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देश के अर्थतंत्र में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया नोटबंदी, 10 प्वाइंट्स में जानिये इसके फायदे

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोटबंदी को लागू किए हुए एक साल पूरे हो गए हैं। इसको लेकर विरोध और समर्थन पर बहस का दौर जारी है। राजनीतिक और सामाजिक स्तरों पर चर्चाओं का दौर भी जारी है। चर्चा यह कि नोटबंंदी देश के लिए आवश्यक था या नहीं? बहस यह कि क्या इससे कुछ फायदा हुआ है? इन्हीं चर्चाओं के बीच हम दस बिंदुओं से जानते हैं कि आखिर नोटबंदी का देश को कितना फायदा हुआ है।

01- काले धन का पता चला
नोटबंदी के बाद 99 प्रतिशत नकदी बैंकिंग सिस्टम में आ गए हैं। इसका फायदा यह है कि अब काले धन का पता लगाना काफी आसान हो गया है। इस निर्णय के बाद 17.73 लाख ऐसे संदिग्ध मामलों की पहचान की गई है जिनमें पैन कार्ड धारकों के प्रोफाइल नोटबंदी के पहले के प्रोफाइल से मेल नहीं खाते हैं। इसके साथ ही 23.32 लाख बैंक खातों में से 3.68 लाख करोड़ रुपये की जांच हो रही है। इसके अतिरिक्त 4.7 लाख नकद लेनदेन को बैंक और वित्तीय संस्थानों ने संदिग्ध बताया है। इसके साथ ही हाई वेल्यू नोटों यानी पांच सौ और हजार रुपये के कुल 16 हजार करोड़ रुपये की राशि बैंकिंग प्रणाली में वापस नहीं आई। इसके साथ ही यह भी पता लग पाया कि महज 1,48,165 लोगों ने ही 4,92,207 करोड़ रुपये अपने खातों में जमा कराए। यानी देश की 0.00011 प्रतिशत आबादी के पास ही कुल नकदी का 33 प्रतिशत धन था। अब इन खातों का ऑडिट ट्रेल और डेटा एनालिटिक्स के जरिये विश्लेषण किया जा रहा है।

02- वित्तीय प्रणाली में स्वच्छता
नोटबंदी के बाद पता लगा कि देश में ऐसी तीन लाख संदिग्ध कंपनियां हैं जो संदिग्ध हैं। इनमें से अधिकतर कालाधन को छिपाने और कर चोरी के उद्देश्य से संचालित की जा रहीं थी। अब जांच-पड़ताल के बाद इनमें से 2.24 कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया है। इन कंपनियों के साथ विशेष यह है कि इनमें से कई कंपनियों के 100 से भी अधिक खाते थे। एक कंपनी तो ऐसी थी जिनके 2,134 बैंक खाते थे। एक ऐसी भी कंपनी थी जिसके खाते में नोटबंदी से एक दिन पहले 63.60 लाख रुपये थे, लेकिन नोटबंदी के तत्काल बाद 18.68 करोड़ रुपये जमा कराए गए। यह भी पता लगा कि 35,000 कंपनियों से जुड़े 58,000 बैंक खातों में नोटबंदी के बाद 17,000 करोड़ रुपये जमा कराए गए थे, जिसे बाद में निकाल लिया गया। जांच में यह भी पता लगा कि एक कंपनी जिसके खाते में 8 नवंबर, 2016 को को कोई जमा नहीं थी, ने नोटबंदी के बाद 2,484 करोड़ रुपये जमा कराए और निकाले। जाहिर है इन बातों का सरकार की नजर में आना और इनपर कार्रवाई किया जाना वित्तीय प्रणाली की सफाई और पारदर्शिता की ओर बढ़ते कदम का सबसे बड़ा सबूत है।

