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मोदी सरकार की सख्ती से बैंकों के फंसे नौ लाख करोड़ एनपीए में से 4 लाख करोड़ रुपये वापस

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेंस की नीति पर काम कर रही है। वित्तीय सेक्टर में किसी भी तरह की धोखाधड़ी करने वालों और बैंकों का पैसा लेकर भागने वालों की अब खैर नहीं। मोदी सरकार की सख्ती से बैंकों के फंसे हुए नौ लाख करोड़ रुपये के एनपीए में से 4 लाख करोड़ रुपये वापस आ चुके हैं। कंपनी मामलों के मंत्रालय में सचिव इंजेती श्रीनिवास ने बताया कि ऋणशोधन व दिवाला संहिता (IBC)-2016 बनाए जाने से बैंकों के फंसे हुए नौ लाख करोड़ रुपये के कर्ज के आधे से कम की रकम प्रणाली में वापस आ चुकी है। उन्होंने कहा कि इन मामलों में अच्छे परिणाम आए हैं, जिससे व्यवस्था में विश्वास बढ़ाने में मदद मिलेगी। सरकार ने डूबे हुए कर्ज को लेकर द्विआयामी रणनीति अपनाई है। एक तरफ, सरकार ने आईबीसी को अमल में लाया है, जिसके तहत छह माह की अवधि के लिए ऋणशोधन समाधान की प्रक्रिया शुरू की गई है, तो दूसरी तरफ सरकार ने सरकारी बैंकों के पुनर्पूजीकरण के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दी है।

मोदी सरकार ने तमाम ऐसे कदम उठाए हैं, जिनके बाद बैंकों का पैसा हड़पने वालों की रातों की नींद उड़ गई है। अब कोई भी कारोबारी सपने में भी घोटाला करने की सोच भी नहीं सकता है

एलओयू जारी करने से रोक
केंद्र सरकार के सख्त निर्देशों के चलते भारतीय रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी करने से रोक दिया है। रिजर्व बैंक की अधिसूचना के बाद अब कोई भी कॉमर्सियल बैंक आयात के लिए ट्रेड क्रेडिट के तौर पर एलओयू और एलओसी जारी नहीं कर पाएगा। जाहिर है कि नीरव मोदी ने इसी तरह के एलओयू के जरिए पीएनबी को हजारों करोड़ का चूना लगाया है। दरअसल लेटर ऑफ अंडरटेकिंग एक तरह की बैंक गारंटी होती है, जो विदेशों से होने वाले निर्यात के भुगतान के लिए जारी की जाती है। इसका मतलब यह है कि अगर लोन लेने वाला इस लोन को नहीं चुकाता है, तो बैंक पूरी रकम ब्याज समेत बिना शर्त चुकाएगा। एलओयू को बैंक एक निश्चित समय के लिए जारी करता है। बाद में जिसे एलओयू जारी किया गया, उससे पूरा पैसा वसूला जाता है।

50 करोड़ से अधिक के NPA की जांच सीबीआई को
मोदी सरकार ने सभी सरकारी बैंकों को 50 करोड़ से अधिक के NPA की जांच करने और कुछ भी गड़बड़ी मिलने पर मामला सीबीआई को सौंपने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक कानून, फेमा, और आयात-निर्यात नियमों के उल्लंघन से जुड़े मामलों की जांच में प्रवर्तन निदेशालय और राजस्व खुफिया निदेशालय को शामिल करने का भी निर्देश दिया है। बड़े वित्तीय लोन देने में बैंकों के बड़े अधिकारी शामिल होते हैं, इसके लिए मोदी सरकार ने सभी बैंकों को वरिष्ठ अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही सभी बैंकों से अपनी कमियों को पहचानने और इन्हें दूर करने का निर्देश दिया है।

चार्टर्ड अकाउंटेंट पर नकेल की तैयारी
तीसरा सख्त कदम जो मोदी सरकार उठा रही है, वह है ऑडिटर्स और चार्टर्ड अकाउंटेंट की निगरानी। घोटालों को अंजाम देने और घोटालेबाजों की मदद करने में ऑडिटर्स की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। देश में इनके कामकाज की निगरानी का कोई पुख्ता तंत्र नहीं है। इसलिए मोदी सरकार ऑडिटर्स को रेग्युलेट करने और उन पर नजर रखने के लिए एक खास निगरानी एजेंसी बना रही है। इसके साथ ही केंद्र सरकार नेशनल फाइनेंसियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) को कंपनी ऐक्ट के तहत लाने का विचार बना रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से देश की बागडोर संभाली है, भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों की शामत आ गई है। एक नजर डालते हैं मोदी सरकार के उन फैसलों पर जिनसे भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है।

