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मोदी सरकार की नीति, कूटनीति और रणनीति से बढ़ी देश के आतंकमुक्त होने की आस

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जिस पार्टी के अपने शासनकाल में आतंक सिर चढ़कर बोल रहा था, वह पार्टी या उसके नेता आतंक विरोधी मोर्चे पर मोदी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए तो क्या यह शोभा देता है? कांग्रेस और उसके नेता सीमा पार से होने वाली आतंकी घुसपैठ का हवाला देकर सरकार को जब घेरने का प्रयास करते हैं तो दो बड़े तथ्यों पर परदा डालने का उनका प्रयास सीधा उजागर हो जाता है। इनमें से एक तो है अपने शासन के दौरान आतंक पर चोट करने में कांग्रेस की नाकामी और दूसरी है आतंक के सफाये की दिशा में मोदी सरकार को लगातार मिल रही कामयाबी।

एक वो दौर था, एक ये दौर है

यूपीए शासनकाल में आतंकवाद से निपटने को लेकर रवैया कितना ढुलमुल था यह इसी से पता चलता है कि आये दिन आम नागरिकों के जेहन में यह खतरा समाया रहता था कि ना जानें कहां फिर आतंकी अपनी नापाक हरकत को अंजाम दे दें। आतंकी दिल्ली और मुंबई समेत देश के कई शहरों को दहलाते रहे थे और तब की सरकार वारदात के बाद महज खानापूर्ति जैसी कार्रवाई करके रह जाती थी। 26/11 हमले में तो तत्कालीन यूपीए सरकार की पूरी तरह से कलई खुल गई थी कि आतंक से लड़ने को लेकर भी उसकी तैयारियां कितनी लचर थीं। नतीजा कई पुलिस अफसर शहीद हुए और बड़ी तादाद में निर्दोष नागरिक आतंकियों के शिकार बने। मोदी सरकार में आतंकी ही नहीं उनके आकाओं पर भी शिकंजा सख्त है जिससे देशवासियों में पहले से कहीं अधिक राहत है।

3.5 साल में ही तोड़ दी आतंक की कमर

मोदी सरकार ने आतंक पर नीति, कूटनीति और रणनीति इन तीनों के सहारे जोरदार चोट की है। इसी का परिणाम है कि आतंक और उसके समर्थक आज त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। आतंक पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर मौजूदा सरकार की दृढ़ता का उदाहरण इसी से मिल जाता है कि सुरक्षा बलों ने चार महीने के भीतर ही अमरनाथ तीर्थयात्रियों पर हमले में शामिल सभी आतंकियों को ढेर कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति का ही कमाल है जो अमेरिका ना सिर्फ आतंक को पनाह देने वाले पाकिस्तान के पीछे पड़ा है बल्कि आतंक के कई पाकिस्तानी आकाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात घोषित करने में जुटा है। आतंक के खिलाफ कारगर रणनीति इस तथ्य में अपने आप दिखती है कि जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों ने इस वर्ष अब तक 203 आतंकियों का सफाया कर दिया है।

शांति स्थापना तक ‘ऑपरेशन ऑल आउट’

मौजूदा केंद्र सरकार की पहल पर भारतीय सेना ने इस वर्ष घाटी से आतंकियों का सफाया करने के लिए ऑपरेशन ऑल आउट शुरू किया था। इस ऑपरेशन के तहत लश्कर-ए-तैय्यबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश-ए -मोहम्मद के करीब 258 आतंकियों की एक लिस्ट तैयार की गई थी। इनमें से अब तक मारे गए 203 आतंकियों में से 120 से अधिक सीमापार के और बाकी बचे आतंकी स्थानीय हैं। बड़ी बात ये है कि इनमें से सीमा पार के 66 आतंकियों को तो घुसपैठ के दौरान ही मार गिराया गया। लगातार चल रहे ऑपरेशन के दौरान 911 आतंकियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। घाटी में लश्कर, जैश और हिज्बुल के टॉप कमांडर के एक-एक करके मारे जाने के बाद से आतंकियों की कमर टूट गई है। राज्य के डीजीपी एपी वैद ने बताया कि राज्य में पूरी शांति बहाली तक ऑपरेशन ऑल आउट जारी रहेगा।    

