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मोदी सरकार ने दी कारोबारियों को बड़ी राहत, जीएसटी रिटर्न फॉर्म को आसान किया, अंतिम तारीख भी बढ़ाई

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केद्र सरकार जहां अर्थव्यवस्था को तेज करने में जुटी है, वहीं इकोनॉमी की मजबूत कड़ी व्यापारियों और कारोबारियों की परेशानियों को भी शिद्दत से दूर करने में जुटी है। मोदी सरकार ने अपने ताजा कदम में व्यापारियों को राहत देते हुए जीएसटी से संबंधित रिटर्न फॉर्म को और आसान कर दिया है। इतना ही नहीं सरकार ने जीएसटी रिटर्न फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि भी बढ़ा दी है। अब कारोबारी वित्त वर्ष 2017-18 के लिए 31 दिसंबर 2019 और वित्त वर्ष 2018-19 का जीएसटी रिटर्न फॉर्म 31 मार्च, 2020 तक भर सकेंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सीबीडीटी ने जीएसटीआर-9 (वार्षिक रिटर्न) और जीएसटीआर-9C की तारीख बढ़ा दी है। अब कारोबारी वित्त वर्ष 2017-18 के लिए 31 दिसंबर 2019 और वित्त वर्ष 2018-19 का फॉर्म 31 मार्च, 2020 तक भर सकेंगे। इतना ही नहीं अब कारोबारियों को इन रिटर्न फॉर्म को भरते वक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट की अलग से जानकारी नहीं देनी होगी। अलग-अलग सेवाओं और वस्तुओं के बारे में जानकारी कारोबारी एक साथ दे सकते हैं। इससे पहले वित्त वर्ष 2017-18 के लिए जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख 30 नवंबर थी। वहीं वित्त वर्ष 2018-19 के लिए आखिरी तारीख 31 दिसंबर थी।

मोदीराज में रिकॉर्ड स्तर पर जीएसटी कलेक्शन
वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के मोर्चे पर अच्छी खबर मिली है। जीएसटी के कलेक्शन में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। इसी वर्ष जुलाई में जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया। जीएसटी का सकल संग्रह जुलाई में 1.02 लाख करोड़ रुपये रहा। यह पिछले महीनों के संग्रह के मुकाबले बेहतर स्थिति है। आंकड़ों के मुताबिक जुलाई 2019 में केंद्रीय जीएसटी संग्रह 17,912 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी 25,008 करोड़ रुपये और एकीकृत जीएसटी 50,612 करोड़ रुपये रहा। इसके अलावा उपकर का संग्रह 8,551 करोड़ रुपये रहा। जुलाई में 75.79 लाख जीएसटीआर 3बी रिटर्न दाखिल किए गए।

2018-19 में 5.18 लाख करोड़ रुपये एकत्र हुए
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस मकसद से एक राष्ट्र एक कर यानी जीएसटी को लागू किया था, वो मकसद अब पूरा होता नजर आ रहा है। वित्त वर्ष 2018-19 में जीएसटी का संग्रह बढ़कर 5.18 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह वित्त वर्ष 2017-18 के 2.91 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले बहुत ज्यादा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान राज्यों को जीएसटी से हुए नुकसान के लिए 81,177 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में राज्यों को महज 48,178 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था। उन्होंने कहा कि बिजनेस प्रक्रियाओं को बड़े पैमाने पर ऑटोमेशन, ई-वे बिल प्रणाली, अनुपालन की जांच के लिए लक्ष‍ित कार्रवाई, जोखिम प्रबंधन के आधार पर प्रवर्तन और इलेक्ट्रॉनिक इनवाइस सिस्टम जैसे कदमों से जीएसटी के राजस्व संग्रह में सुधार हुआ है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को 1 जुलाई, 2017 को लागू किया था और 17 स्थानीय करों का इसमें विलय कर दिया गया था।

सबको मिल रहा है ‘एक राष्ट्र-एक कर’ का लाभ
दो साल पहले 1 जुलाई, 2017 को देश को आर्थिक आजादी मिली थी। आजादी, उन 17 प्रकार के करों से मिली जिसके बोझ के नीचे लोग 70 साल से दबे हुए थे। देश को यह आर्थिक आजादी दिलाने का सेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिर बंधा। दशकों से चली आ रही सरकारों की इस जंग को प्रधानमंत्री मोदी ने 1 जुलाई 2017 की मध्यरात्रि को जीएसटी कानून लागू करके जीत लिया। इस दिन भारत में ‘वन नेशन, वन टैक्स’ का राज स्थापित हुआ।

जीएसटी के लिए प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना
आज, भारत में ‘वन नेशन, वन टैक्स’ का राज स्थापित होने के दो साल पूरे हो गए हैं। यह दिन उस दौर को याद करने का है, जब इस कानून को लागू करने की योजना प्रधानमंत्री मोदी की सरकार बना रही थी। उन दिनों मीडिया से लेकर विपक्ष के नेताओं ने जीएसटी से देश को होने वाले नुकसान को लेकर हाहाकार मचा रखा था। हर तरफ मोदी सरकार की आलोचना हो रही थी कि प्रधानमंत्री मोदी कैसे इतने बड़े देश में जीएसटी लागू करेंगे। विपक्ष कह रहा था कि जीएसटी का आईटी तंत्र पूरे  जीएसटी के बोझ को संभाल ही नहीं पाएगा। इन तमाम दलीलों और विरोधों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने देश के हित को आगे रखते हुए जीएसटी व्यवस्था को लागू कर ही दिया।

