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लड़ाकू केजरीवाल! जानिए कब-कब किससे लड़े

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आंदोलन से सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में, अरविंद केजरीवाल के व्यक्तित्व का असली रुप सामने आ गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी ने अरविंद केजरीवाल को बदल दिया, कहां तो अरविंद केजरीवाल राजनीति का चेहरा बदलने आए थे, लेकिन सत्ता के मोह ने ऐसा बदला कि इसकी हर किसी से लड़ाई हुई और आज तक सत्ता के मोह में सबसे लड़ रहे हैं। 

हमने जब केजरीवाल के आठ साल के सार्वजनिक जीवन का जायजा लिया तो एक ही शब्द नजर आया – लड़ाकू केजरीवाल! 

जिनके साथ आंदोलन की शुरुआत की, उससे लड़े 5 अप्रैल 2011 को जनलोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली में जंतर मंतर से आंदोलन की शुरुआत करने में अरविंद के कई साथियों ने कंधा से कंधा मिलाया, लेकिन सभी से केजरीवाल की लड़ाई हुई और सभी ने अरविंद केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। वे साथी, जिनसे केजरीवाल की लड़ाई हुई-

अन्ना हजारे – राजनीति में आने के फैसले पर अन्ना सख्त नाराज हुए। अन्ना नहीं चाहते थे कि आंदोलन को राजनीतिक दल में बदला जाए, लेकिन केजरीवाल ने उन्हीं के मंच का इस्तेमाल करते हुए राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दी। इस बात पर पर सख्त आपत्ति जताते हुए उनका साथ छोड़ दिया।

किरण बेदी- अन्ना से केजरीवाल की केजरीवाल की लड़ाई हुई तो इससे किरण बेदी बेहद दुखी थीं। लेकिन केजरीवाल की महत्वाकांक्षा और आंदोलन को अपने स्वार्थ में हाइजैक कर लेने के वजह से किरण बेदी भी उनसे अलग हो गईं।

जिनके साथ ‘आप’ पार्टी बनाई, उससे लड़े- अन्ना हजारे से लड़कर, अलग पार्टी बनाने में जिन साथियों ने 26 नवंबर 2012 को साथ दिया, उनसे भी लड़ाई कर ली। केजरीवाल के ये साथी थे-

प्रशांत भूषण, शांति भूषण और योगेन्द्र यादव- आंदोलन को राजनीतिक पार्टी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इन तीनों ही व्यक्तियों से अरविंद केजरीवाल ने लड़ाई की और 28 मार्च,  2015 को उस पार्टी से निकाल दिया, जिसके ये फाउंडर मेंबर थे। 

मयंक गांधी और अंजलि दमानिया-महाराष्ट्र में आप पार्टी के सबसे भरोसेमंद साथी-मयंक गांधी और अंजलि दामानिया से भी अरविंद ने लड़ाई कर ली और नवंबर, 2015 में अरविंद ने इन लोगों से भी नाता तोड़ लिया।

सुच्चा सिंह – पंजाब में आम आदमी पार्टी को खड़ा करने वाले सुच्चा सिंह छोटेपुर को भी केजरीवाल ने नहीं बख्शा। अपनी महत्वाकांक्षा में डूबे केजरीवाल ने लड़कर उन्हें चुनाव से ऐन पहले बाहर का रास्ता दिखा दिया।

जिनके साथ सरकार बनाई, उसी से लड़े – दिल्ली में चुनाव जीतकर पहली बार दिसंबर 2013 और दूसरी बार फरवरी, 2015 को अरविंद ने जिन साथियों के साथ सरकार सरकार बनाई, उनमें से कई साथियों से लड़ाई कर बैठे-

विनोद कुमार बिन्नी- अरविंद अपने सबसे करीबी और विधायक विनोद कुमार बिन्नी से पहली सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही लड़ाई कर ली, और 26 जनवरी 2014 को पार्टी से निकाल दिया।

शाजिया इल्मी– अरविंद केजरीवाल ने शाजिया इल्मी से भी लड़ाई कर ली और आखिर में 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दिया।

एमएस धीर- अरविंद का वह साथी जो आप की पहली सरकार के दौरान विधानसभा का अध्यक्ष रहा, उससे भी केजरीवाल लड़ पड़े। एमएस धीर ने आखिर में नवंबर 2015 में अरविंद का साथ छोड़ दिया।

कपिल मिश्रा- अरविंद ने अपने साथी और जल संसाधन मंत्री कपिल मिश्रा से भ्रष्टाचार के मामलों पर चुप न रहने के कारण, मई 2017 में पार्टी से बाहर निकाल दिया।

