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केजरीवाल की ‘अराजक’ कार्यशैली ने किया बेड़ा गर्क

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‘हां, मैं अराजक हूं, और जरूरत पड़ी तो मैं गणतंत्र दिवस परेड भी नहीं होने दूंगा।‘ दिल्ली का मुख्यमंत्री होते हुए भी 21 जनवरी, 2014 को दिया गया अरविंद केजरीवाल का ये ‘अराजक’ बयान उनके पूरे व्यक्तित्व को बताता है। अब ये अराजकता उनकी कार्यशैली में साफ दिखती है। दरअसल 2013 में जब वे पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे तब लोगों को उनसे बदलाव की राजनीति की एक नई शैली की उम्मीद थी। लेकिन बीते दो सालों में दिल्ली के लोगों ने उनकी टकराव, जिद, धमकी और मनमानी वाली राजनीति ही देखी है। शुचिता और ईमानदारी की बात करते-करते ‘अराजक’ केजरीवाल भ्रष्टाचार, झूठ, फरेब और भाई भतीजावाद की राजनीति को प्रश्रय देने वाले राजनेता का उदाहरण बन गए। उनकी वादाखिलाफी, अहंकार और अक्खड़पन ने न सिर्फ दिल्ली की जनता के सपनों को तोड़ा है, बल्कि उस भरोसे को भी तोड़कर रख दिया जिस बुनियाद पर लोग व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद करते हैं।

 
महज दो साल पहले की बात है जब अरविंद केजरीवाल नायक के तौर पर उभरे थे, लेकिन आज उनके अपने भी उन्हें खलनायक मानने लगे हैं। हाल फिलहाल में पार्टी के बड़े नेता कुमार विश्वास ने भ्रष्टाचार को लेकर उनपर सवाल उठाए हैं। इससे पहले पार्टी के फाउंडर मेंबर योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और प्रोफेसर आनंद कुमार ने भी केजरीवाल की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे, लेकिन उन्हें पार्टी से ‘लात’ मारकर निकाल दिया गया था। कई कद्दावर नेताओं ने पार्टी का दामन छोड़ दिया है और कई लोग केजरीवाल के साथ घुटन महसूस कर रहे हैं। आखिर ये सब क्यों हो रहा है?

एको अहम द्वितीयो नास्ति
2011 में गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन कै बैनर तले जनलोकपाल कानून के लिए आंदोलन हुआ। ईमानदारी, पारदर्शिता और शुचिता की राजनीति की उम्मीद में इस आंदोलन को लोगों का जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ। नतीजा रहा कि 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आया। लेकिन यहां केजरीवाल ने यू टर्न कुछ यूं लिया कि लोग हैरत में पड़ गए। जिस कांग्रेस विरोध के दम पर राजनीति की शुरुआत की थी, उसी कांग्रेस का साथ ले लेकर सरकार बना ली। लेकिन बेमेल गठबंधन की सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई। नतीजा 2015 में दोबारा चुनाव हुए और केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने अपार बहुमत दिया। लेकिन यहां उनके मन में अहंकार पैदा हुआ और उन्होंने पार्टी के संस्थापक सदस्यों प्रशांत भूषण, शांति भूषण, योगेन्द्र यादव और आनंद प्रधान को पार्टी से निकाल बाहर किया। इस फैसले के विरोध में मयंक गांधी, अंजलि दमानिया जैसे प्रमुख लोगों की आवाज को भी अनसुना कर दिया गया। इससे आहत होकर इन लोगों ने पार्टी छोड़ दी।


‘यूज एंड थ्रो’ की नीति पर चलते हैं केजरीवाल
‘अहंकारी’ अरविंद केजरीवाल ने सारे सिद्धांत को ताक पर रख दिया और ‘यूज एंड थ्रो’ की नीति अपना ली। हालांकि केजरीवाल का पिछला इतिहास भी कुछ ऐसा ही रहा है। पहले आइआरएस की नौकरी छोड़ी, फिर परिवर्तन संस्था को दगा दिया, इसके बाद अरुणा राय की संस्था को बीच में ही बाय-बाय कर दिया। इतना ही नहीं उस अन्ना हजारे और किरण बेदी को भी छोड़ दिया जिन्होंने केजरीवाल को तराशा था। केजरीवाल ने नई पार्टी बनाई और जब सत्ता में आए तो पार्टी के फाउंडर मेंबर प्रशांत भूषण, शांतिभूषण, योगेन्द्र यादव जैसी शख्सियत को भी पार्टी से धक्के मारकर भगा दिया।
सत्ता मिलते ही सिद्धांत खत्म
जिस जनलोकपाल कानून के आंदोलन के नाम पर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता पाई उसकी तो अब चर्चा तक नहीं करते। जनलोकपाल कानून के प्रावधानों के उलट इन्होंने अपराधी और भ्रष्टाचारी प्रवृति के व्यक्तियों को टिकट दिया। सत्ता को बनाये रखने के लिए सभी को रेवड़ियां बांटनी शुरु कर दीं।


