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मोदी राज में परिवहन क्रांति, मणिपुर में लोकतक जलमार्ग परियोजना के लिए 25.58 करोड़ रुपये मंजूर

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फाइल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश परिवहन क्रांति की ओर बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में विशेष ध्यान दे रही है। चाहे सड़क हो, रेल हो, हवाई मार्ग हो, जल मार्ग हो सभी के विकास के लिए मोदी सरकार लाखों करोड़ रुपये की परियोजनाओं पर काम कर रही है। शिपिंग मंत्रालय ने गुरुवार, 28 नवंबर को मणिपुर में लोकतक अंतर्देशीय जलमार्ग सुधार परियोजना के विकास को मंजूरी दे दी। इस परियोजना पर 25.58 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। लोकतक झील दरअसल पूर्वोत्‍तर में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है, जो मणिपुर के मोइरंग में है। शिपिंग राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) और रसायन एवं उर्वरक राज्‍य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा है कि पूर्वोत्‍तर अत्‍यंत आकर्षक भू-परिदृश्‍य वाला एक मनोरम क्षेत्र है और वहां पर्यटन के लिए अपार अवसर हैं। उन्‍होंने कहा कि इस परियोजना के तहत पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में अंतर्देशीय जल परिवहन कनेक्टिविटी को विकसित किया जाएगा और इससे पर्यटन क्षेत्र को भी काफी बढ़ावा मिलेगा।

मोदी सरकार देश में 111 जलमार्गों के विकास में जुटी हुई है। आइए डालते हैं देश में जलमार्गों के विकास पर एक नजर-

कोलकाता से काशी के बीच कंटेनर सेवा
आजादी के बाद पहली बार गंगा के जरिए हल्दिया (प.बंगाल)-प्रयागराज (यूपी) जलमार्ग शुरू हुआ। इस मार्ग पर 2000 टन के जहाजों का आवागमन संभव है। प्रधानमंत्री मोदी ने 12 नवंबर, 2018 को वाराणसी में देश के पहले मल्टी मॉडल टर्मिनल का उद्घाटन किया था। उन्होंने जलमार्ग के जरिए हल्दिया से वाराणसी आए मालवाहक जहाज का स्वागत किया। इससे परिवहन का वैकल्पिक तरीका उपलब्ध होगा जो पर्यावरण के अनुकूल होगा। इस परियोजना से देश में लॉजिस्टिक्‍स की लागत को कम करने में मदद मिलेगी। सरकार ने कहा है कि इससे बुनियादी ढांचा विकास मसलन मल्टी माडल और इंटर मॉडल टर्मिनल, रोल ऑन-रोल ऑफ (रो-रो) सुविधा, फेरी सेवाओं तथा नौवहन को प्रोत्साहन मिलेगा।

46 हजार रोजगार का सृजन 
राष्‍ट्रीय जलमार्ग-1 के विकास एवं परिचालन से 46,000 प्रत्यक्ष रोजगार के अवसरों का सृजन होगा। इसके अलावा जहाज निर्माण उद्योग में 84,000 अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इस परियोजना के मार्च 2023 तक पूरा होने की उम्मीद है। यह परियोजना उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में पड़ती है। इसके तहत आने वाले प्रमुख जिलों में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, बक्सर, छपरा, वैशाली, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर, भागलपुर, साहिबगंज, मुर्शिदाबाद, पाकुर, हुगली और कोलकाता शामिल हैं।

परियोजना के प्रमुख घटक:

  • फेयरवे विकास
  • वाराणसी में मल्‍टीमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • साहिबगंज में मल्‍टीमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • हल्दिया में मल्‍टीमॉडल टर्मिनल निर्माण.कालूघाट में इंटरमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • गाजीपुर में इंटरमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • फरक्‍का में नए नेविगेशन लॉक का निर्माण
  • नौवहन सहायता का प्रावधान
  • टर्मिनलों पर रोल ऑन- रोल ऑफ (आरो-आरो) की पांच जोडि़यों का निर्माण
  • एकीकृत जहाज मरम्‍मत तथा रख रखाव परिसर का निर्माण
  • नदी सूचना प्रणाली (आरआईएस) तथा जहाज यातायात प्रबंधन प्रणाली (पीटीएमएस) का प्रावधान
  • किनारा संरक्षण कार्य

