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वंशवाद की ‘अमरबेल’ के सहारे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना चाहते हैं राहुल

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08 मई को कर्नाटक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहली बार खुद को पीएम पद का दावेदार बताया। उन्होंने कहा कि अगर हम 2019 का चुनाव जीते तो मैं पीएम बन सकता हूं। जाहिर है राहुल गांधी के मन में प्रधानमंत्री बनने के सपने पल रहे हैं। जाहिर है यह लोकतंत्र को ठेंगा दिखाने वाला बयान है। यह वरिष्ठों को अपना पिछलग्गू समझने की मानसिकता है और अपने सहयोगी दलों को हिकारत की भरी नजरों से देखने का नजरिया है।

दरअसल यह वह अहंकार है जो लोकतंत्र को धता बताते हुए वंशवाद की अमरबेल के सहारे सत्ता के शीर्ष को पाना चाहता है। यह वह घमंड है जो लोकतकांत्रिक मर्यादाओं को कलंकित कर उस पर कालिख भी पोतने का काम करता है। यह वह गुमान है जो योग्यता को दरकिनार कर उच्च कुल में जन्म होने के आसरे उच्च आसन पाने की ही आकांक्षा पाले रहता है।

हालांकि राहुल गांधी की इस अपरिपक्वता को कई दलों ने पहले ही आईना दिखा दिया है-

शरद पवार ने दिखाया आईना
”जब बाजार में तुअर दाल बिकने आती है तो हर दाना कहता है हम तुमसे भारी… लेकिन कीमत का पता तो बिकने पर ही चलता है।”
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने यह बयान देकर जाहिर कर दिया है कि राहुल के इस बयान को वे गंभीरता से नहीं लेते हैं। उन्होंने संकेत में ही सही, राहुल के पीएम पद की दावेदारी को भी खत्म कर दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस का उनके साथ गठबंधन है। ऐसे ही कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी दलों की ताकत है, जैसे बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, ओडिशा में बीजू जनता दल इन सबको समझना होगा, तभी कोई बात बन सकती है। 

राहुल लीडरशिप में ममता नहीं
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि वह राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। 25 अप्रैल को ममता बनर्जी ने कहा कि वे राहुल गांधी को नेता तब मानेंगी, जब जनता उनको नेता मानेगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके संघीय मोर्चे में कांग्रेस का स्वागत है, लेकिन यह तभी होगा जब कांग्रेस संघीय मोर्चे की ओर हर से हर सीट पर एक उम्मीदवार देने के नियम को स्वीकार करेगी।

मुलायम सिंह को भी राहुल नामंजूर
2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी में महागठबंधन को लेकर मुलायम सिंह यादव ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर नहीं देखते हैं और राहुल गांधी को अपना नेता किसी भी तरह से नहीं मानते हैं। उनके मुताबिक कांग्रेस की हैसियत सिर्फ दो सीटों की है। मुलायम सिंह यादव ने दो टूक शब्दों में कहा है कि सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को नहीं शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस की हैसियत सिर्फ दो सीटों की है।

केसीआर को राहुल नहीं है पसंद
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव ने भी एक तरह से संकेत दिया है कि वह राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे। उन्होंने अलग तीसरे मोर्चे की नींव रखने की शुरुआत की है। असदुद्दीन ओवैसी और ममता बनर्जी के साथ उन्होंने साझा फेडरल फ्रंट बनाने का एलान किया। उन्होंने अपने बयान में साफ संकेत दिया कि वह कांग्रेस को अपने फ्रंट का हिस्सा नहीं बनाना चाहते हैं। 

राहुल को नहीं चाहते करुणानिधि
लोकसभा चुनाव, 2019 के लिए डीएमके से तालमेल की उम्मीद लगाए बैठी काग्रेस को करुणानिधि ने झटका किया है। डीएमके ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया है। पार्टी ने साफ कहा है कि कांग्रेस पार्टी एक ‘धोखेबाज’ पार्टी है और वह उसके साथ कतई नहीं जाएगी। साफ है कि करुणानिधि की पार्टी ने एक तरह से स्पष्ट कर दिया है कि वह राहुल गांधी के नेतृत्व में गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे। 

नीतीश भी नहीं चाहते थे राहुल का नेतृत्व
जून, 2017 में जनता दल यूनाइटेड की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने महागठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस के बारे में साफ शब्दों में कहा कि वे ना तो कांग्रेस पार्टी की तरह अपने सिद्धांतों को तिलाजंलि देते रहे हैं और ना ही वे किसी के पिछलग्गू हैं। उनका स्पष्ट मत था कि राहुल गांधी अभी अपरिपक्व हैं और पीएम पद के लायक नहीं हैं, इसलिए उनके नेतृत्व में चुनाव में वे नहीं जाएंगे। 

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