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कांग्रेस की विचारधारा का जवाब है ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’

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कांग्रेस पार्टी के हाथों में लगभग 60 वर्षों तक देश में सरकार की बागडोर थी। संविधान के तहत नीतियों को बनाने और लागू करने का काम तो कांग्रेस की सरकारों के हाथों में होता था, लेकिन इस पर प्नभाव नेहरू-गांधी परिवार का होता था,क्योंकि इसी परिवार का पार्टी और सरकार में वर्चस्व था।

कांग्रेस की सरकारों पर नेहरू-गांधी परिवार की जबरदस्त पकड़ का परिणाम रहा कि देश की संस्कृति, इतिहास और सामाजिक ताने-बाने को पश्चिम के नजरिए से समझा गया। देश की जनता को सांस्कृतिक विरासत और इतिहास से दूर रखने का प्रयत्न होता रहा, क्योंकि उसे नेहरू गांधी परिवार अवैज्ञानिक औऱ अतार्किक मानता था। आइये, आज उस विचारधारा को समझने का प्रयास करते हैं, जिसे नेहरू-गांधी परिवार ने इस देश की मूल भावना को दबाने के लिए थोपा-

धर्मनिरपेक्षता नहीं सर्वधर्म समभाव
भारत के मूल संविधान की प्रस्तावना में तो धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को उद्देश्य नहीं माना गया था, लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने पूर्ण और क्रूर बहुमत के बल पर आपातकाल के दौरान 1975 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना को ही बदल दिया। इंदिरा गांधी ने राजनीतिक उद्देश्य के लिए संविधान में यह संशोधन किया था। इंदिरा गांधी का उद्धेश्य था कि धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों को भावनात्मक सुरक्षा देकर उनके विश्वास को जीता जाए। विश्वास जीतकर, कांग्रेस ने सत्ता हासिल करने का फार्मूला तो तैयार कर लिया, लेकिन देश की मूल भावना सर्वधर्म समभाव को तहस-नहस कर दिया। सबका विश्वास और सबका साथ की प्राचीन भारतीय परंपरा की सिर्फ विशेष धर्म का विश्वास जीतने के लिए आहुति दे दी गई।

प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों से चली आ रही कांग्रेसी विचारधारा को परिवर्तित कर सर्वधर्म समभाव की विचारधारा को सरकार के कामकाज में लाने का प्रयास किया, जिसका सकारात्मक प्रभाव अब देश के सामने आ रहा है।

विशेष जाति और धर्म की राजनीति का बोलबाला
कांग्रेस की सरकारों के दौरान पिछले सात दशकों में देश की राजनीति का विमर्श सिर्फ और सिर्फ विशेष जातियों और धार्मिक समुदाय को संतुष्ट करने का रहा। नेहरू-गांधी परिवार की वैचारिक छत्रछाया में कांग्रेस सरकारों ने जो भी नीति लागू कि उसकी नीयत यही होती थी कि किसी विशेष जाति या धर्म के गरीब या दलित को ही लाभ मिले। कांग्रेस की सरकारों ने ऐसी कोई भी नीति बनाने और लागू करने का काम नहीं किया जिसका सीधा फायदा देश में हर जाति, धर्म के गरीबों को मिले। दशकों से चली आ रही इस परंपरा को प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने बदल करके रख दिया है। आज देश में सभी गरीबों को शौचालय, गैस का चूल्हा, आवास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान योजना का लाभ मिलता है। आज देश कांग्रेस की संकुचित और सत्तालोलुप राजनीतिक सोच से बाहर निकलकर सबका साथ और सबका विकास के हाईवे पर दौड़ रहा है।

जनता और सरकार में दूरी
कांग्रेस की सरकारों के दौरान देश अनुभव करता था कि जनता और सरकार के बीच एक दूरी रहती है। प्रधानमंत्री और मंत्री के मन तक जनता का दर्द पहुंचने में वक्त लगता था और यदि यह दर्द पहुंच भी जाता था, उसका निवारण होने में सरकार वक्त लगा देती थी। दर्द के समाधान में देरी होने का परिणाम होता था कि जनता समय के क्रूर हाथों में पिस कर दम तोड़ देती, लेकिन उसकी अपनी सरकार उसका सुध लेने नहीं पहुंचती थी। 1975 में आपातकाल का दौर रहा हो या 1984 के दंगों के दौरान देश की सड़कों पर होने वाली हिंसा का दौर, देश में कई बार ऐसा हुआ जब कांग्रेस की सरकारों ने लोकतंत्र को दबा करके नेहरू-गांधी तंत्र स्थापित करने का काम किया। आज देश कांग्रेस की इस राजशाही और क्रूर विचारधारा से आगे निकलकर सबका विकास और सबका विश्वास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

जनता को आश्रित और लाचार बनाकर रखना
आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के माध्यम से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने धर्मनिरपेक्षता के साथ साथ समाजवादी कल्पना को थोपकर देश को आश्रित और लाचार बनाने का दौर शुरू किया। समाजवाद की सोच को आगे बढ़ाते हुए, कांग्रेस की सरकारों ने जनता को हर सुविधा मुफ्त में देने का काम शुरु किया। बिजली, पानी, रोड़, ट्रेन में सफर, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि को मुफ्त करने का काम शुरू किया। इसका मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिणाम बहुत ही बुरा हुआ। जनता मन से यह मानने लगी कि हर सुविधा का मुफ्त में मिलना उसका अधिकार है, लेकिन सरकार के पास इतना धन नहीं था कि सभी को सुविधा एक साथ दे सके। परिणाम हुआ कि बिजली का उत्पादन कम होने लगा, ट्रेन में सफर लंबा और भीड़ भरा रहने लगा, शिक्षा के संस्थानों में भीड़ बढ़ने लगी और सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों और उपकरणों की कमी होने लगी। आज भी कांग्रेस वोट बटोरने और सत्ता पर कब्जा करने के लिए मुफ्त रेवड़ी बांटने का वायदा करती है, जो उसे वह कभी पूरा नहीं कर पाती है जैसा कि देश में कांग्रेस सरकार करती रही है।

देश में सत्तर सालों में पैदा हुई विकृत संस्कृति ही कांग्रेस का परिचय है। इस विकृति संस्कृति के दौर में देश में कई काम हुए, लेकिन उनका परिणाम और प्रभाव वैसा नहीं रहा जैसा भारतीय कार्यसंस्कृति को अपनाने से होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, आज इसी भारतीय कार्यसंस्कृति के पथ पर चल रहे हैं, जिसका सूत्र वाक्य है ‘सबका साथ,सबका साथ और सबका विकास’

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