Home तीन साल बेमिसाल लालबत्ती के बाद पीएम मोदी का एक और बड़ा प्रहार

लालबत्ती के बाद पीएम मोदी का एक और बड़ा प्रहार

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तीन साल पहले जब से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, उन्होंने देश से वीवीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए कई बड़े और ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। अब मोदी सरकार ने फैसला किया है कि पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, मुख्यमंत्री या अधिकारी किसी भी सूरत में निर्धारित समय-सीमा से अधिक समय तक अपने सरकारी बंगले में नहीं रह सकता। केंद्रीय कैबिनेट के फैसले के बाद संबंधित तथा कथित वीवीआईपी को तय अवधि खत्म होने के तीन दिन के अंदर सरकारी बंगला खाली करना पड़ेगा। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो सरकार उन्हें जबरन निकाल-बाहर करेगी। देश में पिछले 70 साल से अंग्रेजों की बनाई जो कुरीति चल रही थी, उसपर मोदी सरकार का ये बहुत बड़ा प्रहार है।

सरकारी बंगलों में रहने की मनमानी खत्म
संतरी हों या पूर्व मंत्री, मोदी सरकार में सरकारी घरों पर जबरन कब्जा जमाने वालों की अब खैर नहीं। समाचार पत्रों में छपी खबरों के अनुसार केंद्रीय कैबिनेट ने सरकारी आवास (अनाधिकृत कब्जा विरोधी) अधिनियम, 1971 में बदलाव को मंजूरी दे दी है। इस संशोधन के बाद डायरेक्टर एस्टेट जरूरत के मुताबिक सरकारी आवास को खाली कराने को लेकर सीधे संबंधित व्यक्ति से पूछताछ कर सकेंगे और उन्हें लंबी चौड़ी प्रक्रिया के पालन की जरूरत नहीं होगी। वो बंगला खाली करने का आदेश भी दे सकते हैं और अगर आदेश मानने में आनाकानी हुई तो पुलिस की मदद लेकर उसे जबरन कब्जे में भी लिया सकता है या भारी जुर्माना (10 लाख रुपये या अधिक) भी वसूला जा सकता है। इस बदलाव के बाद कब्जाधारकों को हाईकोर्ट से नीचे किसी अदालत में अपील करने का अधिकार भी नहीं रहेगा।


अबतक कैसे ठसक में रहते थे कथित वीआईपी ?
वर्तमान में मंत्रियों को कार्यकाल खत्म होने के बाद आवास खाली करने के लिए 6 महीने और अधिकारियों को ट्रांसफर या रिटायर होने पर एक महीने का समय मिलता है। लेकिन, जब निर्धारित समय-सीमा खत्म हो जाती है, तो कब्जाधारकों को एक नोटिस दिया जाता है और 7 दिन तक उसके जवाब के इंतजार के बाद भी बंगला खाली करने के लिए अतिरिक्त एक महीने का समय दिया जाता है। लेकिन ये कथित वीआईपी उसी का फायदा उठाते हैं और निचली अदालतों से स्थगन आदेश लेकर चले आते हैं। इसके बाद कानून की खामियों का नाजायज फायदा उठाने का दौर शुरू हो जाता है और ये लोग साल-दर-साल सरकारी बंगलों में डटे रह जाते हैं। मोदी सरकार ने इसी परंपरा को तोड़ने की पहल की है। शहरी विकास मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इस ऐक्ट में संशोधन को कैबिनेट की मंजूरी मिली है, लेकिन अभी इस संशोधन से जुड़े बिल को संसद से भी पारित कराना होगा।


