Home विचार मोदी सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद पर कसी नकेल

मोदी सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद पर कसी नकेल

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देश में जनता की इच्छा से शासनतंत्र को सुचारू ढंग से चलाने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का होना आवश्यक है। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाये रखने के लिए हर आवश्यक व्यवस्था को स्थापित किया गया है, लेकिन आजादी के बाद कांग्रेसी राज में न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रहने दिया गया। आज प्रधानमंत्री मोदी की सरकार कांग्रेस के इस ग्रहण को खत्म करने का काम कर रही है।

न्यायाधीशों की नियुक्तियों में पारदर्शिता
देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद पर नकेल कस दी है। सूत्रों के अनुसार फरवरी 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजे गये 33 वकीलों के नामों की सूची में कम से कम 11 वकीलों के ऐसे नाम हैं, जो किसी हाईकोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रिश्तेदार हैं या जो किसी न्यायाधीश के परिवार के सदस्य के साथ मिलकर न्यायिक फर्म चलाते हैं। खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम को जो रिपोर्ट भेजी है, उसमें इसके सबूत भी लगा दिए गए हैं।

इस बार सरकार ने कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों के बारे में हर पहलू की पुख्ता पड़ताल की है, जिससे ये जानकारियां सामने आयी हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को खारिज किया
 देश के उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति को पारदर्शी और योग्यता के आधार पर बनाकर सभी को समान अवसर देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने सुधारों को लागू किया। इसके लिए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून बनाकर 13 अप्रैल, 2015 को अधिसूचित कर दिया। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे 16 अक्टूबर, 2015 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया और कॉलेजियम के स्थान पर एक नई प्रणाली बनाने की जिम्मेदारी सरकार और सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश को दे दी। इस प्रणाली के स्थापित होने तक सर्वोच्च न्यायालय की वही पुरानी अपरादर्शी और त्रुटिपूर्ण प्रणाली काम कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने न्यायालयों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया शुरू की
प्रधानमंत्री मोदी गरीबों को सस्ता, सरल और तेज न्याय दिलाने के लिए पिछले चार साल से हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसी कड़ी में अदालतों में मुकदमों के बोझ को कम करने के लिए 10 मई, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय में Integrated Case Management System का शुभारंभ किया। आज देश के सभी उच्च न्यायालयों के डिजिटलीकरण का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब निचली अदालतों के डिजिटलीकरण का काम हो रहा है, जो जल्द ही पूरा हो जाएगा। इस डिजिटलीकरण से अदालतों में फाइलों को लाने और ले जाने में लगने वाला समय और खर्च पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। अब ऐसी व्यवस्था तैयार हो रही है, जहां मुकदमों को ऑनलाइन ही फाइल किया जा सके और उसका जल्द से जल्द निपटारा कर लिया जाए।

कांग्रेस राज ने न्याय को महंगा और अपारदर्शी बना दिया
कांग्रेस राज में न्यायाधीशों की नियुक्तियां पूरी तरह से कार्यपालिका के हाथों में थी। उस दौर में न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोई त्रुटिविहिन प्रणाली स्थापित न होने से, नियुक्तियों में कार्यपालिका या न्यायालयों का हस्तक्षेप सामान्य बात थी। देश में सर्वोच्च न्यायालय के पहले न्यायाधीश हरीलाल कानिया की नियुक्ति पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जबरदस्त आपत्ति थी। वह कानिया का इस्तीफा लेना चाहते थे, लेकिन सरदार पटेल और राजगोपालाचारी की मध्यस्थता के बाद मामला शांत हुआ और हरिलाल कानिया को देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के रूप में शपथ दिलायी गई। यही परंपरा इंदिरा गांधी के राज में पूरी तरह से मुखर हुई, जब उन्होंने अपनी इच्छा के अनुसार न्यायाधीशों को नियुक्त करना शुरू कर दिया। इंदिरा गांधी ने 1973 में जस्टिस ए न राय को तीन न्यायाधीशों की वरिष्ठता को नकारते हुए, मुख्य न्यायाधीश बना दिया। ये तो कुछ ऐसे उधाहरण थे, जो परदे के सामने आये ।

आज, देश के गरीब को सरल और सुगम न्याय दिलाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की सरकार जिस न्यायिक सुधार के रास्ते पर चल रही है, उससे वह दिन दूर नहीं है, जब हर गरीब को तुरंत न्याय मिलेगा और प्रजातंत्र में उसे अपने अधिकारों के लिए दशकों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

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