पीपीपी मोड में कोलकाता तथा पटना टर्मिनलों का विकासः
भारतीय जल परिवहन क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने के लिए एडब्ल्यूएआई ने कोलकाता टर्मिनल (जीआर जेट्टी-i, जीआर जेट्टी-ii तथा बीआईएसएन) और पटना टर्मिनल (गायघाट तथा कालूघाट) की पहचान की है ताकि सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) मोड में उनका विकास और संचालन किया जा सके।

रो-रो टर्मिनलों का निर्माणः
इसके साथ ही राजमहल, मानिकचक, समदाघाट, मनीहारी, कहलगांव, तीनटंगा, हसनपुर, बख्तियारपुर, बक्सर तथा सरायकोटा में रो-रो टर्मिनलों का निर्माण किया जा रहा है।

6 शहरों में फेरी टर्मिनलः
वाराणसी, पटना, भागलपुर, मुंगेर, कोलकाता तथा हल्दिया में फेरी टर्मिनलों के निर्माण के लिए उचित स्थानों की पहचान के लिए दिसंबर, 2016 में थॉम्सन डिजाइन ग्रुप (टीडीजी), बोस्टन (अमेरिका) तथा मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) (अमेरिका) के संयुक्त उद्यम को ठेका दिया गया।

राष्ट्रीय राजमार्ग-1 पर नदी सूचना सेवा
आईडब्ल्यूएआई ने भारत में पहली बार राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर नदी सूचना सेवा प्रणाली स्थापित करने की तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण परियोजना शुरू की है। नदी सूचना प्रणाली (आरआईएस) उपकरण, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी सेवाएं है जिसका उद्देश्य अंतर-देशीय नौवहन में अधिकतम यातायात और परिवहन प्रक्रिया हैं।

दरअसल अंग्रेजों के आने से पहले भारत का ज्यादातर कारोबार नदियों के जरिए होता था। नदियों के रास्ते से ही पूर्वांचल का माल दुनियाभर में जाता था। इसी की बदौलत भारत सोने की चिड़िया बना था। अंग्रेज इस समृद्धि का राज भांप गए थे, इसलिए उन्होंने भारत के प्राचीन जलमार्गों को तबाह कर दिया और ट्रेन के जरिए ट्रांसपोर्ट का नया जरिया बनाया। इससे अब तक जो सारा सामान नदियों के जरिए इधर उधर आता जाता था, वो रेल से जाने लगा। पूर्वांचल में नदियों के किनारे बसे नगर और वहां की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई। आजादी के बाद दुर्भाग्य से कांग्रेस की सरकार के आने के बाद भी हालात नहीं बदले। कांग्रेस सरकारों में वो दूरदर्शिता ही नहीं थी कि वो पूर्वांचल के इस पिछड़ेपन के कारण जान पाती।

आजादी के बाद भारत जलमार्ग को लेकर कोई योजना नहीं बना सका लेकिन चीन और अमेरिका जैसे देशों ने जलमार्गों का महत्व जान लिया और आज ये उनकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार हैं। आंकड़ों की तुलना में देखें तो भारत में जलमार्ग से महज 0.1 प्रतिशत ढुलाई होती है, जबकि अमेरिका अपने 21 प्रतिशत सामान को जलमार्ग से भेजता है। ये बात भी गौरतलब है कि हमारे यहां जलमार्ग के विकास की ज्यादा संभावनाएं हैं क्योंकि हमारे ज्यादातर बड़े शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुल 14,500 किलोमीटर लंबा जलमार्ग है। इनमें बड़े कार्गो को 5,000 किलोमीटर ले जाया जा सकता है, इसके अलावा लगभग 4,000 किलामीटर लंबी नहरों के जरिए भी माल ढुलाई हो सकती है। मोदी सरकार ने इस सुनहरे अवसर को समझते हुए ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किलोमीटर, केरल की वेस्ट कोस्ट नहर में 205 किलोमीटर और गुजरात की तापनी नदी पर 173 किलोमीटर लंबा जलमार्ग बनाने की योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है। इनके शुरू होने से सड़कों पर बोझ, जाम, ईंधन का खर्च और प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी।

रोजगार के अलावा नदियों के किनारे और जलमार्गों पर पर्यटन की भी असीम संभावनाएं हैं। गंगा नदी में कई स्थानों पर रोरो सेवा शुरू की जा रही है। सी प्लेन तैयार करने की कोशिशें हो रही है।

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