Home झूठ का पर्दाफाश LIES AGAINST MODI : हर वक्त विदेश यात्रा पर

LIES AGAINST MODI : हर वक्त विदेश यात्रा पर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ये आरोप लगता है कि वे हर वक्त विदेश यात्रा पर होते हैं। इसमें कोई दोमत नहीं कि मोदी की विदेश यात्राओं की जितनी चर्चा दुनिया में हुई है आज तक किसी नेता की नहीं हुई। परन्त, सच क्या है? क्या नरेंद्र मोदी हर वक्त विदेश यात्रा पर रहते हैं? आईए करते हैं पड़ताल।

पीएम मोदी ने 10 फीसदी वक्त विदेश में बिताया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन साल में 26 विदेशी यात्राएं की हैं और इस दौरान 45 देशों का दौरा किया है। सम्मेलनों में मौजूदगी को मिलाकर प्रधानमंत्री अब तक 56 देशों की यात्रा कर चुके हैं। पीएम ने इन यात्राओं के दौरान 3.4 लाख किमी की दूरी तय की है। विदेश में उन्होंने 119 दिन बिताए हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हर साल पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 देशों की यात्राएं कीं और करीब 39 दिन सालाना विदेश में रहे। यानी 10 फीसदी वक्त उन्होंने विदेश में बिताए।

ओबामा ने विदेश में बिताए 16.6 फीसदी समय
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सिर्फ 2016 में 16 देशों में द्विपक्षीय और 8 सम्मेलनों समेत कुल 24 देशों की यात्रा की और इस दौरान 59 दिन विदेश में रहे यानी 16.6 फीसदी वक्त ओबामा ने विदेश में बिताए।

विदेश में वक्त देने के मामले में जिनपिंग मोदी से आगे
अगर चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग के विदेश दौरों को सामने रखें तो उन्होंने 4 साल में 24 यात्राएं की हैं और 154 दिन विदेश में रहे। इसका मतलब ये हुआ कि 48 महीनों में 5 महीने से ज्यादा समय जिनपिंग विदेश में रहे। एक साल में करीब 39 दिन जिनपिंग देश से बाहर रहे। 10.54 फीसदी वक्त उन्होंने विदेश में बिताया।

पीएम मोदी ने कम वक्त में अधिक देशों की यात्रा की
इस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका और चीन के राष्ट्रपतियों की तुलना में कम वक्त विदेश में बिताया है लेकिन उनके मुकाबले अधिक देशों का दौरा किया है। पीएम मोदी ने चीन के प्रधानमंत्री से थोड़ा कम समय विदेश में बिताया, जबकि अमेरिकी प्रधानमंत्री की तुलना में एक साल में 19 दिन कम समय वे विदेश में रहे। लेकिन, जहां मोदी ने तीन साल में 26 विदेश यात्राओं के दौरान 45 देशों की यात्रा की, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक साल में 24 यात्राओं में 25 देशों का ही दौरा किया।

हर साल घटती गयी है पीएम मोदी की यात्राएं
पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में 11 विदेश यात्राएं कीं। दूसरे वर्ष यह संख्या नौ पर आ गयी और तीसरे वर्ष अब तक सिर्फ छह विदेश दौरे ही किए हैं। वहीं मनमोहन सिंह ने पहले साल 6, दूसरे साल 9 और तीसरे साल 6 यात्राएं की थीं। तीन साल में मनमोहन सिंह ने 21 विदेश यात्राएं की थीं। यानी नरेंद्र मोदी से महज 5 यात्राएं कम।

सफर के दौरान ही सोते हैं मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश यात्राएं बढ़ाई हैं लेकिन तरीका ऐसा विकसित किया है कि कम समय में अधिक से अधिक देशों की यात्राएं की हैं। पीएम मोदी विदेश यात्रा के दौरान विमान में ही नींद लेते हैं। रास्ते में किसी देश में रुक कर वे आराम नहीं करते। इससे काफी समय बच जाता है।

