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सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है कांग्रेस, खुर्शीद ने माना पार्टी के दामन पर लगे हैं खून के धब्बे

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सत्ता के लिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। कांग्रेस का सत्ता के बिना वही हाल रहता है जो बिना पानी के मछली का होता है। पार्टी सत्ता के लिए देश को जाति और धर्म में बांटती रही है और हजारों तरह की तिकड़म करती रही है। कांग्रेस शुरू से ही वोटबैंक, तुष्‍टीकरण और सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ाने की राजनीति करती रही है। यहां तक कि सत्ता पाने के लिए देश को दंगों की विभीषिका में भी घकेलती रही है। हालांकि पार्टी इसे मानने से इनकार करती रही है, लेकिन अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने माना है कि कांग्रेस के दामन पर खून के धब्बे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में छात्रों को संबोधित करते हुए एक सवाल के जवाब में सलमान खर्शीद ने कहा कि, ‘मुझे यह कहने में थोड़ी भी झिझक नहीं है कि कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के खून के धब्बे हैं।’

एएमयू में आयोजित कार्यक्रम में एक पूर्व छात्र ने सलमान खुर्शीद के सामने कांग्रेस के शासन काल के दौरान मुसलमानों के साथ हुए अन्‍याय का मुद्दा उठाया। पूर्व छात्र ने कहा कि कांग्रेस के शासन काल के दौरान एएमयू के कानून में पहली बार बदलाव हुआ, हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ, मुरादाबाद, भागलपुर, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर दंगे हुए। कांग्रेस के दामन पर ये जो खून के धब्‍बे हैं उस पर उनका क्‍या कहना है। इन्‍हें कांग्रेस कैसे धुलेगी ? इसके जवाब में सलमान खुर्शीद ने माना कि हां कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के खून के धब्बे हैं। कांग्रेस नेता होने के नाते मुसलमानों के खून के यह धब्बे मेरे अपने दामन पर भी हैं।

कांग्रेस का 5000 दंगों का इतिहास
सलमान खुर्शीद की इस स्वीकारोक्ति पर भाजपा नेता मुख़्तार अब्बास नकवी ने कहा कि भिवंडी से भागलपुर और मेरठ से मलियाना तक कांग्रेस तथा कांग्रेस के सेक्युलरिजम के सूरमाओं ने निर्दोष लोगों की हत्याओं को देखा है। कांग्रेस के शासनकाल में 5000 दंगे हुए हैं। कांग्रेस ने दंगों की आड़ में अपनी राजनीति चमकाई है। इस शर्मनाक इतिहास पर देश की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी। बटला एनकाउंटर पर भी कांग्रेस के नेताओं ने सवाल उठाए थे। उन्होंने क्या कहा था देश की जनता को यह पता है। वहीं भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि कांग्रेस के दामन पर सिर्फ मुसलमानों नहीं बल्कि सिखों का भी खून लगा है। कांग्रेस के दामन पर किसी एक धर्म नहीं बल्कि हर धर्म का खून का धब्बा लगा है।

कांग्रेस ने किया देश में सबसे बड़ा नरसंहार
1984 का दंगा स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा और क्रूर दंगा था, जिसकी रूह को हिला देने वाली घटनाएं आज भी लोगों को कंपा देती हैं। इस दंगे में करीब 2,733 लोगों को जान से मार दिया गया था। यह खौफनाक दंगा कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था और कांग्रेसी नेताओं ने ही करवाया था। हैरानी की बात यह है कि फिर भी कांग्रेस अपने को देश में धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा झंडाबरदार मानती है। यही नहीं, कांग्रेस ने सत्ता की ताकत के बल पर इन दंगों के दोषी कांग्रेसी नेताओं को सजा से बचाने के लिए पूरे सरकारी तंत्र को घुटने के बल कर दिया। यही कारण है कि आज तक इन कांग्रेसी नेताओं को सजा नहीं मिल सकी है।