मनमर्जी नियुक्तियां कीं
13 मार्च 2015 को आप सरकार ने अपने 21 विधायकों – अलका लांबा, प्रवीण कुमार, शरद कुमार, आदर्श शास्त्री, मदनलाल, श्री चरण गोयल, संजीव झा, नरेश यादव, जन सिंह (तिलक नगर), राजेश गुप्ता, राजेश ऋषि, अनिल कुमार वाजपेयी, सोमदत्त, अवतार सिंह कालका, विजेन्द्र गर्ग विजय, जन सिंह (राजौरी गार्डन), कैलाश गहलोत, मनोज कुमार, नितिन त्यागी, सुखबीर सिंह और सरिता सिंह को संसदीय सचिव बना दिया। इसके साथ ही सभी विधायकों को गाड़ी, ऑफिस के साथ अन्य सरकारी सुविधाएं भी दे दीं।

गोपाल मोहन की नियुक्ति
गोपाल मोहन की नियुक्ति पहले सलाहकार ( भ्रष्टाचार निरोध) के रूप में 1 रुपये के वेतन पर की गई जो बाद में सलाहकार (शिकायत) बनाए जाने पर 1.15 लाख रुपये हो गई।
राहुल भसीन की नियुक्ति
स्वीकृत पद के बिना भी राहुल भसीन को मुख्यमंत्री कार्यालय में सलाहकार के रूप नियुक्त किया गया। इतना ही नहीं बारहवीं पास राहुल भसीन को पर्यटन का सलाहकार नियुक्त किया गया, जबकि भसीन ने ट्रेवल व टूरिज्म का डिप्लोमा भी पूरा नहीं किया था।
अभिनव राय की नियुक्ति
अभिनव राय को 87,000 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर ओएसडी के पद पर नियुक्त करने में भी केजरीवाल ने नियमों की अनदेखी की।
रोशन शंकर की नियुक्ति
पर्यटन मंत्री के सलाहकार रोशन शंकर की भी नियुक्ति में सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया। विभाग ने शंकर की डिग्रियों के बारे में कोई छानबीन नहीं की और इसके बावजूद उन्हें 60,000 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर रख लिया।
वकील पी परीजा की नियुक्ति
वकील पी परीजा के पास उचित अनुभव न होने के बावजूद भी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सभी नियमों को दरकिनार करते हुए म्यूनिसिपल कराधान ट्रिब्यूनल का पूर्ण अवधि के लिए सदस्य (प्रशासनिक) बना दिया।
रिश्तेदार डॉ. निकुंज अग्रवाल की नियुक्ति
अगस्त 6, 2015 को केजरीवाल के करीबी रिश्तेदार डॉ निकुंज अग्रवाल को स्वास्थ्य मंत्री संतेन्द्र जैन का ओएसडी बना दिया गया।


जनता का धन लुटाया
समोसे और चाय में लुटाए करोड़ों
फरवरी 2015 से अगस्त 2016 के बीच केजरीवाल अपने कार्यालय में 1.20 करोड़ रुपये का समोसा और चाय खा गए।
बिजली बिल पर उड़ाए लाखों
19 मार्च, 2015 से 4 सितम्बर, 2016 के बीच मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास स्थान का बिजली बिल 2.23 लाख रुपये आया, जबकि इसी बीच संतेन्द्र जैन के घर का बिजली बिल 3.95 लाख रुपये था।
जनता के पैसे पर दावत दी
केजरीवाल ने अपने सरकार की दूसरी वर्षगांठ मनाने के लिए 11 से 12 फरवरी 2016 के बीच केजरीवाल ने अपने आवास शानदार दावत दी, इसमें एक थाली खाने का खर्च 12,000 रुपये था।इलाज के नाम पर अय्याशी 
अरविंद केजरीवाल ने बंगलोर के जिंदल नेचुरोपैथी केन्द्र में दस दिनों तक अपना और अपने परिवार का इलाज कराने के लिए 17,000 रुपये प्रतिदिन वाले कमरे में रहे।

