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PFI पर झारखंड में लगा बैन, केरल-कर्नाटक में कट्टरपंथी संगठन को क्यों मिली है छूट?

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आतंकवाद और कट्टरपंथ देश के लिए नासूर हैं। ऐसे कृत्य राष्ट्र की एकता, अखंडता और विविधता के लिए बड़ा खतरा हैं। देश के टुकड़े होने के खतरों के बावजूद कांग्रेस और वामपंथ की सरकारों के वक्त ऐसे कट्टरपंथी संगठनों को प्रश्रय मिलता था जो देश को आतंकवाद और कट्टरपंथ में धकेलने में लगे हुए हैं। कांग्रेस और वामपंथ की की सरपरस्ती में ही ऐसे संगठन बेखौफ होकर देश को तोड़ने के इरादे से अपनी साजिशों को अंजाम भी देते रहे हैं। ऐसा ही एक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानि PFI भी है जिनके ISIS जैसे संगठनों से संबंध जाहिर हो चुके हैं। इतना ही नहीं संगठन कट्टरपंथ फैलाने से लेकर लव जिहाद जैसे घृणित कृत्य करने तक में शामिल रहा है। PFI की ऐसी ही गतिविधियों के कारण ही झारखंड की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है।

झारखंड में कट्टरपंथ फैला रहा था PFI
झारखंड में पीएफआई को प्रतिबंधित करने के लिए गृह विभाग ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि इस संगठन के सदस्य ISIS से प्रभावित हैं और इसके कई सदस्य सीरिया जैसे देशों में काम भी कर रहे हैं। दरअसल पाकुड़ के जिला प्रशासन ने राज्य के गृह विभाग को सूचना दी थी कि यह संगठन सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने का काम कर रहा है। गौरतलब है कि संगठन के कई संदिग्ध वीडियो प्रशासन के पास मौजूद हैं।

सांप्रदायिक वैमनस्यता फैला रहा था PFI
लॉ डिपार्टमेंट की सहमति के बाद पीएफआई को सीएलए एक्ट 1968 की धारा 16 के तहत प्रतिबंधित किया गया है। गोरक्षा और बच्चा चोर के नाम पर हत्या के मामले में इस संगठन ने सोशल मीडिया के जरिये कई आपत्तिजनक पोस्ट भी किए थे। इस संगठन के करीब 300 से अधिक हथियार बंद सदस्यों ने बीते दिनों सड़कों पर हंगामा भी किया था। उस दौरान पीएफआई के 45 सदस्यों के खिलाफ स्थानीय थाने में मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद से ही पीएफआई के सदस्यों ने माहौल बिगाड़ने के लिए कई भड़काऊ वीडियो क्लिप सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के नाम से वायरल किया था।

कर्नाटक-केरल में कब लगेगा प्रतिबंध?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया न केवल झारखंड में सक्रिय है, बल्कि पश्चिम बंगाल, केरल और कर्नाटक में अपना राजनीतिक असर भी रखता है। इस संगठन ने कई छद्म नामों से भी देश के खिलाफ साजिशें रची हैं।  बीते दिनों केरल के पुलिस महानिदेशक  लोकनाथ बोहरा ने भी पीएफआई पर प्रतिबंध की बात कही थी। इस बारे में एक रिपोर्ट The Hindu अखबार में छपी भी है। केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने भी कई बार दबे स्वर में कहा है कि पीएफआई जैसी संस्थाओं पर बैन लगना चाहिए। वे खुलकर इसलिए नहीं कह पाते हैं कि उन्हें इसका राजनीतिक लाभ भी लेना होता है।

दूसरी ओर कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार पीएफआई जैसे संगठनों के सहारे चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है। हाल में ही उसने केरल में हिंसा फैलाने के जिम्मेदार मुस्लिम आरोपियों को रिहा करने के आदेश दिए हैं। गौरतलब है कि इनमें से अधिकतर पीएफआई के सदस्य हैं, जो खास तौर पर हिंदुओं को अपना निशाना बनाते हैं।

PFI से हैं कांग्रेस के गहरे संबंध

पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने 23-24 सितंबर, 2017 को केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के एक कार्यक्रम में ये जानते हुए भी शिरकत की थी। एक शीर्ष संवैधानिक पद पर रहे व्यक्ति का PFI जैसे संगठन के कार्यक्रम में शामिल होना ही एक बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकती है क्योंकि इस संगठन पर आतंकियों के समर्थन का आरोप है। 23 सितंबर को कोझिकोड में महिलाओं से संबंधित विषय पर इस सम्मेलन को नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज ने नेशनल वूमेन फ्रंट (NWF) के साथ मिलकर आयोजित किया था। NWF, PFI की महिला शाखा है।

दरअसल PFI पर युवाओं को आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट में भर्ती करने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में देश के किसी संवैधानिक पद पर लंबे समय तक रहे किसी शख्स का PFI से संबंधित कार्यक्रम का हिस्सा बनना कई सवाल छोड़ता है। कांग्रेस का ऐसे संगठनों से संबंध कोई नई बात नहीं है। जाकिर नाईक जैसे कट्टरपंथी मुस्लिम धर्मगुरु को भी कांग्रेस ने ही बढ़ावा दिया था। इसके एवज में कांग्रेस पार्टी ने जाकिर नाईक के संगठन से चंदा भी लिया था।