03- ऋण दरों में गिरावट
नोटबंदी के बाद बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में करीब एक प्रतिशत तक कमी की है। नोटबंदी के बाद 1 जनवरी को भारतीय स्टेट बैंक ने आश्चर्यजनक रूप से धन की सीमांत लागत आधारित ब्याज दर (एमसीएलआर) में 0.9 प्रतिशत कटौती की थी। इसके बाद दूसरे बैंकों ने भी ऐसा ही किया। आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2016 में लैंडिंग रेट की सीमांत लागत 9.3 प्रतिशत से घटकर जून 2017 में 8.5 प्रतिशत हो गई। इसके अतिरिक्त होम लोन, ऑटो ऋण और शिक्षा ऋण पर ब्याज दर कम हो गया है। नोटबंदी के बाद सस्ती क्रेडिट और जीवन स्तर की सुविधाओं में काफी सुधार सुनिश्चित किया गया है। रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट आने के कारण, प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत सरकार ने ब्याज अनुदान योजना शुरू की है और दर में कटौती के कारण ईएमआई घट रहा है, घर खरीदार तीन तरफा फायदा का आनंद ले रहे हैं। दरअसल नोटबंदी के बाद बैंकों में जमाराशि का बढ़ता प्रवाह ऋण दर में 100 आधार अंकों से तेज गिरावट का कारण बन गया।

04- रियल एस्टेट की कीमतों में कमी
नोटबंदी के बाद कई स्थानों पर अचल संपत्ति की कीमतों में कमी आ रही है। नकदी लेनदेन में कमी के बाद बेहतर पारदर्शिता के साथ रियल एस्टेट में कीमतें स्थिर रहीं। आम लोगों के लिए एक घर का मालिक बनने का सपना दूर नहीं रहा। 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 8 प्रमुख शहरों में अचल संपत्ति का औसत मूल्य 8 नवंबर, 2016 के बाद गिर गया। दरअसल संपत्ति खरीदने और बेचने में नकद लेनदेन के लिए कालेधन के इस्तेमाल में रियल एस्टेट क्षेत्र कुख्यात रहा है, लेकिन नोटबंदी के बाद अचल संपत्ति में बेहिसाब धन का निवेश करने में कमी आई और यह बेहद महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।

05- आम लोगों की बचत में वृद्धि
नोटबंदी के बाद देश के नागरिकों में बचत करने और अतिरिक्त पूंजी के इस्तेमाल के तरीके में सकारात्मक बदलाव आया है। भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में सकल राष्ट्रीय घरेलू आय (जीडीआई) जैसे- शेयर और डिबेंचर्स, बीमा निधि और प्रॉवीडेंट एंड पेंशन फंड की सकल वित्तीय बचत में बढ़ती प्रवृत्ति रही है, 9 से 13.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी। भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि लोगों की बचत, जो 5 साल से  जीएनडीआई का करीब 10 प्रतिशत स्थिर थी, उसमें नोटबंदी के बाद एक साल में ही 11.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा, म्यूचुअल फंड निवेश में लगातार वृद्धि हुई है।

06- अधिक डिजिटल अर्थव्यवस्था
नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का लेस कैश सोसाइटी की ओर अग्रसर होना एक बड़ा बदलाव है। लेस कैश सोसाइटी की दिशा में डिजिटल ट्रांजेक्शन्स 300 प्रतिशत तक बढ़े। कैशलेस लेनदेन लोगों के जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ हर लेनदेन से काले धन को हटाते हुए क्लीन इकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित हुआ है। चलन में रहने वाली नकदी में भारी गिरावट हुई और कैश 17.77 लाख करोड़ रुपये से कम होकर 4 अगस्त 2017 को 14.75 लाख करोड़ पर आ गया। यानी अब महज 83 प्रतिशत ही प्रभावी नकदी है। नोटबंदी के बाद डिजिटल लेनदेन काफी तेजी से बढ़ा है। अगस्त 2016 में 87 करोड़ डिजिटल लेनदेन हुए थे, जबकि 2017 में यह संख्या 138 करोड़ हो गई यानी 58 प्रतिशत की वृद्धि। वर्ष 2017-18 में डिजिटल लेनदेन में 80 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। यह रकम कुल मिलाकर 1800 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।

