Home विचार म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों पर देश में राजनीति क्यों?

म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों पर देश में राजनीति क्यों?

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दंगा म्यांमार में हो रहा है, रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश, इंडोनेशिया और थाइलैंड की ओर भाग रहे हैं। समस्या भी बांग्लादेश और म्यांमार के बीच की है, लेकिन इस प्रकरण में भारत को खलनायक के तौर पर पेश करने की कोशिश हो रही है। ये कोशिश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है और देश के भीतर भी।

रोहिंग्या और मोदी के लिए चित्र परिणामदरअसल भारत में अवैध रूप से घुस आए चालीस हजार रोहिंग्या मुसलमानों को केंद्र सरकार वापस उनके देश भेजना चाहती है, लेकिन देश के भीतर तथाकथित सेक्युलर जमात इसे धार्मिक रंग दे रहा है। ये मुद्दा जिस तरह से राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर रहा है वह कम से कम मानवीयता का मामला तो किसी भी कोण से नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि पहले से बढ़ती आबादी और संसाधनों पर बढ़ रहे बोझ से चिंतित भारत रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां क्यों रखे? वह भी तब जब भारत की आंतरिक सुरक्षा भी इससे खतरे में पड़ जाती हो।

आंग सांग सू की, रोहिंग्या और मोदी के लिए चित्र परिणाम

जम्मू में कहां से आए रोहिंग्या मुसलमान?
जम्मू में करीब 4000 किलोमीटर दूर म्यांमार और बांग्लादेश से आए मुसलमानों के शरणार्थी कैंप को लेकर गंभीर सवाल हैं। यह सवाल किसी सरकार ने नहीं बल्कि हाईकोर्ट की जम्मू डिविजन बेंच ने बीते फरवरी में ही उठाया था और राज्य सरकार से जवाब भी मांगा था। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने भी माना है कि इनसे देश को खतरा है। इनकी संख्या बढ़ने से देश के लिए सुरक्षा चुनौतियां बढ़ सकती हैं।

जम्मू में रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

सोची समझी साजिश है रोहिंग्या को बसाना !
भारत में घुस आए रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजना इसलिये भी जरूरी है कि ये लोग म्यांमार की ताजा हिंसा के दौरान वहां से भाग कर नहीं बल्कि पिछले 5 सालों के दौरान आए हैं। शंका इसलिए भी उठ रही है कि असम और बंगाल के शरणार्थी कैंपों को छोड़कर इतनी दूर ये कैसे आ गए? जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों के बसाने के पीछे क्या मकसद है? कौन सी संस्थाएं हैं जो वहां सेटल करा रही हैं? जाहिर है इसमें किसी बड़ी साजिश की बू आ रही है।

जम्मू में रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

आंतरिक सुरक्षा को लेकर हैं सवाल
भारत सरकार के सामने 40 हजार रोंहिग्या मुस्लिमों की रोजी-रोटी से कहीं बड़ा सवाल देश की सुरक्षा का है। दरअसल सरकार को ऐसे खुफिया इनपुट मिले हैं कि पाकिस्तान से ऑपरेट कर रहे टेरर ग्रुप इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश में लग गए हैं। रोहिंग्या मुसलमान आईएसआई और आईएसआईएस के भी संपर्क में हैं। ऐसे में इनका भारत में रहना हम सबके लिए खतरनाक है। जाहिर है सरकार भारत में रह रहे 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को 40 हजार बारूद के ढेर के संभावित खतरे के तौर पर देख रही है।

जम्मू में रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

UNHRC के बयान के क्या हैं मायने?
सोमवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख जाएद राद अल हुसैन ने रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के निर्णय को लेकर भारत सरकार के रुख की निंदा की। लेकिन क्यों? दरअसल UNHRC के प्रमुख भी एक मुस्लिम हैं और उसी नजरिये से देखते हैं। उनपर मुस्लिम देशों का भी उनपर दबाव है कि वे भारत पर दबाव बनाएं। लेकिन यूएन जैसी जिम्मेदार संस्था ने भारत के आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे को क्यों नहीं समझा? क्या इस तरह का दुष्प्रचार भारत की छवि बिगाड़ने की कोशिश नहीं है? यूएन इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों से क्यों नहीं कह पा रहा है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां शरण दे ?जाएद राद अल हुसैन के लिए चित्र परिणाम

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने क्यों उठाए सवाल?
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस मामले में पीएम से दखल की अपील की है। लेकिन ये जगजाहिर है कि एमनेस्टी इंटरनेशन एक भारत विरोधी संस्था है और यह भारत के हितों को नुकसान पहुंचाती रही है। दरअसल भारत सभी पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध सुधारने में लगा है तो म्यामांर से साथ रिश्ते सुधारना भी उसकी प्राथमिकता है। ऐसे में भारत म्यांमार के आंतरिक मामलों में भला क्यों दखल दे? वह भी तब जब चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत को घेरे बैठे हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल और रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

