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देश के एक और विभाजन की चेतावनी तो नहीं ममता की गृहयुद्ध की धमकी!

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ममता बनर्जी ने NRC के मुद्दे पर गृह युद्ध की धमकी दी है। यह वही भाषा है जो कि 1947 में जिन्ना की थी। जिन्ना ने भी अपनी कुर्सी के लिए देश में गृह युद्ध और खून-खराबे की धमकी दी थी, जिसके बाद देश का धार्मिक आधार पर विभाजन हुआ था। ममता ने भी कहा कि देश में खून बहेगा, गृहयुद्ध होगा। जाहिर है वह भी देश को तोड़ने की बात खुलेआम कह रही हैं और सशस्त्र संघर्ष को उकसावा दे रही हैं।

स्पष्ट है कि ममता बनर्जी एनआरसी के मुद्दे को वह हिंदू-मुस्लिम रंग दे रही हैं, लेकिन एक वक्त वह खुद घुसपैठ का विरोध करती थीं। 04 अगस्त 2005 को उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा लोकसभा में उठाने की कोशिश भी की थी और रोके जाने पर उन्होंने अपने गुस्से का इजहार भी किया था। जाहिर है ममता ने अपना स्टैंड वोट बैंक के लिए बदल लिया है।

अब सवाल ये है कि ममता बनर्जी जैसी नेता ये भी कहती रही हैं कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं है तो यही घुसपैठिये मुसलमान गृहयुद्ध की ताकत कैसे रखते हैं? जाहिर है प्रश्न गंभीर है, जिस पर सुरक्षा एजेंसियों को तत्काल ध्यान देना चाहिए और शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए!

आंखें खोलने वाले इन तथ्यों पर नजर डालिए

  • असम में 1971 में 25 प्रतिशत मुसलमान थे, बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण 2011 में 35 प्रतिशत हो गए
  • पश्चिम बंगाल में 1971 में 19 प्रतिशत मुसलमान थे, जो घुसपैठियों के कारण 2017 में 30 प्रतिशत हो गए
  • जिला दर जिला घुसपैठियों का कब्जा, मुर्शिदाबाद, उत्तरी दीनाजपुर, मालदा में 53 से 70 प्रतिशत हुई आबादी
  • बंगाल में मुस्लिम आबादी 1.77 प्रतिशत दर से बढ़ी, जबकि हिंदुओं की संख्या 1.94 प्रतिशत दर से घटी
  • बंगाल के 8000 गांव हिंदूविहीन हो गए, अधिकतर का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया या खदेड़े गए
  • बंगाल में हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, कई गांवों में दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा पर बैन

ममता बनर्जी के रुख ये स्पष्ट सवाल उभर रहा है कि क्या पश्चिम बंगाल दूसरा पाकिस्तान बनने की राह पर है? ये सवाल इसलिए मौजू है, क्योंकि बीते कई सालों से बंगाल की राजनीति यही संकेत दे रही है। 

जिस प्रकार से ममता बनर्जी अपनी राजनीति कर रही हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट दिखाई देती है कि वह केवल मुस्लिमों को ही लुभाने में लगी हैं और वो हिंदुओं के धार्मिक कार्यक्रमों और परंपराओं को भी निशाना बना रही हैं।

हिंदुओं की परंपरा ममता को क्यों लगती है गुंडागर्दी!
रामनवमी में हिंदुओं द्वारा शस्त्र जुलूस निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन ममता बनर्जी ने सवाल खड़ा करते हुए कहा, “क्या भगवान राम ने किसी से हथियारों और तलवार के साथ रैली करने को कहा था? ममता बनर्जी से क्या ये नहीं पूछा जाना चाहिए कि मोहर्रम के दौरान जब मुस्लिम समुदाय खुलेआम हथियारों का प्रदर्शन करते हैं तो क्या उन्हें मोहम्मद साहब ने कहा था कि हथियारों का प्रदर्शन करे?