07-कर अनुपालन में उल्लेखनीय वृद्धि
नोटबंदी के बाद कर अनुपालन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिससे सरकार का राजस्व बढ़ा है। सार्वजनिक कल्याण और बुनियादी ढांचा सृजन में इसका उपयोग किया जा रहा है। दरअसल नोटबंदी के बाद देश के टैक्स सिस्टम से 56 लाख नए करदाता जुड़े हैं। वहीं, पिछले साल के मुकाबले टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में 9.9 प्रतिशत से 26.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2015-16 में 66.53 लाख थी, जो 2016-17 में बढ़कर 84.21 लाख हो गई। पर्सनल इनकम टैक्स के एडवांस्‍ड टैक्स कलेक्शन में पिछले साल के मुकाबले 41.79 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
 

08- औपचारिक हो रही अर्थव्यवस्था
नोटबंदी ने सुनिश्चित किया है कि असंगठित श्रमिकों की संख्या को औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाया गया है और सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क के तहत विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्रदान किए गए हैं। इस कदम से गरीबों के लिए रहने की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित की गई है और दलालों को निकालकर उन्हें सशक्त बनाया गया है। दरअसल औपचारिक अर्थव्यवस्था में गरीबों को शामिल करने से कई सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, यह नोटबंदी के बाद अधिक आसान तरीके से संभव हो पा रहा है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा से उनके अधिकारों के संरक्षण दिये जा रहे हैं। 50 लाख श्रमिकों के बैंक खाते खोले गए, अब अब उनके सारे अधिकार मिलने शुरू हो गए हैं। एक करोड़ से अधिक श्रमिकों को प्रोविडेंट फंड का लाभ मिलने लगा है और ESIC में 1.3 करोड़ श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन भी किया या है।

09- आतंकवाद-नक्सलवाद पर नकेल
नोटबंदी के बाद आतंकियों और नक्सलियों की घृणित गतिविधियों पर जोरदार प्रहार हुआ। पत्थरबाजों को पैसे देने के लिए अलगाववादियों के पास धन की कमी हो गई। पत्थरबाजी की घटनाएं पिछले वर्ष की तुलना में घटकर मात्र एक-चौथाई रह गईं। नोटबंदी के बाद नवंबर 2015 से अक्टूबर 2016 की तुलना में पत्थरबाजी की घटनाएं नवंबर 2016 से जुलाई 2017 के बीच महज 639 घटनाएं हुईं। पत्थरबाजी में पहले 500 से 600 लोग होते थे, अब 20-25 की संख्या भी नहीं होती है। नोटबंदी के बाद नक्सली घटनाओं में 20 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई। अक्टूबर 2015 से नवंबर 2016 में 1071 नक्सली घटनाएं हुईं। वहीं 2016 के अक्टूबर से अब तक मात्र 831 रह गई।

10- जाली नोटों का खात्मा
नकली नोटों का कारोबार आतंकवादी गतिविधियों, तस्करी, मानव तस्करी और अन्य ऐसे अपराधों को बढ़ावा देता है। नोटबंदी के बाद जाली नोटों की बाजार में उपलब्धता बेहद कम हो गई है। रिजर्व बैंक ने 762 हजार नकली नोटों का पता लगाया था इनमें से ज्यादातर नकली नोट्स 500 रुपये के 41 प्रतिशत और 1000 के 33 प्रतिशत थे। नोटबंदी के बाद से जुलाई तक 11.23 करोड़ रुपये मूल्य के जाली नोट पकड़े गए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में 29 राज्यों से 1,57,797 जाली नोट पकड़े गए। 2016-17 में कुल 762 हजार जाली नोट पकड़े गए। जाली नोट पकड़े जाने में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 20% की वृद्धि हुई। इसके अलावा नोटबंदी के बाद ही ये पता लग पाया कि पांच सौ के हर 10 लाख नोट में औसत 7 और 1000 के हर 10 लाख नोटों में औसत 19 नोट नकली थे।

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