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प्रधानमंत्री मोदी ने महाबलीपुरम में समुद्र किनारे लिखी कविता, ‘हे सागर… तुम्हें मेरा प्रणाम’

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तमिलनाडु के प्राचीन शहर महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब समुद्र किनारे चहलकदमी कर रहे थे तो वह उसके सौंदर्य और उसमें छिपे जीवन-दर्शन को खोजकर कविता रचने से खुद को रोक नहीं सके। रविवार को उन्होंने महाबलीपुरम में लिखी अपनी एक कविता शेयर की है। उन्होंने लिखा, ‘कल महाबलीपुरम में सवेरे तट पर टहलते-टहलते सागर से संवाद करने में खो गया। ये संवाद मेरा भाव-विश्व है। इस संवाद भाव को शब्दबद्ध करके आपसे साझा कर रहा हूं।’

पढ़िए पूरी कविता-

हे…सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

तू धीर है, गंभीर है,
जग को जीवन देता, नीला है नीर तेरा!
ये अथाह विस्तार, ये विशालता
तेरा ये रूप निराला।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

सतह पर चलता ये कोलाहल, ये उत्पाद,
कभी ऊपर तो कभी नीचे,
गरजती लहरों का प्रताप,
ये तुम्हारा दर्द है, आक्रोश है
या फिर संताप?
तुम न होते विचलित
न आशंकित, न भयभीत
क्योंकि तुममें है गरहाई !

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

शक्ति का अपार भंडार समेटे,
असीमित ऊजार् स्वयं में लपेटे
फिर भी अपनी मयादार्ओं को बांधे,
तुम कभी न अपनी सीमाएं लांघे!
हर पल बड़प्पन का बोध दिलाते।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

तू शिक्षादाता, तू दीक्षादाता
तेरी लहरों में जीवन का
संदेश समाता।
न वाह की चाह
न पनाह की आस
बेपरवाह सा ये प्रवास।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

चलते-चलाते जीवन संवारती,
लहरों की दौड़ तेरी।
न रुकती, न थकती,
चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति का मंत्र सुनाती।
निरंतर..सर्वत्र!
ये यात्रा अनवरत,
ये संदेश अनवरत।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

लहरों में उभरती नई लहरें।
विलय में भी उदय,
जनम-मरण का क्रम है अनूठा,
ये मिटती-मिटाती, तुम में समाती,
पुनर्जन्म का अहसास कराती।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

सूरज से तुम्हारा नाता पुराना,
तपता-तपाता,
ये जीवंत-जल तुम्हारा।
खुद को मिटाता, आसमान को छूता,
मानो सूरज को चूमता,
बन बादल फिर बरसता,
मधु भाव बिखेरता।
सुजलाम-सुफलाम सृष्टि सजाता।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

जीवन का ये सौंदर्य,
जैसे नीलकंठ का आदर्श,
धरा का विष, खुद में समाया,
खारापन समेट अपने भीतर,
जग को जीवन नया दिलाया,
जीवन जीने का मर्म सिखाया।

हे… सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!

प्रधानमंत्री चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से अनौपचारिक मुलाकात के लिए महाबलीपुरम में थे। उन्होंने कोई पहली बार कविता नहीं लिखी है, उनका कविताओं और साहित्य से पुराना नाता रहा है। अब तक उनकी 11 से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकीं हैं।

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