कांग्रेस पर PFI के कृत्यों को बचाने का आरोप
गौरतलब है कि 2010 में केरल पुलिस ने PFI की गतिविधियों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय को जानकारियां मुहैया करवाई थी, लेकिन तब कांग्रेस नेतृत्व की सरकार ने इस पर कार्रवाई की जरूरत तक नहीं समझी थी। 2010 में केरल के कन्नूर जिले में एक दलित युवक की तालिबानी अंदाज में हुई हत्या के मामले की जांच में इसी ग्रुप का हाथ सामने आया था। ऐसे में कार्रवाई की उदासीनता कांग्रेस को सीधा कटघरे में खड़ा करती है। बताया जा रहा है कि PFI के नेताओं को बचाने के लिए तब की मनमोहन सरकार ने आतंक में इस संगठन की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया था। postcard.news  की एक रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 2009 में लव जिहाद के एक मामले की सुनवाई करते हुए कैसे केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी से PFI की खतरनाक गतिविधियों का संदेह पुख्ता हो रहा था। तब केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने भी इसको लेकर अपनी चिंता को उजागर किया था।

विध्वंसक गतिविधियों में PFI का नाम
NIA ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को दिये एक रिपोर्ट में दावा किया है कि PFI आतंकवादी कृत्यों में लिप्त रहा है जिसमें आतंकी शिविर संचालित करना, बम बनाना शामिल है और यह गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत प्रतिबंधित घोषित करने का एक सटीक मामला है। PFI की कथित रूप से 23 राज्यों में मौजूदगी है और यह केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में मजबूत है। 2009 में मैसूर में हुए दंगों के पीछे इस संगठन का नाम आया था।

PFI पर खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट
PFI को देश में कट्टरवाद को बढ़ावा देने वाले संगठन के रूप में जाना जाता है। वर्ष 2011 में खुफिया एजेंसियों की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि PFI के प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन सिमी से रिश्ते हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्यों को धारदार हथियारों से लेकर क्रूड बम और यहां तक कि IED बनाने और उसके इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी जाती है। इस रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि ये संगठन देश की सुरक्षा के लिए खतरा है।

PFI को अरब देशों से ‘धर्मांतरण और लव जिहाद’ की फंडिंग
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ यानी PFI और ‘सथ्य सरानी’ जैसे संगठन पूरी तरह से एक व्यवस्थित मशीनरी लव जिहाद जैसे घृणित काम में लगी हुई है। युवा लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराना और उन्हें कट्टरपंथ की ओर धकेलने में इन संगठनों की अहम भूमिका है। इसके लिए अरब देशों से बजाप्ता फंडिंग भी होती है। India today के स्टिंग ऑपरेशन में भी इस बात का खुलासा हुआ है जिसमें PFI के संस्थापक सदस्य और इसके मुखपत्र ‘गल्फ थेजास’ के प्रबंध संपादक अहमद शरीफ ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि इसकी फंडिंग अरब देशों से की जाती है और वह हवाला के जरिये रुपये मंगवाता है।

लव जिहाद करने वालों को मदद देता PFI
स्टिंग ऑपरेशन में अहमद शरीफ ने साफ स्वीकार किया है कि वह भारत में इस्लामिक स्टेट की स्थापना के छुपे मकसद के लिए काम कर रहे हैं। (अक्टूबर, 2017 में हुआ था स्टिंग ऑपरेशन) उन्होंने यह भी कहा कि केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इस्लामी साम्राज्य की स्थापना उनका मकसद है और इसके लिए वह हर मदद करता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि धर्मांतरण करने वाले या लव जिहाद करने वाले युवकों को उनकी संस्था मदद करती है। कुछ साल पहले केरल सहित पूरे देश में ‘किस ऑफ लव’ कैंपेन हुआ था, इसके आयोजन के पीछे भी PFI का हाथ था। इस कैंपेन में हिस्सा लेने वाले 90 प्रतिशत युवतियां हिंदू थीं और युवक मुस्लिम।

भारत को इस्लामी राज्य बनाने की साजिश
यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है और इसका एक सिरा गजवा-ए-हिन्द यानी हिंदुस्तान को इस्लामी साम्राज्य का हिस्सा बनाने से जुड़ा हुआ है। गजवा-ए-हिन्द का मतलब होता है इस्लाम की भारत पर विजय। एक जगह जहां मीडिया हिन्दुओं का ध्यान बांटने में लगी है, वही दूसरी ओर यह कोशिशें जोरों पर जारी है कि कैसे हिंदुस्तान को इस्लामी साम्राज्य में तब्दील कर दिया जाए। फर्क सिर्फ यह है इन कोशिशों को सेकुलर चोला पहनाया जा रहा है। यानि जैसे ही इन कट्टरपंथियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने की बात आती है तो तथाकथित सेकुलर जमात इसे अलग ही रंग देने में लग जाता है। बहरहाल PFI के अहमद शरीफ ने ये खुलासा किया है कि वह गजवा-ए-हिन्द के उद्देश्य के लिए काम कर रहा है, और यह हिंदुस्तान के साथ पूरी दुनिया के लिए है। जाहिर है यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।

हिंदू लड़कियों से ‘लव जिहाद’ यानि इस्लाम की जीत
काफिरों यानि गैर मुस्लिमों को जीतने के लिए किये जाने वाले युद्ध को “गजवा” कहते हैं और जो इस युद्ध में विजयी रहता है उसे “गाजी” कहते हैं। जब भी किसी आक्रान्ता और आक्रमणकारी के नाम के सामने गाजी लग जाता है, उसका यह मतलब यह मतलब होता है कि निश्चय ही वह हिन्दुओं का व्यापक नरसंहार करके इस्लाम के फैलाव में लगा था। दरअसल हिन्दुओं की सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम अपने ही धर्म के बारे में बहुत कम जानते हैं और फिर भी अपने को सेकुलर कहते है। पर क्या हम सेकुलर का मतलब भी जानते है ? कभी भी कोई मुस्लिम अपने को सेकुलर नहीं कहेगा चाहे वह नेता हो या आम नागरिक।

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