Home केजरीवाल विशेष उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे केजरीवाल, विधायकों का प्रदर्शन बेहद खराब

उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे केजरीवाल, विधायकों का प्रदर्शन बेहद खराब

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व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर सत्ता में आए दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं। दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को इस उम्मीद के साथ सत्ता सौंपी थी कि उनकी पार्टी के विधायक आम आदमी के लिए आम आदमी की तरह और आम आदमी बनकर काम करेंगे। लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। उन्होंने व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर जनता को ठगने के अलावा कुछ नहीं किया। सीएम बनते ही उनका असली चेहरा आम लोगों के सामने आ गया।

बेहद खराब है विधायकों का प्रदर्शन
अरविंद केजरीवाल के विधायकों के कामकाज का स्‍तर काफी खराब है। दिल्ली सरकार के कामकाज पर प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि विधायकों के कामकाज का स्‍तर बहुत गिर गया है। पिछले साल 2016 में विधानसभा में सवाल पूछने के मामले में बीजेपी विधायकों का प्रदर्शन बेहतर रहा, जबकि आप विधायक अलका लांबा तीसरे नंबर पर रहीं। आम आदमी पार्टी के सात विधायकों ने 2017 के सत्र में एक भी सवाल नहीं पूछा। जबकि दो विधायकों रघुबिंदर शौकीन और मो इशराक ने 2016 और 2017 में एक भी सवाल नहीं पूछा। सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में आम आदमी पार्टी के सहीराम, रितुराज गोविंद और दिनेश मोहानिया शामिल हैं। पिछले वर्ष के मुकाबले इस साल आप विधायकों के प्रदर्शन में गिरावट देखने को मिली। साल 2015 में विधायकों का औसत प्रदर्शन 58.8 प्रतिशत था, जो कि साल 2016 में घटकर 53.4 प्रतिशत पर पहुंच गया।

दागी विधायकों की संख्या बढ़ी
रिपोर्ट के अनुसार आप दागी विधायकों की संख्‍या बढ़ी है। पिछले साल दागी विधायकों की संख्‍या 14 थी जो इस साल बढ़कर 39 (लगभग 56 प्रतिशत) हो गई है। इन विधायकों पर ना सिर्फ मुकदमे दायर किए गए हैं। बल्कि, 70 में से 25 विधायकों के खिलाफ चार्जशीट भी दायर हैं। पार्टी के कई विधायकों पर संगीन आरोप लग चुके हैं और कई तो जेल की हवा भी खा चुके हैं। समय के साथ केजरीवाल के साथी असीम अहमद, राखी बिड़लान, अमानतुल्ला, दिनेश मोहनिया, अलका लांबा, अखिलेश त्रिपाठी, संजीव झा, शरद चौहान, नरेश यादव, करतार सिंह तंवर, महेन्द्र यादव, सुरिंदर सिंह, जगदीप सिंह, नरेश बल्यान, प्रकाश जरावल, सहीराम पहलवान, फतेह सिंह, ऋतुराज गोविंद, जरनैल सिंह, दुर्गेश पाठक, धर्मेन्द्र कोली और रमन स्वामी जैसे आप विधायक और नेताओं पर आरोपों की लिस्ट लंबी होती गई है।

इसके साथ ही जैसे-जैसे सीएम केजरीवाल की हकीकत लोगों के सामने आने लगी, वैसे-वैसे उनके आंदोलन के साथी एक-एक कर अलग होते लगे। अन्ना हजारे, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, शांति भूषण, मयंक गांधी जैसे लोगों को या तो बाहर कर दिया गया या फिर वे खुद केजरीवाल की तानाशाही सोच से परेशान होकर अलग हो गए। आइए देखते हैं ईमानदारी और आदर्शवाद की दुहाई देने वाले केजरीवाल ने किस तरह लोगों को निराश किया है…