किसने समय पर नहीं खाली किया सरकारी बंगला ?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अभी लगभग 70 ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने अदालत से स्थगन आदेश लेकर निर्धारित तारीख के बाद भी दो या उससे अधिक वर्षों से सरकारी आवासों में डटे हुए हैं। उन्हीं लोगों में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी शामिल हैं जिन्होंने कोर्ट से स्टे ऑर्डर लेकर दो वर्षों से सरकारी बंगले पर कब्जा कर रखा है और खाली करने का नाम नहीं लेते हैं। इससे पहले मोदी सरकार को यूपीए सरकार में मंत्री, सांसद और कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सरकारी बंगले खाली कराने में काफी दिक्कत हुई थी। जैसे- अंबिका सोनी, अधीरंजन चौधरी, हरीश रावत, उमर अब्दुल्ला। एक आंकड़े के अनुसार मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में 1500 से अधिक सरकारी बंगले वैसे राजनेताओं और अफसरों से खाली करवाए हैं, जो उसपर पैतृक संपत्ति की तरह कब्जा करके बैठे थे।

क्योंकि मोदी सरकार जनता की सरकार है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पहले दिन से ही साबित किया है कि उनकी सरकार वीआईपी या पूंजीपतियों के लिए नहीं, देश की जनता के लिए सोचती है। तीन साल में उन्होंने जो भी कदम उठाए हैं, उसका लक्ष्य सभी सवा सौ करोड़ देशवासी रहे हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ ये एक नारा नहीं है, ये पीएम मोदी के गवर्नेंस की आत्मा है। वो जानते हैं कि देश की जनता ने उनपर जो भरोसा किया है, उसकी भावनाओं के अनुसार काम करना उनकी जिम्मेदारी है। 70 साल में जिस सोच ने भारतीय लोकतंत्र को अदृश्य राजशाही में बदलने का कुचक्र रचा था, उससे देश को सुरक्षित बाहर निकालना उनका कर्तव्य है। इसी लिए मोदी जी के हर कदम के पीछे एक ही भावना काम करती है- भारत और भारत की जनता।

लालबत्ती पर भी लगाई रोक
इससे पहले मोदी सरकार ने वीवीआईपी कल्चर की प्रतीक माने जाने वाली लाल बत्ती पर रोक लगाकर जनता का दिल जीत लिया था। सरकारी गाड़ियों पर नेता और अफसर लाल-पीली-नीली बत्ती लगाकर ऐसे ठसक में निकलते थे कि वो जनता के सेवक नहीं, स्वामी हों। प्रधानमंत्री मोदी जी हमेशा से इस संस्कृति के खिलाफ रहे हैं। आखिरकार उनकी सरकार ने मजदूर दिवस से इस वीआईपी कल्चर पर हमेशा-हमेशा के लिए पूर्ण विराम लगा दिया। 1 मई, 2017 के बाद से कुछ इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को लाल बत्ती के उपयोग का अधिकार नहीं रह गया है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि भारत का हर नागरिक वीआईपी है, इसीलिए कुछ गिने-चुने लोगों को खास सुविधाएं भोगने का अधिकार नहीं है।

दरअसल श्री नरेंद्र मोदी की ये सोच इसीलिए है, क्योंकि वो खुद को प्रधानमंत्री नहीं बल्कि प्रधानसेवक मानते हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब जनता के पीएम ने जनता के साथ खड़े होकर अपने को एक आम नागरिक की तरह साबित करके दिखाया है। यहां पर वो चंद उदाहरण दिए जा रहे हैं-

मोदी का ऑस्ट्रेलियाई पीएम के साथ मेट्रो का सफर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल 10 अप्रैल को एक साथ दिल्‍ली मेट्रो का सफर किया। दोनों नेता करीब 4 बजे मंडी हाउस मेट्रो स्‍टेशन पहुंचे और अक्षरधाम तक की यात्रा की। दोनों प्रधानमंत्री को एक कॉमन मैन की तरह मेट्रो में सफर करते हुए देख कर आम लोग हैरत में पड़ गए। प्रधानमंत्री मोदी ने मेट्रो से सफर का इसलिए फैसला किया ताकि उनकी वजह से आम लोगों को ट्रैफिक जाम की समस्या का सामना न करना पड़े।

अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन पर पहुंचकर दोनों देशों के प्रधानमंत्री अक्षरधाम मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। 