कांग्रेस राज में सबसे अधिक दंगे हुए- ऐसा नहीं है, कि कांग्रेस ने सत्ता के मद में 1984 में पहली बार देश में नरसंहार करवाया। देश की आजादी के बाद कांग्रेस की सत्ता के नीचे सैकड़ों नरसंहार हुए हैं। इन नरसंहारों पर नजर डालने पर दिल दहल उठता है। विभाजन की त्रासदी को झेल चुके देश में 1960 तक सामाजिक माहौल आमतौर पर शांत रहा था लेकिन 1961 के बाद से देश में दंगों की संख्या बढ़ने लगी। 1960 में जहां मात्र 26 दंगे हुए थे वहीं 1961 में 1070 दंगों की घटनाऐं हुईं। 

Public Policy Research Centre का दंगों पर किया गया शोध कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को हमारे सामने रखता है-
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के शासनकाल में 1950 से 1964 के दौरान 16 राज्यों में 243 सांप्रदायिक दंगे हुए।

• प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में 1966-77 तक और 1980-84 तक, 15 राज्यों में 337 सांप्रदायिक दंगे हुए। सभी प्रधानमंत्रियों में सबसे अधिक दंगे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में हुए। इंदिरा गांधी के शासन काल के दौरान देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही नाजुक रही।

• प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल 1984-89 के दौरान 16 राज्यों में 291 सांप्रदायिक दंगे हुए। इसमें 1984 का सबसे भीषण सिक्ख दंगा रहा।

• 1950-1995 तक के दंगों पर किये गये इस शोध से तथ्य सामने आता है कि इन वर्षों में कुल 1,194 दंगे हुए जिसमें 871 दंगे यानि 72.95 प्रतिशत दंगे नेहरु, इंदिरा और राजीव गांधी के शासनकाल के दौरान हुए।

• इसमें सबसे अधिक गुजरात राज्य दंगों की चपेट में रहा। इस दौरान अहमदाबाद को छोड़कर पूरे राज्य में 244 दंगे जिसमें 1601 लोगों की हत्या हुई। जबकि अकेले अहमदाबाद में 71 दंगे हुए जिसमें 1701 लोग मारे गये। सारे ही दंगें कांग्रेस राज में हुए। अहमदाबाद का सबसे भीषण दंगा सितंबर-अक्टूबर 1969 में हुआ जिसमें 512 लोग मारे गये और 6 महिनों तक दंगा चला था। 

आइए आजादी के समय के नरसंहार को छोड़कर कुछ बड़े नरसंहारों पर नजर डालते हैं, जो कांग्रेस की सत्ता में हुए हैं-

  • 1969      अहमदाबाद             512 लोग मारे गये 
  • 1970      जलगांव                 100 लोग मारे गये 
  • 1980      मुरादाबाद               1500 लोग मारे गये 
  • 1983      नेयली, आसाम         1819 लोग मारे गये 
  • 1984      भिवंडी                  146 लोग मारे गये 
  • 1984      दिल्ली                   2733 लोग मारे गये 
  • 1985     अहमदाबाद             300 लोग मारे गये 
  • 1989      भागलपुर               1161 लोग मारे गये 
  • 1990      अलीगढ़                 150 लोग मारे गये 
  • 1992      सूरत                   152 लोग मारे गये 
  • 1993      मुंबई                   872 लोग मारे गये

आइये अब देखते हैं कि कांग्रेस पार्टी सत्ता के लिए कौन-कौन से तिकड़म करती है।

देश में दंगा करवाती रही है कांग्रेस
कभी गोवध के नाम पर तो कभी धार्मिक जुलूस के नाम पर कांग्रेस देश में दंगा करवाती रही है।

  • 1964 के राउरकेला और जमशेदपुर के दंगे में 2000 मासूम लोगों ने अपनी जान गंवाई और उस समय कांग्रेस की सरकार थी।
  • 1967 के रांची दंगे में 200 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया यहां भी कांग्रेस की सत्ता|
  • 1980 में मोरादाबाद के दंगा में 2000 लोग मारे गए, वहां भी कांग्रेस की सरकार थी।
  • 1984 में दिल्ली में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2733 लोगों को मौत के घाट उतारा गया।
  • 1985 में अहमदाबाद में 300 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, यहां भी कांग्रेस शासन में थी।
  • 1989 में भागलपुर दंगा तो अभी भी लोगों के जेहन में है, जहां 1000 से अधिक लोग मारे गए और कांग्रेस की सरकार के नाक के नीचे नरसंहार किए गए। 

