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प्रधानमंत्री मोदी को उलझाने की विपक्ष की साजिश

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार को उलझाने के लिए, कांग्रेस और वामपंथी दल विश्वविद्यालयों के छात्रों और ‘असहिष्णुता’ के पैरोकारों का सहारा लेते हैं। इसे पिछले तीन सालों में देश के विश्वविद्यालयों में हुए छात्रों के प्रदर्शन और कथित असहिष्णुता के मुद्दे पर हुए राजनीतिक बवंडर के पैटर्न को परखने से समझा जा सकता है। कई घटनाओं में एक ही पैटर्न होने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें सुनियोजित रंग देने वाला कोई एक ही दिमाग है, जिसकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राजनीतिक अदावत है और वह 2014 में लोकसभा चुनावों में हुई हार का बदला लेने का समय-समय पर प्रयास करता है।

काशी हिन्दू विश्विद्यालय का प्रदर्शन- सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी की घटना के पैटर्न को समझने का प्रयास करते हैं, क्योंकि यह सबसे ताजा घटना है।
विश्वविद्यालय परिसर में छेड़छाड़ की घटना शाम 6 बजे भारत कला भवन के पास होती है। आरोपों के मुताबिक घटना की सूचना मिलने पर प्रशासन लापरवाह तंत्र की तरह संवेदनहीन प्रतिक्रिया करता है। इससे आक्रोशित छात्राएं धरने पर बैठ जाती हैं। इसके बाद घटना को बवंडर का रूप देने के लिए शहर में रहने वाले कांग्रेस और वामपंथी दलों के कार्यकर्ता छात्रों के रूप में परिसर में घुस आते हैं। फिर धरना प्रदर्शन के स्थल पर प्रायोजित आगजनी होती है, जिसे रोकने के लिए पुलिस को बल का प्रयोग करना पड़ता है।
पुलिस की कार्रवाई होते ही, सोशल मीडिया पर लखीमपुर खीरी की घायल एक लड़की की तस्वीर को वायरल करने में कांग्रेसी-वामपंथी नेता और बुद्धजीवी जुट जाते हैं ताकि इस प्रदर्शन को एक उग्र आंदोलन का रूप दे दिया जाए।

जेएनयू में हुआ छात्र प्रदर्शन- अब काशी से वापस देश की राजधानी दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में 10 फरवरी 2016 को हुई घटना के क्रम और पैटर्न को समझते है।
विश्वविद्यालय के साबरमती हॉस्टल के सामने 09 फरवरी को संसद पर आतंकवादी हमले के गुनहगार अफजल गुरु और जेकेएलएफ के फाउंडर मकबूल बट की याद में वामपंथी समूह के छात्र संगठनों ने एक समारोह आयोजित किया। आयोजन का विरोध करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र आयोजन स्थल पर पहुंच गये। इस दौरान बहस और झड़पें हुईं। जिसमें वामपंथी छात्रों ने देशविरोधी और कश्मीर की आजादी के समर्थन में नारे लगाये। इस उग्र प्रदर्शन को काबू करने के लिए प्रशासन को पुलिस बुलानी पड़ी।
पुलिस के आते ही कांग्रेसी-वामपंथी नेता और ‘सेक्युलर’ बुद्धिजीवियों ने इसे उग्र रूप देना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर जंतर-मंतर तक कांग्रेसी-वामपंथी नेता और ‘सेक्युलर’ बुद्धजीवी, आयोजकों के समर्थन में उतर आये। इसे और उग्र करने के लिए देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के छात्रों को भी आंदोलन से जोड़ा जाने लगा।

हैदराबाद विश्वविद्यालय में हुआ प्रदर्शन- 30 जुलाई 2015 को विश्विद्यालय परिसर के शॉपिंग काम्पलेक्स में 1993 के मुबंई धमाकों के दोषी याकूब मेमन के लिए प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। इस आयोजन में अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन ने हिस्सा लिया। रोहित वेमुला भी इस आयोजन में शामिल हुआ। इस कार्यक्रम का विरोध करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र घटना स्थल पर पहुंचे। आयोजन खत्म होने के बाद, जिन छात्रों ने इसका विरोध किया था, उनमें से एक छात्र से रोहित वेमुला और उसके अन्य चार साथियों ने मारपीट और धमका कर माफीनामा लिखवाया। इस घटना की शिकायत होने पर विश्वविद्यालय ने रोहित वेमुला और उसके साथियों को विश्विद्यालय से छह माह के लिए निष्कासित करने का फैसला लिया। इस निर्णय के बाद भी जब ये पांचों छात्र विश्विद्यालय में ही डटे रहे तो, पीड़ित छात्र की मां ने उच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करने के लिए 18 जनवरी 2016 का दिन तय कर दिया, लेकिन 17 जनवरी को ही रोहित वेमुला ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
आत्महत्या होते ही कांग्रेसी-वामपंथी दल के नेता और बुद्धजीवी इसे उग्र रूप देने में जुट गये। छात्र संगठनों के नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दलित विरोधी आंदोलन चलाने को कहा गया।

कांग्रेस-वामपंथियों ने हैदराबाद आंदोलन को पैसे दिये

किसी भी आंदोलन या धरना प्रदर्शन करने के लिए धन की जरूरत होती है। उसे राष्ट्रीय स्तर पर करने के लिए अच्छे खासे फंड का होना जरूरी है। इस फंड की व्यवस्था कांग्रेस और वामपंथी दल करते हैं। इसका खुलासा यूनिवर्सिटी की वामपंथी छात्र यूनियन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के नेता राजकुमार साहू ने मई 2016 में किया और इसी कारण से उन्होंने इस्तीफा भी दे दिया था। राजकुमार साहू ने यह भी कहा कि “आंदोलन का खर्च कांग्रेस, वामपंथी दलों और अवसरवादी ताकतों ने उठाया था…”जेपी के छात्र आंदोलन और अन्ना के आंदोलन में छात्रों की भागीदारी को कांग्रेस अभी तक नहीं भूल सकी है, इसलिए वह अपने भ्रष्ट और अनैतिक कर्मों की विरासत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आंदोलन खड़ा करना चाह रही है लेकिन देश के छात्र कांग्रेस-वामपंथियों का साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं।

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