Home विपक्ष विशेष ममता राज में निरंकुश हुए तृणमूल कार्यकर्ता, पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं...

ममता राज में निरंकुश हुए तृणमूल कार्यकर्ता, पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या का सिलसिला जारी

SHARE

पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तानाशाही कोई नहीं बात नहीं है। कानून का शासन होने का दंभ भरने वाली ममता बनर्जी के शासन में उनकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता है। ममता बनर्जी को अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं है। अब राज्य में जैसे-जैसे प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का क्रेज बढ़ता जा रहा है, ममता और उनकी पार्टी के लोगों की बौखलाहट भी बढ़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले भी बढ़ते जा रहे हैं।

पश्चिम बंगाल मेंआए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की खबर सुनने को मिल रही है। ताजा मामला बीरभूम जिले के लाभपुर का है जहां 35 वर्षीय बीजेपी कार्यकर्ता तापस बागदी का शव नदी किनारे पेड़ से लटका मिला है। बताया जा रहा है कि 19 अक्टूबर को तापस के परिवार के साथ स्थानीय तृणमूल नेता कार्तिक पाल का झगड़ा हुआ था और कार्तिक पाल ने उसे देख लेने की धमकी दी थी। उसके बाद 22 अक्टूबर को तापस पाल चाय पीने की बात कहकर निकला, लेकिन वापस नहीं लौटा। बाद में उसकी लाश मयूराक्षी नदी के किनारे एक पेड़ से लटकी मिली। बताया जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उसकी हत्या कर शव को पेड़ से लटका दिया। हालांकि ममता की पुलिस पूरे मामले की लीपापोती में लगी हुई है। ये पहला मामला नहीं है जब पश्चिम बंगाल में किसी बीजेपी कार्यकर्ता की इस तरह हत्या की गई हो।

पिछले दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो साफ हो जाएगा कि पश्चिम बंगाल में कानून का राज किसी भी मायने में नहीं है। इस राज्य में वही होता है, जो ममता बनर्जी चाहती हैं। उन्हीं के कहने पर पुलिस कार्रवाई करती है। विरोधियों की आवाज को दबाना ममता राज में आम बात है। डालते हैं एक नजर

पीएम मोदी की प्रशंसा पर एक शख्स के साथ मारपीट
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार की तानाशाही चरम पर पहुंच गई है। पश्चिम बंगाल में हालात यह हो गए हैं कि अगर ममता बनर्जी के अलावा अन्य किसी नेता की तारीफ भी कर दी तो तृणमूल कांग्रेस के गुंडे मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा ही एक बाकया राज्य के हुगली जिले में सामने आया है। यहां हरिभक्त मंडल नाम के शख्स के साथ बुरी तरह से मारपीट सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि उसने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए फेसबुक पर पोस्ट किया था। मंडल अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है। बताया जा रहा है कि गुरुवार की रात को नाराज तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हरिभक्त मंडल के घर पर धावा बोल दिया और उसके घर से बाहर खींच कर बुरी तरह मारापीटा। इतना ही नहीं पिटाई का विरोध करने पर मंडल की मां के साथ भी मारपीट की गई।

ममता के बंगाल में खंभे पर लोकतंत्र… 
वामपंथ के कुशासन से मुक्ति के लिए पश्चिम बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को चुना था। मां, माटी और मानुष के नारे के बीच उम्मीद थी कि प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी, लेकिन प्रदेश के लोग आज ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। राजनीतिक हिंसा के क्षेत्र में ममता बनर्जी के शासन ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को भी पीछे छोड़ दिया है। सबसे खाय यह कि जिस ‘लोकतंत्र खतरे में है’ गैंग को केंद्र सरकार और बीजेपी की राज्य सरकारों में हर रोज लोकतंत्र खतरे में दिखाई देता है, वो गैंग पश्चिम बंगाल पर एक भी शब्द बोलने को तैयार नहीं है।

1 जून को पश्चिम बंगाल के बलरामपुर में 32 साल के दुलाल कुमार को सिर्फ इसलिए मार दिया गया कि वह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए थे। इस कार्यकर्ता की हत्या की आशंका पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजय वर्गीय ने खुद एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अनुज शर्मा से व्यक्त की थी। बावजूद इसके दुलाल की हत्या न सिर्फ पुलिस प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़े कर रहा है बल्कि ममता राज में हर रोज हो रही लोकतंत्र की हत्या पर सत्ताधारी दल की सहमति की गवाही दे रहा है।

दरअसल पंचायत चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला चल पड़ा है। मई महीने में ही 19 कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्या कर दी गई है। विरोधियों न सिर्फ सरेआम मारा जा रहा है बल्कि मार कर लटका भी दिया जा रहा है। तालिबानी शासन शैली में किए जा रहे इस कृत्य के पीछे का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ यही है कि पूरे प्रदेश में यह संदेश जाए कि बीजेपी को समर्थन किया तो यही हश्र होगा।

पहले भी ममता राज में पेड़ पर लटकाया गया था लोकतंत्र
29 मई को पुरुलिया के ही जंगल में 18 साल के त्रिलोचन महतो की हत्या कर शव को एक पेड़ से लटका दिया गया था। गौरतलब है कि दलित बिरादरी से आने वाले त्रिलोचन के पिता हरिराम महतो उर्फ पानो महतो भी भाजपा से जुड़े हैं, इसलिए उसने पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में जी-तोड़ मेहनत की थी। उसकी मेहनत के कारण बलरामपुर ब्लॉक की सभी सातों सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। जाहिर है यही सक्रियता उनके लिए जानलेवा साबित हुई और उन्हें सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। त्रिलोचन ने जो टी-शर्ट पहनी थी, उसपर एक पोस्टर चिपका मिला जिसपर लिखा था कि बीजेपी के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा।