धर्म के नाम पर भेदभाव करती है कांग्रेस
यह हमेशा देखा गया है कि कांग्रेसी सरकार धर्म के आधार पर हिंदुओं के साथ भेदभाव करती है।

  • 2005 में सोनिया गांधी के दबाव में मनमोहन सिंह सरकार ने संविधान में 93वें संशोधन के जरिए अनुसूचित जाति और जनजाति को छूट दिलवा दी।
  • इस संशोधन का मतलब था कि सरकार किसी हिंदू के शिक्षा संस्थान को कब्जे में ले सकती है, लेकिन अल्पसंख्यकों और हिंदुओं की अनुसूचित जाति और जनजाति के संस्थानों को छू भी नहीं सकती।
  • आम संस्थानों को 25 प्रतिशत गरीब छात्रों को दाखिला देना जरूरी कर दिया गया, जबकि अल्पसंख्यक संस्थानों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। यहां तक कि उन्हें अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण देना भी जरूरी नहीं किया गया।
  • सोनिया-मनमोहन की सरकार ने जब शिक्षा का अधिकार लागू किया तो उसके नियमों में ऐसी चालबाजी की गई कि देश में हिंदुओं के शिक्षा संस्थान धीरे-धीरे पूरी तरह खत्म हो जाएं। आज हालत ये है कि केरल में 14 में से 12 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज मुस्लिम संस्थाओं के हैं।

हिंदुओं को जाति में बांटती रही है कांग्रेस
कांग्रेस की ‘कुटिल’ राजनीति का सबसे अधिक खामियाजा हिंदू समुदाय को भुगतना पड़ रहा है। दरअसल कांग्रेस ने इस समुदाय को जातियों के जंजाल में इतना उलझा दिया है कि वह इससे छुटकारा नहीं पा रहा है। जाट, यादव, बाल्मीकि, जाटव, खटीक, पंडित, कुम्हार, राजपूत, ठाकुर, जैन, बौद्ध, सिख, भूमिहार, नाई, कायस्थ, तेली, लोहार, निषाद, बनिया जैसी जातियों को आपस में बांटकर हमेशा हिंदू समुदाय को कमजोर करने का काम किया है। समाज में इन जातियों को एक दूसरे के पूरक होने की सनातन परंपरा को तार-तार कर कांग्रेस ने हमेशा बांटकर रखा है और अपनी राजनीति चमकाई है। हाल में ही देखें तो गुजरात में पटेल, राजस्थान में गुर्जर, महाराष्ट्र में मराठा, हरियाणा में जाट और यूपी में दलितों के नाम पर साजिशें रचीं।कर्नाटक सरकार द्वारा लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दिया जाना और वीर शैव को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना कांग्रेस की हिंदुओं को बांटने वाली राजनीति का ही हिस्सा है।

बहुसंख्यकों को अपमानित करती रही है कांग्रेस
हिंदू समुदाय को जातियों में बांटने के साथ ही कांग्रेस ने हमेशा बहुसंख्यकों को अपमानित करने का काम भी किया है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी किताब ‘द कोलिशन इयर्स’ में ये खुलासा किया है कि 2004 में शंकराचार्य की गिरफ्तारी के पीछे सोनिया गांधी हाथ था और इसके मूल में हिंदू विरोध की साजिश रही है।

  • इसी तरह समझौता ब्लास्ट केस में भगवा आतंकवाद शब्द का गढ़ा जाना भी कांग्रेस की साजिश है।
  • प्रभु राम के अस्तित्व को ही नहीं मानने का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में देकर कांग्रेस ने 100 करोड़ हिंदुओं की आस्था पर आघात किया।
  • तीन तलाक के मामले में सुनवाई के दौरान प्रभु राम की आस्था की तुलना कर कांग्रेस के वकील कपिल सिब्बल ने हिंदुओं का अपमान किया।