26 मई, 2014 को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान संभाली थी तो विरासत में अर्थव्यवस्था की खराब हालत मिली। बैंकिंग सिस्टम में भ्रष्टाचार भीतर गहरे तक समाया हुआ था। एनपीए यानी गैर निष्पादन योग्य ऋणों की रकम लगातार बढ़ती जा रही थी और कई कंपनियां खुद को दिवालिया घोषित कर रही थीं। कुल मिलाकर भारत की छवि एक भ्रष्टाचार और घोटालों से भरे देश के रूप में बन गई थी, जहां गबन, घोटाले और फर्जीवाड़ा का ही बोलबाला था। लेकिन पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ठानी और इसके लिए राजनीतिक कीमत चुकाने से भी परहेज नहीं किया।

अनरेग्युलेटेड डिपॉजिट स्कीम पर रोक के लिए विधेयक को मंजूरी
20 फरवरी, 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में चिट फंड अधिनियम में संशोधन कराने का भी निर्णय लिया गया। इस संशोधन के कानून बन जाने से लोगों को अन्य वित्तीय निवेश योजनाओं में धन लगाने का एक अधिक व्यवस्थित अवसर मिल सकेगा। इस कानून के लागू होने पर बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरंसी पर भी लगाम लग जाएगा।

अवैध जमा योजनाओं पर लग जाएगी रोक
इस विधेयक का लक्ष्य देश में चल रही अवैध जमा योजनाओं पर रोक लगाना है। ऐसी योजनाएं चलाने वाली कंपनियां/संगठन मौजूदा नियामकीय खामियों और प्राशासनिक उपायों की कमजोरी का फायदा उठा कर भोले भाले लोगों की मेहनत की कमाई को ठग लेती हैं। प्रस्तावित संशोधन इस क्षेत्र में व्यवस्थित वृद्धि लाने और इस क्षेत्र के सामने रुकावटों को दूर करना है। इस संशोधन से लोगों को अन्य वित्तीय उत्पादों में निवेश के अधिक अवसर प्राप्त होंगे।

फरार आर्थिक अपराधी विधेयक
नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों को कानून के शिकंजे में कसने के इरादे से केंद्र सरकार ‘फरार आर्थिक अपराधियों’ की संपत्तियां जब्त करने के लिए कड़ा कानून बना रही है। ‘फरार आर्थिक अपराधी विधेयक, 2017’ के मसौदे में प्रावधान किया गया है कि जो आर्थिक अपराधी भारतीय कानून से बचे रहते हैं, वे इस प्रक्रिया से न बच पाएं।

मसौदे के मुख्य बिंदु-

  • आर्थिक अपराध विधेयक के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को फरार आर्थिक अपराधी घोषित कर दिया जाता है तो उसकी संपत्ति जब्त की जा सकेगी।
  • सिर्फ वे मामले इस विधेयक के दायरे में आएंगे, जिनमें अपराध की राशि 100 करोड़ रुपये से ज्यादा हो, जिससे न्यायालयों पर बहुत ज्यादा भार नहीं पड़े।
  • विधेयक में पीएमएलए के तहत विशेष न्यायालय गठित करने का प्रावधान, जो व्यक्ति को ‘फरार आर्थिक अपराधी’ घोषित करेगा।
  • इस अधिनियम के तहत कार्रवाई तब बंद कर दी जाएगी जब कथित भगोड़ा आर्थिक अपराधी भारत वापस आ जाएगा और अपने को उचित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर देगा।

संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा (Asset Quality Review)
मोदी सरकार ने कर्ज नहीं चुकाने वाले बड़े बकायेदारों की जिम्मेदारी तय की है और विभिन्न उपायों के जरिए बैंकों को मजबूत किया जा रहा है। नियमित रूप से कर्ज की वापसी नहीं करने के बावजूद 2008- 2014 के बीच बड़े कर्जदारों को बैंकों से कर्ज देने के लिये दबाव डाला जाता रहा। वास्तव में जो कर्ज NPA श्रेणी में जा चुके थे उन्हें नियमित कर्ज बनाये रखने के लिए कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन के तहत उनका पुनर्गठन किया गया। 2015 की शुरुआत में, वर्तमान सरकार ने एसेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) के बाद एनपीए की समस्या को मानते हुए वर्गीकृत किया। पीएसबी में एनपीए की सही मात्रा की मान्यता ने मार्च 2017 तक एनपीए की रकम 2.78 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7.33 लाख करोड़ रुपये की कर दी।

इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड
इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 (आईबीसी) के कानून बन जाने से दिवालिया कंपनियों के प्रोमोटर्स की मुश्किलें बढ़ गई हैं और वे दोबारा कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं खरीद पा रहे हैं। बैंकरप्सी कानून में होने वाले बदलाव से सरकारी बैंकों को बड़ा फायदा हो रहा है। मोदी सरकार ने 2016 में बैंकरप्सी को बैंकरप्सी कोड के तहत लाया है। सरकार ने कोड 1 अक्टूबर, 2017 को नियामक के रूप में भारतीय दिवालियापन और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) की स्थापना की थी।

पीएसबी पुनर्पूंजीकरण (PSB Recapitalisation)
24 अक्टूबर 2017 को, अगले दो वर्षों में 2.11 लाख करोड़ रूपये की एक पूर्ण पीएसबी पुनर्पूंजीकरण योजना की घोषणा की गई। इसमें पूंजी अधिग्रहण योजना (capital infusion plan) का प्रमुख घटक (64%) के रूप में पुनर्पूंजीकरण बांड की घोषणा की गई। 24 जनवरी, 2018 को 88,000 करोड़ रुपये की पूंजी योजना की घोषणा के साथ, बैंक पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हुई।

एफआरडीआई विधेयक (FRDI Bill)
ड्राफ्ट एफआरडीआई विधेयक एक और सक्रिय कदम है, जहां एक संकल्प निगम (आरसी) प्रस्तावित किया गया है, जो कि वित्तीय संस्थानों में संकट की शुरुआती चेतावनी के संकेतों की पहचान करेगा। यह भविष्य में दिवालिया होने से वित्तीय संस्थानों की रक्षा करेगा, और यदि ऐसा हो, तो निपटने के लिए एक ढांचा प्रदान करेगा। आज तक कोई ऐसी प्रणाली भारत में मौजूद नहीं है।

पूंजी अधिग्रहण योजना
24 अक्टूबर 2017 को, अगले दो वर्षों में 2.11 लाख करोड़ रूपए की एक पूर्ण पीएसबी पुनर्पूंजीकरण योजना की घोषणा की गई। इसमें पूंजी अधिग्रहण योजना (capital infusion plan) का प्रमुख घटक (64%) के रूप में पुनर्पूंजीकरण बांड की घोषणा की गई। 24 जनवरी, 2018 को 88,000 करोड़ रुपये की पूंजी योजना की घोषणा के साथ, बैंक पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हुई।

FRDI विधेयक
प्रस्तावित वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक, 2017 में जमाकर्ताओं के ‘वर्तमान अधिकारों की सुरक्षा की गई है और उसे बढ़ाया गया है और वित्तीय कंपनियों के व्यापाक और कुशल समाधान शासन लाने की कोशिश है। दरअसल वर्तमान में समाधान के लिए कोई व्यापक और एकीकृत कानूनी ढांचा नहीं है, जिसमें ‘भारत में वित्तीय कंपनियों का तरलीकरण भी शामिल है। एफआरडीआई विधेयक एक ‘समाधान निगम’ और एक व्यापक शासन स्थापित करने का प्रस्ताव करता है ताकि एक असफल वित्तीय फर्म को समयबद्ध और व्यवस्थित समाधान के लिए सक्षम किया जा सके।

बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम
Benami Transactions (Prohibition)Act भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो बेनामी लेनदेन पर रोक लगाता है। 1988 के में 1 नवंबर, 2016 को संशोधित कर कानून को कड़ा बनाया है। संशोधित बिल में बेनामी संपत्तियों को जब्त करने और उन्हें सील करने का अधिकार है। इसके साथ ही जुर्माने के साथ कैद का भी प्रावधान है। भारत में काले धन की बढ़ती समस्या को खत्म करने की दिशा में एक और कदम है। दरअसल बेनामी संपत्ति वह है जिसकी कीमत किसी और ने चुकाई हो लेकिन नाम किसी दूसरे व्यक्ता का हो। यह संपत्ति पत्नी, बच्चों या किसी रिश्तेदार के नाम पर खरीदी गई होती है।

भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार ने कई और कार्य किए हैं। आइये इनमें से कुछ प्रमुख कार्यों को जानते हैं-

आधार से योजनाओं को जोड़ना
यूआईडीएआई यानि यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथारिटी ऑफ इंडिया अब तक देश के 98 फीसदी व्यस्कों को आधार से जोड़ चुकी है। बाकी बचे 1.9 करोड़ लोगों को आधार से जल्दी ही जोड़ लिया जाएगा। भ्रष्टाचार मिटाने की ओर इसे एक अहम कदम माना जा रहा है। अब तक 78 प्रतिशत एलपीजी कनेक्शन, 61 प्रतिशत राशन कार्ड, 69 प्रतिशत मनरेगा कार्ड और 30 करोड़ बैंक खाते आधार नंबर से जोड़े जा चुके हैं।  आधार लिंक के कारण पिछले साढ़े तीन साल में 3 करोड़ 77 लाख फर्जी एलपीजी गैस कनेक्शन का पर्दाफाश हुआ, मिड डे मील पाने वाले 4 लाख 40 हजार फर्जी छात्रों का पता चला, 2 करोड़ 33 लाख फर्जी राशन कार्डों का खुलासा हुआ, मनरेगा में पंजीकृत लाखों फर्जी लोगों को हटाया गया, 1 लाख 30 हजार फर्जी कॉलेज शिक्षकों का भंडाफोड़ किया गया। आधार के कारण तमाम सरकारी विभागों और मंत्रालयों से लाभ लेने वाले लोगों के फर्जीवाड़े का पता चल रहा है। इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है, बल्कि सरकार का हजारों करोड़ रुपया भी बच रहा है।

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर
एलपीजी उपभोक्ताओं के लिए केंद्र सरकार की प्रत्यक्ष हस्तांतरित लाभ यानि पहल योजना की शुरुआत 1 जनवरी, 2015 से हुई।  डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के मामले में केंद्र सरकार ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है। इस वित्त वर्ष में 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम को सीधे लाभार्थी के खाते में ट्रांसफर किया गया है। सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का पैसा सीधे खातों में भेजकर यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से सरकार ने 2014 से लेकर अबतक करीब 75 हजार करोड़ रुपये की बचत की है। नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक बुधवार को डीबीटी पेमेंट इस वित्त वर्ष में 1,00,144 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। सरकार ने 2016-17 में डीबीटी के जरिए 74,707 करोड़ जारी किए थे जबकि 2013-14 में यूपीए के कार्यकाल के दौरान 7,367 करोड़ रुपये का डीबीटी हुआ था। खबर के अनुसार ग्रामीण रोजगार योजना और सब्सिडी वाली रसोई गैस के लिए इस वित्त वर्ष में 63 करोड़ से ज्यादा लोगों को डीबीटी पेमेंट मिला है जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह आंकड़ा 35 करोड़ का था।

इस तरह डीबीटी से देश की आधी आबादी को बिना किसी बिचौलिए या लीकेज के सीधे भुगतान का फायदा मिल रहा है। खबर के अनुसार अनुसार योजना और सब्सिडी का पैसा गलत हाथों में जाने से रुकने से सरकार की कुल बचत लगभग 75,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। सरकार सभी सरकारी योजनाओं ( करीब 450) को डीबीटी के तहत लाने जा रही है। अभी डीबीटी के तहत करीब 412 योजनाएं है और इसी वित्तीय वर्ष में 20 अन्य योजनाओं को भी आधार से लिंक किया जा सकेगा।

डिजिटलाइजेशन पर जोर
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की दिशा में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री के प्रयास से ही आज भारत डिजिटल लेनदेन में सुपर पावर बनने की राह पर है। नोटबंदी के बाद खुदरा डिजिटल भुगतान में काफी वृद्धि हुई है और डिजिटल भुगतान के माध्यम आईएमपीएस से लेनदेन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल लेनदेन के लिए लोग सबसे ज्यादा भरोसा इमिडिएट पेमेंट सर्विस (आईएमपीएस) पर कर रहे हैं। आईएमपीएस के माध्यम से लेनदेन एक साल में 86 प्रतिशत बढ़कर 98 मिलियन हो गई है और इसके द्वारा कुल लेनदेन 102% बढ़कर 87,106 करोड़ रुपये हो गया है। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) पेमेंट एप BHIM के द्वारा होने वाले भुगतान में 74 गुणा बढ़ोतरी देखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, मोबाइल वॉलेट और नेशनल इलेक्ट्रोनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) में बढ़ोतरी देखी गई। मोबाइल वॉलेट से होने वाले ट्रांजेक्शन में 22.5 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई और यह 320 मिलियन हो गया। इसके द्वारा कुल 14334 करोड़ का ट्रांजेक्शन हुआ।

