Home समाचार थल सेना प्रमुख रावत की नियुक्ति पर हंगामे के पीछे है सियासत

थल सेना प्रमुख रावत की नियुक्ति पर हंगामे के पीछे है सियासत

SHARE

लीजिए नये थल सेनाध्यक्ष की नियुक्ति का भी विरोध हो गया। विपक्ष ने मानो हर काम का विरोध करने की ठान ली है। जैसे विरोध करना ही विरोधी दल की एक मात्र राजनीति बन गयी हो। मोदी सरकार ने अब तक जो भी कदम उठाए हों, कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने विरोध के लिए धरती-आसमान एक कर दिखाया है। कम से कम सेना को तो बख्श दे सकते थे। लेकिन नहीं, उनके लिए तो देश से बड़ा दल है और दल से बड़ी है उनकी ओछी सियासत।

लेफ्टिनेन्ट जनरल विपिन रावत को थल सेना का अगला प्रमुख बनाने की घोषणा करते ही विरोधी राजनीतिक दलों ने हंगामा शुरू कर दिया है। वरीयता के सिद्धांत की दुहाई देकर इस विरोध को हवा दी जा रही है। विरोधी इस मौके का इस्तेमाल हमेशा की तरह मोदी सरकार को घेरने के लिए कर रहे हैं, लेकिन वरीयता का सवाल उठाकर वे खुद अपने ही बुने जाल में फंसते दिख रहे हैं।

नये आर्मी चीफ की नियुक्ति के विरोध का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट कर इस नियुक्ति पर सवाल उठाया है तो दूसरे विरोधी राजनीतिक दल भी उनका साथ दे रहे हैं। लेकिन सोशल साइट पर ही उनके तर्कों को आगे बढ़-चढ़ कर लोग खारिज कर रहे हैं और खुद कांग्रेस से सवाल पूछ रहे हैं।

सोशल साइट पर पूछे जा रहे हैं सवाल

  • एक ने ट्वीट किया है कि बढ़िया फैसला है, काबिलियत को वरीयता दी गयी।
  • एक ने ट्वीट किया है कि नियंत्रण रेखा और उग्रवाद से निपटने के अनुभव को दी गयी प्राथमिकता जो वर्तमान परिदृश्य में सही निर्णय है।
  • एक ने ट्वीट किया है कि मनीषजी आपकी याददाश्त थोड़ी कमजोर है। 1983 में इंदिराजी ने भी ऐसा ही किया था।


कांग्रेस के नेता ये भूल रहे हैं कि खुद इन्दिरा गांधी ने जनरल एस ए वैद्य को आर्मी चीफ बनाकर इस सिद्धांत को परम्परा बनाए रखने से इनकार कर दिया था। 1983 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेन्ट जनरल एस वैद्य को सेना प्रमुख नियुक्त किया था, तब लेफ्टिनेन्ट जनरल एस.के सिन्हा उनसे सीनियर थे। विरोध में एसके सिन्हा ने इस्तीफा दे दिया था।

इससे पहले भी इंदिरा सरकार ने लेफ्टिनेन्ट जनरल पीएस भगत को दरकिनार करते हुए जनरल जीजी बेवूर के कार्यकाल को विस्तार दिया था। इस दौरान जनरल भगत रिटायर हो गये थे। जनरल पीएस भगत ने सैम मॉनेक शॉ के बाद कार्यभार सम्भाला था।

उपलब्धियों भरासफर है जनरल रावत का

जनरल विपिन रावत का करियर उपलब्धियों भरा रहा है। वह दिसम्बर 1978 में भारतीय सैन्य अकादमी से पासआट होने वाले बैच के श्रेष्ठतम कैडेट रहे। उन्हें स्वॉर्ड ऑफ ऑनर मिला। लेफ्टिनेन्ट जनरल बिपिन रावत अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल व विशिष्ट सेवा मेडल जैसे कई सम्मान से अलंकृत हो चुके हैं।

दरअसल विरोध और हंगामे की राजनीति विरोधी दलों का शगल बन गयी है। आर्मी चीफ के अहम पद पर नियुक्ति के लिए सरकार सिर्फ सीनियॉरिटी ही नहीं दूसरे आधारों पर भी गौर करती है। बिपिन रावत को मौजूदा विकल्पों में सबसे उपयुक्त माना गया। देश में सेना के सामने उभरती चुनौतियों से निपटने, नॉर्थ में मिलिट्री फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी फ्रंट पर लगातार जारी आतंकवाद और प्रॉक्सी वॉर और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष को देखते हुए बिपिन रावत पर भरोसा किया गया है जिसके पीछे उनका शानदार ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।

 

Leave a Reply