समस्या की जड़ भी हैं रहिंग्या मुसलमान
तथाकथित मानवाधिकारवादी बुद्धिजीवी चाहे कितना ही शोर क्यों न मचाएं लेकिन वास्तविकता यह है कि रोहिंग्या मुसलमान अपनी बुरी स्थिति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं। ये लोग मूलतः बांग्लादेश के रहने वाले हैं और जिस तरह करोड़ों बांग्लादेशी भारत में घुस कर रह रहे हैं, उसी प्रकार ये भी रोजी-रोटी की तलाश में बांग्लादेश छोड़कर म्यांमार में घुस गए। 1962 से 2011 तक बर्मा में सैनिक शासन रहा। इस दौरान रोहिंग्या मुसलमान चुपचाप बैठे रहे लेकिन जैसे ही वहां लोकतंत्र आया, रोहिंग्या मुसलमान आतंक फैलाने पर उतर आए।

जम्मू में रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

मासूम नहीं हैं रोहिंग्या मुसलमान!
दरअसल रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के लिए समस्या बन गए हैं। जून 2012 में बर्मा के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों ने एक बौद्ध युवती से बलात्कार किया। जब स्थानीय बौद्धों ने इस बलात्कार का विरोध किया तो रोहिंग्या मुसलमानों ने संगठित होकर बौद्धों पर हमला बोल दिया। इसके विरोध में बौद्धों ने भी संगठित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें मुसलमान और बौद्ध दोनों थे।

जम्मू में रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

मुस्लिम देश भी इन्हें नहीं देते शरण
म्यांमार में बौद्ध और रोहिंग्या के बीच हिंसा होती रहती है। इसके बाद ये पलायन कर इंडोनेशिया, मलेशिया और थाइलैंड जैसे देशों में शरण लेने जाते हैं, लेकिन मुस्लिम देश होने के बावजूद मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी इन्हे अपने यहां शरण नहीं देते। दरअसल ये देश भी इन रोहिंग्या को अपने लिए खतरा मानते हैं। फिलहाल बांग्लादेश ने रोहिंग्या को अपने यहां शरण दी है लेकिन उसके भीतर से भी विरोध की आवाजें उठने लगी हैं। अब बांग्लादेश भी एक निर्जन द्वीप पर रोहिंग्या मुसलमानों को शिफ्ट करने पर विचार कर रहा है। ऐसे में भारत पर दबाव बनाने की कोशिश क्या सोची समझी साजिश नहीं है?

जम्मू में रोहिंग्या के लिए चित्र परिणाम

आतंक फैलाते हैं रोहिंग्या मुसलमान !
रोहिंग्या मुसलमानों का आतंक अक्टूबर 2016 में तब दिखा जब उन्होंने बर्मा के 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी और कई पुलिस चौकियों पर हमले किए। उसके बाद की छिटपुट घटनाएं होती रहीं, लेकिन 25 अगस्त को म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी राज्य रखाइन में रोहिंग्या घुसपैठियों ने दर्जनों पुलिस पोस्ट और एक आर्मी बेस पर एक साथ हमला किया। इस दौरान जवाबी कार्रवाई में करीब 400 लोगों की जान चली गई और रोहिंग्या कम्युनिटी को बांग्लादेश जाना पड़ा।

रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार में हमला बोला के लिए चित्र परिणाम

बंगाल, असम और बिहार में बिगड़ा आबादी का समीकरण
भारत सरकार के रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का फैसला इस आधार पर भी देखा जाना चाहिए कि यह देश के संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पैदा करेंगे जो देश के मूल नागरिकों के अधिकारों का हनन होगा। वहीं बड़ा सवाल जनसांख्यिकीय परिवर्तन का भी है। बांग्लादेशी शरणार्थियों के कारण जिस तरह पश्चिम बंगाल, असम और बिहार की आबादी का समीकरण बिगड़ा है वह सबके सामने है। बंगाल के कम से कम 18 जिले ऐसे हैं जहां हिंदू अल्पंख्यक होने की कगार पर हैं। तीन जिले तो ऐसे हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।

बंगाल में मुसलमानों की आबादी बेतहाशा बढ़ी
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना बंगाल में हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है जो राष्ट्रीय स्तर से दोगुनी है। असम में भी करीब तीस प्रतिशत मुस्लिम आबादी हो गई है। वहीं बिहार के चार जिलों-किशनगंज (75 प्रतिशत) अररिया, कटिहार और पूर्णिया में मुस्लिम आबादी पचास प्रतिशत के लगभग हो गई है। जाहिर है आबादी का ये समीकरण बिगड़ने के पीछे बांग्लादेशी शरणार्थी ही हैं।

बांग्लादेशी शरणार्थी के लिए चित्र परिणाम

चकमा शरणर्थियों को जबरन देनी पड़ी नागरिकता
2015 में सुप्रीम कोर्ट के दिए आदेश के बाद केंद्र सरकार ने चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता देने का निर्णय किया है। दरअसल एक लाख चकमा और हाजोंग शरणार्थी पांच दशक पहले पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत में आए थे और अभी पूर्वोत्तर के शिविरों में रह रहे हैं। कांग्रेस की सरकार ने ही अरुणाचल में 1964 और 1969 के बीच इन्हें बसाया था। जाहिर है ज्यादा दिनों तक रह जाने के बाद कानून भी इन्हें वापस भेजने में सक्षम नहीं हो पाता है। ऐसे में रोहिंग्या मुसलमान भारत के संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ होंगे। ऐसे में रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रहने की इजाजत देना क्या जायज है?

बांग्लादेशी चकमा शरणार्थी के लिए चित्र परिणाम

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