Home विचार ‘राजनीति के त्रिदेव’ का मोदी को सलाम

‘राजनीति के त्रिदेव’ का मोदी को सलाम

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नोटबंदी के फैसले का आम तौर पर पूरे देश ने स्वागत किया है। बीजेपी या एनडीए में शामिल दलों और उनकी सरकारें इस फैसले के साथ तो हैं हीं, विरोधी दल और उनकी सरकारों में भी नोटबंदी पर सहानुभूति दिख रही है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे ही मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने खुलकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने ही गठबंधन सरकार के सहयोगी आरजेडी के विरोध का सामना भी करना पड़ा है। मुद्दों के आधार पर मोदी सरकार का साथ देते रहे ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और टीआरएस मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी नोटबंदी का समर्थन किया है।

नोटबंदी पर मिल रहे समर्थन से प्रेरित होकर केंद्र सरकार ने अब एक समिति बना दी है जो देश में डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देने के तौर-तरीकों पर विचार करेगी। 13 सदस्यों की इस समिति की अध्यक्षता आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रा बाबू नायडू को सौंपी गयी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी समिति में रहने का आग्रह किया गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

समिति का मकसद उन बाधाओं को दूर करना है जो कैशलेस सोसायटी की कल्पना को यथार्थ रूप देने की कोशिश में सामने आ रही हैं। एक तरफ जनता के सामने आ रही है परेशानी है तो दूसरी तरफ राजनीतिक आलोचनाएं और विरोध हैं। फिलहाल मोदी सरकार सभी आलोचनाओं पर गौर कर रही है और उसका मकसद ऐसी तमाम परेशानियों को दूर करना है जिन्हें आम जनता को नोटबंदी की वजह से झेलनी पड़ रही है।

कालाधन सामने आए और बैंक प्रणाली चुस्त-दुरुस्त हो इस पर केंद्र सरकार का ध्यान है। इसलिए नये नोट छापने से लेकर उन्हें सुदूर गांवों के बैंक तक पहुंचाने पर जोर दिया जा रहा है। वहीं शहरों के एटीएम पर नज़र रखी जा रही है कि वहां कैश कम ना हो। वहीं मर्चेन्ट से ऐसे तरीके इजाद करने की कोशिश भी जारी है कि क्रेडिट, डेबिट या पेटीएम जैसे विकल्पों का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो। इसी कड़ी में मुख्यमंत्रियों की भागीदारी वाली नयी समिति अब भुगतान के डिजिटल स्वरूप को विकसित करने पर विचार करेगी।

ऐसा माना जा रहा है कि विकास के आकांक्षी और कालाधन विरोधी तमाम लोग प्रधानमंत्री की नोटबंदी क साथ हैं। कई मुख्यमंत्री या राजनीतिक लोग राजनीतिक मजबूरी के कारण इसका समर्थन नहीं कर पा रहे हैं। बावजूद इसके नोटबंदी पर नीतीश कुमार, नवीन पटनायक, चंद्रशेखर राव का समर्थन मिलना मोदी सरकार के लिए उत्साह बढ़ाने वाला साबित हुआ है।

संसद में विरोध को मोदी सरकार परम्परागत विरोध मानकर उससे निपट रही है। तेवर के मामले में ममता बनर्जी अपने तीखे और अलग तेवर के साथ अकेली पड़ चुकी हैं। उनके यूपी और बिहार दौरे में भी उन्हें खास सफलता मिलती नहीं दिखी। यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनका अपने प्रदेश में स्वागत तो किया लेकिन उनके साथ मंच शेयर करने से खुद को बचाए रखा।

खुद समाजवादी पार्टी में भी अमर सिंह जैसे कद्दावर नेता नोटबंदी के समर्थन में खड़े नज़र आए। ऐसे में इस मसले पर पार्टी बंटी दिखकर खुद को कमज़ोर साबित नहीं करना चाहती। यही हाल तकरीबन सभी दलों का है। देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और उनके नेता राहुल गांधी विरोध की औपचारिकता के प्रतीक बन गये हैं। वामपंथी दल भी इसी धर्म के तहत इस मसले पर एक साथ हैं। मगर, नोटबंदी के खिलाफ की मुहिम छेड़ पाने की स्थिति में ये दल नहीं हैं।

विरोधी दलों के विरोध की बेबसी को देखें तो इसकी वजह है हर दल में नोटबंदी को लेकर मोदी के मुरीदों की तादाद का बढ़ता जाना। पीएम मोदी के साथ जनभावना है और इसीलिए विरोधी दल भी तेवर नहीं दिखा पा रहे हैं। ममता-राहुल सरीखे नेताओं ने कोशिश भी की है तो उन्हें मुंह की खानी पड़ रही है।

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