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छद्म सेक्युलरों को रोकना जरूरी: नहीं तो ये देश के टुकड़े-टुकड़े करा देंगे !

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अब बहुत हो चुका। देश में छद्म सेक्युलरों को बेनकाब करने का समय आ गया है। इनके चलते अब देश की संप्रभुता खतरे में पड़ गई है। पश्चिम बंगाल के 24 परगना में भड़की हालिया हिंसा में राज्य सरकार के रवैये ने इसी खतरे का संकेत दिया है। देश विरोधी कट्टरपंथी ताकतें खुलेआम कानून और संविधान को चुनौती देने लगी हैं। लेकिन वहां की ममता बनर्जी सरकार अभी भी वोट बैंक की राजनीति साधने में जुटी है। सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि एक पिल्ले को भी धर्म से जोड़ने में माहिर छद्म सेक्युलर बदुरिया की घटनाओं पर आपराधिक चुप्पी साधे हुए हैं।

तुष्टिकरण की आग!
ममता बनर्जी के शासन वाले पश्चिम बंगाल के कई जिले इस समय भयंकर हिंसा की चपेट में है। देश विरोधी कट्टरपंथी ताकतों ने कानून को हाथ में ले रखा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हिंसा ने धीरे-धीरे 4 जिलों को अपनी चपेट में ले लिया है। सोशल मीडिया पर छपे एक विवादित पोस्ट के बहाने देश विरोधी ताकतें जगह-जगह हिंसा पर उतारू हैं, तोड़फोड़ किया जा रहा है, बमों से हमले किया जा रहे हैं। हालात पर नियंत्रण पाने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों को भी तैनात किया गया है। बीजेपी तो इस हालात के लिए सीधे तौर पर ममता सरकार को जिम्मेदार मान रही है।

तुष्टिकरण के चलते दंगाइयों के हौंसले बुलंद!
सवाल उठ रहा है कि अगर फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने आरोपी के खिलाफ फौरन कार्रवाई की गई, फिर वहां आग में घी डालने का काम कौन कर रहा है? आरोपी को कट्टरपंथियों के हवाले करने की मांग का दुस्साहस कौन कर रहा है? आरोप है कि दंगाई आरोपी को शरिया कानून के तहत पत्थरों से पीट-पीट कर हत्या करना चाहते हैं। क्या ये तुष्टिकरण की नीतियों का दुष्परिणाम तो नहीं है? क्योंकि ममता बनर्जी का मुस्लिम प्रेम अब किसी से छिपा नहीं है।

दंगाइयों पर कार्रवाई के बजाय गवर्नर पर दोषारोपण
अगर राज्य सरकार समय रहते दंगाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती तो क्या वो कानून को हाथ में लेने की जुर्रत दिखाते ? लेकिन मुख्यमंत्री का ध्यान अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के बजाय राजनीतिक रोटी सेंकने में लगा हुआ है। देश को खतरे में डाला जा रहा है और वो गवर्नर के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के फिराक में लगी हैं। क्या उन्हें बताने की जरूरत है कि राज्य का शासन-प्रशासन संविधान के मुताबिक चले ये देखने की जिम्मेदारी गवर्नर की है। लेकिन राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के सवालों का जवाब देने के बजाय वो उन्हीं पर दोषारोपण कर रही हैं।

कानून का शासन कायम कीजिए, नौटंकी नहीं
अब चर्चा है कि पश्चिम बंगाल सरकार सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए ‘शांति रक्षक बल’ का गठन करेंगी। खबरों के अनुसार इनकी तैनाती 60 हजार बूथों पर की जाएगी। अब सवाल है कि हथियारों और बमों से लैस देश विरोधी ताकतों को रोकने में ये बल किस हद तक सफल हो सकेंगी। क्या मुद्दे से ध्यान भटकाने की ममता सरकार की कोई नई चाल तो नहीं है? इस 60 हजार लोगों में कौन लोग शामिल होंगे ? क्योंकि जहां तुष्टिकरण की बात आती है तो ममता बनर्जी का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है। क्योंकि आरोपों के अनुसार वो मुसलमानों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।

किस बिल में छिपे हैं छद्म सेक्युलर ?
ममता के राज में संविधान और कानून का मजाक बना दिया गया है। कट्टरपंथी ताकतें एक नाबालिग को अपने हाथों से सजा देना चाहते हैं। वो भारत में शरिया कानून के हिसाब से शासन चलवाना चाहते हैं। लेकिन देश का सेक्युलर गैंग मौन है। बात-बात में फ्री स्पीच की दुहाई देने वाले लोगों की बोलती बंद है। #NotInMyName के नाम पर प्रदर्शन करने वाले घरों में दुबके हैं। साफ जाहिर है कि बंगाल की वारदात उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठता। वहां तो मुट्ठीभर कट्टरपंथी एक बहुसंख्यक बच्चे को पत्थरों-पत्थरों से पीट-पीट कर मार देना चाहते हैं। उन कट्टरपंथियों को राज्य सरकार ने भी खुली छूट दे रखी है।

ममता सरकार के कारनामे
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं राज्य की मुख्यमंत्री ने एक प्रसिद्ध शिव मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी एक कट्टर मुस्लिम के हाथों में सौंप दी थी। इससे पहले उनपर दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा में भी बाधा उत्पन्न करने के आरोप लग चुके हैं। उनपर वोट के लिए बांग्लादेशी मुसलमानों को भी संरक्षण देने के आरोप हैं। सवाल है कि आज अगर वहां देश की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश हो रही है तो क्या इसकी वजह ममता सरकार की हिंदू विरोधी नीतियां नहीं हैं?

पहले भी खौफनाक मंसूबा जाहिर कर चुके हैं कट्टरपंथी
करीब डेढ़ साल पहले की घटना है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार करीब 2.5 लाख मुसलमान पश्चिम बंगाल के मालदा में इसी तरह कानून को हाथ में ले चुके हैं। दरअसल तब कमलेश तिवारी नाम के एक व्यक्ति पर पैगंबर मोहम्मद को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगा था। तब कट्टरपंथी मुसलमानों ने उसे फांसी देने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। जबकि अगर आरोपी पर आरोप साबित भी हो जाता तब भी इस मामले में फांसी की सजा का कोई प्रावधान नहीं है। जब तक प्रदर्शनकारियों को लगा कि पश्चिम बंगाल सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी, वो कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जब लाचार होकर कार्रवाई शुरू हुई तो उनकी सारी हेकड़ी गुम हो गई। यानी अगर पश्चिम बंगाल सरकार अभी भी इच्छाशक्ति दिखाए तो हिंसा करने वालों की नकेल कसना मुश्किल नहीं है।

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