भाजपा समर्थक महिला को निर्वस्त्र करने की कोशिश
बीते अप्रैल महीने में 24 परगना जिले में तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा की महिला कार्यकर्ता की सरेआम पिटाई की। महिला प्रत्याशी पर उस समय हमला हुआ जब वह बारुईपुर एसडीओ ऑफिस में नामांकन दाखिल करने पहुंची। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने महिला को सड़क पर पटक कर मारा और उसके साथ बदसलूकी की। उसे निर्वस्त्र तक करने की कोशिश की गई। हैरानी की बात है कि महिला कार्यकर्ता की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया लोग वहां खड़े तमाशा देखते रहे।

लेफ्ट के दो पार्टी कार्यकर्ताओं को टीएमसी सपोर्टर्स ने जिंदा जलाया
पंचायत चुनाव के दौरान बंगाल के रायगंज में तैनात चुनाव अधिकारी राजकुमार रॉय की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने निष्पक्ष चुनाव करवाने की कोशिश की। इसी तरह उत्तर 24 परगना में पंचायत चुनाव के दौरान ही सीपीएम के एक कार्यकर्ता के घर में आग लगी दी गई। इसमें कार्यकर्ता और उसकी पत्नी इसमें जिंदा जल गई। सीपीएम ने आरोप लगया कि इसमें टीएमसी का हाथ है।

पंचायत चुनाव में ममता की पार्टी ने लोकतंत्र का किया था अपहरण
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में टीएमसी ने बिना एक वोट डाले ही 34.2 प्रतिशत सीटें जीत लीं। ऐसा इसलिए हुआ कि इन सभी ग्रामीण सीटों पर टीएमसी यानि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की दहशत के सामने कोई दूसरी पार्टी उम्मीदवार ही नहीं खड़ा कर पाई। जाहिर है राजनीतिक प्रतिशोध में मारपीट, हत्या, बलात्कार का दूसरा नाम बन चुके बंगाल में दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं जुटा सका। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पश्चिम बंगाल में जो रहा है वह लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इससे पहले भी राज्य में अपनी मनमानी करती आई है। हमेशा मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू विरोध की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी को अपनी बुराई और आलोचना कतई बर्दाश्त नहीं है। ममता ने अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को चुप कराने का काम किया है। एक नजर डालते हैं ममता बनर्जी किस तरह सत्ता का दुरुपयोग कर रही हैं।

हिंदुओं की धार्मिक आजादी पर बैन 
पश्चिम बंगाल में एक हिंदू त्योहार बिना हिंसा, बिना दंगा, बिना हमले के नहीं मना सकते। सरस्वती पूजा, होली,  दीपावली,  रामनवमी, हनुमान जयंती, जन्माष्टमी हो या फिर बंगाल के ही परंपरागत पर्व ही क्यों न हो… ममता राज में इन पर्वों पर एक तरह से अघोषित बैन है। हिंदुओं को पूजा-पाठ तक के लिए कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़ते हैं वहीं अपनी परंपरा को निभाने में सरकारी डंडे खाने पड़ते हैं।

मुसलमानों को दामाद बनाने की नीति
हिंदुओं को अपनी ही धरती पर ही अपने धार्मिक रीति रिवाजों के लिए प्रशासन से परमिशन की जरूरत है, वहीं मुसलमानों को पश्चिम बंगाल में दामाद बनाकर रखा गया है। उनकी धार्मिक ‘आजादी’ पर किसी भी तरह की पाबंदी नहीं है चाहे वह खुलेआम हथियारों का भी प्रदर्शन क्यों न करें। आलम यह है कि हिंदुओं के मंदिर बोर्ड का चेयरमैन तक मुसलमानों को बनाया जा रहा है। मुसलमान लगातार हिंसा कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन भी उनके साथ खड़ा है।

दंगे रोकने में विफल ममता बनर्जी   
आंकड़े बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में हर आठ दिन में एक दंगा होता है। राज्य के सीमावर्ती इलाकों में जहां हिंदू आबादी कम हो गई है उन्हें हर रोज निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन ममता सरकार ने जैसे हिंदुओं से मुंह मोड़ लिया है। बेगुनाहों पर हमले हो रहे हैं, लोगों के घर जलाए जा रहे हैं, हजारों लोग बेघर हो गए हैं लेकिन क्या मजाल कि कोई ममता के सेक्युलरिज्म पर सवाल उठा सके।

बंगाल से हिंदुओं को भगाने की रणनीति
ये जानकर किसी को भी हैरत होगी कि राज्य के करीब 38 हजार गांवों में से 8000 ऐसे गांव हैं जहां एक भी हिंदू नहीं रहता। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।

बंगाल में बिगड़ा आबादी का संतुलन
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आई है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत बढ़ गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से दुगनी दर से बढ़ी है।

वंदे मातरम पर प्रतिबंध 
बंकिंम चंद्र चटर्जी ने वन्दे मातरम गीत लिखा तो उन्हें कभी यह अंदेशा नहीं रहा होगा कि उनके ही प्रदेश में इसपर पाबंदी लग जाएगी। लेकिन यह हमारा दावा है कि आप बंगाल के बहुतेरे इलाकों में वंदे मातरम गुनगुना भी देंगे तो आपका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। ये ममता का सेक्युरिज्म का मॉडल है जहां आप अपना राष्ट्र गीत तक नहीं गा सकते हैं।

 

Leave a Reply