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रोहिंग्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित बुद्धिजीवियों को दिखाया आईना, बताई देश की ‘जिम्मेदारी’

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भारत से वापस म्यांमार भेजे जा रहे 7 रोहिंग्या घुसपैठियों को रोकने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। केंद्र सरकार के ये कहने पर कि म्यांमार इन रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस लेने के लिए तैयार है, सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सुनवाई को तैयार ही नहीं हुई। आपको बता दें कि प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। इसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सख्त लहजे में कहा कि हमें अपनी जिम्मेदारी पता है और किसी को इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं। दरअसल ये 7 रोहिंग्या 2012 में भारत में घुसे थे और इन्हें फॉरेन ऐक्ट के तहत दोषी पाया गया था।

हालांकि याचिका खारिज होने के बाद प्रशांत भूषण बौखला गए और उन्होंने  सुप्रीम कोर्ट को नसीहत देने की कोशिश की और कहा कि रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने के लिए अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। इसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उन्हें आईना दिखाते हुए कहा कि हम हम जीवन के अधिकार के संबंध में अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से अवगत हैं और किसी को इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं। 

गौरतलब है कि वामपंथी ब्रिगेड चाहता है कि किसी भी तरह से रोहिंग्या घुसपैठिये भारत में रहें। उनकी मंशा है कि इन घुसपैठियों को देश की नागरिकता भी दे दी जाए और भारत के मूल नागरिकों की हकमारी की जाए। हालांकि मोदी सरकार ने बार-बार यह साफ किया है कि जो रोहिंग्या अवैध तरीके से भारत में घुस आए हैं, उन्हें हर हाल में वापस भेजा जाएगा। गृह मंत्रालय ने साफ भी किया है कि कुछ रोहिंग्याओं के अवैध गतिविधियों में शामिल होने के भी रिपोर्ट हैं। सरकार ने राज्यों को आगाह किया है कि रोहिंग्या को किसी तरह का सरकारी दस्तावेज हासिल करने से रोकें, ताकि वे बाद में भारतीय नागरिकता का दावा करना शुरू न कर दें।

दरअसल, अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या देश के लिए बहुत बड़ी सीख है और इसलिए सरकार अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर काफी सचेत है। अगर असम जैसे छोटे राज्य में 40 लाख अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये हो सकते हैं तो पूरे देश में उनकी तादाद कितनी होगी, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है। यही वजह है कि देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या से सचेत होकर मोदी सरकार ने म्यांमार से अवैध तरीके से भारत में घुस आए रोहिंग्याओं पर सख्त रवैया अपनाने कै फैसला कर लिया है। क्योंकि, हालात गवाह है कि वोट बैंक की राजनीति ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या को अब कितना बड़ा संकट बना दिया है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 16 सितंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर स्पष्ट कर दिया था कि देश में अवैध रूप से रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों से देश को खतरा है। 16 पन्ने के इस हलफनामे में केंद्र ने यह भी कहा कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से संपर्क हैं। जाहिर है ऐसे में ये देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है, ऐसे में इन्हें भारत से बाहर भेजा जाना ही एक मात्र विकल्प बचता है। हालांकि भारत में ही कुछ ऐसे नेता और तथाकथित बुद्धिजीवी हैं जो इस खतरा को आसरा दे रहे हैं। इतना ही नहीं इस पर राजनीति भी करने से गुरेज नहीं कर रहे। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी ऐसा ही कर रही हैं, तभी तो बीएसएफ के महानिदेशक ने भी इस पर चिंता जाहिर की है।

बहरहाल आपको बता दें कि म्यांमार से खदेड़े जाने पर लाखों की संख्या में रोहिंग्या पड़ोसी देशों की सीमाओं में प्रवेश कर रहे हैं। म्यांमार के सभी पड़ोसी देश बांग्लादेश, इंडोनेशिया, थाइलैंड रोहिंग्या को शरण देने को तैयार नहीं है। म्यांमार के पड़ोसी देशों में भारत भी शामिल है। कुछ एजेंट भारत के पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, जम्मू कश्मीर और असम में रोहिंग्या शरणार्थियों को बसाने में लगे हुए हैं। म्यांमार के सभी पड़ोसी देश रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा मानते हैं। भारत सरकार का भी मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं। इसके पीछे सरकार के कई ऐसे दावे हैं जिनको खारिज नहीं किया जा सकता।

अलकायदा से कनेक्शन
दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और मेवात में आतंकियों से जुड़े रोहिंग्या पकड़े गए हैं। रेडिकल यानि कट्टर इस्लाम से इनका निकट संबंध माना जाता है। रोहिंग्या को आतंक का प्रशिक्षण देने वाला अलकायदा का आतंकी भी दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। 28 वर्षीय समियुन रहमान वैसे तो मूल रूप से बंग्लादेशी है, लेकिन उसने ब्रिटिश नागरिकता ले रखी थी। अलकायदा का यह आतंकी भर्ती और प्रशिक्षण देने का काम करता था। इसकी योजना दिल्ली, मणिपुर और मिजोरम में बेस बनाकर रोहिंग्या शरणार्थियों की अलकायदा में भर्ती करना था। रहमान अलकायदा के टॉप कमांडर से सीधे संपर्क में था और उनके निर्देश पर काम कर रहा था। अलकायदा आतंकी ने बताया कि उसने दिल्ली, बिहार, उत्तरी-पूर्वी कश्मीर और झारखंड के हजारीबाग में 12 रोहिंग्या शरणार्थियों के संपर्क में था।