दो साल में, जीएसटी तंत्र ने कई नए मुकाम हासिल किए हैं। ये ऐसे मुकाम हैं जिसके बारे में पत्रकार और विपक्ष के नेता ने हमेशा संदेह पैदा किया था।

जीएसटी में 6.52 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 01 जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू किया  था, तो उस समय अगस्त, 2017 से मार्च, 2018 तक कर के रूप में करीब 7.19 लाख करोड़ रुपये सरकार को मिले थे। लेकिन वित्त वर्ष 2018-19 में अप्रैल, 2018 से मार्च, 2019 तक करीब 11,75,830 करोड़ रुपये का जीएसटी सरकार को मिला। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान अप्रैल में 1.03 लाख करोड़ रुपये, मई में 94,016 करोड़ रुपये, जून में 95,610 करोड़ रुपये, जुलाई में 96,483 करोड़ रुपये, अगस्त में 93,960 करोड़ रुपये, सितंबर में 94,442 करोड़ रुपये, अक्टूबर में 1,00,710 करोड़ रुपये, नवंबर में 97,637 करोड़ रुपये, दिसंबर में 94,725 करोड़ रुपये, जनवरी, 2019 में 1.02 लाख करोड़ रुपये और फरवरी, 2019 में 97,247 करोड़ रुपये और आखिरी महीने मार्च, 2019 में रिकॉर्ड 1.06 लाख करोड़ रुपये जीएसटी के रूप में सरकार को मिले। अप्रैल, 2019 में 1,13,865 करोड़, मई, 2019 में 1.02 लाख करोड़, जून, 2019 में 96,483 करोड़ जीएसटी कलेक्शन रहा

प्रधानमंत्री मोदी की जीएसटी लागू करने की सटीक योजना और दृढ़ निश्चय का परिणाम रहा कि जीएसटी के रूप में सरकार को मिलने वाले राजस्व में लगातार बढ़ोतरी हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने संसाधनों और नीतियों में लगातार सुधार करके चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीएसटी के रूप में 13.71 लाख करोड़ रुपये एकत्रित करने का उच्च लक्ष्य निर्धारित किया है।

वस्तुओं और सेवाओं की दरों में कटौती हुई
देश में जीएसटी लागू होने के बाद विभिन्न आवश्यक वस्तुओं पर कर की दरों को तय करने में सरकार और जीएसटी परिषद के सदस्यों को काफी माथा-पच्ची करनी पड़ी थी। परिषद की करीब दो दर्जन से अधिक बैठकों के दौरान 53 आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरों को कम किया गया। आज भी, जीएसटी के तहत अन्य आवश्यक वस्तुओं को जोड़ने और उस पर कर की दरों में कटौती की प्रक्रिया थमी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी जीएसटी को दो दरों की कर व्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने की मंशा रखते हैं।

01अप्रैल, 2018 से लागू हुआ ई-वे बिल
01 जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने के करीब नौ महीने बाद प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों में वस्तुओं की आपूर्ति करने और उनका ई-वे बिल तैयार करने के लिए 01 अप्रैल, 2018 से नई प्रणाली को लागू करने का निर्णय लिया। इस निर्णय पर भी मीडिया और विपक्ष ने कई सवाल उठाये लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रणाली को लागू किया और तमाम सवालों के जवाब के लिए नयी प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया को रुकने नहीं दिया। दरअसल, ई-वे बिल की जरूरत उन व्यापारियों को पड़ती है जो 50 हजार रुपये से ज्यादा की कीमत की वस्तु ट्रांसपोर्ट के जरिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते हैं।

जीएसटी के संघर्ष का दौर खत्म हुआ
आज जीएसटी तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। विश्व की सबसे अव्यवस्थित अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का पुनर्गठन करना एक भागीरथ प्रयास था। जीएसटी की चुनौतियों को उन बयानों ने और जटिल बना दिया था जो पत्रकार और विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री मोदी को किसी भी हाल में सफल नहीं होने देने के लिए दे रहे थे। पहले तो, राज्यों को करों में कमी को लेकर डराने का काम किया गया। इस डर को विश्वास में बदलने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों को 2015-16 के कर के आधार पर पांच साल की अवधि के लिए 14 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के साथ धन देने की शर्त को माना। दूसरा भ्रम जनता के बीच में फैलाया गया कि इससे वस्तुएं अचानक महंगी हो जाएंगी और व्यापारियों को डराया गया कि व्यापार करना कठिन होगा. क्योंकि जीएसटी को भरने के लिए कंप्यूटर का होना जरूरी है। इन तमाम फैलाए गये भ्रमों को धीरे-धीरे करके प्रधानमंत्री मोदी ने दूर कर दिया।

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