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हो गया खुलासा, आखिर पीएम मोदी आधार कार्ड पर क्यों देते हैं इतना जोर

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आखिर ऐसी क्या वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आधार कार्ड पर बहुत जोर देते हैं। आधार को लेकर संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में बहस जारी है। आधार के तकनीकी पक्ष को हम सब देख रहे हैं कि आधार कार्ड को सरकारी योजनाओं से लिंक कर दिया है। इससे योजनाओं में होने वाले भ्रष्टाचार में कमी आई है। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बनकर उभरा है। आधार का मानवीय पक्ष भी है। वह इतना महत्वपूर्ण है कि उसकी चर्चा करना बहुत आवश्यक है। आधार कार्ड ने रायबरेली के एक बुजुर्ग व्यक्ति का जीवन बदल दिया। अगर आधार न होता तो वह व्यक्ति गुमनामी के अंधेरे खो गए होते।

रायबरेली के रालपुर कस्बे में एक बुजुर्ग कई दिनों से भीख मांग रहे थे। लोग उन्हें भिखारी समझकर नजरअंदाज कर रहे थे। इसी बीच अनंगपुरम स्कूल के स्वामी भास्कर स्वरूप जी महराज की नजर पड़ी। वह बुजुर्ग को आश्रम ले गए। वहां उसे नहलाया गया। उसके बढ़े हुए बाल काटे गए। उसके कपड़े से आधार कार्ड के साथ एक करोड़ छह लाख 92 हजार 731 रुपये के एफडी के कागजात मिले।

आधार कार्ड के जरिए परिवार से संपर्क किया तो बुजुर्ग की पहचान मुथैया नादर पुत्र सोलोमन के रूप में हुई। वह तमिलनाडु के तिरूनेलवेली के रहने वाले कारोबारी निकले। उसके घरवालों ने बताया कि हम मुथैया नादर को जगह-जगह ढूंढ रहे थे। वह कई दिनों से लापता थे। बुजुर्ग के घरवालों को खबर लगते ही उसकी बेटी गीता तमिलनाडु से हवाई जहाज से लखनऊ और फिर वहां से रालपुर पहुंची। गीता अपने पिता को वापस तमिलनाडु ले गई।

गीता का कहना है कि उसके पिता मुथैया नादर पांच-छह महीने पहले ट्रेन से सफ़र करने के दौरान गुम हो गए थे। जहरखुरानी के शिकार होने के कारण वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे और भिखारी बनकर घूमते रहे। उन्हें वापस पाकर अब मैं बेहद खुश हूं। 

इससे पहले भी बिछड़े लोगों को आधार कार्ड की वजह से वापस परिवार मिल गया और परिवार को उनका बिछड़ा परिजन।

फिंगर प्रिंट ने तीन मंदबुद्धि बच्चों को परिवार से मिलाया
दो साल पहले इंदौर से गायब हुआ मंदबुद्धि बच्चा बेंगलुरू के एक संस्थान में रह रहा था। आधार कार्ड बनाने के लिए वहां कैंप लगी तो आधार कार्ड बनाने के लिए बच्चे का भी फिंगर प्रिंट लिया गया। सॉफ्टवेयर ने फिंगर प्रिंट को स्वीकार नहीं किया। तकनीकी खामी पता करने पर पता चला कि उसका पहले से ही आधार कार्ड बना हुआ है। उस आधार कार्ड के जरिए उसकी पहचान मोनू चंदेल के रूप में हुई। फिर इंदौर में रह रहे पिता रमेश चंदेल से संपर्क किया गया और उन्हें उनका बच्चा सौंप दिया। आधार कार्ड ने दो साल से परिवार से बिछड़े बच्चे को मिलाने का काम किया है।

इसी तरह ओम प्रकाश का आधार कार्ड नहीं बन सका, क्योंकि उनकी डिटेल्स झारखंड के रहने वाले एक शख्स ओम प्रकाश के ही नाम से मिल गई। ओम प्रकाश के पिता आधार की तारीफ करते नहीं थकते। ओम प्रकाश के पिता का कहना है कि सभी उम्र के लोगों, बच्चे से लेकर जवान के पास आधार कार्ड होना चाहिए। तीसरा बच्चा, नीलकांत भी अपने परिवार से मिल सका क्योंकि उसकी डिटेल्स तिरुपति के रहने वाले एक शख्स से मैच हो गई। 

आधार कार्ड की वजह से 4 साल बाद मिली बच्ची
बिलासपुर, हिमाचल के स्वारघाट की 8 साल की बच्ची चार साल बाद 12 वर्ष की उम्र में पटियाला के पिंगला आश्रम से मिली। यहां भी आश्रम में आधार कार्ड बनाने के लिए बच्ची को लाया गया तो पता चला कि इसका आधार पहले से बना हुआ है। फिर उस आधार कार्ड के जरिए बच्ची को उसके परिवार तक पहुंचाया गया।

फिंगर प्रिंट की पहचान से कुछ घंटे में मिल गया बच्चा
मुजफ्फरनगर में खालापार निवासी एक युवक ने पांच वर्षीय बच्चे का एडमिशन मीनाक्षी चौक के नजदीक स्कूल में कराया था। उसके अगले दिन बच्चा खेलते-खेलते स्कूल से बाहर निकल गया और भटक गया। बच्चा भटकते हुए कंपनी बाग में पहुंच गया। बच्चा नाम पता बता पाने में असमर्थ था। तहसील कर्मचारी ने उसे एसडीएम सदर रेनू सिंह के पास पहुंचा दिया। एसडीएम ने बच्चे का ख्याल रखते हुए अपने अधीनस्थ को जनवाणी केंद्र भेजा। वहां आधार कार्ड मशीन पर बच्चे के फिंगर ट्रेस कराये तो बच्चे की आईडी सामने आ गई। ऐसा आधार कार्ड बने होने से मुमकिन हुआ कि कुछ ही घंटों बाद बच्चा परिवार से मिल गया।

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