रोहिंग्या के आतंकियों से जुड़े तार
सरकार का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई बड़े आतंकी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं। वैश्विक समस्या बन चुके आईएसआईएस के रोहिंग्या से संबंध होने की आशंका निराधार नहीं है। केंद्र सरकार के पास इसके लिए ठोस आधार है। म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या, म्यांमार में उन पर हुई कार्रवाई का बदला भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर ले सकते हैं। भारत के बौद्ध समुदाय को अपना निशाना बना सकते हैं। इसके अलावा रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई अन्य अलगाववादी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं।

पाकिस्तान भी दे रहा है समर्थन
आईएसआईएस के अलावा रोहिंग्या से संबंध पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई से होने की प्रबल आशंका जाहिर की गई है। पाकिस्तान रोहिंग्या शरणार्थियों को समर्थन देकर उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। पाकिस्तान हमेशा से ऐसे मौकों की फिराक में रहता है, जब उसे भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध करने का मौका मिले। रोहिंग्या शरणार्थियों के रूप में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ एक ऐसा हथियार मिल जाएगा, जिसका वो अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करेगा। रोहिंग्या शरणार्थी पाकिस्तान के मुस्लिम देश होने के कारण प्रति निकटता का भाव रखते हैं। इसलिए पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसुद अजहर ने रोहिंग्या शरणार्थियों को समर्थन दिया है। पाकिस्तान भारत के साथ दुश्मनी निकालने के लिए उनको इस्तेमाल कर सकता है।

रोहिंग्या म्यांमार में आतंक फैलाने के दोषी
म्यांमार सरकार रोहिंग्या को देश में आतंक फैलाने का दोषी मानती है। इसलिए म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या पर देश में आतंक और हिंसा फैलाने के आरोप में उनको खदेड़ने की कार्रवाई की है। ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान मूलतः बांग्लादेश के रहने वाले हैं और ये अनाधिकृत रूप से म्यांमार में रह रहे थे। 1962 से 2011 के सैनिक शासन के दौरान तो रोहिंग्या पर सरकार का अंकुश रहा, लोकतंत्र का बदलाव आते रोहिंग्या मुसलमान आतंक फैलाने में जुट गए। जाहिर है जब म्यांमार रोहिंग्या को अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मानकर इनको खदेड़ने का काम कर रही है तो रोहिंग्या शरणार्थी किसी और देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा क्यों नहीं बनेंगे?

50 से अधिक मुस्लिम देशों का इंकार
दूसरी सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि रोहिंग्या शरणार्थी मुस्लिम बहुल हैं, लेकिन मुस्लिम बहुल रोहिंग्या शरणार्थियों को 50 से ज्यादा मुस्लिम देशों ने शरण देने से मना कर दिया है। म्यांमार के पड़ोसी और मुस्लिम देश होने के बावजूद मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी इन्हें अपने यहां शरण नहीं देना चाहते। दरअसल ये देश भी इन रोहिंग्या को अपने लिए खतरा मानते हैं। बांग्लादेश ने भी अब रोहिंग्या को खतरा मान लिया है। बांग्लादेश के भीतर भी इस बात का विरोध किया जा रहा हैं। ये मुस्लिम देश भी रोहिंग्या शरणार्थियों को देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मान रहे हैं। अधिकतर मुस्लिम देश जिनका निर्माण धर्म के आधार पर हुआ है, वे देश अगर अपने मुसलमान भाइयों का शरण देने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे भी भारत सरकार को ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती जिसके चलते रोहिंग्या शरणार्थियों को देश में शरण दी जाए।

देश में कुछ संगठन कर रहे समर्थन
देश में कुछ ऐसे भी संगठन हैं जो सरकार पर रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने का दबाव बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी, नेशनल कॉफ्रेंस के उमर अब्दुला और कई अन्य क्षेत्रीय दल रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की मांग कर रहे हैं। कुछ एनजीओ रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर ज्यादातर प्रदर्शन पश्चिम बंगाल और कश्मीर में हो रहे हैं। वहीं जम्मू और शेष भारत के लोगों में रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण ना देने की आम राय है। कश्मीर के अलगावादी संगठन, हुरियत और कट्टरपंथी नेता रोहिंग्या का समर्थन कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने म्यांमार के पड़ोसी देशों समेत भारत से रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की अपील की है। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के अलावा कई अन्य संगठन भी भारत सरकार पर इसके लिए दबाव बना रहे हैं।