देश की अखंडता को दांव पर लगाती है कांग्रेस
कश्मीर को धारा 370 के जरिये देश की मुख्यधारा से जुड़ने नहीं देने का गुनाह कांग्रेस पार्टी पर है। वहीं दक्षिण में द्रविड़नाडु जैसे आंदोलन, जो देश को उत्तर और दक्षिण भारत को अलग करने की मंशा से चलाए गए थे, कांग्रेस ने शह दी थी। अभी कर्नाटक में अलग झंडे को कांग्रेस ने मंजूरी देकर देश में अलगावाद की नई आवाज को हौसला दिया है। इसी तरह पूर्वोत्तर क्षेत्रों में आबादी का संतुलन बिगाड़कर देश के टुकड़े-टुकड़े करने की मंशा से कांग्रेस ने लगातार राजनीति की है।

प्रदेशों के बीच झगड़ा लगवाती है कांग्रेस
नदियों के जल बंटवारे का मामला हो या फिर राज्यों के सीमांकन का… कांग्रेस ने यहां भी राजनीति की है। इसी का नतीजा है कि आज भी जल बंटवारे के नाम पर तमिलनाडु और कर्नाटक आमने-सामने होते हैं तो पंजाब, हिमाचल और राजस्थान भी एक दूसरे के खिलाफ तलवारें निकाल लेते हैं। हालांकि मोदी सरकार इन समस्याओं के समाधान की तरफ बढ़ तो रही है लेकिन कांग्रेस ने इसे उलझा कर रख दिया है। दूसरी ओर सीमांकन के नाम पर यूपी-बिहार, बिहार-बंगाल, असम-बंगाल के बीच तनातनी की शिकायतें आती रहती हैं।

क्षेत्रवाद के नाम पर बंटवारा करती है कांग्रेस
हाल-फिलहाल में ही मेघालय में कांग्रेस पार्टी ने हिंदी विरोध का झंडा बुलंद किया है। राज्यपाल गंगा राम के अभिभाषण का बॉयकाट कर कांग्रेस ने पूर्वोत्तर में हिंदी के नाम पर झगड़ा लगवा दिया है। इसके साथ ही असम, पश्चिम बंगाल समेत देश के पूर्वोत्तर इलाके में आबादी का संतुलन बिगाड़कर देश तोड़ने की साजिश रची जा रही है, जिसका सूत्रधार कांग्रेस रही है। कांग्रेस ने बांग्लादेशियों को असम समेत पूर्वोत्तर में नागरिकता दी, वोटर कार्ड दिए, राशन कार्ड दिए। ऐसे जनसांख्यिकीय असंतुलन से देश की एकता अखंडता को खतरा उत्पन्न हो रहा है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक असम में मुसलमानों की आबादी में सबसे तेज बढ़ोतरी हुई है और अब आबादी के आधार पर भारत के एक और विभाजन की तस्वीर बनती दिख रही है।

कश्मीर में बढ़ाया आतंकवाद
‘फूट डालो और राज करो’ की नीति सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने अपने गठन की शुरुआत से अपना रखी है। कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद के पलने-बढ़ने के पीछे भी कांग्रेस की यही कुत्सित सोच है। 1948 में महाराजा हरि सिंह ने जब कश्मीर का भारत में संपूर्ण विलय करना चाहा तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने मिलकर धारा 370 और 35A जैसे प्रावधान कर कश्मीर को विशेष दर्जा दिला दिया। यहीं से कश्मीर में अलगाववाद की भावना पनपी थी क्योंकि कश्मीर के अलग संविधान हो गए, अलग झंडा हो गया और अधिकतर मामलों में स्वायत्तता मिल गई। इसके बाद भी कश्मीर में जब भी शांति की उम्मीद जगी कांग्रेस ने अलगाववाद की आग में घी डालने का काम किया। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर चुप्पी साधे रखी और इस्लाम के नाम पर कट्टरता को बढ़ने दिया।

1965, 1971 में जब भारत ने पाकिस्तान से युद्ध जीत लिया तब भी कांग्रेस ने कश्मीर के मुद्दे को हल करने का प्रयास नहीं किया। मुस्लिम वोटों के चक्कर में तुष्टिकरण की नीति अपनाई और यह आज अपने चरम पर पहुंच गया है। 1990 के दशक में जब देश कांग्रेस के शासन के अधीन था तो कश्मीर में हिंदुओं के साथ जुल्मो सितम किए जा रहे थे। उन्हें खदेड़ा जा रहा था, महिलाओं का उत्पीड़न किया जा रहा था, पांच लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों को घर-बार छोड़कर पलायन करना पड़ा, लेकिन कांग्रेस अपने वोट बैंक के लिए चुप थी। उसी दौर में आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच गया था, लेकिन कांग्रेस ने उसे बढ़ने दिया। आज कांग्रेस की इसी तुष्टिकरण की राजनीति का नतीजा है कि कश्मीर में कट्टरपंथी जमात हावी हो चुका है।

