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क्यों नाहिद खानजी, इस देश में ‘धरती मां का बेटा’ कहलाना भी गुनाह है?

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यूपी बाल अधिकार संरक्षण आयोग की मेम्बर नाहिद लारी खान को ये गवारा नहीं है कि कोई ये कहे कि उसे यूपी की धरती ने गोद लिया है। भले ही वो इंसान इस देश का प्रधानमंत्री ही क्यों ना हो?- जो यूपी के बनारस से सांसद हैं, जिन्हें यूपी ने 71 सांसद दिए हैं, जिन्हें देश की सवा करोड़ जनता की लोकतांत्रिक व्यवस्था ने अपना सिरमौर बनाया है। नाहिद लारी खान की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई अधिकार नहीं है कि

• वो खुद को यूपी का बेटा कहें

• कि वो ये कहें कि वे यूपी की माटी का कर्ज उतारना चाहते हैं

• कि जिस धरती ने उन्हें इतना सम्मान दिया, आंचल दी, जगह दी- उनका कर्ज उतारने की उन्होंने ठान रखी है।

व्यक्तिगत रूप से नाहिद लारी खान ऐसा सोच सकती हैं क्योंकि इस देश का उदारवादी लोकतंत्र मजहबी सोच को भी उतनी ही आज़ादी देता है कि

• कोई मातृभूमि को माता कहने से मना कर दे

• चाहे जो कोई भी भारत माता की जय बोलने से इनकार कर दे

• चाहे कोई वंदे मातरम् बोलने को अपनी आज़ादी पर खतरा बताए

• चाहे किसी को योग से परहेज हो

• भले ही किसी को राष्ट्रगान गाने से तकलीफ हो….।

मगर, यूपी बाल अधिकार संरक्षण आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की सदस्य के रूप में नाहिदा इतनी जाहिल कैसे हो सकती हैं कि

• उन्हें चुनाव के नाजुक वक्त की पहचान ना हो?

• बिना सुने ही किसी को गुनहगार ठहरा दे?

• खुद लाखों-करोड़ों बच्चों की ओर से बोलने लगें?

• बिना सुने ही प्रधानमंत्री से माफी मांगने को कहें?

क्या नाहिदा इतनी अनपढ़ हैं कि वो ‘गोद लेना’ मुहावरे का अर्थ तक नहीं जानतीं? नहीं, ऐसा नहीं है। ना तो वो अनपढ़ हैं और ना ही वो उस संस्कृति से नावाकिफ हैं-

• जहां धरती को माता माना जाता है

• जहां किसान को भी धरती पुत्र कहते हैं

• जहां कहा जाता है कि ‘हम सब भारत मां की संतान’ हैं।

बात आगे बढ़ाने से पहले एक नज़र डाल लेना जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरदोई में ऐसा क्या कहा था जो यूपी बाल अधिकार संरक्षण आयोग की माननीय सदस्या नाहिद लारी खान को नागवार गुजर गया- “भगवान कृष्ण यूपी में पैदा हुए और गुजरात में कर्मभूमि बनाई. मैं गुजरात में पैदा हुआ और यूपी ने मुझे गोद ले लिया। मैं ऐसा बेटा नहीं हूं जो मां-बाप की चिंता नहीं करेगा। मैं मां-बाप को छोड़ने वाला बेटा नहीं हूं.”

अब आप मैडम नाहिद लारी खान साहिबा के सवाल सुनिए, जो उन्होंने देश के प्रधानमंत्री को भेजे गये नोटिस के माध्यम से किए हैं।

• यूपी में आपको गोद किसने लिया?

• जो बच्चे गोद लेने की प्रक्रिया में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, उनकी बारी आपने कैसे तोड़ दी?

• गोद लिए जाते वक्त आपने किस कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया?

नोटिस में नाहिदा ने कुछेक फैसले भी कर डाले हैं, उन पर भी जरा गौर फरमाइए। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नोटिस में लिखती हैं-

• आपने संसद द्वारा पारित बाल संरक्षण कानून की संवेदनशीलता को ठेस पहुंचाई है।

• ऐसे गरीब और अनाथ बच्चों का मजाक उड़ाया है जो कानून के दायरे में गोद लिए जाने की प्रक्रिया पूरी करते हैं।

वाह। नाहिद लारी खान साहिबा वाह। अभी तो आपने इल्ज़ाम ही बनाया था- स्वत: संज्ञान लेकर। अपराध है कि नहीं ये तय करने से पहले भेजा गया नोटिस है ये। और, इसी नोटिस में आपने कथित अभियुक्त को गुनहगार भी ठहरा दिया!
प्रधानमंत्री को नोटिस, नोटिस में सवाल और इल्जाम लगाने वाली नाहिद लारी खान कतई नासमझ नहीं हो सकतीं। फिर क्या है? क्या उनकी समझदारी पर राजनीति ने अपना रंग चढ़ा दिया है? इस सवाल का जवाब आपको मिल सकता है लेकिन उसके लिए यूपी में बाल संरक्षण का सच भी सामने लाना जरूरी है जो नाहिद लारी खान जैसे लोगों के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। नाहिदाजी जिम्मेदार ओहदे पर बैठकर कर क्या रही हैं जबकि-
• बाल मजदूरी में यूपी नंबर वन है।

• यूपी में कुल 21 लाख बाल मजदूर हैं।

• यूपी में 7.5 लाख बाल मजदूर निरक्षर हैं।

• 9 लाख से ज्यादा बाल मजूदर 6 महीने से ज्यादा समय से मजदूरी कर रहे हैं।

• हर दूसरे-तीसरे घर-दुकानों पर बाल मजदूर दिख जाते हैं।

• नेताओं और कथित समाजसेवियों के घर पर बाल मजदूर भरे पड़े हैं।

• कम उम्र में यौन शोषण के मामलों में यूपी नंबर वन है।

• यूपी में बाल अधिकार कहां हैं? कहां सो रहा है आयोग? कहां हैं नाहिद लारी खान जैसे जिम्मेदार लोग?

सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया जिनपर एक महिला के साथ बलात्कार और पीड़िता की नाबालिग बेटी के साथ छेड़छाड़ के आरोप हैं। कहां थी नाहिदाजी जब दोनों मां-बेटियां एक एफआईआर दर्ज कराने के लिए यूपी की सड़कों पर घूम रही थीं? किनका बाल अधिकार संरक्षण कर रही हैं नाहिदाजी? कहीं राजनीतिक स्वार्थ में गंगा नहा रहे लोगों के बाल अधिकार संरक्षण में व्यस्त तो नहीं रहीं?

हद हो गयी। जिन लोगों से अपनी जम्मेदारी संभल नहीं रही, वो प्रधानमंत्री की मीन-मेख निकालने में लगे हैं। छद्म धर्मनिरपेक्षता तो देश ने देखा है, समझा है, भोगा है…लेकिन ये छद्म राजनीति देश पहली बार देख रहा है जिसमें बाल अधिकार संरक्षण की सदस्य सीधे तौर पर इस्तेमाल होती दिख रही है। कब जागेगा देश?

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