जन धन योजना- इसके तहत गरीबों के लिए अब तक लगभग 31 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं। सरकारी योजनाओं में सब्सिडी बिचौलियों के हाथों से दिये जाने के बजाय सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचने लगी है।

कर बचाने में मददगार देशों के साथ कर संधियों में संशोधन मॉरीशस, स्विटजरलैंड, सऊदी अरब, कुवैत आदि देशों के साथ कर संबंधी समझौता करके सूचनाओं को प्राप्त करने का रास्ता सुगम कर लिया गया है।

नोटबंदी- कालेधन पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के बाद सबसे बड़ा कदम 08 नवंबर 2016 को उठाया। नोटबंदी के जरिए कालेधन के स्रोतों का पता लगा। लगभग तीन लाख ऐसी शेल कंपनियों का पता चला जो कालेधन में कारोबार करती थी। इनमें से लगभग दो लाख कंपनियों और उनके 1 लाख से अधिक निदेशकों की पहचान करके कार्रवाई की जा रही है।

• फर्जी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई- सीबीआई ने छद्म कंपनियों के माध्यम से कालेधन को सफेद करने वाले कई गिरोहों का भंडाफोड़ किया है। देश में करीब तीन लाख ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने अपनी आय-व्यय का कोई ब्योरा नहीं दिया है। इनमें से ज्यादातर कंपनियां नेताओं और व्यापारियों के कालेधन को सफेद करने का काम करती हैं।

• रियल एस्टेट कारोबार में 20,000 रुपये से अधिक कैश में लेनदेन पर जुर्माना- रियल एस्टेट में कालेधन का निवेश सबसे अधिक होता था। पहले की सरकारें इसके बारे में जानती थीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं करती थीं। इस कानून के लागू होते ही में रियल एस्टेट में लगने वाले कालेधन पर रोक लग गई।

• राजनीतिक चंदा- राजनीतिक दलों को 2,000 रुपये से ज्यादा कैश में चंदा देने पर पाबंदी। इसके लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लाने का ऐलान किया गया।

• स्रोत पर कर संग्रह- 2 लाख रुपये से अधिक के कैश लेनदेन पर रोक लगा दी गई है। इससे ऊपर के लेनदेन चेक, ड्रॉफ्ट या ऑनलाइन ही हो सकते हैं।

• सब्सिडी में भ्रष्टाचार पर नकेल- गैस सब्सिडी को सीधे बैंक खाते में देकर, मोदी सरकार ने हजारों करोड़ों रुपये के घोटाले को खत्म कर दिया। इसी तरह राशन कार्ड पर मिलने वाली खाद्य सब्सिडी को भी 30 जून 2017 के बाद से सीधे खाते में देकर हर साल 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत की जा रही है। इससे निचले स्तर पर चल रहे भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म करने में कामयाबी मिली है।

• ऑनलाइन सरकारी खरीद- मोदी सरकार ने सरकारी विभागों में सामानों की खरीद के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया लागू कर दी गई है। इसकी वजह से पारर्दशिता बढ़ी है और खरीद में होने वाले घोटालों में रोक लगी है।

• प्राकृतिक संसाधानों की ऑनलाइन नीलामी- मोदी सरकार ने सभी प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसकी वजह से पारदर्शिता बढ़ी है और घोटाले रुके हैं। यूपीए सरकार के दौरान हुए कोयला, स्पेक्ट्रम नीलामी जैसे घोटालों में देश का इतना खजाना लूट लिया गया था कि देश के सात आठ शहरों के लिए बुलेट ट्रेन चलवायी जा सकती थी।

• आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की जियोटैगिंग- सड़कों, शौचालयों, भवनों, या ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले सभी निर्माण की जियोटैगिंग कर दी गई है। इसकी वजह से धन के खर्च पर पूरी निगरानी रखी जा रही है। 

इन कदमों के साथ ही सरकार ने दशकों से चली आ रही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में लिप्त कार्यसंस्कृति को बदलने का काम किया। सरकारी योजनाओं में दूरदर्शिता और समयबद्धता के साथ पारदर्शिता भी स्पष्ट दिखने लगी है।

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