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आखिर ममता बनर्जी एक भ्रष्ट आईपीएस अफसर की ढाल बन कर धरने पर क्यों बैठी?

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एक तानाशाह की तरह बर्ताव कर रही है। ममता बनर्जी को संविधान, संवैधानिक संस्थाओं की कोई परवाह नहीं है। उन्हें सिर्फ अपनी राजनीति की चिंता है और इसके लिए उन्होंने नैतिकता, नियम-कानून सभी को ताक पर रख दिया है। ममता बनर्जी एक भ्रष्ट और घोटालेबाज अधिकारी की ढाल बन गई है। ममता बनर्जी के पसंदीदा और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर अरबों रुपये के शारदा और रोजवैली घोटाले का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है और इसी जांच के सिलसिले में सीबीआई की टीम रविवार को राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुंची थी। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ये नागवार गुजरा और सरकारी प्रक्रिया में बाधा डालते हुए उन्होंने कोलकाता पुलिस को सीबीआई टीम को अरेस्ट करने का आदेश दे दिया। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य पुलिस ने कोलकाता में सीबीआई के दफ्तर पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद ममता बनर्जी मोदी सरकार के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाते हुए आरोपी पुलिस कमिश्नर के समर्थन में धरने पर बैठ गईं।

आखिर राजीव कुमार से पूछताछ का विरोध क्यों कर रही हैं ममता
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी क्या बात है, जिसने ममता बनर्जी को इतना बड़ा असंवैधानिक कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। आखिर वो क्या बात है, जिसकी वजह से ममता को एक आईपीएस अधिकारी के लिए धरना देना पड़ा। आखिर वो क्या बात है कि ममता को सीबीआई टीम को अरेस्ट करने का गैरकानूनी निर्देश देना पड़ा। दरअसल वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और वर्तमान में कोलकाता पुलिस के कमिश्नर राजीव कुमार के तार पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल लाने वाले शारदा और रोजवैली चिटफंड घोटालों से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2013 में शारदा चिट फंड और रोज वैली घोटाले की जांच का जिम्‍मा ममता सरकार ने विशेष जांच दल (एसआईटी) को दिया था। इसके मुखिया राजीव कुमार थे।

राजीव कुमार पर घोटाले के सबूत नष्ट करने का आरोप
वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ये दोनों मामले सीबीआई को सौंप दिए। बाद में सीबीआई ने आरोप लगाया कि राजीव कुमार ने कई डॉक्‍यूमेंट, डायरी, लैपटॉप, पेन ड्राइव, मोबाइल फोन उसे नहीं सौंपे। इस बारे में राजीव कुमार को कई बार समन भेजा गया, लेकिन वह सीबीआई के समक्ष पेश नहीं हुए। सीबीआई के मुताबिक इन्‍हीं सबूतों के सिलसिले में उसके अधिकारी रविवार रात राजीव कुमार के आवास पर गए थे। अब सवाल ये भी उठता है कि अखिर डायरी, लैपटॉप, पेन ड्राइव, मोबाइल फोन में वो कौन सी जानकारी है जो राजीव कुमार सीबीआई को नहीं बताना चाहते हैं। क्या राजीव कुमार ममता बनर्जी और टीएमसी के दूसरे नेताओं व सरकार के मत्रियों को बचाने में लगे हुए हैं।

आइए हम कुछ और ऐसी बातों पर नजर डालते हैं जो यह बताती है कि ममता बनर्जी खुद को सर्वशक्तिमान समझती हैं। 

खुद को ‘सर्वशक्तिमान’ और ‘संविधान” से ऊपर मानती हैं ममता बनर्जी!
पिछले वर्ष पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने राज्य की कानून-व्यवस्था संबंधित खर्च और अन्य चीजों का ऑडिट करने से कैग (CAG) को मना कर दिया था। हालांकि कैग ने इस पर कड़ा ऐतराज जताते हुए राज्य सचिवालय कहा था कि पश्चिम बंगाल सरकार संविधान के दायरे से बाहर नहीं हैं। कैग ने साफ किया कि पश्चिम बंगाल की ढाई हजार किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा है। ऐसे में यहां कानून-व्यवस्था का पालन किस हिसाब से किया जा रहा है, इसकी जांच बेहद जरूरी है। जनसत्ता और दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार पश्चिम बंगाल गृह विभाग की ओर से कहा गया कि राज्य की कानून-व्यवस्था में कैग को किसी हाल में नहीं घुसने दिया जाएगा। हालांकि कैग ने कहा कि देश के परमाणु कार्यक्रमों एवं सेना के जहाजों की खरीद-बिक्री संबंधी बड़े मामलों का भी ऑडिट करता है तो क्या पश्चिम बंगाल सरकार की कानून- व्यवस्था उससे भी ऊंची चीज है? 