होटल का खर्च भी बचा लेते हैं पीएम
प्रधानमंत्री इस तरह से अपने विदेश दौरे की योजना बनाते हैं कि उन्हें ठहरने के लिए होटलों में कम से कम रुकना पड़े। वे उड़ान के दौरान ही नींद पूरी कर लेते हैं। इसलिए इस उद्देश्य से कहीं ठहरने की परंपरा से उन्होंने खुद को अलग कर लिया। बचे हुए समय का उपयोग अधिक देशों को कवर करने में वे करते हैं।

इतिहास हो गया पीएम के साथ लंबा-चौड़ा क्रू
पीएम मोदी अपने साथ पत्रकारों या अधिकारियों की भारी-भरकम फौज लेकर नहीं चलते। जाता वही है जिसकी दौरे में कुछ भूमिका होती है। बगैर भूमिका के लोगों को साथ ले चलने की चापलूस परंपरा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंद कराकर दरअसल विदेश यात्रा खर्च को बहुत सीमित कर दिया है।

पीएम मोदी की विदेश यात्राएं
2014
भूटान, ब्राजील, नेपाल, जापान, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, नेपाल
2015
सीसेल्स, मॉरिशस, श्रीलंका, सिंगापुर, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, चीन, मंगोलिया, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, आयरलैंड, यूएनओ (न्यूयॉर्क), ब्रिटेन, तुर्की, मलेशिया, सिंगापुर,
2016 
बेल्जियम, अमेरिका, सऊदी अरब, इरान, अफगानिस्तान, कतर, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, मेक्सिको, उज्बेकिस्तान, मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, केन्या, वियतनाम, चीन, लाओस, थाईलैंड, जापान
2017 श्रीलंका, जर्मनी, स्पेन, रूस, फ्रांस, कजाकिस्तान की यात्रा कर चुके हैं।

इसी महीने अमेरिका जाने वाले हैं उसके बाद इजराइल, जर्मनी, चीन, फिलीपीन्स जाने का भी कार्यक्रम इस साल तय है।

विदेश यात्राओं से क्या मिला
प्रवासी भारतीय एकजुट हुए 
प्रवासी भारतीयों की विदेश में प्रतिष्ठा बढ़ी। स्वदेश से उनका लगाव बढ़ा। नतीजा ये हुआ कि 2014 में उन्होंने 70 अरब डॉलर भारत भेजे।

प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश बढ़ा
यह प्रधानमंत्री के विदेश दौरों का ही नतीजा है कि देश में FDI में बढ़ोतरी हुई। 2015 में 35 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया, जो दुनिया में सबसे ज्यादा था। जहां 2013 में 34,487 अरब डॉलर FDI था, वहीं तीन साल बाद मोदी सरकार में यह बढ़कर 61,724 अरब डॉलर हो गया।

सेना का आधुनिकीकरण- पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा सौदे अटके पड़े थे। एक के बाद एक देशों के साथ रक्षा सौदे हुए। भारत ने इस दौरान अपने रक्षा बजट में 8 फीसदी की बढ़ोतरी की। सेना के आधुनिकीकरण के लिए रोडमैप पर काम चल रहा है। अगले 10 साल की योजना बना ली गयी है। इसमें 15 लाख करोड़ रुपये खर्च कर सेना का आधुनिकीकरण किया जाना है। यह सब अलग-अलग देशों से हुए समझौतों के तहत होगा।

मेक इन इंडिया को बढ़ावा- विदेश यात्राओं से पीएम मोदी ने मेक इन इंडिया के लिए समर्थन जुटाया। चीन समेत दुनिया भर की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं। राफेल और सुखोई विमान बनाने वाली कंपनियां भारत में अपनी निर्माण इकाई लगाने को तैयार हैं जिससे भारत आने वाले दिनों में रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भर हो जाएगा।

एनएसजी के लिए लामबंदी- एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए वैश्विक समर्थन जुटा। अकेले चीन को छोड़कर शेष सभी देशों ने भारत का समर्थन किया।