विदेश यात्राओं में उड़ाए पैसे
अरविंद केजरीवाल के साथी मंत्री उपराज्यपाल की अनुमति के बिना 24 बार विदेश यात्राओं पर गए, जिसमें लाखों रुपये खर्च किए गए।
अपनों के लिए बदले नियम
केजरीवाल दूसरों पर उंगलियां उठाते रहते हैं लेकिन एक उंगली के बदले चार उंगली उनकी तरफ उठ जाती हैं।
तैयार की पत्रकारों की फौज
केजरीवाल कहते हैं कि देश की मीडिया और पत्रकार को राजनीतिक दलों ने खरीद लिया है, लेकिन उन्होंने तो पत्रकारों की एक फौज तैयार कर रखी है। इसके लिए बाकायदा दिल्ली डायलॉग कमीशन बनाया। ये कमीशन संस्थागत तौर पर पत्रकारों से संबंध बनाने का काम करता है। 27 पत्रकारों को दिल्ली के विभिन्न कॉलेजों की संचालन समिति का सदस्य बनाया।

नियमों की उड़ाई धज्जियां
अरविंद केजरीवाल ने अपने साले सुरेन्द्र कुमार बंसल को पीडब्लूडी विभाग में ठेका दिलवाया। वहीं सचिव राजेन्द्र कुमार अपनी कंपनियों को सरकारी काम देने और धन कमाने के आरोप में सीबीआई की गिरफ्त में हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने जान-पहचान के लोगों को सरकारी विज्ञापनों का काम दिया। जबकि मंत्री सतेन्द्र जैन हवाला करोबार में फंसे हुए हैं और अपनी पुत्री सौम्या जैन और केजरीवाल के रिश्तेदार डॉ निकुंज अग्रवाल को नियमों के विरुद्ध विभाग में नियुक्त करवाया।

नौटंकीबाज हैं केजरीवाल
मुफ्तखोरी को बढ़ावा देते हुए अरविंद केजरीवाल ने बीते चुनावों में पानी, बिजली के दाम आधे करके जनता के लिए काम करने का नाटक किया और अब एमसीडी के चुनावों में हाउस टैक्स माफी का वादा किया है।
वादों का मकड़जाल
परिवहन व्यवस्था, स्वास्थ्य के लिए, सार्जनिक स्थानों को वाईफाई करने, महिलाओं की सुरक्षा के लिए मार्शल नियुक्त करने की जो वादा किया था उसे अभी तक पूरा नहीं कर सके हैं।

केजरीवाल को विरोध स्वीकार नहीं
अरविंद केजरीवाल किसी तरह को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। नौकरी में दिक्कत आई तो उसे छोड़ दिया। परिवर्तन संस्था और अरुणा राय को इसी विरोध के चलते छोड़ा। वहीं राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे को दगा दिया और पार्टी के भीतर उनकी कार्यशैली पर आवाज उठाने वालों को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका। धीरे-धीरे उनका ये विरोध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जा पहुंचा। अब जब अपनी कार्यशैली से सबकुछ गंवाते जा रहे हैं तो संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग का ही विरोध करना शुरू कर दिया है।

काम न कर पाने की कमी को छुपाने के लिए आए दिन टिव्टर पर कमेंट करते हैं। उनके कुछ टिव्टर पर कमेंट हैं-


जनसेवा नहीं, चाहिए राजनीति की मेवा
दिल्ली के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उनकी जनसेवा की बात अब सत्ता के लालच में बदल चुकी है। दिल्ली में सड़क, परिवहन, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी समस्याएं खड़ी हैं, लेकिन केजरीवाल सत्ता को बनाए रखने के लिए व्यव्स्था को गलत साबित करने में लगे रहे और दो साल बिना किसी काम के बिता दिए।

 

दरअसल केजरीवाल का नजरिया समस्याओं के सभी आयामों और पक्षों को एकीकृत करके मिशन मोड में काम करने का नहीं है। बल्कि भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, झूठ, वादाखिलाफी, दोहरापन जैसी राजनीति के सहारे शॉर्ट कट से सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की उनकी चाहत है। आखिर जनता से दगा करने वालों को अब जनता कब तक बर्दाश्त करेगी।

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