ममता राज में समरसता का पर्व रामनवमी भी टीएमसी की सांप्रदायिक राजनीति का शिकार हो गई। गाड़ियों में भरकर आए मुस्लिमों ने तांडव किया और रानीगंज में हिंदुओं की कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। आसनसोल में तो मस्जिद से राम नवमी यात्रा पर हमला कर दिया गया, जैसे ही मस्जिद के पास से राम नवमी की यात्रा निकली, नारे बाजी करते हुए मस्जिद से यात्रा पर हमला कर दिया गया, देसी बम भी फेंके गए, मस्जिद से हमले के लिए पहले से ही तैयारी की गयी थी, इस हमले में बंगाल पुलिस के एक पुलिस अफसर का हाथ भी उड़ गया, उनके हाथ पास मस्जिद से फेंका गया बम गिरा 

रामनवमी में ममता राज में हिंदुओं पर जुल्म
बीते कई सालों से पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को दोयम दर्जा का मान लिया गया है। दरअसल ऐसा पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने रामनवमी को लेकर जहर उगला है। पिछले साल भी कोर्ट के आदेश से रामनवमी की पूजा हो सकी थी, वरना ममता बनर्जी ने तो इस पर बैन ही लगा दिय़ा था।

इस्लामिक स्टडीज से एमए हैं ममता बनर्जी
ममता बैनर्जी के पास कई अकेडमिक डिग्री हैं। वे हिस्ट्री से ग्रेजएुट हैं। उन्होंने एलएलबी के साथ इस्लामिक स्टडीज में एमए किया हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि ममता बनर्जी जो कि मूल रूप से खुद को बंगाली ब्राह्मण परिवार की बताती हैं, उन्होंने इस्लामिक स्टडीज से एम ए क्यों किया है? हालांकि ये उनका विशेषाधिकार है कि वह क्या पहने, क्या पढ़ें या क्या खाएं, लेकिन ममता बनर्जी की हरकतें हिंदुओं के मन में कुछ संशय जरूर पैदा कर रहा है।

ममता के धर्म परिवर्तन की खबरों का खंडन नहीं
व्हाट्सएप और सोशल साइट पर आजकल एक मैसेज वायरल हो रहा है। लिखा है- ‘क्या ममता बनर्जी का असली नाम मुमताज मासामा खातून है। क्या वो मुस्लिम हैं और क्या वे जानबूझकर हिंदुओं के विरूद्ध काम कर रही हैं? दरअसल उनका हिंदी से बेहतर उर्दू बोलना, हिंदुओं के विरूद्ध किए गए कई कार्य, माथे पर कभी बिंदी नहीं लगाने… जैसी कई बातें हैं जो ये बताती हैं कि वह इस्लाम के अधिक करीब हैं। खबरें तो ये हैं कि उन्होंने 1976 में ही अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है और उन्होंने कभी इस बात का जोरदार तरीके से खंडन भी नहीं किया है।

मुस्लिम मौलानाओं को दिया सरकारी अनुदान
ममता सरकार 2013 से पहले 30 हजार मुस्लिम इमामों और 15 हजार मुअज्जिनों को क्रमश: 2500 और 1500 रुपये का स्टाइपेंड यानी जीविका भत्ता देती थी। वहीं हिंदू पुरोहितों ने जब ये स्टाइपेंड मांगा तो उन्होंने साफ मना कर दिया। हालांकि हाईकोर्ट ने इसे फिजूलखर्जी करार देते हुए इस फैसले पर रोक लगा दी है।

पश्चिम बंगाल के 8000 गांवों में एक भी हिंदू नहीं
पश्चिम बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव ऐसे हैं जहां एक भी हिन्दू नहीं रहता। या तो उन्हें वहां से भगा दिया गया है या फिर उनका धर्म परिवर्तन करवा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।

बंगाल में लगातार बढ़ती जा रही मुस्लिम आबादी
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आई है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है।

 

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