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मोदी को मिलना चाहिए नोबल पुरस्कार

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विमुद्रीकरण के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और बढ़ी है। इस फैसले के बाद कैश पर आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव होने वाला है। लोगों के जीवन में बदलाव आने लगे हैं। इसे देखते हुए नरेंद्र मोदी को नोबल पुरस्कार देने की मांग पकड़ रही है। कई विद्वानों का मानना है कि नोटबंदी का फैसला लेने और फैसले को सही तरीके लागू कराने के लिए अर्थशास्त्र क्षेत्र का नोबल पुरस्कार नरेन्द्र मोदी को मिलना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये मूल्य  के सभी पुराने नोट बंद करने का फैसला लिया। राजनीतिक रूप से ये देश के लिए ऐतिहासिक फैसला था। इस फैसले को जिस मजबूती के साथ देश के सामने रखा, वह काबिले तारीफ है। इस एक फैसले से देश की छवि विश्व के सामने बदल रही है। आम जनता को प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों पर विश्वास है। तमाम विरोधी पार्टियों के विरोध और रोजमर्रा की परेशानियों के बाद भी जन सामान्य प्रधानमंत्री के फैसले के साथ खड़ा है।

विमुद्रीकरण के फैसले के बाद प्रत्येक भारतीयों के जीवन में बदलाव दिखने लगा है। लोग धीरे-धीरे कैश से कैशलेस सोसाइटी की ओर बढ़ रहे हैं। नकदी ढोने, उसके चोरी होने की दिक्कतों से मुक्त हो रहे हैं। देश में जितना अधिक कैशलेस लेनदेन होगा, भ्रष्टाचार उतना ही कम होगा। इसके अलावा हर चीज जब बैंकिंग ट्रैक पर रहेगा तो कोई भी अपनी आय को अघोषित नहीं रख पाएगा। फिर काला धन भी जमा होने की स्थिति नहीं बनेगी।

काला धन जमा नहीं होगी तो राजनीति क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से मुक्त होगा। वोट बैंक को नोटों के बल पर खरीदा नहीं जा सकेगा। देश की लोकतंत्रीय व्यवस्था पर विश्वास और गहरा होगा। ऐसे में, नोबेल पुरस्कार कमेटी को अर्थशास्त्र क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नोबल पुरस्कार देने पर विचार करना चाहिए। इस फैसले के बाद देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव हो रहे हैं। ऐसे में यह फैसला नोबेल पुरस्कार के योग्य है।

प्रधानमंत्री मोदी को नोबल पुरस्कार मिले। इस दावे की पुष्टि करने के लिए नोबल पुरस्कार कमेटी के समक्ष एक उदाहरण है – वर्ष 2002 में वेरोन स्मिथ और डेनियल कोहनमैन को नोबल पुरस्कार दिया गया था। आपको याद होगा कि वेरोन स्मिथ और डेनियल कोहनमैन को जिस शोध पत्र के लिए अर्थशास्त्र के लिए नोबल पुरस्कार मिला था। उस शोध का आधार बना शिकागो के स्टॉक एक्सचेंज।

अगर किसी को एक स्टॉक एक्सचेंज के अध्ययन के आधार पर अर्थशास्त्र का नोबल दिया जा सकता है तो उस आधार पर तो नरेंद्र मोदी का दावा इसलिए सटीक बनता है क्योंकि उनके विमुद्रीकरण के फैसले ने तो विशाल देश भारत और उसके सवा सौ करोड़ देशवासियों की जिंदगी में बदलाव ला दिया है।

अर्थशास्त्र को लेकर नोबल पुरस्कार देने वाली समिति को नरेंद्र मोदी को यह पुरस्कार देना चाहिए। वैसे नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनके विजन-मिशन के साथ लिए गए निर्णय को देखते हुए नोबल पुरस्कार देने वाली समिति भी भारत के प्रधानमंत्री को पुरस्कृत करके खुद को सम्मानित महसूस करेगी।

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