उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों को लेकर लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। मुस्लिम वोट पाने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) चाल पर चाल चल रही है। मुसलमान वोटरों को नजर में रखकर ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने कई आपराधिक मामलों में जेल में बंद मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल कर लिया है। बाहुबली मुख्तार अंसारी के बसपा में शामिल होने से पूर्वांचल में मुस्लिम वोटरों पर निगाह टिकाए सपा को तगड़ा झटका लगा है।
कौमी एकता दल के बसपा में विलय होने के साथ ही मुख्तार अंसारी को मउ से, उनके बेटे अब्बास अंसारी को घोसी से और बड़े भाई सिबगतुल्ला अंसारी को मोहम्मदाबाद से टिकट दे दिया गया। मुख्तार और सिबगतुल्ला इन्हीं सीटों से फिलहाल विधायक भी है। मुख्तार पहली बार 1996 में बीएसपी के टिकट पर ही विधायक चुने गए थे। इसलिए एक तरह से उनकी ये घर वापसी ही है। मुख्तार अंसारी हत्या सहित 15 आपराधिक मामलों में जेल में हैं। पिछले चुनाव में जीतकर आए समाजवादी पार्टी के 111 और बसपा के 29 विधायक आपराधिक मामलों में शामिल थे।
मुस्लिम मतदाता को लेकर महाजंग
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए ही मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। मुख्तार को पार्टी में शामिल करने के साथ उन्होंने नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे को मुसलमानों के बीच बसपा का प्रचार-प्रसार करने की जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है। उसने भी अभी तक 63 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दे दिए हैं।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की तादाद करीब 20 प्रतिशत है। राज्य विधानसभा की 403 सीटों में से करीब 130-135 सीटों पर मुसलमानों का वोट निर्णायक साबित होता है। मुस्लिम वोट पाने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपना पूरा जोर लगा देती है। ऐसे में पार्टी दागी और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को भी टिकट देने से नहीं हिचकती है। बसपा मुजफ्फरनगर जैसे दंगों, कैराना पलायन, लव जिहाद और गुंडागंर्दी की सरकार जैसे मुद्दों पर अखिलेश से मतदाताओं की नाराजगी का फायदा उठाना चाहती है। लेकिन मुस्लिम वोट को लेकर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के साथ बहुजन समाज पार्टी में छिड़े घमासान से मुसलमान वोटर उलझन में हैं। वोट देने को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।
यादव और दलित में रोष
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जिस तरह से मुसलमानों को रिझाने में लगी है। उससे पार्टी के परंपरागत वोटर नाराज हैं। जिस हिसाब से मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया गया है उससे टिकट चाहने वाले कई यादव और दलित उम्मीदवार पार्टी को सबक सिखाने में लग गए हैं। इसका नुकसान दोनों दलों को उठाना पड़ सकता है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जिस तरह से गरीब, दलित और अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए काम कर रही है। उसका फायदा यहां बीजेपी उठा सकती है।
मतदाताओं का मोहभंग
मायावती अब तक जिस कानून-व्यवस्था के नाम पर सपा के घेरती थीं, मुस्लिम वोटों के चक्कर में मुख्तार को पार्टी में शामिल कर अपना वो धार कुंद कर बैठी हैं। अखिलेश सरकार को बाहुबली-गुंडों की सरकार कहने वाली मायावती खुद अपराधियों को पार्टी में शामिल कर उनका महिमामंडन कर रही है। शासन के मामले में उत्तर प्रदेश के लोग आमतौर पर मायावती को समाजवादी पार्टी की तुलना में अच्छा मानते रहे हैं। लेकिन जेल में बंद बाहुबली के पार्टी में शामिल होने से लोगों में मायावती के प्रति ये धारणा बदलने लगी है। मतदाताओं का मायावती से भी मोहभंग होने लगा है। ऐसे में मुस्लिम मतदाता के साथ दूसरे मतदाता भी समाजवादी पार्टी और बसपा से दूर जा सकते हैं।