आतंकियों के खात्मे में आई बड़ी तेजी
मोदी सरकार में बीते तीन साढ़े वर्षों में यूपीए सरकार के आखिरी तीन सालों की तुलना में मारे गए आतंकियों की संख्या दोगुनी से भी अधिक है। मोदी सरकार के साढ़े तीन सालों के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि अब तक 561 आतंकियों को ढेर कर दिया गया है, यानी यूपीए सरकार के आखिरी तीन सालों के 239 आतंकियों की तुलना में 130 प्रतिशत से भी अधिक आतंकियों को ढेर कर दिया गया है। आतंक को कुचलने की मुहिम के इस रंग से उम्मीद है कि नये साल से आतंकी वारदातों में बेहद कमी आ जाएगी। 

टेरर फंडिंग नेटवर्क ध्वस्त करने का अभियान
एक तरफ जहां आतंकवादियों का सफाया किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आतंकवादी समूहों से सहानुभूति रखने वालों और उन तक फंड पहुंचाने वालों के खिलाफ भी कारवाई की जा रही है। सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक और मीर वाइज उमर फारुख पर शिकंजा कसा गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने तो अलगाववादी नेता शब्बीर शाह के खिलाफ आतंकवादी हाफिज सईद से संबंधों के खुलासे के बाद चार्जशीट भी दायर कर दी है, वहीं निर्दलीय विधायक रशीद इंजीनियर भी रडार पर है।

असरदार हैं सुरक्षा बलों के इंटेलिजेंस नेटवर्क
ऑपरेशन ऑल आउट के तहत इंटेलीजेंस नेटवर्क इतना पुख्ता हो गया कि आतंकियों को उनके बिलों से ढूंढकर बाहर निकाला जाने लगा है। सेना का यह पूरा ऑपरेशन इसी खास योजना पर आधारित है कि दहशतगर्दों को ढूंढ़ो और मारो। सेना के इंटेलिजेंस इनपुट में सुधार और एक्शन के कारण एक तो नये आतंकवादियों की भर्ती नहीं हो पा रही है, ऊपर से हाल ये है कि जितनी भर्ती होते हैं उससे दोगुने आतंकवादियों को ढेर कर दिया जा रहा है।

आतंक के पालनहार पाकिस्तान पर नकेल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कूटनीतिक प्रयासों के चलते आतंक को पालने वाले पाकिस्तान की शामत आई हुई है। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को आतंकवादियों की शरणस्थली वाले देशों की सूची में डाल दिया है। भारत की ओर से पड़ने वाले दबाव का नतीजा यह हुआ कि अब तक डिनायल मोड में चल रहे पाकिस्तान को यह मानना पड़ा कि उसकी जमीन से लश्कर-ए-तैय्यबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन संचालित हो रहे हैं। इतना ही नहीं अब तो पाक सेना भी मानने लगी है कि पाक में आतंकी जिहाद नहीं, फसाद फैला रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की कोशिश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देशों को आतंक के खिलाफ एकजुट करने में भी कारगर साबित हुई है।

आतंकी और उनके आकाओं की चौतरफा घेराबंदी
प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के चलते अमेरिका ने चार महीने पहले हिजबुल मुजाहिदीन को आतंकी संगठन करार दिया था। इससे पहले अमेरिका हिजबुल सरगना सैयद सलाउद्दीन को वैश्विक आतंकी घोषित कर चुका था। दरअसल सलाउद्दीन और उसके संगठन हिजबुल का जम्मू-कश्मीर में हुए कई हमलों में हाथ रहा है। अमेरिका इससे पहले लश्कर के मुखौटा संगठन जमात-उद-दावा और संसद हमले में शामिल जैश-ए-मोहम्मद पर पाबंदी लगा चुका है। आतंक के खिलाफ जितने कारगर कदम केंद्र की मोदी सरकार ने महज साढ़े तीन साल में उठाकर दिखाये हैं उतने कांग्रेस ने अपने सभी शासनकाल को मिलाकर भी उठाये होते तो भारत में आतंक जिंदा ही ना होता।  

 

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