कभी करार तक पहुंच ही नहीं सका। 2013 में विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान से इसकी पुष्टि भी हो जाती है। 2013 में विदेश मंत्रालय की बयान जारी कर कहा था कि “भारत सरकार ने फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट एवियेशन के राफेल का चयन कर लिया है। भारतीय वायु सेना के लिए126 MMRCA(राफेल फाइटर्स) की खरीद को लेकर डसॉल्ट एविएशन के साथ बातचीत जारी है।” 2013 की MEA की इस ब्रीफिंग से साफ हो जाता है कि राफेल को लेकर बातचीत तो जरूर हो रही थी, लेकिन वो डील लॉक नहीं हो सकी थी और जब डील अंजाम तक पहुंची ही नहीं तो कीमत कहां से तय हो गई। राफेल की कीमत को लेकर राहुल गांधी के विरोधाभासी बयानों या कहें सफेद झूठ की शायद यही वजह है।

कांग्रेस का दूसरा झूठ- सरकार ने डील में प्रक्रिया का पालन नहीं किया
कांग्रेस के नेता मौजूदा सरकार पर राफेल डील को लेकर एक झूठा आरोप बार-बार लगाते हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री फ्रांस गए और राफेल की खरीद को लेकर करार कर लिया। इस आरोप में भी कांग्रेस या कहें राहुल गांधी का बचकाना पक्ष ही बेपर्दा हो रहा है जिसकी वजह से वो बातचीत और करार के बीच के अंतर को समझ नहीं रहे या फिर जानबूझ कर नादान बनने की कोशिश कर रहे हैं। देश की जनता को ये जानना जरूरी है कि 2015 में प्रधानमंत्री फ्रांस जरूर गए थे और राफेल को लेकर बातचीत भी की। दरअसल दो दशक तक वायुसेना के बेड़े में किसी नए फाइटर्स के शामिल नहीं होने की वजह से उसकी तत्काल और सख्त जरूरत महसूस की जा रही थी। वायुसेना सरकार से लगातार इसकी मांग भी कर रही थी। इसी जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री ने 2015 में फ्रांस सरकार से जल्द से जल्द राफेल की आपूर्ति के लिए बातचीत की और फिर हिन्दुस्तान लौट कर उसकी आधिकारिक प्रक्रिया शुरू करवाई। एक-एक जरूरी प्रक्रिया से गुजरते हुए यहां तक कि रक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति से मंजूरी मिलने के बाद इस डील को सितंबर 2016 में कागज पर उतारा गया। इस बात की जानकारी रक्षा मंत्रालय 7 फरवरी 2018 को लिखित तौर पर दे चुका है।

कांग्रेस का तीसरा झूठ- कीमत छिपाई जा रही है
कांग्रेस बार-बार देश को गुमराह कर रही है कि सरकार राफेल की कीमतों को छुपा रही है। दरअसल देश के लिए होने वाले हर बड़े सौदे में घोटाले की आदी रही कांग्रेस ये मानने को तैयार हो ही नहीं सकती कि कोई सरकार देशहित में भी रक्षा सौदा कर सकती है। 7 फरवरी 2018 को ही रक्षा मंत्रालय ने साफ कर दिया था कि सरकार ने संसद को राफेल की अनुमानित कीमत की जानकारी दे दी है। जहां तक डीटेल ब्रेकअप की बात है तो ये पिछली सरकारें भी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नहीं देती थीं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर डीटेल ब्रेकअप को सार्वजनिक कर दिया गया तो दुश्मन देशों को ये पता लग जाएगा कि राफेल में क्या-क्या खासियतें हैं और वो उनका तोड़ ढूंढने में जुट जाएंगी। साफ है कि देश की सुरक्षा के प्रति मौजूदा सरकार की निष्ठा को कांग्रेस शिद्दत से समझती है, इसीलिए वो इस मुद्दे को लेकर बेलौस झूठ बोलती जा रही है।

कांग्रेस का चौथा झूठ- एचएएल की जगह रिलायंस डिफेंस को दिया कॉन्ट्रैक्ट
कांग्रेस के इस झूठ का पर्दाफाश तो डसॉल्ट एविएशन और फ्रांस की सरकार ने कर दिया है। इतना ही नहीं न्यूज एजेंसी रॉयटर की 2013 की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि डसॉल्ट एविएशन एचएएल को राफेल की मैन्यूफैक्चरिंग के लायक नहीं मानती। इसके अलावा रिलायंस के साथ उसके दूसरे व्यापारिक हित भी जुड़ रहे थे। डसॉल्ट एविएशन वार्षिक रिपोर्ट 2017 में कहा गया है कि रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स लिमिटेड में 35 प्रतिशत शेयर लेकर उसने भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ाई। सच्चाई यही है तो फिर क्यों राहुल गांधी बार-बार ये झूठ फैला रहे हैं कि सरकार ने राफेल का कॉन्ट्रैक्ट एचएएल से छीनकर रिलायंस को दिया।

साफ है कि राफेल को लेकर कांग्रेस झूठ पर झूठ बोल रही है। देश के रक्षा विशेषज्ञ इस झूठ के लिए उन्हें बार-बार चेता भी रहे हैं, लेकिन लगता है कि कांग्रेस खासकर राहुल गांधी को देश की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं है।

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