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न्यू इंडिया की ओर बड़ा कदम, जीसेट-19 कक्षा में स्थापित, अब अंतरिक्ष यात्री भेजने में सक्षम होगा भारत

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प्रधाानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना पूरा हो गया है। अंतरिक्ष में भारत ने ऐसी छलांग लगायी है जिसके बाद अब भारत अंतरिक्ष में इंसान को भेजने में सक्षम हो गया है। अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन के पास ही यह क्षमता है। 

देश के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3-डी1 के जरिए सबसे वजनदार संचार उपग्रह जीसेट-19 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कामयाबी के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है।

इस रॉकेट का भार 200 वयस्क हाथियों के बराबर है। GSLV Mk III रॉकेट को ISRO ने FAT BOY नाम दिया है। इसकी खासियत ये है कि ये ISRO द्वारा निर्मित अबतक का सबसे भारी (640 टन) लेकिन, सबसे छोटा (43 मीटर) रॉकेट है। 200 परीक्षणों के बाद ISRO ने इसे सोमवार 5 जून को अंतरिक्ष में भेजने में सफलता हासिल की। इस रॉकेट के माध्यम से Gsat-19 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया गया। Gsat-19 एक संचार उपग्रह जो देश में इंटरनेट की स्पीड में क्रांति ला देगा। 

जीएसएलवी मार्क3-डी1 भूस्थैतिक कक्षा में 4,000 किलो और पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलो तक के पेलोड या उपग्रह ले जाने की क्षमता रखता है। रॉकेट में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन लगा है। इसके सफल प्रक्षेपण से भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का भारत का रास्ता साफ होगा। अब तक 2,300 किलो से ज्यादा वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो को विदेशी रॉकेटों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने इसे ऐतिहासिक दिन करार दिया है।

इसरो के पूर्व प्रमुख व सलाहकार डॉ राधाकृष्णन ने इस सफलता को मील का पत्थर करार दिया है। उन्होंने कहा, इसने प्रक्षेपण उपग्रह की क्षमता 2.2-2.3 टन से करीब दोगुनी 3.5-4 टन कर दी है। हम अब संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर हो जाएंगे।

भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार सफलता हासिल की है। आइए डालते हैं हालिया प्रगति पर नज़र :

GPS से भी 6 गुना बेहतर ‘नाविक’ 

अंग्रेजी समाचार पोर्टल टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार भारत का अपना GPS सफलतापूर्व काम करने लगा है और अगले साल तक देश की जनता भी इसका इस्तेमाल कर सकेगी। सबसे बड़ी बात ये है कि देशी NavIC अमेरिकी GPS से कहीं अधिक अचूक है। खास बात ये है कि NavIC यानी ‘Navigation with Indian Constellation’ का हिंदी अर्थ नाविक है, जो नाम खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिया है। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष रिसर्च संगठन (ISRO) ने एकबार फिर से अंतरिक्ष की दुनिया में अपनी कामयाबियों की कड़ी में एक और झंडा गाड़ दिया है।

वैज्ञानिकों ने NavIC को इस तरह से डिजाइन किया है कि इस्तेमाल करने वालों को देश के अंदर किसी भी जगह की सटीक से सटीक जानकारी मिल सकेगी। जानकारी के अनुसार अब अगर आप कहीं भी रास्ता भटक जाएं, तो ‘NavIC’ आपकी मदद के लिए हाजिर होगा। उम्मीद है कि 2018 की शुरुआत में ही जनता इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देगी। इसके लिए ISRO ने पिछले साल 28 अप्रैल को IRNSS-1G (Indian Regional Navigation Satellite System) सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा था। इसी के बाद प्रधानमंत्री ने इस शुद्ध देशी GPS का नाम NavIC (Navigation with Indian Constellation) दिया था। जानकारों के अनुसार अमेरिकी GPS, 24 सैटेलाइट्स का समूह है, इसीलिए उसका दायरा बहुत अधिक है और वो पूरी दुनिया पर नजर रख सकता है। लेकिन सिर्फ 7 सैटेलाइट के समूह वाले NavIC का दायरा सिर्फ भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों तक सीमित है। लेकिन अमेरिकी GPS की तुलना में इसकी सू्क्ष्मता बहुत ही ज्यादा सटीक है। NavIC की accuracy 5 मीटर है, जबकि GPS की accuracy 20-30 मीटर की है। अभी तक अमेरिका के अलावा, रूस और चीन के पास ही इस तरह का नेविगेशन सिस्टम है।

हाल के कुछ वर्षों में ISRO ने अंतरिक्ष की दुनिया में अनेक सफलताएं प्राप्त की हैं, जो इस तरह हैं-

