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वित्तीय अपराध रोकने को लेकर सख्त मोदी सरकार, डिफॉल्टिंग कंपनियों पर पैनी नजर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार वित्तीय घोटाले करने वालों पर काफी सख्ती दिखा रही है। मोदी सरकार सख्त कानून बनाने के साथ ऐसे कदम भी उठा रही है, जिनके बाद बैंकों का पैसा हड़पने वाली कंपनियों के मालिक देश छोड़ कर जाने की सोच भी नहीं सकेंगे। बताया जा रहा है कि मोदी सरकार अब डिफॉल्टिंग कंपनियों के प्रमोटरों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। केंद्र सरकार ऐसे लोगों की विदेश यात्रा पर पाबंदी लगाने के साथ-साथ विदेशी लेनदेन में असामान्य वृद्धि की भी जांच करने की योजना बना रही है।

पिछले दिनों कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब उद्योगपति बैंकों का कर्ज चुकाए बिना विदेश भाग गए। ऐसे लोगों को भारत लाने में खासी कवायद करनी पड़ती है। अब केंद्र सरकार रिजर्व बैंक और फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU) की इनफोर्समेंट विंग को डिफॉल्टिंग कंपनियों के प्रमोटरों और उनके विदेशी लेनदेन पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंपेगी।

हालांकि वित्त मंत्रालय और RBI ने ऐसे कदमों को लेकर पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया है। RBI के पास दोनों व्यक्तिगत और भारतीय कंपनियों के विदेशी लेनदेन की जानकारी रहती है। बैंकिंग नियामक की इनफोर्समेंट टीम किसी भी असामान्य लेनदेन पर फौरन अधिकारियों को अलर्ट करेगी। इसके साथ ही FIU समेत जांच एजेंसियां डिफॉल्टिंग कंपनियों के बिजनस पैटर्न में हो रहे बदलावों पर भी नजर रखेंगी और किसी गड़बड़ी की आशंका होते ही अधिकारियों को सतर्क करेंगी।

भ्रष्टाचार पर नकेल के लिए मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं, एक नजर डालते हैं उन कदमों पर-

अनरेग्युलेटेड डिपॉजिट स्कीम पर रोक के लिए विधेयक को मंजूरी
20 फरवरी, 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में चिट फंड अधिनियम में संशोधन कराने का भी निर्णय लिया गया। इस संशोधन के कानून बन जाने से लोगों को अन्य वित्तीय निवेश योजनाओं में धन लगाने का एक अधिक व्यवस्थित अवसर मिल सकेगा। इस कानून के लागू होने पर बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरंसी पर भी लगाम लग जाएगा।

अवैध जमा योजनाओं पर लग जाएगी रोक
इस विधेयक का लक्ष्य देश में चल रही अवैध जमा योजनाओं पर रोक लगाना है। ऐसी योजनाएं चलाने वाली कंपनियां/संगठन मौजूदा नियामकीय खामियों और प्राशासनिक उपायों की कमजोरी का फायदा उठा कर भोले भाले लोगों की मेहनत की कमाई को ठग लेती हैं। प्रस्तावित संशोधन इस क्षेत्र में व्यवस्थित वृद्धि लाने और इस क्षेत्र के सामने रुकावटों को दूर करना है। इस संशोधन से लोगों को अन्य वित्तीय उत्पादों में निवेश के अधिक अवसर प्राप्त होंगे।

फरार आर्थिक अपराधी विधेयक
नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों को कानून के शिकंजे में कसने के इरादे से केंद्र सरकार ‘फरार आर्थिक अपराधियों’ की संपत्तियां जब्त करने के लिए कड़ा कानून बना रही है। ‘फरार आर्थिक अपराधी विधेयक, 2017’ के मसौदे में प्रावधान किया गया है कि जो आर्थिक अपराधी भारतीय कानून से बचे रहते हैं, वे इस प्रक्रिया से न बच पाएं।

मसौदे के मुख्य बिंदु-

  • आर्थिक अपराध विधेयक के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को फरार आर्थिक अपराधी घोषित कर दिया जाता है तो उसकी संपत्ति जब्त की जा सकेगी।
  • सिर्फ वे मामले इस विधेयक के दायरे में आएंगे, जिनमें अपराध की राशि 100 करोड़ रुपये से ज्यादा हो, जिससे न्यायालयों पर बहुत ज्यादा भार नहीं पड़े।
  • विधेयक में पीएमएलए के तहत विशेष न्यायालय गठित करने का प्रावधान, जो व्यक्ति को ‘फरार आर्थिक अपराधी’ घोषित करेगा।
  • इस अधिनियम के तहत कार्रवाई तब बंद कर दी जाएगी जब कथित भगोड़ा आर्थिक अपराधी भारत वापस आ जाएगा और अपने को उचित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर देगा।

संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा (Asset Quality Review)
मोदी सरकार ने कर्ज नहीं चुकाने वाले बड़े बकायेदारों की जिम्मेदारी तय की है और विभिन्न उपायों के जरिए बैंकों को मजबूत किया जा रहा है। नियमित रूप से कर्ज की वापसी नहीं करने के बावजूद 2008- 2014 के बीच बड़े कर्जदारों को बैंकों से कर्ज देने के लिये दबाव डाला जाता रहा। वास्तव में जो कर्ज NPA श्रेणी में जा चुके थे उन्हें नियमित कर्ज बनाये रखने के लिए कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन के तहत उनका पुनर्गठन किया गया। 2015 की शुरुआत में, वर्तमान सरकार ने एसेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) के बाद एनपीए की समस्या को मानते हुए वर्गीकृत किया। पीएसबी में एनपीए की सही मात्रा की मान्यता ने मार्च 2017 तक एनपीए की रकम 2.78 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7.33 लाख करोड़ रुपये की कर दी।

इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड
इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 (आईबीसी) के कानून बन जाने से दिवालिया कंपनियों के प्रोमोटर्स की मुश्किलें बढ़ गई हैं और वे दोबारा कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं खरीद पा रहे हैं। बैंकरप्सी कानून में होने वाले बदलाव से सरकारी बैंकों को बड़ा फायदा हो रहा है। मोदी सरकार ने 2016 में बैंकरप्सी को बैंकरप्सी कोड के तहत लाया है। सरकार ने कोड 1 अक्टूबर, 2017 को नियामक के रूप में भारतीय दिवालियापन और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) की स्थापना की थी।

पीएसबी पुनर्पूंजीकरण (PSB Recapitalisation)
24 अक्टूबर 2017 को, अगले दो वर्षों में 2.11 लाख करोड़ रूपये की एक पूर्ण पीएसबी पुनर्पूंजीकरण योजना की घोषणा की गई। इसमें पूंजी अधिग्रहण योजना (capital infusion plan) का प्रमुख घटक (64%) के रूप में पुनर्पूंजीकरण बांड की घोषणा की गई। 24 जनवरी, 2018 को 88,000 करोड़ रुपये की पूंजी योजना की घोषणा के साथ, बैंक पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हुई।

एफआरडीआई विधेयक (FRDI Bill)
ड्राफ्ट एफआरडीआई विधेयक एक और सक्रिय कदम है, जहां एक संकल्प निगम (आरसी) प्रस्तावित किया गया है, जो कि वित्तीय संस्थानों में संकट की शुरुआती चेतावनी के संकेतों की पहचान करेगा। यह भविष्य में दिवालिया होने से वित्तीय संस्थानों की रक्षा करेगा, और यदि ऐसा हो, तो निपटने के लिए एक ढांचा प्रदान करेगा। आज तक कोई ऐसी प्रणाली भारत में मौजूद नहीं है।

पूंजी अधिग्रहण योजना
24 अक्टूबर 2017 को, अगले दो वर्षों में 2.11 लाख करोड़ रूपए की एक पूर्ण पीएसबी पुनर्पूंजीकरण योजना की घोषणा की गई। इसमें पूंजी अधिग्रहण योजना (capital infusion plan) का प्रमुख घटक (64%) के रूप में पुनर्पूंजीकरण बांड की घोषणा की गई। 24 जनवरी, 2018 को 88,000 करोड़ रुपये की पूंजी योजना की घोषणा के साथ, बैंक पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हुई।

FRDI विधेयक
प्रस्तावित वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक, 2017 में जमाकर्ताओं के ‘वर्तमान अधिकारों की सुरक्षा की गई है और उसे बढ़ाया गया है और वित्तीय कंपनियों के व्यापाक और कुशल समाधान शासन लाने की कोशिश है। दरअसल वर्तमान में समाधान के लिए कोई व्यापक और एकीकृत कानूनी ढांचा नहीं है, जिसमें ‘भारत में वित्तीय कंपनियों का तरलीकरण भी शामिल है। एफआरडीआई विधेयक एक ‘समाधान निगम’ और एक व्यापक शासन स्थापित करने का प्रस्ताव करता है ताकि एक असफल वित्तीय फर्म को समयबद्ध और व्यवस्थित समाधान के लिए सक्षम किया जा सके।

बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम
Benami Transactions (Prohibition)Act भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो बेनामी लेनदेन पर रोक लगाता है। 1988 के में 1 नवंबर, 2016 को संशोधित कर कानून को कड़ा बनाया है। संशोधित बिल में बेनामी संपत्तियों को जब्त करने और उन्हें सील करने का अधिकार है। इसके साथ ही जुर्माने के साथ कैद का भी प्रावधान है। भारत में काले धन की बढ़ती समस्या को खत्म करने की दिशा में एक और कदम है। दरअसल बेनामी संपत्ति वह है जिसकी कीमत किसी और ने चुकाई हो लेकिन नाम किसी दूसरे व्यक्ता का हो। यह संपत्ति पत्नी, बच्चों या किसी रिश्तेदार के नाम पर खरीदी गई होती है।

भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार ने कई और कार्य किए हैं। आइये इनमें से कुछ प्रमुख कार्यों को जानते हैं-

आधार से योजनाओं को जोड़ना
यूआईडीएआई यानि यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथारिटी ऑफ इंडिया अब तक देश के 98 फीसदी व्यस्कों को आधार से जोड़ चुकी है। बाकी बचे 1.9 करोड़ लोगों को आधार से जल्दी ही जोड़ लिया जाएगा। भ्रष्टाचार मिटाने की ओर इसे एक अहम कदम माना जा रहा है। अब तक 78 प्रतिशत एलपीजी कनेक्शन, 61 प्रतिशत राशन कार्ड, 69 प्रतिशत मनरेगा कार्ड और 30 करोड़ बैंक खाते आधार नंबर से जोड़े जा चुके हैं।  आधार लिंक के कारण पिछले साढ़े तीन साल में 3 करोड़ 77 लाख फर्जी एलपीजी गैस कनेक्शन का पर्दाफाश हुआ, मिड डे मील पाने वाले 4 लाख 40 हजार फर्जी छात्रों का पता चला, 2 करोड़ 33 लाख फर्जी राशन कार्डों का खुलासा हुआ, मनरेगा में पंजीकृत लाखों फर्जी लोगों को हटाया गया, 1 लाख 30 हजार फर्जी कॉलेज शिक्षकों का भंडाफोड़ किया गया। आधार के कारण तमाम सरकारी विभागों और मंत्रालयों से लाभ लेने वाले लोगों के फर्जीवाड़े का पता चल रहा है। इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है, बल्कि सरकार का हजारों करोड़ रुपया भी बच रहा है।

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर
एलपीजी उपभोक्ताओं के लिए केंद्र सरकार की प्रत्यक्ष हस्तांतरित लाभ यानि पहल योजना की शुरुआत 1 जनवरी, 2015 से हुई।  डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के मामले में केंद्र सरकार ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है। इस वित्त वर्ष में 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम को सीधे लाभार्थी के खाते में ट्रांसफर किया गया है। सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का पैसा सीधे खातों में भेजकर यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से सरकार ने 2014 से लेकर अबतक करीब 75 हजार करोड़ रुपये की बचत की है। नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक 7 फरवरी, 2018 को डीबीटी पेमेंट इस वित्त वर्ष में 1,00,144 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। सरकार ने 2016-17 में डीबीटी के जरिए 74,707 करोड़ जारी किए थे जबकि 2013-14 में यूपीए के कार्यकाल के दौरान 7,367 करोड़ रुपये का डीबीटी हुआ था। खबर के अनुसार ग्रामीण रोजगार योजना और सब्सिडी वाली रसोई गैस के लिए इस वित्त वर्ष में 63 करोड़ से ज्यादा लोगों को डीबीटी पेमेंट मिला है जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह आंकड़ा 35 करोड़ का था।

इस तरह डीबीटी से देश की आधी आबादी को बिना किसी बिचौलिए या लीकेज के सीधे भुगतान का फायदा मिल रहा है। खबर के अनुसार अनुसार योजना और सब्सिडी का पैसा गलत हाथों में जाने से रुकने से सरकार की कुल बचत लगभग 75,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। सरकार सभी सरकारी योजनाओं ( करीब 450) को डीबीटी के तहत लाने जा रही है। अभी डीबीटी के तहत करीब 412 योजनाएं है और इसी वित्तीय वर्ष में 20 अन्य योजनाओं को भी आधार से लिंक किया जा सकेगा।

डिजिटलाइजेशन पर जोर
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की दिशा में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री के प्रयास से ही आज भारत डिजिटल लेनदेन में सुपर पावर बनने की राह पर है। नोटबंदी के बाद खुदरा डिजिटल भुगतान में काफी वृद्धि हुई है और डिजिटल भुगतान के माध्यम आईएमपीएस से लेनदेन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल लेनदेन के लिए लोग सबसे ज्यादा भरोसा इमिडिएट पेमेंट सर्विस (आईएमपीएस) पर कर रहे हैं। आईएमपीएस के माध्यम से लेनदेन एक साल में 86 प्रतिशत बढ़कर 98 मिलियन हो गई है और इसके द्वारा कुल लेनदेन 102% बढ़कर 87,106 करोड़ रुपये हो गया है। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) पेमेंट एप BHIM के द्वारा होने वाले भुगतान में 74 गुणा बढ़ोतरी देखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, मोबाइल वॉलेट और नेशनल इलेक्ट्रोनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) में बढ़ोतरी देखी गई। मोबाइल वॉलेट से होने वाले ट्रांजेक्शन में 22.5 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई और यह 320 मिलियन हो गया। इसके द्वारा कुल 14334 करोड़ का ट्रांजेक्शन हुआ।

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