सितंबर, 2018 में बीएसएस के महानिदेशक के के शर्मा ने साफ कहा भी था कि ममता बनर्जी की सरकार रोहिंग्या घुसपैठियों के प्रति नरम रुख रखती हैं जो देश के लिए गंभीर खतरा है। 

बीएसएफ महानिदेशक के के शर्मा ने कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार के नरम रुख के कारण रोहिंग्या घुसपैठिये वहां का रुख कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि बांग्लादेश की सीमा से रोहिंग्या की घुसपैठ को रोक दिया गया है। स्पष्ट है कि ममता बनर्जी सुरक्षा बलों के घुसपैठ रोकने प्रयास को भी तार-तार करने में लगी हैं।

आपको बता दें कि भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा है।  जैसा कि बीएसएफ महानिदेशक ने कहा कि बांग्लादेश में बड़ी संख्या में रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। समय-समय पर उनमें से कुछ रोहिंग्या भारत में घुसने का प्रयास भी करते हैं। ऐसे में अगर राज्य सरकार इसमें सहयोग नहीं करेगी तो घुसपैठ को रोकना मुमकिन नहीं है। 

जनकल्याण का पैसा करना होगा
भले ही कागजों में रोहिंग्या का तादाद 40 हजार बताई जा रही हो, लेकिन असल में इनकी संख्या लाखों में है। ऐसे में एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि सरकार अगर लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देती है तो उसे रोहिंग्या को बसाने के लिए और उनकी देखरेख के लिए उन पर करोड़ों-अरबों रुपया खर्च करना पड़ेगा। जो धनराशि सरकार अपने नागरिकों के कल्याण के लिए खर्च करनी चाहिए, वह धनराशि रोहिंग्या शरणार्थियों पर खर्च होती है, तो इससे देश के नागरिकों का सीधा नुकसान होता है। देश के नागरिक भी यही सवाल खड़ा कर रहे हैं। देश के नागरिकों में आम राय यही है कि जब देश के सामने पहले से समस्याएं हैं तो देश रोहिंग्या को शरण देकर मुसीबत क्यों मोल लेना चाहता है।

वोट बैंक का जरिया न बन जाएं रोहिंग्या
रोहिंग्या को लेकर एक और आशंका गहरा रही है। यह आशंका भी निराधार नहीं है। कुछ राजनीतिक दल और क्षेत्रीय पार्टियां रोहिंग्या को वोटबैंक के रूप में देख रही हैं। वोटबैंक की राजनीति के कारण क्षेत्रीय पार्टियां स्वयं अपने एजेंटों के माध्यम से अवैध शरणार्थियों को बसाने का काम करती हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर पहले से ही वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर की कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी रोहिंग्या को अपना वोटबैंक बनाकर राजनीति करने की मंशा रखती हैं। इसी कारण से ये पार्टियां रोहिंग्या शरणार्थियों का पुरजोर समर्थन कर रही हैं। मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति के कारण बांग्लादेशी शरणार्थियों को पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में बसाया गया। इसके कारण पश्चिम बंगाल, असम और बिहार की आबादी का समीकरण बिगड़ चुका है। बंगाल के 18 जिलों में हिन्दुओं की जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। तीन जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं। असम में मुस्लिम आबादी बढ़कर 30 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।

विवादित रहा है रोहिंग्या का इतिहास
रोहिंग्या का इतिहास पर अगर नजर डालें तो तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाती है। रोहिंग्या मुसलमानों की जून 2012 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में स्थानीय बौद्धों के साथ जातीय हिंसा हुई। इस जातीय संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें मुसलमान और बौद्ध दोनों थे। इसके बाद रोहिंग्या ने अक्टूबर 2016 में 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी और कई पुलिस चौकियों पर हमले किए। छिटपुट घटनाएं लगातार होती रहीं, लेकिन इसी वर्ष 25 अगस्त को रखाइन प्रांत में रोहिंग्या घुसपैठियों ने दर्जनों पुलिस पोस्ट और एक आर्मी बेस पर हमला करके सरकार की सत्ता को ही चुनौती दे दी। जवाबी कार्रवाई में करीब 400 लोगों की जान चली गई और म्यांमार से रोहिंग्या को खदेड़ने की कार्यवाही आरंभ हुई।

मानवीयता और सहिष्णुता के नाम पर आत्मघात कब तक
सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश मानवीयता और सहिष्णुता के नाम पर आत्मघात कब तक सहन करेगा। इससे सीधे देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचता है। साथ ही जो संसाधन सरकार और राजनीतिक दलों को देशवासियों के लिए नीतियां-योजनाएं बनाने और जनकल्याण में उपयोग करना चाहिए, वे संसाधन रोहिंग्या पर खर्च करना कहां की बुद्धिमानी है। मानवीयता और सहिष्णुता का अर्थ तभी तक होता है, जब तक देश की सुरक्षा को कोई खतरा न हो। रोहिंग्या शरणार्थियों में सबसे बड़ा सवाल देश की सुरक्षा व्यवस्था का ही है और मानवीयता और सहिष्णुता के नाम पर देश की सुरक्षा को बलि नहीं चढ़ाया जा सकता।

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