कांग्रेस ने पंजाब में बढ़ाया अलगाववाद
पंजाब में आतंकवाद क्यों कर बढ़ा, कैसे बढ़ा? … इसकी तह में जाएं तो पता लगेगा कि कांग्रेस ने पंजाब को अलगाववाद-आतंकवाद की आग में झोंक दिया। 1970 के दशक में कांग्रेस ने अकाली दल को किनारे लगाने के लिए खालिस्तानी आतंकवादियों की पीठ थपथपायी थी। कांग्रेस के तत्कालीन महामंत्री राजीव गांधी ने भिंडरावाले जैसे आतंकी सरगना को सन्त की उपाधि दी थी और उसे दिल्ली बुलाकर अनावश्यक महत्व दिया था। इसी भिंडरावाले ने कांग्रेसी सिख नेताओं, खास तौर से ज्ञानी जैल सिंह की शह पर स्वर्ण मन्दिर परिसर में स्थित अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया था और वहां सैकड़ों हथियारबन्द आतंकियों ने अपना अड्डा बना लिया था। यह 1982-83 का समय था, जब पंजाब में कांग्रेस के दरबारा सिंह की ही सरकार थी। ये आतंकी ही आगे चलकर कांग्रेस के लिए भस्मासुर सिद्ध हुए। पहले तो कांग्रेस ने इन आतंकियों को इज्जत बख्शी और उन पर लगाम नहीं लगायी, लेकिन जब आतंकवाद हद से अधिक बढ़ गया तो स्वर्णमन्दिर पर बहुत गलत तरीके से हमला किया। उन्होंने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि सीधे स्वर्णमन्दिर पर हमला करने से सिख बंधुओं की भावनाएं बुरी तरह आहत होंगी।

जून 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के नाम से हुई इस कार्रवाई में आतंकी सरगना भिंडरावाले मारा गया और उसके सभी साथी भी ढेर कर दिए गए। लेकिन देश को और स्वयं कांग्रेस को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इन्दिरा गांधी की हत्या हुई, जिसके बाद हजारों सिखों का कत्ल किया गया।

पूर्वोत्तर में लगाई मजहबी आग
पूर्वोत्तर में अलगाववाद और आतंकवाद के लिए कांग्रेस की नीतियां जिम्मेवार हैं। 1972 में कांग्रेस सरकार को असम से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड को अलग करना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस की सत्ता आधारित नीतियों के कारण असम और त्रिपुरा में बंगाली शरणार्थियों की संख्या तेजी से बढ़ी। 1961 में ही यह संख्या छह लाख के ऊपर थी, आज यह बढ़कर ढाई करोड़ हो गई है। उस दौर में नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस की केंद्र सरकार ने जबरन बंगाली शरणार्थियों को समाहित करने का दबाव डाला तो तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलई ने इसका विरोध किया, लेकिन जवाहर लाल हरू ने विकास मद के दिये जाने वाले केंद्रीय अनुदान में भारी कटौती की धमकी दी। परिणास्वरूप राज्य सरकार को घुटने टेकने पड़े।

ये असम के मूल निवासियों के साथ कांग्रेस का सबसे क्रूर मजाक था। इसके नतीजे में असम हिंसा की आग में जल उठा। कांग्रेस की शह पर असम में बांग्लादेशियों को असम के लोगों की जमीन पर बसने की इजाजत दी गई । कांग्रेस ने मिजो खासी जातियों को लुभाने के लिए इन्हें बसाया लेकिन इस क्षुद्र राजनीति के कारण 1980 में अवैध बांग्लादेशियों के विरूद्ध हिंसा भड़क उठी, लेकिन इंदिरा गांधी ने इसे क्रूरता पूर्वक दबा दिया। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने 1983 में लाखों अवैध बांग्लादेशियों का नाम मतदाता सूची में दर्ज करव दिया। मूल निवासियों ने विरोध किया, मतदान 10 प्रतिशत ही हो सका। लेकिन इंदिरा गांधी की निरंकुश नीति के कारण लोगों की भावनाओं का खयाल नहीं किया गया और वहां अवैध घुसपैठियों को छिपाने के लिए अवैध परिव्रजन (पहचान अधिकरण) अधिनियम पारित कर दिया। आज असम में बांग्लादेशियों की आबादी 34 प्रतिशत हो गई है जिसकी जिम्मेदार कांग्रेस ही है।