 कुमार विश्वास- आंदोलन से लेकर सरकार तक अरविंद केजरीवाल ने अपने सबसे विश्वसनीय और जाने-माने साथी कुमार विश्वास से भी लड़ाई कर ली। केजरीवाल जिस कुमार विश्वास की उपस्थिति के बिना कोई बैठक नहीं करते थे, आज उसी कुमार विश्वास को बैठकों में भी नहीं बुलाया जाता। 

जिनके साथ दिल्ली की सरकार चलानी है, उसी से लड़े-अरविंद केजरीवाल  सरकार बनाने के बाद हर उस व्यक्ति से लड़ने लगे, जिसके साथ मिलकर दिल्ली की जनता की सेवा करने के लिए आये थे-

पूर्व एल जी नजीब जंग- दिसंबर 2013 में केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने वाले उपराज्यपाल नजीब जंग से अरविंद की लड़ाई जगजाहिर है। मुख्यमंत्री बनने के पहले दिन से ही दिसंबर 2016 तक नजीब जंग के एलजी का पद छोड़ने तक लड़ाई ही होती रही।

वर्तमान एलजी अनिल बैजल- अरविंद केजरीवाल की वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से आये दिन लड़ाई होती रहती है।

IAS अधिकारियों से -दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ तो अरविंद केजरीवाल ने लड़ाई की हद कर दी, बैठक के बहाने अंशु प्रकाश को अपने निवास पर बुलावकर अपने दो विधायकों – अमानुतला खान और प्रकाश जरावल से पिटाई करवा दी ।

ACB से -सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच में जब एलजी नजीब जंग ने एम के मीणा की नियुक्ति कर दी तो केजरीवाल ने भी अपनी तरफ से एस एस यादव की नियुक्ति करके सीधा ACB में झगड़ा करवा दिया।

सरकारी कर्मचारी और स्थानीय निकायों से लड़े

• दिल्ली सरकार के सभी कर्मचारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एकतरफा और तानाशाही फैसलों से खिन्न होकर सड़कों पर उतर आये। मुख्यमंत्री के खिलाफ कैंडिल मार्च निकाला।

• दिल्ली के तीनों नगर निगमों को कई महीने तक बजट का आवंटित धन नहीं दिया, और निगमों के कर्मचारियों से सीधे झगड़ा कर बैठे। इस लड़ाई के चक्कर में कई महीनों तक दिल्ली की सड़कों से निगम कर्मचारियों ने कूड़ा नहीं हटाया।

अपने वकील राम जेठमलानी से लड़े- अरुण जेटली द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में अपने वकील राम जेठमलानी से भी अरविंद लड़ पड़े। आखिर में राम जेठमलानी ने मुकदमा लड़ने से मना कर दिया।

चुनाव आयोग से लड़े- पंजाब के विधानसभा चुनावों मे हार और उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा की जबरदस्त जीत से अरविंद केजरीवाल को जब कुछ समझ में नहीं आया तो वे सीधे चुनाव आयोग से लड़ पड़े और उल्टा सीधा आरोप मढ़ दिया। 

केंद्र सरकार से लड़ पड़े- संविधान के अंदर काम न करने की आदत से मजबूर अरविंद केजरीवाल केन्द्र सरकार से लड़ते रहते हैं। संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किये बिना विधानसभा से कानून पारित करवा कर, केन्द्र सरकार के पास भेज देते हैं और गैर कानूनी तरीके से लागू करवाने के लिए लड़ाई करते हैं।

हरियाणा और पंजाब सरकारों से लड़े- दिल्ली को पानी पंजाब और हरियाणा सरकार के सहयोग से मिलता है, लेकिन पंजाब चुनावों के दौरान रैली में कहा कि पंजाब के पास इतना पानी नहीं है कि वह दूसरे राज्यों को दे। अरविंद ने ऐसा कहकर हरियाणा, पंजाब और दिल्ली की अपनी ही सरकार के बीच झगड़ा करवा दिया।

जनता से सीधी लड़ाई -2 अप्रैल 2017 को दिल्ली के अंबेडकर नगर के गौतम विहार चौक पर जनसभा के दौरान केजरीवाल सीधे जनता से उलझ पड़े।

अरविंद केजरीवाल का व्यक्तित्व मूल रुप से झगड़ालू प्रवृत्ति का है, ऐसे व्यक्ति के दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने से फायदा कम, नुकसान अधिक हुआ है। दिल्ली के विकास की रफ्तार धीमी पड़ चुकी है, जो दिल्लीवासियों को साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है।

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