भारत कर सका सर्जिकल स्ट्राइक- सर्जिकल स्ट्राइक को दुनिया भर से मिले समर्थन के पीछे भी इन विदेश यात्राओं का प्रभाव रहा है। भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर पीओके में 60 आतंकियों को मार गिराया और उनके आतंकी कैंपों को नष्ट कर दिया।

मध्य एशिया में पकड़ ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के विकास और इस्तेमाल पर समझौता। यह चीन-पाक द्वारा ग्वादर बंदरगाह समझौते की काट माना जा रहा है। ईरान से समझौते के बाद भारत की सीधी पहुंच अफगानिस्तान होते हुए मध्य एशिया तक होगी।

SCO की सदस्यता- चीन के प्रभुत्व वाले शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन में भारत को सदस्यता मिल सकी तो इसलिए कि भारत ने इसके लिए अच्छा होमवर्क किया था। विदेश यात्राओं का इस उपलब्धि के पीछे बड़ा महत्व रहा।

अमेरिका-इंग्लैंड के चुनाव में मोदी की नकल- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के दौरान भारतीयों में जो एकजुटता पैदा हुई है उसका असर दिखने लगा है। भारतीयों का वोट पाने के लिए अब मोदी की नकल पर नारे बनाए जा रहे हैं। अमेरिका और इंग्लैंड के चुनाव में ऐसे नजारे खूब देखने को मिले। पीएम मोदी की लोकप्रियता को इन चुनावों में भुनाने की कोशिश की गयी।

भुला दिए गये पड़ोसी देशों के साथ नये सिरे से बहाल हुए संबंध
42 साल बाद कनाडा पहुंचे पीएम
जब प्रधानमंत्री कनाडा गये तो यह 42 साल में पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा थी। ताज्जुब है जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं, जहां छुट्टियां मनाने भी पंजाब के नेता जाया करते हैं, उस देश में प्रधानमंत्री को जाने में 42 साल लग गये।
38 साल बाद UAE पहुंचे प्रधानमंत्री
संयुक्त अरब अमीरात ऐसा देश है जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। यहां भी प्रधानमंत्री को पहुंचने में 38 साल लग गये। पीएम नरेंद्र मोदी ने वहां पहुंच कर नये सिरे से द्विपक्षीय संबंधों को गढ़ा।
28 साल बाद श्रीलंका का दौरा
श्रीलंका से भारत के प्राचीनकाल से संबंध रहे हैं लेकिन यहां भी पिछले 28 साल से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं पहुचे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दूरी को खत्म कर दिया।
नेपाल पहुंचने में लग गये 17 साल
नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का रहा है। बावजूद इसके दोनों देशों के बीच दूरी इतनी बढ़ गयी कि 17 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा हुआ जब नरेंद्र मोदी वहां पहुंचे। भारत-नेपाल संबंध अब नये सिरे से परवान चढ़ रहा है।
अरब देशों के साथ पहली साझा बैठक
अरब स्टेट के साथ भारत ने पहली बार बैठक की। इससे पहले ऐसी कोशिश कभी नहीं की गयी थी।
अफ्रीकी देशों के साथ पहला आयोजन
IAFS-III में अफ्रीकी देशों के साथ सामूहिक व्यस्तता भी पहली बार हुई। भारत इससे पहले ऐसे आयोजन में कभी शरीक नहीं हुआ था, जबकि अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंध महात्मा गांधी के जमाने से रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश यात्राओं के जरिए देश की साख को मजबूत किया है, भारतवासियों का विश्वास बढ़ाया है और विभिन्न देशों के साथ रिश्तों को नयी ऊंचाई दी है। इसका फायदा भारत को मिल रहा है। ये कहना भी सही नहीं है कि प्रधानमंत्री हमेशा विदेश दौरों में रहते हैं। आंकड़ों के जरिए देखा कि चीन, अमेरिका के राष्ट्र प्रमुख भारतीय पीएम की तुलना में अधिक समय तक विदेशों में रहते हैं लेकिन भारतीय पीएम अधिक मेहनती हैं। इसलिए कम समय में देश को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाते हैं। ये विदेश दौरे दरअसल भारत के लिए वरदान साबित हुए हैं।

 

 

 

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