नॉर्मल ट्रैफिक से गुजर कर एयरपोर्ट पहुंचे पीएम
हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का स्वागत करने के लिए पीएम मोदी को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जाना था। प्रधानमंत्री आवास लोक कल्याण मार्ग से लेकर एयरपोर्ट तक पीएम का काफिला आम लोगों की गाड़ियों के बीच से ही गुजरता रहा। कहीं भी पीएम मोदी के लिए सामान्य ट्रैफिक को नहीं रोका गया और न ही कोई बदलाव किया गया। आमतौर पर जब किसी रूट से पीएम का काफिला गुजरता है तो सुरक्षा कारणों से काफी देर पहले ही नॉर्मल ट्रैफिक रोक दी जाती है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर बांग्लादेश की पीएम को रिसीव करने एयरपोर्ट जा रहे थे, तो उन्हें लगा कि अगर उनके लिए ट्रैफिक रोकी गई तो आम नागरिकों को काफी परेशानी होगी। इसीलिए उन्होंने खुद भी सामान्य ट्रैफिक में ही आम नागरिक की तरह ही सफर करने का फैसला किया।

पहले भी ट्रैफिक बाधित किए बिना एयरपोर्ट जा चुके हैं पीएम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने लिए किसी जनता को परेशान नहीं करना चाहते। उन्हें लगता है कि अगर लोक कल्याण मार्ग से लेकर लेकर एयरपोर्ट के बीच की ट्रैफिक को बाधित की गई, तो जनता बेवजह परेशान होगी, उसे बड़ी मुश्किल होगी। जानकारी के मुताबिक जब अबू धाबी के शहजादे शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान दिल्ली आए थे, तब भी उनके स्वागत के लिए पीएम सामान्य ट्रैफिक में किसी तरह रुकावट डाले बिना एयरपोर्ट पहुंचे थे।

जनता के लिए ही पहली बार दिल्ली मेट्रो में किया सफर
25 अप्रैल 2015 की बात है। प्रधानमंत्री मोदी को नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी के एक समारोह में शामिल होना था। उन्होंने सोचा कि अगर वो सड़क के रास्ते जाएंगे, तो ट्रैफिक अस्त-व्यस्त हो जाएगी इसीलिए उन्होंने एयरपोर्ट लाइन पर धौलाकुआं से द्वारका तक मेट्रो में सफर किया। दिल्ली मेट्रो में प्रधानमंत्री का ये पहला सफर था।

जनता के साथ, जनता के लिए दिल्ली मेट्रो की सवारी
2015 की ही बात है, 6 अप्रैल को पीएम मोदी को दिल्ली-फरीदाबाद मेट्रो लाइन का उद्घाटन करने फरीदाबाद जाना था। प्रधानमंत्री ने सोचा की पहले से ही ट्रैफिक समस्या से परेशान इस रूट पर अगर उनका काफिला निकला तो लोग बहुत परेशान होंगे। इसलिए वो दिल्ली के जनपथ स्टेशन से मेट्रो में सवार होकर ही फरीदाबाद पहुंचे और उद्घाटन करने के बाद फिर मेट्रो में सवार होकर दिल्ली लौटे। खास बात ये रही कि इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम लोगों के साथ ही बैठे हुए थे और सहयात्री अपने प्रधानमंत्री के साथ घुल-मिलकर बातें कर रहे थे।

अमृसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर खिलाया
पिछले साल 3 दिसंबर को ‘हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस’ के लिए प्रधानमंत्री अमृतसर पहुंचे थे। उनके साथ अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी भी अमृतसर पहुंचे हुए थे। इस यात्रा के दौरान पीएम स्वर्ण मंदिर पहुंचे और मत्था टेका। इसके बाद पीएम मोदी ने लोगों को अपने हाथों से लंगर खिलाकर सेवा की। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री को इस तरह से सेवाभाव में लीन जिसने भी देखा वो हैरान रह गया।

शास्त्री जी के घर पैदल ही पहुंच गए
पिछले दिनों पीएम मोदी वाराणसी यात्रा पर गए थे। इस दौरान उनका पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पैतृक आवास पर जाने का कार्यक्रम था। वो रामनगर पहुंचे और वहां शास्त्री जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। फिर देखा की शास्त्री जी घर की ओर जाने वाली गलियां काफी तंग हैं। फिर क्या वो पैदल ही चलकर शास्त्री जी के घर पहुंचे। मोदी जी को पैदल आते देख शास्त्री जी के परिजन भी हैरान रह गए।