1.विज्ञापनों पर बहाया जनता का पैसा
केजरीवाल पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का आरोप लगा। गाइडलाइंस का उल्लंघन करने के कारण केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ रुपए वसूले जाएंगे। दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्य सचिव एमएम कुट्टी को विज्ञापन में खर्च पैसा वसूलने को कहा। तीन सदस्यीय समिति के अनुसार केजरीवाल सरकार ने आम जनता का पैसा विज्ञापन पर खर्च किया। केजरीवाल सरकार पर दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों में ऐसे विज्ञापन जारी करने का आरोप है जिनमें आप और केजरीवाल का प्रचार करने की मंशा झलकती है। इस मामले में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने का आरोप था। इन आरोपों में गलत और झूठे विज्ञापन देने और खुद के प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का प्रयोग करने का आरोप शामिल था। इसके पहले सीएजी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के विज्ञापन निर्देशों का उल्लंघन करने की बात कही गई थी।

2. बेतुके विज्ञापनों पर पैसों की बर्बादी
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी CAG की रिपोर्ट के मुताबिक केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना कर करोड़ों रुपए के विज्ञापन जारी किए। सरकार की इमेज चमकाने के चक्कर में जनता के 21.62 करोड़ रुपये पानी की तरह बहाए गए। इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार ने अन्य राज्यों में भी विज्ञापन पर 18.39 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। कैग के मुताबिक 2.15 करोड़ रुपये के विज्ञापन ऐसे हैं जो बेतुके हैं। शब्दार्थ नाम की प्राइवेट एड एजेंसी (आरोप है कि डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के साले की है कंपनी) को 3.63 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया जिसकी जरूरत नहीं थी।

3. चाय-समोसे पर करोड़ों लुटाए
फरवरी 2015 से अगस्त 2016 के बीच केजरीवाल के कार्यालय में 1.20 करोड़ रुपये के समोसे और चाय का खर्च दिखाया गया। आरटीआई के जरिए इस बात की सूचना सार्वजनिक हुई। आरटीआई से यह भी पता चला कि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सचिवालय स्थित कार्यालय में 8.6 लाख और कैंप आफिस में 6.5 लाख रुपये का चाय और स्नैक्स में खर्च किए गए।

4. दावत में उड़े लाखों
केजरीवाल ने सरकार की दूसरी वर्षगांठ मनाने के लिए 11-12 फरवरी, 2016 को अपने आवास पर दावत दी। एक थाली का खर्च 12, 000 रुपये था। नियमों के मुताबिक दावतों में खाने का खर्च 2, 500 रुपये प्रति थाली से अधिक नहीं हो सकता है। लेकिन नियमों की अनदेखी कर ताज होटल में दिए गए इस दावत में 11.4 लाख रुपये का खर्च आया था।

5. सैर सपाटे में लुटाया जनता का पैसा
2016 में जब दिल्ली में डेंगू का कहर था तो राज्य के डिप्टी सीएम फिनलैंड में मौज-मस्ती कर रहे थे। उपराज्यपाल की डांट पड़ी तो वापस आए। इसी तरह 11 अगस्त से 16 अगस्त, 2015 के बीच मनीष सिसोदिया ब्राजील की यात्रा पर गए। प्रोटोकॉल तोड़ अर्जेंटिना में इग्वाजू फॉल देखने चले गए। इसमें सरकार को 29 लाख रुपयों का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ा। बिजनेस क्लास में सफर करने वाला ये आम आदमी सितंबर, 2015 में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया भी गए। जून 2016 में बर्लिन की भी यात्रा की। इसी तरह मंत्री सत्येंद्र जैन और अन्य मंत्री, विधायक भी विदेश यात्राओं पर जनता का पैसा पानी की तरह बहाया। केजरीवाल के साथी मंत्री उपराज्यपाल की अनुमति के बिना 24 बार विदेश यात्रा पर गए।