आपको बता दें कि संविधान के तहत हर तरह की सरकारी संस्थाओं के खर्च का ऑडिट कैग कर सकता है। किसी भी तरह की ऐसी संस्था जिसे सरकारी तौर पर सहायता राशि दी जाती है, कैग के दायरे में आती है। कानून- व्यवस्था भले ही राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह पूरी तरह से राज्य सरकार की ही नहीं है। पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए केंद्र सरकार धनराशि देती है। राज्य में आइपीएस अधिकारियों की तैनाती राष्ट्रपति के द्वारा होती है।

दरअसल यह सब इसलिए हुआ कि ममता बनर्जी देश के संविधान और सिस्टम में विश्वास नहीं रखतीं और खुद को ‘सर्वशक्तिमान’ समझती हैं। हाल मे ही उन्होंने एनआरसी के मुद्दे पर कहा था, ”बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से निकालने की कोई कोशिश होगी तो ‘गृह युद्ध’ हो जाएगा।”

ममता ने संविधान और सिस्टम को तब भी ठेंगा दिखाया जब बीते वर्ष 17 जुलाई को मेदनीपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली की थी। राज्य सरकार ने ‘ब्लू बुक’ फॉलो नहीं किया। पीएम की सुरक्षा के लिए SPG को संसाधन नहीं दिए गए और रैली स्थल से पांच किलोमीटर तक स्थानीय पुलिस की तैनाती नहीं की गई। 

ममता ने बदले केंद्रीय योजनाओं के नाम
ममता सरकार ने ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’ का नाम  ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया है।

शाही इमाम को क्यों दी मनमानी की छूट ?
कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम को कानून को ताक पर रखकर लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमने की इजाजत ममता बनर्जी ने दी थी। जब पत्रकारों ने इमाम से पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये तो अब गैर-कानूनी है, तो उन्होंने जवाब दिया, ”ममता बनर्जी बोली आप जला के रखें, खूब जलाएं, आप घूमते रहें, हम हैं।” गौरतलब है कि मोदी सरकार ने एक मई, 2017 से लाल बत्ती की गाड़ियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। सिर्फ इमरजेंसी वाहनों को आवश्यकतानुसार लाल-नीली बत्ती के इस्तेमाल का अधिकार दिया गया है।

‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से पीछे हट गईं ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2015 में 100 स्मार्ट शहरों के विकास की योजना का शुभारंभ किया था। शुरुआत में पश्चिम बंगाल ने चार शहरों कोलकाता, विधान नगर, न्यू टाउन और हल्दिया को इस योजना के लिए नामांकित किया। लेकिन, बाद में न्यूटाउन जो 100 शहरों में से एक शहर चुना गया था उसे ममता बनर्जी ने स्मार्ट सिटी योजना से हटा लिया। 

RERA कानून भी नहीं बनने दिया
एक मई से पूरी तरह से लागू करने के लिए RERA कानून के तहत नियमों को नहीं बनाने वाले कुछ राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शामिल है। मई 2016 में संसद ने घर खरीदने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए इस कानून को पारित किया था। तब राज्यों को केन्द्र के कानून के आधार पर नियमों को अधिसूचित करने के लिए 27 नवंबर 2016 तक का समय दिया गया था। 

नदियों को जोड़ने की परियोजना के लिए तैयार नहीं
केंद्र की मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय को पूरा करने के उद्देश्य से मानस-संकोष-तिस्ता-गंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना शुरू करना चाहती है। इससे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी हो सकेगा। लेकिन ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। 

संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (JEE)का विरोध
देश के सभी इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए एकल संयुक्त परीक्षा के मोदी सरकार की पहल का ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा, कि राज्य की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को रद्द करके एकल संयुक्त परीक्षा राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र का अतिक्रमण है। 

स्वच्छ भारत सर्वेक्षण से परेशान ममता 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान के प्रति और जागरुकता पैदा करने और उसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक स्वच्छता सर्वेक्षण करवाने का निर्णय किया। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 500 शहरों में ये सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया, लेकिन ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के 60 शहरों को इस सर्वेक्षण से बाहर कर लिया। 

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