राजपथ पर सुरक्षा घेरा तोड़कर लोगों के बीच पहुंचे
जनता से सीधा संवाद करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का एक बहुत ही अहम हिस्सा है। व्यस्तता से भरी अपनी दिनचर्या के बीच उन्हें जब भी मौका मिलता है वो लोगों से मिलना-जुलना और उनके नजदीक पहुंचकर करीब से बात करना पसंद करते हैं। देश आज उनके इसी विनम्र व्यक्तित्व का कायल है। इसी साल गणतंत्र दिवस की बात है। समारोह खत्म होने के बाद पीएम का काफिला राजपथ पर बढ़ रहा था। अचानक उनकी गाड़ी रुकी और पीएम मोदी बाहर आकर लोगों के बीच पहुंच गए। दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों को उम्मीद नहीं थी कि प्रधानमंत्री इस तरह से उनके बीच पहुंच जाएंगे। देश के प्रधानमंत्री को जनता के बीच देखकर लोग गदगद हो गए।

स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के बीच पहुंच जाते हैं
जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं, हर बार 15 अगस्त को लालकिले के प्राचीर से तिरंगा फहराने के बाद वो अपनी सुरक्षा की चिंता किए बिना बच्चों के बीच पहुंचते रहे हैं। उन्होंने इसे एक परंपरा सी बना दी है। अब बच्चे उनका भाषण खत्म होने के बाद अपने बीच आने का इंतजार करते रहते हैं। पीएम मोदी की यही खासियत है, वो अपने लिए नहीं देश के लिए सोचते हैं, खुद के लिए नहीं देश के लिए जीते हैं।

फावड़ा उठाकर की गंगा घाट की सफाई

पीएम मोदी एक बार अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी पहुंचे थे। यहां के अस्सी घाट पर उन्होंने खुद अपने हाथों में फावड़ा लेकर सफाई अभियान की शुरुआत की। देश के प्रधानमंत्री में इतनी विनम्रता, इतनी सहजता, जिसने भी देखी वो दंग रह गया। लेकिन मोदी जी का व्यक्तित्व ही ऐसा है, वो जनता के लिए सोचते हैं, जनता की तरह सोचते हैं और उसी के लिए दिनरात परिश्रम करते हैं।

झाड़ू भी लगाया, कूड़ा भी उठाया
पीएम ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत खुद अपने हाथों से की थी। देश को स्वच्छ बनाना है, ये सोच उन्होंने देश पर थोपा नहीं, बल्कि उन्होंने अपने हाथों से इसकी शुरुआत की। सबसे पहले उन्होंने दिल्ली की वाल्मिकी बस्ती में खुद अपने हाथों से झाड़ू लगाया और कूड़ा उठाया। ये कोई दिखावा नहीं था, स्वच्छता मोदी जी के व्यक्तित्व में शामिल है, वो बचपन के दिनों से इसके प्रति सजग रहे हैं और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनमें ऐसा करने में लेस मात्र की झिझक नहीं है। वो एकबार अचानक दिल्ली के मंदिर मार्ग थाने पहुंचे तो वहां उन्होंने गंदगी देखी और खुद झाड़ू लेकर सफाई में जुट गए।

विदेशों में भी अपने लोगों के बीच पहुंच जाते हैं
जनता के बीच पहुंचना, उनसे बातें करना, उसकी समस्याएं सुनना, राय जानना पीएम मोदी की पहचान रही है। भारत में ही नहीं, विदेश यात्राओं के दौरान भी वो जहां भी जाते हैं, भारतीय समुदाय के लोगों से खुलकर मिलना पसंद करते हैं। इसके लिए वो इतने उत्साहित हो जाते हैं कि उन्हें विशाल सुरक्षा घेरे से बाहर निकल जाने का भी एहसास नहीं होता।

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