Home विचार राजनीति में इसलिए फिर सक्रिय हुईं सोनिया गांधी…

राजनीति में इसलिए फिर सक्रिय हुईं सोनिया गांधी…

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दिसंबर, 2017 में जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाली थी तो लगा था कि सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे हट जाएंगी। हालांकि पूरे दो साल के बाद एक बार फिर से एक्टिव हो गई हैं और कर्नाटक के बीजापुर चुनाव प्रचार से उन्होंने इसकी शुरुआत भी कर दी है। दो साल से सुस्त पड़ी सोनिया गांधी के अचानकर सक्रिय होने का क्या सबब है, इसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आइये हम इन्हीं बिंदुओं पर नजर डालते हैं-

कर्नाटक में कांग्रेस की हार पक्की मान रही पार्टी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कर्नाटक में हो रही रैलियों में उमड़ती भीड़ ने कांग्रेस के आलाकमान को परेशान कर दिया है। यू कहें कि बीजेपी के बढ़ते ग्राफ के कारण कांग्रेस में खलबली मची हुई है। ऐसे में कांग्रेस की हार पक्की मान रहे कांग्रेस के दिग्गजों ने आखिरी वक्त में सोनिया गांधी की रैली कराने का फैसला किया है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों के बाद कांग्रेस की हार पक्की मानी जा रही है। ऐसे में पार्टी को लग रहा है कि अंतिम समय में सोनिया गांधी की एंट्री से कांग्रेस की पार हो जाएगी। हालांकि इसकी संभावना अब नजर नहीं आ रही है, क्योंकि कर्नाटक की जनता ने अपना मन बना लिया है।

सिद्धारमैया ने राहुल के नेतृत्व को नकारा !
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया नहीं चाहते थे कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कर्नाटक में गुजरात की तरह प्रचार करें। सिद्धारमैया ने यह बात अपने कुछ करीबियों के जरिए पार्टी हाईकमान तक पहुंचाई भी थी। मुख्यमंत्री का फॉर्मूला यह था कि राहुल गांधी कर्नाटक के कुछ इलाकों तक ही सीमित रहें। खास तौर पर वो शहरी इलाकों में प्रचार करने न जाएं, क्योंकि उससे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो सकता है। दरअसल राहुल गांधी कई बार ऐसी हरकतें कर जाते हैं जिससे पार्टी की फजीहत हो जाती है। एक सभा में उन्होंने विश्वैश्वरैया का उच्चारण सही से नहीं कर पाए। इसी तरह एक इंटरैक्शन में छात्रा के द्वारा एनसीसी के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब नहीं दे पाए थे।

राहुल के अक्षम नेतृत्व से कांग्रेस नेता परेशान
कांग्रेस के भीतर भी राहुल गांधी के नेतृत्व पर विवाद है। चीफ जस्टिस के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव के समय जब पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सलमान खुर्शीद, अश्वनी कुमार, वीरप्पा मोइली और पी चिदंबरम जैसे दिग्गज कांग्रेसियों ने साथ नहीं दिया। जाहिर है राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल हैं। दूसरी ओर सोनिया गांधी का यह प्रयास है कि कांग्रेस किसी भी तरह से कर्नाटक जीत जाए तो क्रेडिट राहुल गांधी को जाएगा। इससे न सिर्फ कांग्रेस के भीतर के असंतोष पर नियंत्रण पाया जा सकेगा, बल्कि कांग्रेस जीतेगी तो गठबंधन की धुरी भी बनेगी। जाहिर है सोनिया का यह प्रयास भी राहुल गांधी को दोबारा स्थापित करने की एक और कोशिश भर है।

सहयोगी और विपक्षी दलों को साधने की कवायद
राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही माना जा रहा था कि कांग्रेस में सोनिया युग समाप्त हो गया है। लेकिन राहुल गांधी को भी सोनिया गांधी की जरूरत पड़ ही गई। दरअसल राहुल गांधी के नेतृत्व को कांग्रेस के सहयोगी दल भी मानने से इनकार कर रहे हैं। सोनिया गांधी खुद को सक्रिय दिखाकर यह साबित करने में लगी हैं कि कांग्रेस और विपक्ष की राजनीति में उनका महत्व बरकरार है। दरअसल तीसरे मोर्चे के गठन की संभावनाओं के बीच सोनिया गांधी विरोधी दलों को संदेश देना चाह रही हैं कि उनमें अभी दम है। जाहिर है ऐसा कर सोनिया गांधी भी एक तरह से यह साबित कर रही हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष में नेतृत्व की क्षमता नहीं है।

वरिष्ठ नेताओं में राहुल के प्रति बढ़ती नाराजगी
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में राहुल गांधी के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। दरअसल राहुल गांधी कई ऐसी रणनीतिक चूक करते जा रहे हैं जिससे पार्टी और कमजोर होती चली जा रही है। हाल में यूपी में हुए गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भी यही बात सामने आई। साफ नजर आया कि कांग्रेस अपनी हार से अधिक भाजपा की हार से खुश थी, जबकि पार्टी के दोनों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। इसी तरह हाल में मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद कम करने को लेकर भी कई सवाल खड़े किए गए। पार्टी के 133वें अधिवेशन में भी यह बात जाहिर हो गई जब सिंधिया ने पार्टी कार्यकर्ताओं के संबोधित करने से इनकार कर दिया था।

लगातार हार का रिकॉर्ड दोहरा रहे राहुल गांधी
संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। जिस राहुल गांधी के भरोसे कांग्रेस पार्टी देश की सत्ता में फिर से वापसी की उम्मीद कर रही है वह बेहद कमजोर है। राहुल गांधी का रिकॉर्ड तो ये है कि अब तक उनके नेतृत्व में जितने भी चुनाव लड़े गए उसमें कांग्रेस हारती ही चली आ रही है। एक तरह से देश कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ बढ़ रहा है। आज सिर्फ तीन राज्यों पंजाब, कर्नाटक, मिजोरम व एक केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में ही कांग्रेस की सरकार है। कर्नाटक में जल्द चुनाव होने वाले हैं, और वहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जिस तरह पांच वर्षों तक सरकार को चलाया है, उससे वहां कांग्रेस पार्टी का दोबारा सत्ता में आना मुश्किल लग रहा है।

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