6. अपने ही रिश्तेदार को बनाया ओएसडी
केजरीवाल ने अपने रिश्तेदार डॉ निकुंज अग्रवाल की नियुक्ति वेकैंसी ना होने के बावजूद की। पहले तो हस्तलिखित मंगवाए और इसी अवैध आवेदन के आधार पर उन्हें सीनियर रेजिडेंट बनवा दिया। इस नियुक्ति में सीबीसी गाइडलाइन्स और मेडिकल एथिक कोड की धज्जियां उड़ाई गईं। इसके एक महीने बाद सितंबर 2015 में उन्हें दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री का ओएसडी बना दिया। अग्रवाल ने दिल्ली सरकार द्वारा फंड किए गए अंतरराष्ट्रीय टूर भी किए है।

7. अपने ही साढ़ू को दिया ठेका
केजरीवाल के अपने साढ़ू सुरेंद्र कुमार बंसल पर पीडब्लूडी विभाग की मिलीभगत से कई ठेके लेने के आरोप लगे। इस मामले में तो पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों का कहना था कि, ‘‘हम भी लाचार है क्योंकि सुरेंद्र कुमार बंसल (दिल्ली के मुख्यमंत्री के ब्रदर-इन-लॉ) ने पूरे विभाग को लूटा और यह एक खुला रहस्य है और बंसल के जरिए गैर कानूनी तरीके से कमाया गया पैसा पंजाब और गोवा के चुनाव में खर्च किया गया।’’

8. जनता के पैसे से इलाज
दिल्ली में बड़े-बड़े अस्पतालों को छोड़ केजरीवाल बेंगलुरू के जिंदल नेचुरोपैथी केंद्र इलाज करवाने जाते हैं। जब से वे दिल्ली के सीएम बने हैं तब से दो बार वे इलाज करवाने जा चुके हैं। बीते साल तो उनका परिवार भी उनके साथ गया था। इस दौरान वे 17,000 रुपये प्रतिदिन वाले कमरे में रहे। इसका खर्च भी दिल्ली सरकार ने ही वहन किया। केजरीवाल के फाइव स्टार इलाज से सरकारी खजाने पर लाखों रुपए का बोझ पड़ा।

9. बिजली बिल में लाखों गुल
एक आरटीआई के जरिये यह भी पता चला कि 19 मार्च 2015 से 4 सितंबर 2016 के बीच मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास स्थान का बिल 2.23 लाख रुपये था। लेकिन बिजली बिल बचाने की नसीहत देने वाले मंत्री सत्येंद्र जैन के घर 3.95 लाख रुपये का बिजली बिल आया।

10. सुविधाएं देने को बना दिए संसदीय सचिव
13 मार्च, 2015 को आप सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। ये जानते हुए कि यह लाभ का पद है, उन्होंने ये कदम उठाया। दरअसल उनकी मंशा अपने सभी साथियों को प्रसन्न रखना था। उनका इरादा अपने विधायकों को गाड़ी, ऑफिस और अन्य सरकारी सुविधाओं से लैस करना था, ताकि उनके ये भ्रष्ट साथी ऐश कर सकें। लेकिन कोर्ट में चुनौती मिली तो इनकी हेकड़ी गुम हो गई। हालांकि केजरीवाल सरकार ने ऐसा कानून भी बनाने की कोशिश कि जिससे संसदीय सचिव का पद संवैधानिक हो जाए। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश से मजबूर होकर ये फैसला निरस्त करना पड़ा।

सरकार बनाने से पहले और बाद में सैकड़ों वायदे करने वाले केजरीवाल दिल्ली की जनता से एक भी वायदा पूरा नहीं कर पाए। चाहे वह सार्वजनिक स्थानों को वाई-फाई करने, डेढ़ लाख जनशौचलाय बनाने, 500 नये स्कूलों के निर्माण,10-15 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने, 3000 डीटीसी बसों के साथ एकीकृत परिवहन व्यवस्था देने, महिलाओं की बसों में सुरक्षा, 1000 मोहल्ला क्लिनिक देने, यमुना की सफाई के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट लगाने या फिर जनलोकपाल देने का वायदा हो उन्होंने दिल्ली की जनता को निराश ही किया।

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