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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2.0 विदेश नीति

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति 2.0 कैसी होगी? यह प्रश्न सबके लिए खास बना हुआ है। सभी जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के साथ भारत के हितों को साधते हुए आर्थिक और सुरक्षा के स्तर पर उठ खड़ी हुई तमाम समस्याओं का समाधान कैसे करेगें? भारत की आर्थिक गति को 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत या उससे ऊपर ले जाने के लिए विदेश नीति को कैसा स्वरूप देंगे? पिछले पांच सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की विदेश नीति को धारदार बनाने के साथ ही साथ भारत की आर्थिक तरक्की का हथियार बनाया। इस बार इस फलक पर प्रधानमंत्री क्या कुछ नया करने वाले है, यह सभी सोच रहे हैं।

इन तमाम प्रश्नों के उत्तर समझने के लिए हमें उन कदमों को देखना होगा जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने दोबारा शपथ लेने के बाद उठाए हैं। इन कदमों के साथ-साथ पिछले पांच सालों की नीति के परिपेक्ष्य में देखने पर उत्तर स्पष्ट होता है।

विदेश नीति 2.0 का उद्देश्य- नरेन्द्र मोदी देश के ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो किसी आदर्श उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक देश के हित को सर्वोपरि मानते हैं। प्रधानमंत्री विदेश नीति को पंचशील, गुटनिरपेक्षता, धर्मनिरपेक्षता आदि के आदर्शवादी विचारों में न बांधकर, व्यवहारिकता की कसौटी पर कसते हैं। उनकी नीति में महत्वपूर्ण यह होता है कि भारत की सुरक्षा, आर्थिक तरक्की और सम्मान में क्रमशः वद्धि होती रहे। देश के सतत वृद्धि के लिए जिस प्रकार की रणनीति की जरुरत होती है, वह रणनीति प्रधानमंत्री मोदी परिस्थितियों के अनुसार बनाते हैं और उसे लागू करने की पूरी हिम्मत रखते हैं। मोदी की रणनीति में लचीलापन होता है।

सर्वप्रथम पड़ोसी-प्रधानमंत्री मोदी पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को महत्वपूर्ण मानते हैं। पहले कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में SAARC के सभी देशों के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शामिल होने का निमंत्रण दिया था। लेकिन पांच सालों के दौरान पाकिस्तान ने भारत के साथ कई छल किए जिसमें आखिरी छल पुलवामा में हमला करके 40 जवानों को शहीद करना था। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने की नीति अपना ली और अपने दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक देशों के राष्ट्रध्यक्षों को आमंत्रित किया। प्रधानमंत्री मोदी के लिए आज भी पड़ोसी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे उन्हीं पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिए आगे बढ़े हैं, जो भारत की सुरक्षा और आर्थिक तरक्की में साथ देते हैं न कि रोड़े अटकाने का काम करते हैं। पाकिस्तान ने रोड़े अटकाने का काम किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने उसे अलग- थलग करने की नीति अपना ली।

चीन को रणनीतिक जवाब-एशिया की दो प्राचीन सभ्यताओं चीन और भारत के बीच आज के दौर में प्रतिस्पर्धा है। चीन की रणनीति का जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने एस जयशंकर को देश का नया विदेश मंत्री बनाया है। अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी मालदीव का सबसे पहले विदेशी दौरा कर रहे हैं, फिर वह श्रीलंका का दौरा करेंगे। विदेशमंत्री भी अपने पहले दौरे में भूटान जा रहे हैं। मालदीव, भूटान और श्रीलंका तीनों ही ऐसे देश हैं जिस पर चीन की लगातार नजर रहती है और हर उस मौके की तलाश में रहता है जब वह इन देशों को पाकिस्तान की तरह अपना आर्थिक रुप से गुलाम बना सके। एस जयशंकर के रूप में विदेशमंत्री नियुक्त करके प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के साथ साथ चीन को साधने की योजना का पहला कदम उठाया है। प्रधानमंत्री मोदी चीन के साथ अच्छे संबंधों को बनाए रखने के साथ साथ रणनीतिक पकड़ को और ठोस करेंगे।

पाकिस्तान को अलग-थलग करना-तंकवादी घटनाओं के लिए प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान को विश्व समुदाय में अलग-थलग कर देने की नीति पर चल रहे हैं। उनकी मंशा है कि पाकिस्तान को यह समझ आए कि आतंकवाद को सामरिक नीति के रूप में बनाये रखना उसके स्वयं के वजूद के लिए खतरनाक है। ऐसी सोच से ही पाकिस्तान आतंकवाद का साथ छोड़ सकेगा, जब तक वह ऐसी सोच नहीं पैदा करेगा उसके ऊपर आर्थिक और सामरिक दबाव प्रधानमंत्री मोदी बढ़ाते जाएंगे।

आर्थिक विकास और सुरक्षा के लिए साझेदारी- प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति का मुख्य केन्द्र इंडिया फर्स्ट है। इस नीति के तहत भारत को किसी भी खेमे या गुट में नहीं रखा गया है। इसका सीधा उद्देश्य भारत के हितों के लिए हर देश का साथ समान रूप से स्वीकार है। इजरायल हो या सऊदी अरब हो या फिलस्तीन सबका साथ, सबके विकास के लिए जरुरी है।

आज, भारत की विदेश नीति व्यवहारिक और परिस्थितियों के अनूकूल है, वैसी स्थिति नहीं है कि आदर्शों और सिद्धांतों के लिए 1951 में भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी सदस्यता की पेशकश को ठुकरा दिया गया और पंचशील के आदर्शों के लिए भारत को चीन से युद्ध करना पड़ा।

 

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