ग्रेटर नागालैंड, बोडोलैंड और स्वाधीन अहोम जैसे आंदोलन कांग्रेस की कुत्सित नीतियों का ही परिणाम है। दरअसल इस देश को बड़ा ही विचित्र लोकतंत्र बना दिया गया है। कांग्रेस ने जहां हर विघटनकारी तत्वों को पनाह दिया है वहीं देशभक्तों सजा दी है। यहां कोई भी संगठन हाथ में बंदूक लेकर अपनी अनुचित मांग रखता है और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसा करने दिया जाता है। हाल में ही सेना प्रमुख बिपिन रावत ने जब इसी मुद्दे को उठाया तो उन्हें कांग्रेस समेत तमाम तथाकथित सेक्युलर जमात ने चुप कराने की कोशिश की। लेकिन जुलाई 2017 में पाकिस्तान के लश्कर ए तैयबा ने साफ कहा है कि वह पूर्वोत्तर को भारत से मुस्लिम आबादी के जोर पर अलग कर बांग्लादेश में मिलाना चाहता है।

कांग्रेस ने दक्षिण में द्रविड़नाडु का दिया साथ
1940 में जस्टिस पार्टी के ईवी रामास्वामी ‘पेरियार’ ने दक्षिण भारत के राज्यों को मिलाकर द्रविड़नाडु की मांग की थी। पहले ये मांग सिर्फ तमिलभाषी क्षेत्रों के लिए थी, लेकिन बाद में द्रविडनाडु में आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, ओडिशा और तमिलनाडु को भी शामिल करने की बात कही गई। हालांकि  5 अक्टूबर,  1963 में हुए 16वें संविधान संशोधन में देश की अखंडता की कसम की शर्त को भी शामिल किया गया कि कोई भी राजनीतिक दल भारत देश में तभी राजनीति कर पाएगा, जब वो भारत की अंखडता को स्वीकार करेगा। लेकिन केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में जब पशु क्रूरता का निवारण अधिनियम में बदलाव किया तो कांग्रेस ने इसे आधार बनाकर देश के टुकड़े करने की मांग उठा दी। सबसे पहले केरल में यूथ कांग्रेस के एक नेता ने सरेआम गाय के बछड़े को काटा और उसके मांस बांटे। इसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने फिर से द्रविड़नाडु की मांग उठा दी। सोशल मीडिया पर इसको लेकर कैंपेन भी चलाए गए, सिर्फ इसलिए कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए इस कानून को आधार बनाकर सत्ता की सीढ़ी चढ़ी जा सके। जाहिर है कांग्रेस अपनी कुत्सित राजनीति के कारण देश के टुकड़े करने से भी परहेज नहीं करती है।

पश्चिम में फैलाई दंगों की आग
पश्चिम भारत में भी यदा-कदा अलगाववाद की आग को हवा देती रही है कांग्रेस। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सलवाद को बढ़ावा देने में भी कांग्रेस नेताओं के हाथ सामने आए हैं, वहीं गुजरात के सरक्रीक को लेकर कांग्रेस की राजनीति भी देश के टुकड़े करने की रही है। पाकिस्तान से लगती गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों को पाकिस्तान में मिलाने को लेकर कई बार आंदोलन पर कांग्रेस ने चुप्पी इसलिए साध ली कि वहां मुस्लिम आबादी अधिक है। इसी तरह 1993 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट के बाद भी कांग्रेस की भूमिका संदिग्ध रही। मुंबई में दंगे भड़कने दिए और हिंदुओं पर जुल्म किए।  

 

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