तीन साल में मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान सैटेलाइट लॉन्चिंग के क्षेत्र में भारत ने विश्व में एक बहुत बड़ा स्थान बना लिया है। ISRO ने एक बार में अलग-अलग देशों के 104 सैटेलाइट अंतरिक्ष में पहुंचाकर देश को जो प्रतिष्ठा दिलाई है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है। अगर हमारे वैज्ञानिकों के चलते देश का नाम रोशन हो रहा है, तो इसके पीछे देश के मजबूत और दूरदृष्टि वाले राजनीतिक नेतृत्व का हाथ है। पीएम मोदी के विजन का ही परिणाम है कि भारत ने इकट्ठे 104 सैटेलाइट छोड़कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। साथ ही अपने खर्च पर दक्षिण-एशियाई देशों के लिए सैटेलाइट का प्रक्षेपण करके क्षेत्रीय सहयोग और सह-अस्तित्व की भावना को भी धरातल पर उतारने में सफल रहा है। इन्हीं सफलताओं से प्रभावित होकर NASA ने अब ISRO के साथ मिलकर एक सैटेलाइट बनाने का निर्णय लिया है।

अर्थ मॉनिटरिंग सैटेलाइट बनाएंगे ISRO-NASA
हाल के समय में ISRO के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई कीर्तिमान बनाए हैं। इसी से प्रभावित होकर अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने ISRO से हाथ मिलाकर रिसर्च के क्षेत्र में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। समाचार पोर्टल जनसत्ता के अनुसार अमेरिकन स्पेस एजेंसी NASA और ISRO के साथ मिलकर जो अर्थ मॉनिटरिंग सैटेलाइट बनाएंगे उसका नाम होगा NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar satellite)। माना जा रहा है कि ये दुनिया की सबसे मंहगी इमेजिंग सैटेलाइट हो सकती है। बताया जा रहा है कि इसकी लागत करीब 9,600 करोड़ रुपये हो सकती है। माना जा रहा है कि इस सैटेलाइट से भूकंप, ज्वालामुखी, जंगल में फैली आग, समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी जैसी घटनाओं पर नजर रखी जा सकेगी और उसका अध्ययन किया जा सकेगा।

विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता की खोज
NASA और ISRO मिलकर सिर्फ पहला सैटेलाइट ही नहीं तैयार कर रहे हैं। स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में दुनियाभर में प्रतिष्ठित दोनों संगठन विश्व की संभवत: सबसे प्राचीन सभ्यता के राज भी तलाशने वाले हैं। समाचार पोर्टल नवभारत टाइम्स के अनुसार हरियाणा सरकार फतेहाबाद जिले के कुणाल गांव में सरस्वती नदी के पुनरुद्धार के लिए जो उत्खनन का कार्य करवा रही है उसमें अति विकसित हड़प्पा से भी पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। बताया जा रहा है कि वो सभ्यता 6 हजार साल से भी अधिक पुरानी हो सकती है। जानकारी के अनुसार इस साल अक्टूबर से ISRO के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर NASA की टीम जांच में जुटेगी और इस बात का अध्ययन करेगी कि क्या हरियाणा के कुणाल गांव में मिले सभ्यता के अवशेष दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता के हैं? बताया जा रहा है कि वहां हुई अबतक की खुदाई में आभूषण, मनके, हड्डियों के मोती मिले हैं।

दक्षिण एशिया के लिए ISRO बना वरदान

इसरो ने इसी महीने की 5 तारीख को श्रीहरिकोटा में साउथ एशिया सैटेलाइट GSAT-9 को लॉन्च किया। इस सैटेलाइट से पाकिस्तान को छोड़कर बाकी साउथ एशियाई देशों को कम्युनिकेशन की सुविधा मिल रही है। इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट पर 450 करोड़ रुपए का खर्च आया है। यह सैलेटाइट 2230 किलो का है जिससे कम्युनिकेशन की सुविधा मिलेगी। ये उपग्रह प्राकृतिक संसाधनों का खाका बनाने, टेली मेडिसिन, शिक्षा क्षेत्र, आईटी और लोगों से लोगों का संपर्क बढ़ाने के क्षेत्र में पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक वरदान साबित होगा। इसके माध्यम से भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी जैसी आपदाओं के समय संवाद कायम करने में मदद मिल सकेगी।

एक साथ 104 सैटेलाइट छोड़कर रचा इतिहास

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो ने इसी साल एक साथ 104 उपग्रह लांच करके एक नया इतिहास रच दिया। सारी दुनिया इसरो की इस सफलता को देखकर दंग रह गई। इससे पहले एक अभियान में इतने उपग्रह एक साथ कभी नहीं छोड़े गए। एक अभियान में सबसे ज्यादा 37 उपग्रह भेजने का विश्व रिकार्ड रूस के नाम था। यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। इस अभियान में भेजे गए 104 उपग्रहों में से तीन भारत के थे। विदेशी उपग्रहों में 96 अमेरिका के तथा इजरायल, कजाखिस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक थे। इससे पहले इसरो ने जून 2015 में एक मिशन में 23 उपग्रह लांच किए थे। 

अन्य बड़ी उपलब्धियां-

मंगलयान पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंचने में कामयाब रहने वाला भारत पहला देश है। अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर गार्डन में मंगलयान अभियान की सफलता का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अहमदाबाद में ऑटो रिक्शा से एक किलोमीटर जाने पर 10 रुपए का खर्च आता है, लेकिन हमारे मंगलयान द्वारा तय की गई यात्रा पर तो महज सात रुपए प्रति किलोमीटर का खर्च आया। उन्होंने कहा कि हमारे मंगल अभियान का खर्च हॉलीवुड की एक चर्चित साइंस फिक्शन फिल्म की लागत से भी कम था।

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