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‘चीन की दीवार’ है मोदी की एक्ट ईस्ट पॉलिसी

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फाइल फोटो

एक्ट ईस्ट पॉलिसी ने पूर्वोत्तर राज्यों में चली आ रही विकास की जड़ता को खत्म कर दिया है। 2014 से केन्द्र सरकार द्वारा अपनायी गई इस नीति से अरूणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम विकास का एक नया दौर देख रहा है। यहां जापान केन्द्र सरकार के साथ मिलकर सड़क, रेल, एयरपोर्ट, पुल, स्मार्ट सिटी और SEZ का निर्माण तेज गति से कर रहा है। विकास कार्यों में समवन्य के लिए India-Japan Coordination Forum for Development of North East की पहली बैठक 3 अगस्त को नई दिल्ली में हुई। इस फोरम में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों के प्रतिनिधि, कई केन्द्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि और भारत में जापान के राजदूत केंजी हिरमात्सु ने हिस्सा लिया।

पूर्वोत्तर का सामरिक महत्व
चीन के साथ भारत का सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है, लेकिन जून 2017 में, सिक्किम-भूटान के डोकलाम क्षेत्र में जब भारतीय सेना ने चीन को सड़क बनाने से रोक दिया, तभी से भारत-चीन सीमा की संवेदनशीलता बढ़ गई है। इस विवाद ने इस तथ्य को स्पष्ट कर दिया है कि चीन की मंशा भारत के क्षेत्रों पर कब्जा करने की है। इसके लिए वह लगातार धीरे- धीरे काम करता रहा है। 1962 से जम्मू-कश्मीर के 38,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है और अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किमी क्षेत्र को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है। ऐसे में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में आधारभूत संरचनाओं का विकास सामरिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण हो चुका है, जिनको आजादी के बाद से सरकारों ने विकसित नहीं किया है।

आजादी से पहले, देश की इन आठ पूर्वोत्तर राज्यों को जिन्हें अष्ठलक्ष्मी भी कहा जाता है, विकास के मामले में सबसे आगे थे, क्योंकि इन राज्यों को कलकत्ता और चिंटगांव के रास्ते पूर्वी और दक्षिणी एशिया के देशों से व्यापार करने का सीधा मार्ग उपलब्ध था, और देश के अन्य सभी राज्यों से सरल संपर्क था। लेकिन आजादी के बाद देश का बंटवारा होने से, पूर्वी पाकिस्तान के कारण, पूर्वोत्तर के सभी आठों राज्यों की भौगोलिक और आर्थिक स्थिति में अचानक बदलाव आ गया। चिटगांव और कलकत्ता के व्यापारिक रास्ते इनके लिए बंद हो गये और देश के शेष हिस्से से जुड़ने के लिए मात्र 29 किमी का सिलीगुड़ी का क्षेत्र ही रह गया, जिसमें से ही होकर सभी सड़कें और रेल लाइनों को जाना पड़ता है। 1971 में बांगलादेश के बनने से पहले, इसी सिलीगुड़ी क्षेत्र से ही हवाई यात्रा होती थी, जो एक मुश्किल भरा काम था। इस तरह से पूर्वोत्तर राज्यों में आधारभूत ढांचे का विकास एक लंबे समय तक रुका रहा।

पीएम मोदी की ‘एक्ट ईस्ट पालिसी’
पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति में 2014 से बदलाव आने शुरू हुए, जब केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आयी। प्रधानमंत्री मोदी ने यूपीए सरकार की ‘लुक अप ईस्ट’ की पॉलिसी को ही बदल डाला। एक नई ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ लायी, जिसमें इन राज्यों को पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों- मयांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लावोस, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम से व्यापार करने के लिए फ्रंटलाइन राज्य माना गया। इसी पॉलिसी के तहत बांग्लादेश के साथ संबंध सुधारने को प्रधानमंत्री मोदी ने प्राथमिकता दी, और बांग्लादेश से कई समझौते करके सबंधों को एक ठोस मजबूती दी। पूर्वोत्तर राज्यों के विकास को मजबूती देने के लिए ही प्रधानमंत्री मोदी ने ASEAN देशों की पिछले तीन सालों में यात्राएं की और सामारिक महत्व के कई समझौते किये। आज इन देशों से संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं। देश में पहली बार होगा, जब 2018 के गणतंत्र दिवस समारोह में ASEAN देशों के सभी दस राष्ट्रों के शासनाध्यक्ष अतिथि होगें।

जापान की भागीदारी
पूर्वोत्तर के राज्यों के विकास में ASEAN देशों के साथ-साथ जापान की एक बड़ी भूमिका है। जापान, भारत का शुरु से सहयोगी रहा है और साल 2000 से भारत के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए निवेश करता रहा है। लेकिन जापान में 2012 में शिंजों अबे के आने के बाद से और 2014 में नरेन्द्र मोदी के भारत में प्रधानमंत्री बनने से रिश्तों में एक नई ताजगी आयी। सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा ने दोस्ती को सामरिक और रणनीतिक भागीदारी में बदल दिया, उसी का परिणाम रहा कि जापान ने मई 2017 में भारत के साथ न्यूक्लियर डील भी कर डाली। जापान, 2019 तक भारत में 33 बिलियन डॉलर का निवेश करने की घोषणा पहले ही कर चुका है।

दूसरे देशों के इलाके पर कब्जा करने की चीन की नीति से जापान भी परेशान है। वह चीन से सीमा को लेकर हो रहे विवादों में भारत के साथ खड़ा है। भारत के लिए यह जरूरी है कि पूर्वोत्तर राज्यों के आधारभूत ढांचे का विकास करके चीन की चुनौती का माकूल जवाब दिया जाए।
भारत की इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए जापान, पूर्वोत्तर राज्यों में केन्द्र सरकार की योजनाओं में धन लगाने की तैयारी कर रहा है।

मोदी सरकार की सामारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ परियोजनाओं में जापान निवेश करने की तैयारी कर रहा है। ये योजनाएं हैं-

  • अरूणाचल प्रदेश में पनबिजली परियोजना
  • नेपाल, बांग्लादेश, मयांमार से जोड़ने के लिए सड़क और पुल परियोजना
  • इंफाल (मणिपुर) को मोरेह (मयांमार) की सड़क परियोजना
  • मयांमार के Dawei SEZ से पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने की परियोजना
  • मयांमार Sittwe बंदरगाह से जोड़ने वाली Kaladan Multimodal Transit Transport Project
  • पूर्वोत्तर राज्यों में स्मार्ट सिटी परियोजना
  • बांग्लादेश, नेपाल, मयांमार से लगी नेशनल हाईवे 51 व 54 को upgrade करने की परियोजना
  • त्रिपुरा की फेनी नदी पर पुल परियोजना जो अगरतल्ला को बांग्लादेश के चिटगांव से जोड़ेगा।
  • आयजोल- तियुपांग(मिजोरम) सड़क परियोजना- यह परियोजना 32 देशों के सहयोग से बनने की तैयारी में Great Asian Highway का हिस्सा होगी। Great Asian Highway, 141,000 किमी लंबी सड़कों का नेटवर्क होगी।

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